राज्य व केन्द्र सरकार को उनके द्वारा ब्यावर की उजाड़ी गई पुरानी समृद्धि को पुनः स्थापित करना होगा
रचनाकार: वासुदेव मंगल
1. सन 1836 से ब्यावर को कर्नल डिक्सन ने सॅंयुक्त (एकीकृत) स्वतन्त्र मेरवाडा प्रदेश का मुख्यालय सो वर्ष के लिये बनाकर ब्यावर में ऊन, रूई व आनाज की राष्ट्रीय मण्डी का निर्माण किया था जो कालान्तर में इन वस्तुओं की देश में अग्रहणी मण्डी रही है तथा जंहा पर वर्ष पर्यन्त लगभग चालीस हजार ऊन, रूई कपास की बेल व ऊंट गाडियाॅं इस मण्डी में आती रही। स्वतन्त्रता प्राप्ति के पश्चात् हमारी चुनिन्दा राज्य व केन्द्रिय उत्तरवर्ती सरकारों ने इन वस्तुओं को यहाॅं की मण्डी से हटाकर क्रमशः बीकानेर व केकड़ी में ऊन की मण्डी, विजयनगर व गुलाबपुरा में रूई की मण्डी और जैतारण व विजयनगर में अनाज की मण्डी स्थापित कर दी। अतः हमारी सरकार तुरन्त प्रभाव से ब्यावर को इन वस्तुओं अर्थात् ऊन, रूई कपास और अनाज की व्यापारिक मण्डी पुनः स्थापित करें। ताकि इन वस्तुओं की व्यापारिक विरासत फिर से ब्यावर में कायम हो।
2. मेरवाड़ा प्रदेश को जन जाति क्षेत्र घोषित किया जाकर इस क्षेत्र की जन जाति रावत चीता मेहरात काठात को भी तुरन्त प्रभाव से वे सारे सॅंरक्षति अधिकार दिये जाय जो अन्य जन जाति जैसे भील, मीणा इत्यादि को दिये गए है। जिससे इस क्षेत्र के निवासियों का द्रुत गति से विकास हो सके। वास्तव में इस रावत चीता, मेहरात, काठात को जनजाति, सरकार द्वारा घोषित नहीं किया जाना इस जन जाति मेरवाड़ा क्षेत्र के साथ घोर सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक अन्याय है जिससे इस जन जाति के लोग व इनके बच्चे अन्य घोषित जन जाति की अपेक्षा, भारत की स्वतन्त्रता से आज पचपन साल के बाद तक भी पिछड़े व मानवीय दयनीय स्थिति में अपना जीवन बसर कर रहे है। इस जाति के बच्चों को अन्य घोषित जन जाति के बच्चों की तरह शिक्षा, चिकित्सा, नौकरियों, रोजगार, व्यापार, सामाजिक समानता में कोई आरक्षित फायदे अभी तक नहीं मिल पाये हैं जबकि इतिहास साक्षी है कि यह जन जाति दो हजार साल से इस क्षेत्र में निवास करती चली आ रही है। अतः इस क्षेत्र के निवासियों के साथ हमारी चुनिन्दा उत्तरवर्ती सभी राज्य सरकारों द्वारा सौतेला व्यवहार आज तक किया जाता रहा है।
3. अंग्रेज फौजी व सिविल अधिकारी कर्नल डिक्सन जो ब्यावर शहर के संस्थापक भी थे उन्होंने मेरवाडा प्रदेश को यानी पर्वतीय क्षेत्र को सन् 1839 में ही स्वतन्त्र मेरवाड़ा बनाकर ब्यावर को अगले सो साल तक इस मेरवाडा प्रदेश का मुख्यालय यानी राजधानी बनाई थी जो कालान्तर में सो साल तक सन् 1938 तक मेरवाड़ा प्रदेश की ब्यावर राजधानी बदस्तूर कायम रहीं। ऐसे ब्यावर के मेरवाड़ा क्षेत्र को, भारत वर्ष के स्वतन्त्र होने पर, हमारी चुनिन्दा उत्तरवर्ती सरकारों द्वारा जिला नहीं बनाया जाना ब्यावर मगरा मेरवाड़ा के निवासियों के साथ घोर अन्याय है। अतः इस क्षेत्र के निवासी तुरन्त प्रभाव से ब्यावर व इसके आस पास के क्षेत्रों को ब्यावर के साथ मिलाकर, ब्यावर को जिला घोषित किये जाने की मांग राज्य सरकार से पुरजोर शब्दों में करते है। ऐसा नहीं किये जाने पर ब्यावर क्षेत्र के निवासियों के साथ हमारी चुनिंदा उत्तरवत्र्ती सरकारों का यह कार्य सौतेले व्यवहार की श्रेणी में आता है जो अब सहन नहीं किया जा सकता।बडी हास्यासपद बात है कि जो क्षेत्र अंगे्रजों के जमाने में सौ साल तक राजनैतिक रूप से प्रशासनिक रूप से एक स्वतन्त्र मेरवाड़ा राज्य रहा उस क्षेत्र को, भारत की स्वतन्त्रता के 55 साल बीत जाने पश्चात् जिला नहीं बनाया जाना हमारे शासित हुक्मरानों द्वारा, हमारे पर किया गया सरासर अन्याय है। अतः ब्यावर को तुरन्त प्रभाव से जिला घोषित किया जाय क्योंकि इसके आस पास के लगभग चार सौ गांव आरम्भ से ही राजस्व की दृष्टि से इस क्षेत्र में आते है जो आज भी बरकरार है।
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