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ब्यावर नाम के अस्तित्व को खतरा
10 जुलाई सन् 1835 ई0 को ड़िक्सन ने ब्यावर बसाने का पहिला दस्तावेज जारी किया था।
आलेख - वासुदेव मंगल

आज की राज्य सरकार ने ब्यावर के अस्तित्व को, यहाँ की जमीनों को, अपने राजस्व रेकार्ड में नहीं मानकार, ब्यावर क्षेत्र के अस्तित्व को खतरे में डाल दिया है। 
सरकार की इस बचकानी हरकत से हो सकता है कि ब्यावर नाम का भविष्य में नामों निशान ही नहीं रहे। 
सरकार के दो मन्त्रालय परस्पर इस मुद्दे पर आमने सामने है। शहरी विकास मन्त्रालय ब्यावर का विकास चाहता है अतएव निर्देशक स्थानीय स्वायत्व विभाग व उपनिर्देशक, ब्यावर के नाम से सभी कार्य करते आ रहे है। अतः ब्यावर नगरपरिषद् ब्यावर के नाम से सभी जमीनों के व मकानों के, दुकानो के काम कर रही है। 
जबकि दूसरी तरफ तहसील, उपपंजीयक, कोष कार्यालय ब्यावर की जमीनों का कार्य नये शहर के नाम से कर रही है। जबकि इन कार्योलय के नामपट ब्यावर तहसील कार्यालय, ब्यावर उपपंजीयक कार्यालय, ब्यावर कोषाधिकारी कार्यालय के नाम से है। 
राजस्थान सरकार के इन दो मन्त्रालयों के कामकाज का अन्दरूनी मामला है। जिसकों दुरूस्त करना सरकार का अपना काम है। इसका खामियाजा ब्यावर की जनता क्यों भूगते? 
मात्र यह कह देना कि ब्यावर नाम पटवार मण्डल में राजस्व रेकार्ड में नहीं है इसलिये ब्यावर को जिला नहीं बनाया जा सकता। इस बहानेबाजी से सरकार अब अधिक समय तक नहीं बच सकती। सरकार को ब्यावर को जिला बनाना ही पडेगा। 
पिछले 181 सालों के तथ्य सरकार के पास है। अब उसको ब्यावर के नाम का कौनसा तथ्य चाहिये। अपने राजस्व मंत्रालय के काम काज की गलती को व ब्यावर तहसील, कोष कार्यालय व उपपंजीयक कार्यालय की गलती को खुद दुरूस्त करे। 
ब्यावर नगर परिषद कार्यालय द्वारा जमीनों का काम ब्यावर के नाम से व ब्यावर तहसील, उपपंजीयन व कोष कार्यालय के जमीनों का काम नया नगर के नाम से करने का गोरख धन्धा अब अधिक समय तक नहीं चल सकता। यह विरोधाभाष सरकार को दूर करना ही चाहिये। 
स्थापना से, ब्यावर, ब्यावर शहर, ब्यावर जिला, ब्यावर मेरवाड़ा बफर स्टेट रहा है। राजस्थान राज्य में ब्यावर को मिलाये जाने के समय, इसको जबरिया क्रमावनत करके ब्यावर उपखण्ड का दर्जा, ब्यावर की जनता के साथ पिछले साठ सालों से सरासर धोखा है । जिस दर्द को ब्यावर की जनता चुपचाप बिना खिलाफत के सहन कर रही है। लेकिन अब यह दर्द और अधिक सहन नहीं किया जा सकता। जबकि ब्यावर को राजस्थान राज्य में मिलाते वक्त 1 नवम्बर सन् 1956 को ब्यावर जिले का दर्जा दिया जाना चाहिए था न कि ब्यावर उपखण्ड का। 
अब अपनी स्वयं की गलती का फायदा उठाकर राज्य सरकार अब ओर अधिक ब्यावर के जल, जंगल, जमीन की हेरा-फेरी नहीं होने देगी। जनता जागरूक हो चुकी है।
194 साल पहीले ब्यावर छावणी, 181 साल पहले ब्यावर शहर, 180 साल पहीले ब्यावर जिला और 178 साल पहीले ब्यावर मेरवाडा बफर स्टेट के नाम से सरकार के रेकार्ड में ब्यावर नाम दर्ज चला आ रहा है। 
इतना ही नहीं अपित् 145 साल से ब्यावर पोस्ट आॅफीस, 150 साल से ब्यावर म्यून्सिपल, 141 साल से ब्यावर रेल्वे स्टेशन, 181 साल से फौजदारी व दीवानी सभी संस्थान ब्यावर के नाम से कार्यरत है। सभी शिक्षण संस्थाएँ तथा हर प्रकार का कार्यालय ब्यावर नाम से आरम्भ से ही कार्यरत है। 
ब्यावर के नाम से ब्यावर का व्यापार और उद्योग लगभग 150 सालों से चल रहा है। ब्यावर के पुश्तैनी व्यापार और उ़द्योग को, चैपट कर हजारों लोगों को बेरोजगार कर दिया गया है। चालू कलकारखानों का नामोनिशान मीटा दिया गया है। पेड़ों और पहाड़ों को काट कर पर्यावरण को प्रदुषण में बदल दिया गया है। 
ब्यावर के नजदीक प्राईवेट कम्पनी को पाॅवर प्लान्ट लगाने की मन्जूरी देकर सरकार ने ब्यावर के लोगों के साथ खिलवाड किया है। मिट्टी के कारखाने को ब्यावर के नजदीक लगावाकर पिछले चालीस सालों से ब्यावर के साथ सरकार दमनपूर्ण नीति का खेल, खेल रही है।
सन् 1975 में राजस्थान राज्य में सबसे पहीले नगर सुधार न्यास का दफ्तर ब्यावर में ही खोला गया था, ताकि ब्यावर का सर्वागिंन विकास अच्छी तरह से हो सके। लेकिन दुःख के साथ लिखना पड रहा है कि बिना किसी कारण के सरकार ने सन् 1978 में ब्यावर नगर सुधार न्यास का दफ्तर बिना किसी औचित्य के हटा दिया। नतिजन ब्यावर की जमीनों की हेरा फेरी आज भी बरकरार है। मिट्टी के कारखानों से ब्यावर के लोगों का स्वास्थ्य प्रभावित हो रहा है। कई तरह की घातक बिमारियों जैसे कैंसर, तपेदिक, दमा व चर्म रोग फैल रहे है व पाॅवर प्लान्ट से घ्वनि प्रदुषण, जमीन में पानी का स्तर नीचे चले जाना इत्यादि ब्यावर क्षेत्र में हो रहा है। मिट्टी के कारखाने से मिट्टी और जहरीला धूआँ हवा में फैलकर खेतों में उपजाऊपन को समाप्त कर रहा है। इसलिए गन्दी फसल के जरिये कई तरह के घातक रोग फैल रहे। 
इस लेख के जरिये लेखक राज्य सरकार से मांग करता है कि ब्यावर में नगर सुधार न्यास का दफ्तर तुरन्त प्रभाव से कायम करें, ताकि जमीनों की हेरा फेरी ब्यावर में नया शहर के नाम से रोकी जा सके। 
साथ ही ब्यावर को तुरन्त प्रभाव से जिला भी घोषित भी किया जाये, ताकि इसका सर्वागिंन विकास हो सके। 
सन् 2002 में मसुदा पंचायत समिति को ब्यावर उपखण्ड से अलग कर मसुदा नाम से अलग उपखण्ड बनाया। अतः लेखक को मजबुर होकर ब्यावर के अतीत के गौरव को दुनिया के सामने लानेे के लिए सन् 2002 के अपे्रल महीने में ही लेखक को ब्यावर के इतिहास की वेब साईट (ब्यावर हिस्ट्री डाॅट काॅम) निर्मित कर लाॅन्च करनी पड़ी। ताकि ब्यावर हैरिटेज और इतिहास के विघट्न को रोका जा सके। सन् 2013 में टाॅटगढ को ब्यावर से अलग कर दिया, ताकि ब्यावर भविष्य में ऊपर नहीं उठ सके। सन् 1996 में 100 साल पुरानी कृष्ण मिल बन्द की गई बाद में एक एक करके दोनों मिले भी बन्द कर दी गई जिससे पाँच हजार मजदूर बेरोजगार हो गये। सन 1975 से सबसे पहले ऊन की मण्डी को केकडी और बीकानेर स्थानान्तरित कर दी गई। तत्पश्चात् कपास की मण्डी को बिजयनगर और गुलाबपुरा कर दिया गया। सरार्फा व्यापार को बन्द कर दिया गया तथा अनाज की मण्डी को कालू आनन्दपुर और जैतारण कर दिया गया। इसके प्रभाव से ब्यावर के लगभग पाँच हजार व्यापारी, मुनीम, गुमास्ते, आढतिये, तुलावटिये, पल्लेदार व दलाल बेरोजगार हो गये। इस प्रकार ब्यावर में कार्यरत सभी राज्य स्तर के व जिला स्तर के कार्यालयों को एक एक करके ब्यावर से अन्य स्थानों पर स्थानान्तरित कर दिया। लगभग 100 से 150 कार्यालय ब्यावर से अब तक हटा दिये गये है। यह ही सरकार के विकास का पैमाना है क्या?
अतः सरकार को वास्तविकता पर गौर करके ब्यावर को बर्बादी से रोककर ब्यावर के विकास में सजृनात्मक व सकारात्मक कार्य करना चाहिए और ब्यावर को तुरन्त जिला घोषित कर ब्यावर की जमीनों की हेरा-फेरी को रोकने के लिए तुरन्त ब्यावर में नगर सुधार न्यास का दफ्तर तुरन्त खोलना चाहिए। 

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