मूल मुद्दों से भटकता चुनाव अभियान



अमेरिका के नेतृत्व में उसके दरबारी देश अपनी प्रजा के लिए सामाजिक सरोकारों से लबालब आर्थिक माॅडल अपनाए हुए है जबकि कुचले निर्धन और विकासशील देशों के लिए व शक्ति यानि अमेरिका और ब्रिटेन उधार देने के बल पर सामाजिक सरोकार मुक्त आर्थिक माॅडल थोप रहे है। अमेरिका और ब्रिटेन में इसे मानवीय मूल्य कहा जाता है जबकि भारत जैसे देशों में इसे अनुदान कहा जाता है। उन देशों में कृषि और अन्य क्षेत्रों में भारत से पचासों गुणा अनुदान दिया जाता है। डब्ल्यू टी ओ यानि विश्व व्यापार संगठन जैसे विश्व समझोतों के भी शिकार विश्व बाजार बादशाह और उनका प्रभा मण्डल न होकर भारत जैसे देश है। स्पष्ट दबाव है भारत जैसे देशों पर सामाजिक सेवाओं से जूड़ी सेवाओं से अनुदान समाप्त करवाना दूसरा कारण सार्वजिक क्षेत्र के व्यवसायों और उद्योगों का विनिवेश करवाना जिसका सीधा सादा अर्थ हैं कि विदेशी बाजार तंत्र के सामने राष्ट्र्यि हितों की बली और मुद्दों पर बहस करने से प्रत्येक राजनीतिक दल का कतराना। आज भारत 52 खरब 50 अरब रूपयों के विदेशी ऋण के बोझ से दबा हुआ है। प्रत्येक जन्म लेने वाले बच्चे के माथे पर लगभग पाॅंच हजार रूपये देश का कर्ज है।



ब्यावर में चुनाव सभा को सम्बोधित करते राजस्थान के पूर्व मुख्यमंत्री श्री अशोक गहलोत



अगले वर्ष विश्व बाजार संगठन के समझोते के तहत भारत जैसे देशों पर आयात प्रतिबन्ध लागू होने जा रहा है जो कृषि और पशुपालन जैसे व्यवसायों को लील लेगा। जब भारत जैसे देशों के कृषि और पशुपालन व्यवसायों का स्वरूप क्या होगा और ग्रामीण और शहरी बरोजगारी कितनी बढे़गी।



वास्तव में चुनाव अभियान में इन मुद्दों पर गाॅंवों की पगड़ंडीयों से गली चैराहों और संसद तक बहस होनी चाहिए। इस मूल मद्दे पर किसी भी विचारधारा का कोई भी राजनैतिक दल या मिड़ीया बहस नहीं करना चाहते। वे इस मुद्दे पर खामोश रहकर 100 करोड़ लोगों को फीलबेड करा रहें है और विदेशी बाजार आकाओं को फीलगुड करा रहे है।



वास्तव में अप्रत्यक्ष रूप में आज भारत जैसे गरीब देशों पर अमेरिका और ब्रिटेन जैसे देश ही राज कर रहे है क्योंकि वर्तमान में सारी की सारी उनकी थोपी हुई नीति ही देश में काम कर रही है, परिणाम सामने है कि चालू व्यवसाय उद्योग बन्द हो रहे है जिससे रोजगार में लगे हुए लोग बेरोजगार होते जा रहे है और महंगाई सूरसूरा की तरह मुॅंह बायें दिनोदिन बढ़ती जा रही है। इसका सीधा सा अर्थ हैं देश के कुछ मुट्ठीभर लोग मालामाल हुए जा रहे है और गरीब और ज्यादा गरीबी की चक्की में पीसते जा रहेे है। इनकी सुध लेने वाला कोई ऐसा देश पर शासन करता या माईकालाल नहीं हैं जो देश को आर्थिक गुलामी के साथ साथ फिर से राजनैतिक गुलाम होने से बचा ले।



ब्यावर में चुनाव सभा को सम्बोधित करते हुए श्रीमति सुषमा स्वराज

 

 

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