ब्यावर की बदहाली

लेखक - वासुदेव मंगल

ब्यावर में भू माफियाओं की बाढ़ सी आ गई है। दो कपड़ों की मीलों के बन्द हो जाने से बेरोजगारों की सम्स्या सु रसुरा की तरह मुॅंह बाहें खड़ी है। ज्यादातर हजारो ग्रामीण और शहरी मजदूर हाथ थैला चलाने पर मजबूर है। लगभग एक हजार हाथ थैला मजदूर ब्यावर शहर के मुख्य बाजारों, गलीयों एवं चैराहों व चारों दरवाजो के बाहर के रास्ते में खडे़ रहते हैं जिससे आवागमन बूरी तरह से प्रभावित है। सड़क पर आवागमन पर कोई व्यवस्था नाम की चीज नहीं है। शहर के बाजारों के चैराहे सब्जी मण्डी बन गई। ग्रामीण व शहरी बेरोजगार सब्जीयों के थैले यहाॅं वहाॅं चाहे जहाॅं खडे़ रखते है। उनके लिए स्थानीय प्रशासन द्वारा कोई खडे़ होने के स्थान निश्चित नहीं किये गये है तथा कोई ट्र्ेफिक कंन्ट्र्ोल भी माफिक नहीं है। दिन में ही भारी माल ट्र्कों को शहर में प्रवेश करा दिया जाता है जो जनसाधारण के आवागमन में अवरोधक होते है। आवारा पशूओं का शहर के बाजारों व गलीयों में जमघट लगा रहता है। ब्यावर परकोटे के बाहर 15 किलोमीटर की परिधि में लगभग 400 अव्यवस्थित कोलोनिया हैं जहाॅं पर सड़क, बिजली, पानी व गन्दे पानी की नालीयाॅं नाम की मूलभूत सुविधाऐं नहीं है। क्या वर्तमान स्थानीय, राज्य व केन्द्रिय सरकारे इन ज्वलन्त समस्याओं की ओर ध्यान देगी? क्या इस शहर के आस-पास के 400 गांवों के निवासीयों को सैकड़ो फेक्ट्र्यिों से निकलने वाले धूंऐ, धूल व मिट्टी, पत्थर के कणो के वायु प्रदुषण व जलाशयों में प्रवेश होने वाले रासायनिकों के जल प्रदुषण से सरकार निजात दिला पायेगी? 





इसीप्रकार दो लोख की जनसंख्या वाले ब्यावर शहर में लगभग 30 हजार विद्यार्थी शिक्षारत है जो आस पास के गाॅंवों से पढ़ने के लिए यहाॅं पर प्रतिदिन आते है। इन विद्यार्थीयों के खेलने के लिए भी खेलने के माकूल इन्तजामात नहीं है। एक मिशन बाॅयज स्कूल का ग्राउण्ड है जो राष्ट्र्यि राजमार्ग संख्या 8 पर नगरपरिषद की दांयीं तरफ स्थित है उसे भी भू-माफिया लोग व नगर परिषद् के नुमाईन्दे मिलकर के खुर्दबुर्द करने में लगे हुए है। येन केन प्रकारेण इस मैदान पर दुकाने बनाकर बेचना चाहते है। इसी प्रकार ब्यावर शहर की खाली जमीनों को व आस पास की जमीनों को भू-माफिया व स्थानीय निकाय के लोग मिलकर के खुर्दबुर्द करने में लगे हुए हैं। वास्तव में पर्यावरण, स्वच्छता तथा बच्चों में शारीरिक विकास का ध्यान तो किसी भी सामाजिक, शैक्षणिक व साॅंस्कृतिक संस्था या व्यक्ति विशेष का है ही नहीं। हर कोई व्यवसायिक दिमाग हो गया है और सेवा कार्यों को भी व्यवसायिक कार्य बना लिया है और ज्यादा से ज्यादा आर्थिक फायदा उठाने का प्रयत्न हर कोई कर रहा है। 

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