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ब्यावर का सार्वभौम धार्मिक स्वरूप 
रचनाकार:-वासुदेव मंगल 

  
ब्यावर धर्मिक आस्थाओं की नगरी है। इस शहर में सभी धर्मावलम्बी समान रूप से परस्पर प्रेम भाव से रहते हैं। ब्यावर की स्थापना भी धार्मिक स्वरूप पर ही हुई हैं। इसीलिये तो शहर शान्त, मधुर और धर्म परायण हैं। इस शहर में निवास करने वाला प्रत्येक व्यक्ति सन्तुष्ट हैं। उसकी मनोदशा सुह्रदय है। उसका मानसिक चित एकाग्र है। यहां पर वर्ष में अधिक समय तक विद्धान, विदुषियों तथा विभिन्न धर्माचायों का पदार्पण होता ही रहता है। 

 


इसके अतिरिक्त यहां बडे़ से बडे़ सन्त महापुरूष हुए भी है जैसे रामसुख दासजी महाराज, रामप्रतापजी शास्त्री, ब्रहम्मानन्द जी महाराज, अनुभवानन्द जी महाराज, जगत गूरू शंकराचार्य स्वामी निरंजन देव तीथ्र्। इत्यादि। इस शहर के संस्थापक र्कनल डिक्सन स्वयं एक धर्म परायण व्यक्ति थे। वह ईसाई धर्म के मानने वाले थे। इसलिये उन्होने ब्यावर की स्थापना को भी धार्मिक स्वरूप दिया। उन्होने ब्यावर शहर को क्रोस की आकृति पर बसाया। 
ब्यावर शहर के प्रमुख चारों दिशाओं के चार प्रमुख बाजारों व दरवाजों की स्थापना व निर्माण उसी के अनुरूप कराया। ब्यावर का ह्रदय कहलाने वाली वर्तमान में पाँचबत्ती चैराहा आधार बिन्दु है। सिर सूरजपोल दरवाजा, दाहिना हाथ अजमेरी दरवाजा, बायाँ हाथ मेवाडी दरवाजा और पैर चाॅंग दरवाजा है। क्रोस की आकृति को अगर ध्यान पूर्वक देखें तो विदित होगा कि भंलीभाॅंति दिगदर्शन करने से यह रूप ब्यावर की स्थापना निर्माण का मिलता है। चूनाचें डि़क्सन छत्री मानव आकृति या क्रोस आकृति के कन्धे हैं। क्योंकि यह क्रोस का मध्य बिन्दु है जिसके ऊपर सूरजपोल दरवाजा सिर है। चूंि‍क ईसा-मसिहा को शूली पर लटकाये जाने पर उनकी गर्दन दाहिन ओर लूढ़क गई थी। अतः यह दरवाजा बाजार के ठीक सीध में न बनाकर उसके दाहिने ओर की सामानान्तर गली की सीध में पूरब दिशा में बनाया गया। चूंकि गर्दन के दाहिनी ओर लूढ़क जाने से दाहिनी तरफ की कंधे की भुजा का अन्तर कम हो गया। अतः उतनी ही दूरी पर उत्तर दिशा में अजमेरी दरवाजे का निर्माण कराया। नाम अजमेरी दरवाजा इसलिये रखा कि उत्तर दिशा में अजमेर शहर स्थित है। 

बांये ओर कि भुजा का अन्तर दाहिनी ओर गर्दन के लुढ़क जाने से ज्यादा हो गया। अतः दक्षिण दिशा में उतने ही फासले पर मेवाड़ी गेट बनाया गया। क्योंकि इस दिशा में मेवाड़ है इसलिये इसका नामकरण मेवाड़ीगेट किया। अन्त में शहर के आखिरी छोर पश्चिम दिशा में चांग द्धार बनाया क्योंकि इस दिशा में चांग गाॅंव स्थ्।ित है। गौर से देखे तो मालूम होगा कि मानव आकृति या क्रोस के पैमाने में यह ही रास्ता सबसे लम्बा है क्योंकि यह क्रोस या मानव आकृति का अन्तिम छोर है। यह तो रही ईसाई धर्म के धार्मिक आधार की बात। 
अब हम हिन्दू धर्म के पहलू पर ब्यावर शहर की स्थापना का दिगदर्शन करते है। हिन्दू धर्मानूसार ब्यावर नगर कि स्थापना साॅंप के फन के आकार पर की गई है। साॅंप के फन का आकार देखने से विदित होगा कि सर बडी आकृति में हो जाता है। अतः इसी आघार पर उसके अनूरूप ही दूरी की स्थिति अनूसार क्रमशः सूरजपोल, अजमेरी दरवाजा व मेवाड़ी दरवाजा बनाया गया। उसी आकार में तीनो दरवाजों को ओढ़ता हुआ परकोटा बनाया गया व साँप की पूछॅं की आकार के अनुसार अन्तिम छोर पर चांग दरवाजा बनाया गया। 
अतः ब्यावर नगर की स्थापना का विशुद्ध धार्मिक स्वरूप है जिसके कारण ही यहाँ निवास करने वाले प्रत्येक प्राणी का मन, अन्तःकरण एवं चित शान्त व धार्मिक भावना से ओतप्रोत रहता है। यह भावना भौतिकवाद से बहुत दूर है। तब ही तो इस शहर में निवास करने वाला प्रत्येक प्राणी अपने को सुखी एवं धन्य मानता है। उसका किसी दूसरे स्थान पर जाकर बसने का मन नहीं करता। जैन धर्म के गूरू सन्त महात्मा भी चतुर्थ मास करने के लिए प्रत्येक वर्ष इस शहर में आते रहते है। सारा शहर धर्ममय हो जाता है।

दादा वाडी विजयनगर रोड ब्‍यावर जामा मस्जिद, लोहारान चौपड ब्‍यावर

 

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