लोकतन्त्र की सामन्ती सीढी 

पीढ़ी - दर - पीढ़ी 




रचनाकारः वासुदेव मंगल



भारत के समाज की संरचना सीढ़ीनुमा है जिसका प्रारूप जातिवादी व्यवस्था ने तय किया है अर्थात सबसे नीचे दलित वर्ग, उसके ऊपर व्यापार वाणिज्य और कृषि प्रधान वर्ग, उसके ऊपर सैनिक तथा शासक (राजनीतिक) वर्ग और ऊपर पुरोहित और सम्मानित पुराणपन्थी धार्मिक नेतृत्व। इसी प्रकार हमारी राजनीतिक व्यवस्था एक लम्बे समय से सामन्ती रही है और वह आज भी ज्यों की त्यों है।


आज लोकतन्त्रीय भारत में भी वहीं हो रहा है जो राजा महाराजा के जमाने में था। लोकतन्त्र में प्रजा का राज, प्रजा के लिये और प्रजा द्वारा चलाया जाता है। लेकिन लोकतन्त्र में भी आज लोकतन्त्रीय राज परिवार बन रहे है। यह सिलसिला स्वाधीनता सॅंघर्ष के दौरान ही शुरू हो गया था। मोतीलालजी नेहरू की इच्छा के विपरीत उनके बेटे को ठीक उनके बाद काॅंगे्रस अध्यक्ष बनाया गाॅंधीजी ने। और जवाहर लाल नेहरू की अनिच्छा अथवा उनके मौन के बावजूद कांगे्रस के वरिष्ठ नेतृत्व ने उनकी बेटी को प्रधानमंत्री बनाया। यहाॅं से सोच और विचार बदला। इन्दिराजी स्ंवय अपने बेटे को राजनीति में लाई तथा राजीव की हत्या के बाद कांगे्रस के सामन्त सरदार सोनिया गाॅंधी को मैदान में लाए। इन्दिराजी के एक पोते को राजनीति में लाए सामन्तवाद के तथाकथित शत्रु बाजपेयी जी और दूसरे पोते को लाई सोनियाजी।


डाक्टर राममनोहर लोहिया से लेकर भारतीय जनता पार्टी के छुटभैय्या तक ने नेहरू गाॅंधी वंशवाद को भरपेट कोसा किन्तु जब उन्होंने देखा कि जनता का मानस सामन्ती है तो उन्होंने अपने खेमें के सामन्तों के परिवारों को मैदान में उतारना शुरू कर दिया। जम्मू कश्मीर में शेख अब्दूल्ला की तीसरी पीढ़ी, उनकी विरासत सम्भाॅंले हुए है।


भारत के ऐतिहासिक सिंधिया राज परिवार की विरासत को सम्भाला भारतीय जनता पार्टी के मंच से राजमाता विजयाराजे सिन्धिया और अब उनकी बेटी वसुन्धरा राजे राजस्थान की मुख्यमंत्री है। अब इन्होंने अपने पुत्र को चैहदवीं लोकसभा के चुनाव में संसद सदस्य का उम्मीदवार बनाया है। कांगे्रस मंच से उनके बेटे माघवराव सिंधिया और अब ज्योतिरादित्य सिंधिया। राजस्थान में राजेश पायलट का परिवार भी राज परिवार बन गया है। राजस्थान के ही एक कुलीन सामन्ती परिवार भारत के वर्तमान वित्तमंत्री जसवन्तसिंह के राजकुमार को भारतीय जनता पार्टी ने दूसरी बार लोकसभा के लिए मैदान में उतारा है।


यह बात सहज और स्वाभाविक ही है कि जैसा लोक वैसा ही लोकमानस। जैसा लोक चरित्र वैसा ही लोकतन्त्र। यदि नेताओं को यह विश्वास होता है कि भारतीय लोक मानस सामन्तवाद को सहन नहीं करेगा तब उन्हें साहस नहीं होता कि वे किसी वरूण गाॅंधी राहुल गाॅंधी या मानवेन्द्र सिंह को पालने में से उठाकर सिंहासन के लिए पेश कर देते। जैसी भारतीय मतदाता की इच्छा और जैसी भारत की नियति।

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