देशी कुशासन बनाम विदेशी शोषण
देश के 80 प्रतिशत किसानो के साथ अन्याय हो रहा है। कोई 1 प्रतिशत किसान भी ऐसा नहीं होगा जो बिना ऋण के खेती कर सके। क्या यह बात सरकार के उच्च स्तर के नेताओं और अधिकारियों की जानकारी में है कि 90 प्रतिशत किसानों को ऋण फसल के समय पर बिजाई करने के लिए अपने आढ़तियों से ऋण लेना पढ़ता है और तमाम मण्डियों में अब तक साहूकारी ब्याज 24 प्रतिशत का है। कृषि गोदामो में किसानों की उपज के बजाय व्यापारियों का किया हुआ अनाज का स्टाॅक रखा हुआ है। पूरे देश में किसानों का कोई संगठन नहीं है। गाॅंवों के विकास और किसानों के हित के लिए सबसे पहीली आवश्यकता गाॅंवों सड़क से जोड़ने की है। उसके बाद गाॅंवों में बिजली आये तो सिचांई के साधन अधिक हो जायेगें। किसानों की खेती की उपज बढाने के लिए नवीनतम कृषि अनुसंधानों का ज्ञान किसानों के खेतो तक पहुंचना चाहिए जहां पर स्थानीय किसानों के बच्चों को आधूनिक खेती से सम्बन्धित जानकारी का व्यवहारिक प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए। किसान की फसल की बूवाई के समय पैदावार को स्थानीय खेतों पर ही सुरक्षित रखने की उसी जगह किसानों को 90 प्रतिशत अनाज की कीमत मिल जाय ऐसी व्यवस्था होनी चाहिए। बहरहाल हो ये रहा है कि विश्व व्यापार संगठन के तहत भारत के किसानों की कृषि उपज का कोई मुल्यांकन नहीं किया जाता है और न ही उनको कृषि सम्बन्धि पैदावार की कोई सुविधाऐं ही प्रदान की जाती है। ऐसी स्थिति में भारत का किसान दर दर की ठोकरें खाता फिर रहा है। भारत के किसानो को विदेशी कृषि जन्य उत्पादों पर निर्भर रहना पड़ता है जिससे उनके उत्पाद में गुणवत्ता वनिस्पत कम होती है जिससे उनको उनके उत्पाद का उचित मुल्य नहीं मिल पाता है।
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