फरवरी को ब्यावर की स्थापना का 178वाँ दिवस व 177वीं वर्षगांठ पर
‘ब्यावर’ अतीत का गौरव वर्तमान संक्रमण में और भविष्य सुनहरा
रचनाकार - वासुदेव मंगल


ब्यावर क्षेत्र राजपूताना की सन् 1823 में मध्यवर्ती अंगे्रजी फोजी छावनी बनीं। 1 फरवरी 1836 को इसके तत्कालीन फौजी हुक्मरान कर्नल चाल्र्स जार्ज डि़क्सन ने ब्यावर शहर के प्रवेशद्वार अजमेरी गेट के दाहिने गोखे के नीचे शहर की आधार शिला रखी और ब्यावर क्षेत्र को ‘मेरवाडा स्टेट’ घोषित करते हुए ब्यावर शहर को मुख्यालय बनाया। स्थापना से ही अंगेेजी राज्य होने के कारण इस शहर का द्रुतगति से विकास हुआ और ऊन, कपास ओर सर्राफा व्यापार में देखते-देखते ब्यावर शहर राष्ट्र स्तर की मंडी बन गई। ऊन में, पंजाब फाजिल्का के समकक्ष, कपास, रूई में अहमदाबाद के समकक्ष और सर्राफा व्यापार में बम्बई के जंवरी बाजार के समकक्ष। अतएव उस समय में पाँच हजार सेठ’ साहूकार, मुनीम-गुमास्ते, आड़तिये-दलाल व तुलावटिये-पल्लेदार आदि लोग ब्यावर के बाजार मंे व्यापार करते थे। जिससे ब्यावर शहर आयकर देश में देने वाला पहीला शहर बना। सन् 1880 में रेल आरम्भ होने पर उद्योग में भी तीन सूती कपडे़ की तीन मिल्स व आठ -दस जिनिंग फैक्टियों के कारण उन्नीसवीं श्ताब्दी के अन्त में और बीसवीं शताब्दी के प्रथम चतुर्थदश में ब्यावर शहर राजपूताना का मेनचेस्टर कहलाने लग गया। कारण व्यापार की तरह ही पाँच हजार मजदूर, कर्मचारी, अधिकारी प्रबन्धन वर्ग उद्योग में रात-दिन आठ धण्टे के अन्तराल से लगातार चैबिसों घण्टे रोजगार में लग गए। इस प्रकार ब्यावर में दस हजार जनशक्ति को रोजगार मिला हुआ था। यह सिलसिला लगातार एस सौ बीस वर्षों तक सन् 1836 से लेकर सन् 1956 तक चलता रहा और ब्यावर शहर और क्षेत्र विश्व में फलता-फूलता रहा।


सन् 1956 की एक नवम्बर को ब्यावर का वह काला दिन था जब इसको राजनैतिक स्तर पर अवनत कर दिया गया और इसको स्टेट से उपखण्ड बना दिया गया बावजूद तत्कालिन राज्य पुन्र्गठन आयोग और केन्द्रिय समिति की इसे जिला बनाये जाने के सिफारिश की। यह आज भी छप्पन साल से संक्रमण काल का दंश झेल रहा है। यहाँ के राजनैतिक जन प्रतिनिधियों ने कभी भी इसके उत्थान के विषय में नहीं सोचा। मात्र अपनी स्वंय की भलाई करने में लगे रहे छप्पन साल से। अब शंकर भगवान जागे है देखों अपने ताण्डव नृत्य से यह क्या करते है। यह तो शहर और गांवों दोनों के ही समान रूप से प्रतिनिधि है। गांव के तो वाशिन्दे है और ब्यावर के रहने वाले। अतः इनको क्षेत्रिय जन का भरपूर समर्थन भी मिला है। और ब्यावर क्षेत्र की भलाई की ललक जज्बा इनके मन में है और दृढ संकल्प के साथ बिना किसी भेदभाव के राजनीति से ऊपर उठकर इन्होंने कारवां इक्कटठा किया है। चाहते तो यह भी ओरों की तरह कहते, मैं तो एम एल ए हूँ। मुझे किस बात की कमी है। जनता जाए भाड़ में। मैं इनके लिये क्यों मंरू? पर नहीं जनता के सही सेवक है। प्रजा को राजा मानकर उनकी सेवा करने में मशगूल है। वाहरे शंकर प्रजा के सेवक। ब्यावर क्षेत्र में प्रकृति ने सब प्रकार की भरपूर सम्पदा दी है। वन, खनिज और भू-सम्पदा विपूल मात्रा में दी है। सरकार ने भी इस क्षेत्र का शोषण किया है। जो क्षेत्र अथाह धनराशि राज्य और केन्द्र के खजाने में प्रतिवर्ष दें और फिर वह शोषित रहे तो यह तो एक उस क्षेत्र के साथ ना ईन्साफी ही कही जायेगी। अरे पहीले तो विदेशी राज था तब ब्यावर सब तरह से भरपूर साधन सम्पन्न था। 
लेकिन हमारे द्वारा चुना हुआ जब शासक वर्ग आया तो व्यापार, उद्योग और जनता की घोर उपेक्षा होने लगी और स्थिति आज यह बिल्कुल रसातल में चली गई। एक एक करके व्यापार और उद्योग सब या तो यहां से हटा दिये गए या फिर बन्द कर दिये गए और यहां के जन प्रतिनिधि तमाशा देखते रहे या फिर अपनी अपनी भलाई में लगे रहे। यहां का ऊन का व्यापार केकड़ी व बीकानेर कर दिया गया। रूई का व्यापार बिजयनगर, गुलाबपुरा कर दिया गया। अनाज का व्यापार जैतारण कालू कर दिया गया और सर्राफा व्यापार बन्द कर दिया गया। इसी प्रकार तीनों कपडा मिलों को धराशायी कर दिया गया और जिनिंग फैक्ट्री भी हटा दी गई। इस प्रकार ब्यावर शहर के पाँच हजार व्यापारियों को और इतने ही पांच हजार मजदूरों को बेरोजगार कर दिया गया। धन्य है स्वतंत्र भारत की केन्द्र और राज्य सरकार जिसने ब्यावर क्षेत्र की पिछले छप्पन सालों में कितनी तरक्की की है नवम्बर 1956 से। सन् 1978 में यहां से नगर सुधार न्यास हटाया सन् 2002 में 360 राजस्व गाँवों में से 144 हटाये। सन् 2002 में ब्यावर में ए डी एम रेवेन्यु का पद सृजित किया लेकिन तब से ही यह पद रिक्त चला आ रहा है। सन् 2006 में यहां से पचास साल से चला आ रहा मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी का दफ्तर भी हटा दिया गया। जिला स्तर के करीब-करीब सभी कार्यालयों को छप्पन सालों में यहां से हटा दिया गया। कितनी भारी तरक्की की है ब्यावर की हमारी उत्तरोत्तर राज्य सरकारों ने। ब्यावर की जनता इसको हमेशा याद रखेगी। आज ब्यावर की स्थापना के पवित्र दिन पर हम सब क्षेत्रवासी सारे शिकवा भूलाकर ब्यावर क्षेत्र के उत्थान के लिये संकल्प ले तभी ब्यावर का स्थापना दिवस मानया जाना सार्थक होगा अन्यथा नही। ब्यावर का शोषण बहुत हो चुका। अब सभी मिलकर इसके विकास की बात सोंचे। 

रचनाकार: वासुदेव मंगल
गोपालजी मौहल्ला, ब्यावर
फोन नं. 252597


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