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राजस्थान प्रदेश में विलय के समय ब्यावर क्षेत्र 
यानि मेरवाड़ा स्टेट की विड़म्बना 
  
लेखक: वासुदेव मंगल   

अंगे्रजी काल में ब्यावर क्षेत्र एक बफर मेरवाड़ा स्टेट हुआ करता था और ब्यावर शहर उसका मुख्यालय। समय का चक्र घूमता रहा। ब्यावर शहर पुरातन काल में रूई, ऊन, सर्राफा व्यापार और अनाज की राष्ट्रीय व्यापारिक मण्ड़ी रही और सूती कपड़ा उद्योग की भी राष्ट्रीय मण्डी हुआ करती थी। मेरवाड़ा स्टेट की सीमाऐं उत्तर में खरवा, दक्षिण में दिवेर, पूरब में बघेरा और पश्चिम में बबाईचा हुआ करती थी। मेरवाड़ा स्टेट मेर जनजाति का क्षेत्र है जहाॅ पर आज भी यह जाति नरवर से लेकर दिवेर तक निवास करती है। इसमें रावत ओर मेहरात कौम सम्मिलित है।  
मेरवाड़ा स्टेट लगभग 100 साल तक यानि सन् 1823 से लेकर 1938 तक अपनी एक 144 मेरवाड़ा बटालियन सेना के अन्र्तगत सुरक्षित स्टेट रहा जहाॅं संस्कृति और साम्प्रदायिक सौहाद्रता की अनोखी मिसाल रही जो आज भी कायम है।  
इस क्षेत्र में 84 राजस्व गाॅंव थे जिनकी देखरेख एक कमिश्नरी के जरिये होती रही।   


जहाँ तक इस क्षेत्र में धार्मिक आस्था का सवाल है, यहाँ पर सन् 1860 से लेकर 1892 तक 32 साल तक ईसाई धर्म का प्रचार प्रसार इस क्षेत्र में होता रहा। उसके बाद 9 सितम्बर सन् 1881 में यहाँ पर  क्रान्तिकारी सन्यासी ऋषि दयानन्द सरस्वति पधारे जिन्होंने आर्य समाज की स्थापना की। 1904 ई. में ब्यावर में सनातन धर्म का प्रचार प्रसार करने धर्माचार्य स्वामी प्रकाशानन्द जी आये और उन्होंने यहाँ पर संस्कृत पाठशाला की स्थापना की। तत्पश्चात् जैन धर्म के धर्माचार्यों ने जैन धर्म का प्रचार प्रसार किया।  
19वीं सदी के उत्तरार्द्ध में व 20वीं सदी के पूर्वार्ध में यहाँ पर 52 सर्राफा हुआ करते थे जो व्यापारिक गतिविधियों के साथ-साथ बादशाह मेला, डि़क्सन छत्री का निर्माण और भारत देश की स्वतन्त्रता की गतिविधियों में क्रान्तिकारियों को आर्थिक सहयोग इसका एक ज्वलन्त उदाहरण रहा। 

  
20वीं सदी के आरम्भिक काल में यह क्षेत्र भारत के क्रान्तिकारियों का प्रशिक्षण केन्द्र रहा कारण अंगे्रजी मेरवाड़ा राज्य के साथ दो देशी रियासतें मेवाड़ और मारवाड़ जुडी़ हुई थी। ये रियासतें क्रान्तिकारियांें की महफूज जगह थी। क्रान्तिकारी गतिविधि के दौरान अंग्रेज सिपाही उन्हें पकड़ने जाते तो वे देशी रियासतों में भाग जाते थे और इस प्रकार सुरक्षित रहते।  
सन् 1938 के आस पास देशी रियासतों में भी प्रजामण्ड़लों की स्थापना होना आरम्भ हो गई थी। इधर सन 1938 में ही मेरवाड़ा स्टेट में सम्मिलित मेवाड़ और मारवाड़ के राजस्व गाँव उनको लौटाये जाने पर 144 मेरवाड़ा बटालियन सेना डिजाॅल्व कर दी गई और मेरवाड़ा स्टेट के बाकी अंग्रेजों द्वारा विजित राजस्व गाँवों को अजमेर अंग्रेजी राज्य में मिला दिये जाने से मेरवाड़ा स्टेट अजमेर मेरवाड़ा स्टेट कहलाने लगा।   
यहाँ तक तो मेरवाड़ा यानि ब्यावर क्षेत्र का विकास व्यापार और उद्योग दोनो ही में चरम सीमा पर था। परन्तु अजमेर के साथ मिला दिये जाने से मेरवाड़ा यानि ब्यावर क्षेत्र का विकास अवरूद्ध हो गया जो वर्तमान में आज भी वैसा ही है। कहने का तात्पर्य यह है कि ब्यावर स्वतंत्र मेरवाड़ा स्टेट सन् 1823 से लेकर 1938 तक विकसित राज्य की श्रेणी में रहा।  
  सन् 1947 में जब भारत स्वतंत्र हुआ तब तक अजमेर मेरवाड़ा राज्य अंग्रेजों द्वारा केन्द्रशासित प्रदेश हुआ करता था। परन्तु भारत की स्वतंत्रा प्राप्ति के बाद अजमेर मेरवाड़ा भारतीय केन्द्रशासित प्रदेश रहा। सन् 1952 में इस राज्य को भारत सरकार ने एक पूर्ण सी श्रेणी के राज्य का दर्जा प्रदान कर दिया जो 31 अक्टूबर 1956 तक प्रभावी रहा।   
1 नवम्बर 1956 को अजमेर मेरवाड़ा राज्य को राजस्थान प्रदेश में सम्मिलित करते समय अजमेर प्रदेश को तो जिले का दर्जा दिया गया। परन्तु मेरवाड़ा प्रदेश यानि ब्यावर प्रदेश को उपखण्ड स्तर का दर्जा दिया गया। यहाँ पर ब्यावर राज्य के साथ हमारे प्रदेश के चूनिन्दा हुक्मरानों ने हमारे ब्यावर प्रदेश का गला घोंट दिया। तब से लेकर आज तक 52 साल में 52 उपखण्ड अधिकारी तैनात हो चुके है एक प्रशासनिक प्रशिक्षण केन्द्र इसको बना दिया गया है।
यहाँ तक भी मामला रहता तो भी तसल्ली थी। परन्तु 30 मई सन् 2002 ई0 में ब्यावर उपखण्ड के और टुकडे़ करते हुए इसके 360 राजस्व गाँवों में से 144 राजस्व गाँवों को अलग करते हुए मात्र 216 राजस्व गाँव ही रख दिये गये। ऐसा अन्याय तो विश्व में ब्यावर क्षेत्र के सिवाय और कहीं भी देखने का नहीं मिलेगा जो अंग्रेजों के राज्य में ब्यावर एक उन्नत विकसित मेरवाड़ा राज्य रहा और हमारे हुक्मरानो के राज में एक दीनहीन, संक्रमित सताया हुआ दयनीय क्षेत्र जहाँ पर स्वतंत्रा के कई  साल बाद भी विकास का कोई नाम नहीं।   
वर्तमान में ब्यावर उपखण्ड में 8 नये राजस्व गाँवों को सम्मिलित करके इसकी संख्या 224 है।  
अब राज्य सरकार को सद्बुद्धि आयेगी और ब्यावर को जल्दी से जिला घोषित करेगी ऐसा लेखक का मानना है।  


लेखक 
वासुदेव मंगल 
गीता-कुँज, गोपालजी मौहल्ला, 
ब्यावर (राज.) 

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