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महान आदर्शों के प्रतीक-महाराजा अग्रसेन 


  
अग्रवाल समाज के आदि कुल प्रवर्तक ‘एक ईंट एक रूपया’ जैसी महान आदर्श समाजवादी व्यवस्था के प्रणेता, लोकतंत्र, समानता, सहयोग, भ्रातृत्व जैसे महान आदर्शों के पे्ररक छत्रपति महाराज श्री अग्रसेनजी की जयन्ती रचनात्मक कार्यक्रमों के साथ पूरे भारतवर्ष में मनायी जा रही हैं। 


  
महापुरूषों की जयन्ती मनाए जाने का इतिहास अत्यन्त प्राचीन हैं । जयन्ती मनाए जाने का उद्देश्य महापुरूषों के आदर्शों का स्मरण करना होता हैं तथा जहां तक हो सके उनके गुणों को अपने जीवन में अपनाने का प्रयास होता है। यदि कोई मानव आदर्श जीवन के विषय में अध्ययन करता हैं या श्रवण करता हैं तो उसे भी प्ररेणा प्राप्त होती है। महापुरूष किसी भी जाति, समाज एवं राष्ट्र के वे सूत्रधार होते हैं जिनके विकास का एक क्रम अनवरत चलता रहता हैं। 
  


अग्रसेन सर्किल , भगत चौराह ब्‍यावर

महाराजा अग्रसेन से प्रवर्तित अग्रवाल जाति आज एक ऐसी ही स्मृद्धत्ता के साथ पुष्पित, पल्लवित हो रही है। हाॅलाकि भारतीय समाज में बहुत कम ऐसे समा्रट हुऐ है जिन्हें नवीन भव्य समाज के सूत्रपात का आधार मिला हैं। महाराजा अग्रसेन का जन्म लगभग 5124 वर्ष पुर्व द्वापर युग के अन्त में एवं कलियुग के आरम्भ में पूर्व प्रतापनगर के राजा बल्लभ के यहाँ हुआ। महाराजा अग्रसेन ने अपनी दक्षता एवं कर्मठता को नव आयाम देकर एक नवीन नगर एवं राज्य की स्थापना की जो अग्रोहा कहलाता है। अग्रसेन ने लोकतान्त्रिक पद्धति का संचालन राज्य में 18 कूलों में अपने प्रतिनिधियों को देकर किया। 


  
औद्योगिक विकास में अग्रवाल समाज की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। इस समाज के लोगों का विश्वास है कि उद्योग एवं व्यवसाय में लक्ष्मी का वास होता है और उद्योगी पुरूष को ही लक्ष्मी प्राप्त होती है । अतः वे उद्योग एवं व्यवसाय द्वारा लक्ष्मी का अर्जन कर अपने लक्ष्मी पुत्र नाम की सार्थकता सिद्ध करते हैं। साथ ही साहस, जोखिम की पृवति, स्वाभाव की सरलता, सादगी एवं मितव्ययता की पृवति इनमें स्वतः ही विद्यमान होती हैं। धार्मिक अभिरूचि होने के कारण प्रत्येक अग्रवाल के घर में यज्ञ, धर्म-कर्म, पूजा-पाठ आदि का आयोजन होता रहता है। उनके सभी संस्कार धार्मिक विधि से सम्पन्न होते हैं। पत्येक घर में तुलसी का पौधा, देवी-देवताओं आदि की मूर्तियाॅं मिलती है।

आज समाज के प्रत्येक क्षेत्र में इस जाति की हस्तियाँ विद्यमान हैं। अग्रवालों ने देश-धर्म, साहित्य-कला, संस्कृति यानि प्रत्येक क्षेत्र में धूरन्धर नेता प्रदान किये हैं। हेमचन्द, विक्रमादित्य से लेकर भामाशाह, जमनालाल बजाज, लाला लाजपतराय, भारतेन्दु हरिशचन्द्र, सर गंगाराम, सर शादीलाल, राममनोहर लोहिया, शिवप्रसाद गुप्ता, डा. रघुवीर, काका हाथरसी, बनारसी दास गुप्त, लाला जगतनारायण, कप्तान दूर्गाप्रसाद चैधरी, द्वारकाप्रसाद अग्रवाल, आदि महापुरूष अग्रवाल जाति की देन हैं। 
  
किसी महापुरूष पर डाकटिकट प्रकाशित होना उनके गौरवपूर्ण कार्य को राष्ट्रीय स्तर पर मान्यता प्रदान करता है। श्री अग्रसेन के सम्मान में भारत सरकार ने 24 सितम्बर सन् 1976 को उनके पाॅंच हजार एक सौवें जन्म दिवस पर 25 पैसे का डाकटिकट प्रकाशित किया। डाकविभाग ने आप पर अस्सी लाख डाकटिकटें मुद्रित की जो किसी भी महापुरूष के सम्मान में प्रकाशित होने वाली टिकटों में सर्वाधिक थी। इसी प्रकार भारत सरकार राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या 10 का नामकरण भी आपके नाम पर महाराजा अग्रसेन राष्ट्रीय राजमार्ग नम्बर 10 रखा। इसी प्रकार दस लाख टन के भीमकाय भारतीय जलपोत का नामकरण भी आपके नाम पर महाराजा अग्रसेन जलपोत रक्खा। सरकार के उत्साहपूर्ण ये कार्य विश्व में फैले तीन करोड़ अग्रवालों के लिये गौरव का विषय है। ऐसे अग्रवाल समाज के आदिपुरूष को सत्-सत् नमन्। आज भी अग्रवाल जाति के लोग धर्मशाला कुऐं, बावड़ी, औषधालय, पाठशालाऐं, गौशालाऐं, नारीशाला, अनाथालय इत्यादि का निर्माण बहुतायात से करवाते हैं। गरीब बच्चों के लिए पुस्तक-बैंक, पाठशाला शुल्क एवं कसीदा-सिलाई केन्द्र की व्यवस्था करते हैं। गरीब बीमार लोगों के लिए भोजन, दवाई इत्यादि की व्यवस्था करते हैं। भारत के व्यापार की स्मृद्धि का कारण भी अग्रवाल जाति के लोग ही हैं जो भारी जोखिम उठाकर व्यापार करते हैं। अग्रवाल विश्व के प्रत्येक हिस्से में फैले हुऐं हैं। 

लेखक व़ासुदेव मंगल 

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