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मतदाता मतदान और प्रजातंत्र

भारत में वर्तमान में 65 करोड़ 40 लाख के लगभग मतदाता है। आज की राजनीति सत्ता की विचारधार बन गई है। लगभग 600 दल निर्वाचन आयोग में पंजीकृत है। लगभग 6 ऐसे दल है जिन्हें राष्ट्र्यि दल की मान्यता मिली हुई है और 30 से ज्यादा क्षेत्रिय दल है।

अवसरवादी गठबंधनों का दौर चल रहा है। सिद्धान्त की राजनीति की हत्या हो चुकी है। बहरहाल चूंकि हमारे देश में केन्द्रिय स्तर पर गठबंधन की राजनीति अभी प्रयोग के दौर से गुजर रही है इसलिए यह मानकर चला जा सकता है कि भविष्य में इस प्रकार की गठबंधन की राजनीति दिनों दिन मजबूत होगी।

प्रजातंत्र वह शासन है जो जनता के लिए, जनता द्वारा और जनता पर किया जाता है। भारत की प्रजातंत्र प्रणाली जहाॅं एक ओर शसक्त परिपक्व और विकसित हुई है वहीं दूसरी और अक्षमता और पदलोलूपता की दरारें समस्त प्रजातन्त्रीय ढ़ंाचे के धराशाही हो जाने का निश्चित संकेत भी देती है। देश के राजनीतिक क्षेत्र तथा सार्वजनिक जीवन में नैतिक मूल्यों के अवमूल्यन, राजनीतिक दलों के विघटन, अस्थिर सरकारों, राजनीतिक हत्याओं, भ्रष्टाचार और घोटालें वस्तुतः भारत की प्रजातन्त्रात्मक संसदीय प्रणाली में कई कमीयाॅं है। इसकी सफलता, साक्षरता, सामाजिक एवं आर्थिक समानता, स्वतन्त्र एवं निष्पक्ष प्रेस, संचार माध्यमों की स्वायतता, सुव्यवस्थित राजनीतिक दल, शसक्त विपक्ष, राष्ट्र्यि एकता आदि में निहित है।

भारत विश्व का सर्वाधिक विलक्षण विशेषताओं वालों देश हैं। यहाॅं पर अनेक जातियाॅं, धर्म, भाषाओं, सम्प्रदाय आदि के लोग निवास करते है। सभी के अपने-अपने अलग-अलग रीति-रिवाज, परम्पराऐं, रहन-सहन, पहनावा, खान-पान है। इन सभी के विचारों की पूर्ति करना, उनके मध्य आपसी समन्वय स्थापित करना, भाईचारे की भावना को मजबूत बनाना एक बहुत ही कठिन कार्य है। इसके अभाव में साम्प्रदायिक दंगे, जातिगत राजनीति, भाषाई व क्षेत्रवाद की जडे़ पनपना स्वाभाविक है। ऐसी विषम और प्रतिकूल परिस्थितयों में राष्ट्र् तथा प्रजातन्त्र की रक्षा के लिए हमारे और भावी पीढ़ी का दायित्व बनता है कि लोगों में जनजागृति द्वारा आपसी मन-मुटाव को दूर करते हुऐ हम प्रजातन्त्र की सुरक्षा में सहायक बने, उसके अनुकूल हों। प्रजातन्त्रीय प्रणाली में ही सामूहित के साथ-साथ व्यक्तिगत गरिमा का भी सम्मान होता है। इसकी सफलता के लिए राजनीतिक दलों के कार्य करने के लिए आचारसंहिता का निर्माण अत्यन्त आवश्यक है। राजनीति दल किसी खास विचारधारा के होते है या हो सकते है। यह सब स्वाभाविक है लेकिन सरकार किसी खास दल की विचारधारा को कार्यान्वित करने के लिए नहीं होती हैं। वह जनता के सभी वर्गो का प्रतिनिधित्व करती है। सरकार संविधान से चलती है किसी पार्टी के चुनाव घोषणा पत्र से नहीं। बहरहाल किसी भी हालत में यह नहीं भूलना चाहिए कि सरकार की एक लोकतान्त्रिक पवित्रता होती है। उसकी लोकतान्त्रिक सीमाएं होती है जिन्हें किसी खास दल की अभीरूचियों पर कुर्बान नहीं किया जा सकता।

लोकतन्त्र में मतदाता और मतदान केन्द्रों की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। मतदान के स्वरूप को सही ढंग से उजागर करने की विधि अधिक से अधिक मतदाताओं के परिचय पत्र बनाया जाना व इलेक्ट्र्कि वोटिगं मशीन के जरिये मतदान कराया जाना है। परिचय पत्र की उपयोगीता तब ही सार्थक सिद्ध हो सकती है जब मतदाता का नाम मतदाता सूची में सूचीबद्ध हो जहाॅं मतदाता मतदान करने जाता है ऐसा नहीं होने पर प्रशासन के पास इस प्रश्न का तत्काल कोई जवाब नहीं। इसे प्रशासनिक भूल माना जाये या लापारवाही या मतदाताओं में जागरूकता की कमी। आखिर कहीं न कहीं कुछ बातें रह जाती है जिसके कारण मतदाता सूची में अनेक मतदाताओं के नाम गायब हो जाते है। इस तरह की स्थिति लोकतन्त्र के लिए हास्यास्पद होती है जिससे लोकतन्त्र की नींव कमजोर होती है।

इलेक्ट्र्ोनिक वोटिंग मशीन द्वारा मतदान में, मतदान की प्रक्रिया से जूडे वर्ग की पक्षपात पूर्ण भूमिका, अशिक्षित ग्रामीण मतदाताओं की इन मशीनों की उपयोग की अज्ञानता के लाभ का अवैध मतदान करने में सहायक हो सकती है जिसे नजर अंदाज नहीं किया जा सकता। चुनाव आयोग की महत्वपूर्ण पृष्ठभूमि के साथ-साथ राजनीतिक दलों, प्रशासनिक व आम नागरिक के बीच सहयोग एवं तालमेल बहुत जरूरी है। गलत मतदान को रोकने में सभी की सार्थक भूमिका लोकतन्त्र एवं देश को मजबूत बना सकती हैं।
 

 

 

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