vasudeomangal@gmail.com


श्रमिकों के मसीहा 
सेठ घीसूलाल जाजोदिया 
  
रचनाकार: वासुदेव मंगल 

गोपालजी मौहल्‍ला ब्‍यावर
  
सेठ घीसूलाल जाजोदिया का जन्म लक्ष्मणगढ़ (सीकर) में सेठ मालीरामजी के घर मिति आषाढ़ शुक्ला 5 शुक्रवार सॅंवत् 1941 तारीख 27.6.1884 को हुआ था । सेठ घीसूलालजी के भाई रामदत्त जी ब्यावर कनीरामजी के गोद आ गए थे । अतः सेठजी भी उनके पास ब्यावर आ गए थे । रामदत्तजी ब्यावर में सेठ रामबक्स खेशीदास पौद्दार, रामगढ़वालों की दुकान पर मुनीम थे जो उनके घर के सामने ही फतेहपुरिया बाजार में स्थित है । संवत् 1969 में आप बम्बई चले गए जंहा सटे्ट का व्यापार करने लगे और लाखों की सम्पत्ति के स्वामी हो गए । 


  
बचपन से ही निर्धनता की यातनाओं से गुजरते हुए उन्होंने जीवन की यथार्थता का अनुभव किया । यहीं कारण हुआ कि सेठजी के मन में पीडि़त मानवता के प्रति सदा दर्द का अहसास होता रहा । 
  
सन् 1919 में सेठजी ने ब्यावर में कांग्रेस की स्थापना कर यहाॅं राष्ट्रीय जीवन प्रारम्भ किया । उस समय सेठजी के ब्यावर में बाबू रामकरणजी व बद्रीदत्तजी हेडा और श्री जमालुददीन मखमूर उनके सहयोगी थे और अजमेर से कुॅंवर चांदकरण शारदा व मिर्जा अब्दुल कादिर बेग ब्यावर आये थे । बाद में सन् 1920 में स्वामी कुमारानन्द ब्यावर आये और सेठजी के राजनीतिक साथी बन गए । सेठजी ने यह द∂तर अपनी फतेहपुरिया बाजार स्थित हवेली के बाई तरफ ऊपर की मॅंजिल वाले कमरे में शुरू किया । इस प्रकार त्रिमूर्ति - राष्ट्रीयता की ब्यावर में हो गई । सेठ दामोदरदास राठी, सेठ घीसूलाल जाजोदिया व स्वामी कुमारानन्द ।   
सन् 1920 में सेठजी प्रथम बार नागपुर कांगे्रस में शामिल हुए । आपने जीवन पर्यन्त तक मजदूरों की सेवा की और जब-जब मजदूरों की हड़ताल हुई सेठजी उनकी अग्रिम पंक्ति में रहे । सन् 1921 में ब्यावर की मजदूरों की हड़ताल का श्री मणिलालजी कोठारी व श्री नाथूलालजी घीया के सहयोग से कुशलता पूर्वक संचालन किया । इस हड़ताल के लिये लगभग पच्चीस हजार रूपये आपने उस वक्त दिये । सन् 1921 के कांगे्रस आन्दोलन में भी आपने पर्याप्त सहायता दी । 
  
सन् 1923 में आप म्युनिसिपल कमेटी के सदस्य चुने गए । कमेटी में रहते हुए भी आपने ब्यावर की जनता की खिदमत की । वाटर वक्र्स उपसमिति के संयोजक के रूप में आपने निष्पक्ष रूप से नागरिकों के दुखों को दूर किया । 
  
26 जनवरी सन् 1930 को ब्यावर में कांगे्रस अध्यक्ष की हैसियत से सेठजी ने ब्यावर के कांगे्रस जनों को राष्ट्रीय स्वतन्त्रता की प्रतिज्ञा दिलाई थी । उस दिन आपके नेतृत्व में स्वतन्त्रता दिवस बडे़ उत्साह के साथ ब्यावर में मनाया गया था । 
  
राजस्थान में सर्व प्रथम नमक कानून तोड़ा गया । आपके नेतृत्व ने ब्यावर की जनता में प्राण फुंक दिये थे । उनमें उत्साह की अपूर्व लहर दौड़ी । जनता जोश में पागल हो उठी थी । उस समय में राष्ट्रीय यज्ञ में, आये दिन नवीन कार्यक्रम, नई सभायें, जुलूस व हड़तालें होती थी । ब्यावर में, मानो सेठजी ने कोई जादू कर दिया हो । 
  
सेठजी ने अपना सब कुछ खोकर और कभी पाने की इच्छा न करके ही तो जनता के हृदय को जीत लिया था । सेठजी ने धन को सदा तुच्छ समझा । ब्यावर सदा राजनैतिक हलचलों में आगे रहा । जनता में अथाह जोश था । हड़तालों व सभाओं का ताॅंता सा लगा रहता था । राष्ट्रीय यज्ञ में आहुति देने की लोगों में परस्पर बाजी लगी रहती थी उस वक्त । 
  
28 नवम्बर सन् 1931 केा कस्तूरबा गाॅंधी ब्यावर पधारी तथा आपका आतिथ्य स्वीकार किया । उनके आदेश पर आपने जिला काॅंग्रेस की अध्यक्षता स्वीकार की तथा जयनारायण व्यास को अपना मन्त्री चुना । सन् 1930 में नमक कानून तोड़ने पर आप गिरफ्तार कर लिये गए । 
  
सन् 1931 में बाबू रामकरण की मृत्यु से हुए रिक्त स्थान के म्युनिससिपल के उपचुनाव में चिम्मनसिंजी मेहत्ता के साथ कड़ा मुकाबला होते हुए भी आपकी जीत हुई । 28 दिसम्बर 1931 को आप ब्यावर के प्रतिनिधि के रूप में गाॅंाधीजी से भेंट करने बम्बई गए । 
  
सन् 1933 में ब्यावर के मिल मजदूरों की लम्बी हड़ताल का सेठजी ने सफल संचालन किया । 
  
सन् 1934 के अक्टूबर में आप बम्बई में होने वाली बम्बई कांगे्रस में शामिल हुए जो राजेन्द्र बाबू की अध्यक्षता में हुई । 
  
सन् 1936 में ब्यावर के मजदूरों द्धारा अस्सी दिन तक पूर्ण हड़ताल के अग्रदूत रहे । लगभग पांच हजार मजदूर हड़ताल पर थे जिनका सारा खर्चा सेठजी ने अपना सब कुछ न्यौछावर करके किया । फिर आपके फुफा जमनालाल बजाज ब्यावर आये और दोनों पक्षों में समझौता करवाया । जमनालाल जी बजाज महात्मा गाॅंधी के निकट सहयोगी थे । 
  
सन् 1937 में आपने राजपूताना मध्यभारत विद्यार्थी कान्फें्स के अधिवेशन में पूरा सहयोग दिया । यह अधिवेशन दिसम्बर में श्री के.एफ. नैरीमैन की अध्यक्षता में हुआ । 
  
सन् 1938 में आपने प्रान्तिय राजनैतिक परिषद् को सफल बनाने में पूरा सहयोग दिया । यह परिषद् स्व. श्री भूला भाई देसाई की अध्यक्षता में हुई थी । नैरीमैन व भूला भाई देसाई ने आपका आतिथ्य स्वीकार किया । 
  
जावरा अपने घर नवाव की ज्यादतियों के विरोध में तीन बार आन्दोलन किया । सन् 1938 में गन्ने की कीमतें कम करने के विरोध में आन्दोलन करने पर तीसरी बार पुनः जावरा नवाब ने आपको जावरा से निष्कासित किया । सेठजी पहली बार सन् 1920 में और दूसरी बार सन् 1934 में जावरा से निष्कासित किये गए थे । 
  
सन् 1939 में त्रिपुरी काॅंगे्रस में ब्यावर के प्रतिनिधि के रूप में भाग लिया तथा उसी वर्ष आप राजपूताना मध्यभारत प्रान्तीय काॅंगे्रस के उपाध्यक्ष निर्वाचित हुए । 
  
जनवरी सन् 1941 का स्वतन्त्रता दिवस आपके नेतृत्व में मनाया गया । 
  
सन् 1942 में ठाकुर बप्पा व रामेश्वरी नेहरू के ब्यावर पधारने पर नगर कांगे्रस के अध्यक्ष की हैसियत से आपने कार्यक्रमों का सफल सॅंचालन किया । 
  
सन् 1942 में तिलक जयन्ती आपके सभापतित्व में मनाई गई । 8 अगस्त 1942 में बम्बई की सभा में गाॅंधीजी ने ‘अगे्रजों भारत छोडो’ का नारा दिया । इस ऐतिहासिक सभा में ब्यावर से आप सम्मिलित हुए । 
  
15 अगस्त 1949 को स्वतन्त्रता दिवस के उपलक्ष में नगर कांग्रेस कमेटी के दफ्तर में विशाल जन-समूह के समक्ष आपने एक राष्ट्र पताका फहराई । 1950 की 26 जनवरी को जावरा में हाथी के ओहदे पर आपका विशाल जुलूस निकाला गया और किरमानी चैक में आपने राष्ट्रीय ध्वज लहराया । 
  
सेठजी सत्य, अहिंसा, हिन्दू-मुस्लिम एकता, गौ सेवा व हरिजन उद्धार के प्रत्यक्ष प्रतीक थे । चन्द्रशेखर आजाद आापकी बगीची में गुप्त अवस्था में रहे । आपके धार्मिक विचार उदार थे । आपने ब्यावर के पास माताजी की डूंगरी पर सिड्डियां बनवाकर मार्ग सुगम किया । 
  
जुलाई सन् 1950 में आप स्वर्ग सिधारे । आपकी स्मृति में नगर परिषद् ने स्टेशन मार्ग पर जाजोदिया पार्क बनवाया जो अब दयनीय स्थिति में है । 
  
आवयकता है आज ऐसे कर्मवीरों के आदर्श पर चलने की जिन्होंने भारत माता की बलि-वेदि पर अपना सब कुछ न्यौछावर कर भारतमाता को अंगे्रजों की गुलामी की जंजीरों से आजाद कराकर आपके हाथों में सौंपकर गए हैं । देखते है आप इस ब्यावर को कितना विकास दे पाते हैं जिसने राष्ट्रीय स्वतन्त्रता सॅंघर्ष में केन्द्रिय रूप से अग्रहणी भूमिका निभाई थी । आज सेठ घीसूलाल जाजोदिया के आदर्श प्रासंगिक है । वास्तव में ब्यावर राजनैतिक धुरी पर जाजोदिया, राठी, खरवा नरेश, स्वामी कुमारानन्द व मुकुटबिहारी लाल र्भागव के कारण ही आया है जिन्होंने अपनी त्याग और तपस्या के कारण इस शहर को राष्ट्रीयता का रूप दिया । परन्तु आज यह ब्यावर ही स्वतंत्रता के बाद भी प्रदेश का उपखण्ड ही बना हुआ है । अभी तक जिला भी नहीं बन पाया । इसका मुख्य कारण वर्तमान की राजनैतिक शून्यता का है जबकि जिला मुूख्यालय के सभी घटक यहाॅं मौजूद है । आवश्यकता मात्र सशक्त राजनैतिक आधार की है जो विधानसभा में इसके लिये आवाज बूलन्द कर सके । वास्तव में जिला घोषित होने के बाद ही यह शहर द्रुतगति से विकास कर सकेगा जो कभी मेरवाड़ा बफर स्टेट की राजधानी हुआ करता था और बाद में अजमेर राज्य का जिला हुआ करता था । परन्तु आज उपखण्ड बना हुआ है । स्वतंत्रता के बाद ब्यावर क्रमोन्नत होने के बजाय क्रमअवनत हुआ है । ऐसा नमूना शायद ही स्वतंत्र भारत में कहीं देखने को मिले । इसकी राजनैतिक दयनीय स्थिति का मुख्य कारण यहाॅं के राजनितिज्ञों में परस्पर फूट का हैं जिसने ब्यावर का विकास अवरूद्ध किया है । 
  

 

Copyright 2002 beawarhistory.com All Rights Reserved