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राजस्थान में राष्ट्रीयता के जन्मदाता स्वर्गीय श्री अर्जुन लालजी सेठी 
रचनाकार: वासुदेव मंगल  

राजस्थान में जन जागृति एंव् राजनीति के जन्मदाता श्री अर्जुनलाल सेठी का जन्म जयपुर में 9 सितम्बर सन् 1880 ई. को खण्डेलवाल दिगम्बर जैनी श्री जवाहरलाल जी सेठी के यहाॅं हुआ। आप उच्चकोटि के लेखक, कवि, शिक्षक एंव् व्याख्यानदाता थे। साथ ही अनेक धर्मों तथा भाषाओं के ज्ञाता तथा राजनीति के प्रकाण्ड विद्वान थे। आप प्रथम श्रेणी के क्रान्तिकारी नेता थे। भारतीय राष्टृीयता के चारों चमकते हुए उज्जवल नक्षत्र (तिलक, गाँधी, जवाहर, सुभाष) आपको श्रद्धा व आदर की दृष्टि से देखते थे। राष्ट्रपिता गाॅंधी जी 5 जुलाई सन् 1934 को अजमेर में सेठी जी के घर मिलने को पधारे थे। पं. जवाहरलालजी नेहरू ने भी 23 अक्टूबर सन् 1945 में दिन के 3 बजे अजमेर की दरगाह शरीफ में स्वर्गीय सेठीजी की स्मृति में श्रद्धान्जली अर्पित की। 
आप विलक्षण बुद्धि के थे। एवं 1902 में 22 वर्ष की आयु में आपने इलाहाबाद यूनिवर्सिटी से बी.ए. की परीक्षा पास की। महाराजा काॅलेज, जयपुर में आपके सहपाठियों में हिन्दी के सुप्रसिद्ध लेखक स्वर्गीय श्री चन्द्रधर शर्मा गुलेरीजी भी थे। बी.ए. करने के पश्चात् सेठीजी चैम् (जयपुर) के स्वर्गीय ठाकुर श्री देवीसिंहजी के प्राईवेट शिक्षक रहे। सन् 1904 में आप दिगम्बर जैन महासभा द्वारा संचालित विद्यालय मथुरा में अध्यापक रहे। सन् 1905 में आप सहारनपुर आ गये। तत्पश्चात् 1906 में आपके सद्प्रयत्नों द्वारा जैन एज्यूकेशनल सोसाइटी की स्थापना हुई।  
शिक्षक का कार्य करते हुए भी सन् 1905 में बॅंगाल के स्वदेशी आन्दोलन में सेठीजी ने भाग लिया। सन् 1907 की सूरत की तूफानी काॅंन्फे्रंस में भी शामिल हुए। 
सन् 1907 में आपने श्री जैन वर्धमान विद्यालय की स्थापना जयपुर में की। भारत की प्रथम राष्ट्रीय विद्यापीठ होने का गौरव सेठी जी के ”श्री जैन वर्धमान विद्यालय“ जयपुर को ही है।  
शिक्षा आदि के साथ-साथ सेठीजी जैन समाज के उत्थान में भी अपना काफी समय देते थे। वह कभी भी किसी बडे जैन उत्सव को नहीं छोड़ते थे चाहे वह दक्षिणी मैसूर अथवा उत्तरी इटावा, अथवा पूर्वीय हजारीबाग या पश्चिमी लाहौर में ही क्यों न हो?“  
सेठीजी के सन् 1914 में पकडे़ जाने पर सारे भारत में तहलका मच गया। सैकड़ों समाचार पत्रों ने आन्दोलन किया। उनमें से -(1) मालवीयजी का ”अभ्युदय“ (2) गणेश शंकर विद्यार्थी का ”प्रताप“ (3) श्रीमती एनी बेसेन्ट का ”न्यू-इण्डिया“ (4) मार्डन रिव्यू कलकत्ता (5) लीडर (6) सुरेन्द्रनाथ बनर्जी का बॅंगाली (7) भारत मित्र (8) श्री वैंकटेश्वर समाचार (9) हिन्दू मद्रास (10) इण्डियन सोशल रिफोर्मर (11) भारतोदय (12) कलकत्ता समाचार (13) हिन्दी समाचार (14) अमृत बाजार पत्रिका (15) एडवोकेट (16) हिन्दी जैन गजट (17) जैन हितेन्द्र (18) दिगम्बर जैन (19) जैन तत्थय प्रकाशक (20) सत्यवादी (21) जैन मित्र (22) पंजाबी (23) गुजराती (24) कलकत्ता गजट आदि-आदि।  
इस प्रकार सेठीजी बिना किसी कारण के जयपुर दरबार की आज्ञा से 5 वर्ष का कारावास का दण्ड भोग रहे थे। आखिर विराट जन आन्दोलन से घबराकर सरकार ने सेठीजी को सुदूर दक्षिण में वैलूर जेल में भेज दिया। सेठी जी ने वॅंहा पर आमरण अनशन किया जिससे सारे भारत में हाहाकार मच गया। आखिर सजा समाप्त होने पर लगभग 6 वर्षों तक नारकीय कष्टों को भोगने के पश्चात् सन् 1920 के प्रारम्भ में वे रिहा किये गए। उनकी रिहाई पर देशव्यापी हर्ष मनाया गया। लोकमान्य गंगाधर तिलक असंख्य जन-समूह के साथ पूना स्टेशन पर पॅंहुचें तथाा पे्रम में उन्मन हो अपने गले का रेशमी दुपट्टा सेठी जी के गले में डाल दिया। जहाॅं भी सेठीजी गए वहीं उनका शानदार स्वागत किया गया। उस समय सेठीजी का देशव्यापी नाम था। देश का बच्चा-बच्चा उनके त्यागमय जीवन का कायल था। सेठीजी, लोकमान्य व गाँधीजी के बीच की कड़ी थे। सन् 1921 के गाँधीजी के आन्दोलन में भी सेठीजी ने भाग लिया व जेल गए। सन् 1922-23 में आपके हाथें में राजस्थान अजमेर मेरवाड़ा प्रान्तीय काँगे्रस की बागडोर आई।  
सितम्बर सन् 1931 में तेजा मेले के अवसर पर ब्यावर में प्रथम राजपूताना किसान-मजदूर कान्फें्रस सेठीजी की अध्यक्षता में हुई। ब्यावर मिल मजदूरों की हड़ताल के अवसर पर सेठीजी पुनः सन् 1936 में कार्य क्षेत्र में आये। सन् 1937 में खण्डवा में होने वाली जैन परिषद् में वे सम्मिलित हुए। सेठीजी निर्भीक प्रकृति वाले व्यक्ति थे। उन्होंने अपने विरोधियों की लेशमात्र भी चिन्ता नहीं की।  
सेठीजी दार्शनिक प्रवृति के एक भावुक व्यक्ति थे। उनके भाषण को जनता मन्त्रमुग्ध होकर सुनती थी। उनका ब्यावर में अन्तिम भाषण 13 अगस्त सन् 1939 में ”जैनिज्य तथा सोशलिज्म“ पर हुआ जो अधिक महत्वपूर्ण था।  
सेठीजी प्रबल समाज सुधारक भी थे। साहित्यिक क्षेत्र में भी सेठीजी किसी प्रकार कम नहीं थे। उनकी यह विशेषता थी कि राजनैतिक नेता होने पर भी दर्शनशास्त्र, धर्मशास्त्र तथा अन्य विषयों पर उनका अधिकार था। उन्होंने कुछ पुस्तकें भी लिखी जैसे - ”शूद्रमुक्ति“ ”स्त्रीमुक्ति“ एक महेन्द्रकुमार नामक नाटक भी लिखा। समय-समय पर अनेकों विषयों पर उनके लेख विविध पत्र-पत्रिकाओं में भी प्रकाशित होते रहते थे। उन्होंने कविताएँ भी लिखी।  
अन्त में 22 दिसम्बर सन् 1944 को अजमेर में अहिंसात्मक प्रतिहिंसा के शिकार हो गये। सेठी जी लोकमान्य बालगंगाधर तिलक के गरमदल व मोहनदास करमचन्द गाँधी के नरमदल के बीच की कड़ी थे। उन्होने दोनो दलों के बीच सेतु का काम किया। यह उनकी एक बहुत बड़ी विशेषता थी जो भारत के उस समय का कोई भी नेता नहीं कर पाया। सेठीजी की बहुआयामी विशिष्टिताओं के कारण ही सेठीजी सबके कृपापात्र एवं सम्मानित पुरूष बन गये। उनकी सानी का व्यक्ति उस समय कोई दूसरा नहीं था। उनके सोपान पर बाद के सभी देशभक्त चले और आजादी हासिल की। 


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