ब्यावर के उद्योग-धन्धों पर एक नजर

सन २००३ के अनुसार
 
रचनाकारः वासुदेव मंगल
 
ब्यावर स्थापना से तिजारत एवं उद्योग में अग्रहणी रहा हैं कर्नल ड़िक्सन साहिब द्वारा 1 फरवरी सन् 1836 ई. में ब्यावर को अस्थित्व में लाने के बाद से ही इस नगर ने इस क्षेत्र में कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। सर्दव निरन्तर द्रुत गति से आगे से आगे बढ़ता ही गया। चरागाह एवं मैदानी व पठारी भाग होने के बावजूद भी इस मण्डी में ऊन की वर्ष पर्यन्त लगभग तीस हजार उन की बेल गाड़ियाॅं और लगभग इतनी ही कपास रूई की गाड़ियाॅं आती थी।
 
कच्चा माल उन व रूई और कपास के कारण ही उन की भारतवर्ष में ब्यावर विख्यात मण्डी हो गई। साथ ही कालान्तर में उस समय राजपूताने में ही नहीं अपित् भारतवर्ष में कृष्णा मिल्स् सन् 1893 में पहीली देशी कपड़ा मिल्स थी। यह कार्य सेठ दामोदरदास जी राठी के क्रान्तिकारी विचारों के कारण ही सम्भव हो सका।
श्यामजी कृष्ण वर्मा ने क्रान्तिकारी सन्यासी महर्षि दयानन्द सरस्वती के आशीवर्चन से यहां ब्यावर में उस समय 1892 में राजपूताना काॅटन पे्रस लगाया था।

उसके बाद तो एक के बाद एक निरन्तर लगभग बीस जिनिंग एवं पे्रसिंग कम्पनी उन्नीसवीं सदी के अन्त में ब्यावर में लग चुकी थी आज के सौ वर्ष पहीले। उसी श्रृखॅंला में लेखक के पूर्वज रामगढ़ शेखावाटी से आकर ब्यावर में बसे थे जिनका यूनाईटेड काॅटन जिनिंग एवं पे्रसिंग फैक्ट्र चांगगेट बाहर ढलान में थी जो ‘नाडी के पेच’ के नाम से विख्यात थी जहा पर वर्तमान में महावीर गंज बसा हुआ हैं।ब्यावर में उधोग कायह विकास आवागमन के साधन सुलभ होने के कारण सम्भव हो सका। कालान्तर में बिजली सुलभ होने पर ब्यावर में अन्य कई प्रकार के उद्योग भी पनपने खुलने लगे।
 
भारत के आजाद होने के पश्चात् सरकार की कुछ हद तक सकारात्मक सहयोग ‘उद्योग नीति’ के अन्तर्गत ब्यावर में कई प्रकार के उद्योग कार्यरत हैः सीमेन्ट उद्योग, स्नफ उद्योग, बीड़ी उद्योग, एसबेस्टोज् उद्योग, बैटरी उद्योग, बूलन यार्न, कपड़ा मिल्स उद्योग, एल्यूमिनियम बर्तन उद्योग, तिलपपड़ी उद्योग, चमड़ा उद्योग, प्लास्टिक उद्योग, मसाले उद्योग, ग्राईन्डिंग उद्योग, होजरी उद्योग, कृषि उपकरण उद्योग, काॅटन वेस्ट उद्योग, लकड़की का सामान बनाने वाला उद्योग, डाईंग एण्ड प्रिन्टिंग उद्योग, पावरलूम उद्योग, कागज उद्योग, मणिहारी उद्योग, विघुत उपकरण उद्योग, उद्योगों के उपकरण के निर्माण करने वाला उद्योग इत्यादि उद्योग अपनी गुणवत्ता एवं आधुनिक तकनीक से निर्माण के कारण प्रसिद्ध है।
 
ये तमाम उद्योग जवाहर, इन्द्रा व शास्त्री उद्योगपुरी में चलाये जा रहे है।
 
इसीलिये सन् 1968 में ब्यावर लघु उद्योग संघ बनाया गया। सन् 1971 में ब्यावर उद्योग मण्डल लिमिटेड की स्थापना हुई। इसी प्रकार विभिन्न 68 चेम्बर आॅफ काॅमर्स् की स्थापना की गई है। ब्यावर पहीला ऐसा शहर है जहाॅं विविध प्रकार के उद्योग स्थापित है तथा देश के मध्य में स्थित होने से उत्पादित माल 24 घण्टे में भारतवर्ष के किसी भी शहर में पहुॅंचाया जा सकता है।
 
दुर्भाग्य से सरकार ने यहा के उद्यमियों को पूरा सहयोग नहीं दिया। यदि राजकीय नीतियां व्यवहारिक होती और सरलता लिये होती तो बात कुछ और ही होती। फिर भी अपने दम पर स्थपित इस शहर में उद्योगों की भरमार हैः तम्बाकू, बीड़ी, मिनरल्स्, सीमेण्ट, सीमेण्ट पाईप, प्लास्टिक, टाईल्स्, टेपेस्टिक /पर्दे का कपड़ा/, गलीचा, चकला बेलन, तिलपपड़ी, बैटरी, एल्यूमिनियम के बर्तन, रेडीमेड गारमेन्ट, मसाले, पर्दा पेन्टिगं, चमड़ा इत्यादि।
  ब्यावर उद्योगों की समस्याएइस प्रकार हैः

  • पर्याप्त बिजली सुलभ न होना।
  • सरकारी एजेंसी द्वारा उद्यमियों को हतोत्साहित करने की प्रवृति।
  • सरकार की कर नीति में भेदभाव।
  • वित्तिय सहायोगी सॅंस्थाओं द्वारा पर्याप्त ऋण उपलब्ध न करना समुचित प्रशिक्षण का अभाव
  • सरकार द्वारा अनेक उद्योगों को उद्योग का दर्जा नहीं दिये जाने के कारण व्यापारियों को मिलने वाली रियायत का लाभ नहीं।
  • मिनरल् ईकाईयों को सरकार द्वारा उद्योग नहीं मानने से व्यापारी सरकारी लाभ से वंचित।
  •  बिजली के नाम पर सरकार द्वारा लाखों रूपये प्रति ईकाई धरोहर राशि के रूप में लेना।
  • सिमेण्ट पाईप पर 20 प्रतिशत कर तथा प्लास्टिक पाईप पर 4 प्रतिशत कर
  • बीड़ी, तम्बाकू के केन्द्रिय कर में बेहताशा वृद्धि करना।
     
    सरकार को उद्योगों को संरक्षण प्रदान करने की नीति अख्तियार करनी चाहिये। जिससे सभी श्रेणी के उद्योग उन्नति कर सके। ऐसा करने पर उद्योगों का विकास द्रूत गति से हो सक्रेगा तथा उद्यमी भी भॅंली प्रकार से मुनाफा कमा सकेगें। ऐसी व्यवस्था सरकार को भविष्य में तुरन्त इस क्षेत्र को उद्योगों की दृष्टि से पिछड़ा क्षेत्र घोषित कर सुलभ करनी चाहिये ताकि उद्योग धन्धे संख्यात्मक दृष्टि से बहुत अधिक मात्रा में स्थापित किये जा सके।
     

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