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अमर शहीद 
गणेश शंकर विद्यार्थी  

 

अमर शहीद गणेशजी का जन्म आसोज सुदी 14 रविवार विक्रम संवत् 1947 को कायस्थ कुल में प्रयाग में उनके ननिहाल में श्रीमती गोमतीदेवी के देवी के उदर से हुआ । आपके पिता श्री जयनारायण जी हथगांव जिला फतेहपुर के निवासी थे । आप अपने नाना मुंशी सूरज प्रसादजी के साथ तीन साल की अवस्था में कुछ दिन तक सहारनपुर में रहे जो असिसटेन्ट जेलर थें । सतरह साल की आयु में सन् 1907 में आपने द्धितीय श्रेणी में एण्ट्रेस पास किया । 
19 वर्ष की आयु में आपका विवाह 4 जून 1909 में हरवंशपुर (प्रयाग) के मुन्शी विश्वेश्वर दयालजी की पौत्री श्रीमती चन्द्रप्रकाश देवी से हुआ । 
गणेशजी 1 दिसम्बर 1909 ई. से 20 रू. मासिक पर पृथ्वीनाथ हाई स्कूल में अध्यापक हो गऐ । 20 वें साल की आयु में आप लेख लिखने में माहिर हो गये । मालवीयजी की अभ्युदय पत्र के लिये आप 40 रूपये मासिक पर 29 दिसम्बर सन् 1912 से 23 सितम्बर 1913 तक काम किया । 
9 नवम्बर 1913 ई. को गणेशजी ‘प्रताप’ समाचार पत्र लिखने लगे । 
प्रयाग में पढ़ते समय गणेश शंकर विद्यार्थी ने भारत में अगेंजी राज्य के लेखक पण्डित सुन्दरलाल शर्मा के ‘कर्मयोगी’ समाचार-पत्र के संचालन में काफी योगदान किया । विद्यार्थी बचपन से ही निर्भिक, लगन के पक्के व निष्ठावान व्यक्ति थे । पण्डित सुन्दरलाल शर्मा पंजाब केसरी लाला लाजपतराय के निजी सचिव थे जो ब्यावर में सेठ दामोदरदास राठी के पास अक्सर आया जाया करते थे । राजस्थान में जन जागृति के सूत्रपात कर्ता विद्यार्थी थे । विद्यार्थी के कारण ही राजपूताना की जन जागृति सब बाधाओं को कुचलती हुई आगे बढ़ सकी । उनको अनेक बार बडे़-बड़े प्रलोभन दिये गए । राजाओं की ओर से भय बताये गये । अनेक धमकियां दी गई । परन्तु विद्यार्थी में किसी प्रकार की परवाह किये बिना अनवरत रूप से राजपूताने की जनता के लिये लिखना निर्वाध रूप से चालू रक्खा । 
विद्यार्थी ने अपने पत्र ‘प्रताप’ के माध्यम से देश के युवाओं में जागृति पैदा की । राष्ट्र को भगतसिंह जैसे कई योद्धा आपने दिये । भगतसिंह जब एफ. ए. करके घर से लापता हो गए तो गणेशजी के पास कानपुर में ही रहे । व ‘प्रताप’ में काम करने लगे । अज्ञातवास में भगतसिंह ने अपना नाम बलबन्तसिंह रखा व कानपुर के राष्ट्रीय विद्यालय का संचालन किया । यह सन् 1925 के आस-पास की बात है । 
गणेशजी व्यक्तियों के चतुर पारखी थे । जॅंहा कहीं भी प्रतिभाशाली नवयुवक दिखता, फौरन उसे आगे बढ़ने के लिये तैयार करते । गणेशजी बड़े मिलनसार सहृदय व व्यवहार कुशल थे । जो भी कोई उनके सम्पर्क में आया उस व्यक्ति को वह अपना बना लेते थे । प्रताप पत्र ब्रिटिश शाही की नजरों में बहुत खटकता था । गणेशजी प्रारम्भ से ही ‘प्रताप’ द्धारा अधिकारियों के अत्यचारों का बडा जोरदार विरोध करने लगे । गणेशजी शुरू में बाल गंगाधर तिलक को अपना गुरू मानते थे । परन्तु बाद में वह गाॅंधी के भी अनुयायी हो गये । लोकमान्य के जैसा तेज व गाॅंधीजी की नम्रता दोनों का सम्मिश्रण आप में था । आपने गांवों के किसानों को और शहरों के मिल श्रमिकों को एक साथ संगठित किया । लोक सेवा ही सम्पादक का खास धर्म है । गणेशजी ने भारी कष्ट सहकर इसका आजन्म पालन किया । इसके लिये कई बार जेल गये, जमानतें जप्त करवाई, भारी आर्थिक कष्ट उठाये । गणेशजी के जैसे भारत में इने गिने पत्रकार ही होंगे जो स्वाभिमानी और खुद्दार होंगे । गणेश शंकर विद्यार्थी साहित्यकार होने के साथ-साथ हिन्दी-भाषा के प्रबल समर्थक थे । गणेश श्ंाकर विद्यार्थी राष्ट्रसेवक, साहित्यकार एवं पत्रकार होने के साथ-साथ एक उच्चकोटि के धर्मपरायण और बडे़ ईश्वरभक्त थे । ईश्वर में उनकी अटूट आस्था थी । 
सन् 1931 में कानपुर का भीषण हिन्दू मुस्लिम दंगा हुआ । बडा लोमहर्ष, हृदय विदारक दारूण वातावरण हो गया था उस वक्त । वीर गणेश शंकर से न रहा गया और भारत माता का यह लाडला सपूत ऐसी आग में कूद पडा और अपने आपको हिन्दू मुस्लिम एकता की वेदी पर, परोपकारिता के उच्च आदर्श पर अपने आपको न्यौछावर कर दिया । 
25 मार्च सन् 1931 के दिन वे मुस्लिम गुण्डों द्धारा मारे गये । उस समय गणेशजी मात्र 40 साल के थे । 
गणेशजी का राजपूताना की जन-जागृति में भी विशेष योगदान रहा और अजमेर व ब्यावर क्षेत्र की जनता के लिये तो विशेष कृपा रही उनकी । 
गणेशजी ने उस समय अपना जीवन भारत-माता की स्वतंत्रता के लिऐ उत्सर्ग कर दिया ।  भारत को स्वतंत्र हुऐ कई  साल  साल हो गये परन्तु गणेश जी जैसे बलिदानी, निस्वार्थ, देश-भक्त की स्वतंत्र भारत में आवश्यकता हैं । प्रायः आज देश के शासक में ऐसी देशभक्ति की भावना लुप्त हो गई है । आज शासक के स्वयं के उत्थान की भावना ही सर्वोपरि बन गई है इसलिए देश विकास नहीं कर पा रहा है । अतः ऐसे वक्त में गणेश शंकर विद्यार्थी जैसे महान सपूतों की याद आना स्वाभाविक है जो आज के समय में प्रासंगिक है । ऐसे महान देश-भक्तों की जयन्ति या पुण्य तिथी पर देश की युवापीढि़ को संकल्प लेना चाहिए कि देश से भ्रष्टआचरण को समूल मिटा देंगे और विद्यार्थी जैसे देश पर मर मिटने वाले सपूतों का अनुसरण करेेगें । आज गणेश शंकर विद्यार्थी, चन्द्रशेखर आजाद, भगतसिंह, सुभाषचन्द्र बोस, शचिन्द्र सान्याल, रामप्रसाद विसमिल, अर्जुनलाल सेठी, प्रतापसिंह बारहठ, ठाकुर गोपालसिंह, राजगुरू, सुखदेव और अन्य अनगिनीत बहुत सारे भारत माॅं के सपूत जिन्होंने अपनी जान भारत माता की स्वतंत्रता के लिऐ न्यौछावर कर दी । आज जब स्वतंत्र भारत की ऐसी दुर्दशा देखते हैं तो अग्रेजों का जमाना याद बरबस आ जाता है और सोचते हैं कि इससे तो वह जमाना ही अच्छा था जिसमें भ्रष्टआचरण का नामो निशान नहीं था । माताऐं एवं बहिनें सुरक्षित थी । सब लोगों को भरपेट भोजन मिलता था । काम मिलता था । सब लोग खुश नजर आते थे । रोटी, कपड़ा और मकान की कोई समस्या नहीं थी । सब लोग सुखी थे । लेकिन आज हमारे स्वयं के राज में स्वयं के शासकों से जनता बेशख दुखी एवं परेशान हैं । देशी कल-कारखाने समूल नष्ट प्रायः कर दिये गये । विदेशी माल के लिऐ भारत का बाजार खोल दिया गया । परिणामस्वरूप आज सब लोग कामधन्धे की मन्दी से परेशान है । वे अपने परिवार भरण-पोषण नहीं कर पा रहें है । चारों तरफ तनाव का वातावरण दिखलाई दे रहा है । अतः ऐसे समय में गुलाम भारत माता के लिए मर-मिटने वाले वीर सपूतों की याद बरबस चेहरे के सामने आना स्वाभाविक है । आज बेरोजगारी मुॅंह बायेें खड़ी हैं । पढ़े-लिखे असंख्य नवयुवक-नवयुवतियाॅं रोजगार न मिलने के कारण घोर निराश है । उनके जीवन का लक्ष्य निरूत्तर है । ऐसे में देश कैसे तरक्की कर पायेगा किसी के पास भी इसका जवाब नहीं है । आज साक्षर लोगों को या तो नोकरी अथवा स्वयं का रोजगार करने की सुविधा सरकार को देनी चाहिऐ । तभी ही देश की तरक्की हो पायेगी । भारत जैसे विशाल जनसंख्या वाले देश है कुटीर उद्योग पनपाने की सख्त आवश्यकता है तब ही बेरोजगारी दूर हो सकेगी और देश खुशहाल हो सकेगा।


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