विश्व व्यापार और गेट समझौते का भारत के 

आर्थिक बाजार पर प्रतिकूल प्रभाव 



रचनाकारः वासुदेव मंगल 




विश्व व्यापार संगठन के प्रसंविदे के अनुसार भारत में यूरोपियन देशों के डेहरी के उत्पादनों को खोल दिये जाने से भारत का दुग्ध व्यवसाय एवं दुग्ध से तैयार किये जाने वाले उत्पादों के उद्योग चैपट हो रहे है। अब भारत देशी उत्पादों का बाजार नहीं रह गया है अपित् विदेशी वस्तुओं का उपभोक्ता बाजार बन गया है। 



विदेशी आयात की जाने वाली वस्तुओं का मूल्य वनिस्पत देशी वस्तुओं के कम इसलिए होता है कि उनके निर्मित करने पर पूंजी, तकनीक और श्रम व उनको परिवहन करने की लागत कम होती है। 



अतः देश की विशाल जनशक्ति और समय का तकाजा है कि हमारी सभी आर्थिक योजनाऐं जन शक्ति पर आधारित होनी चाहिए। इसके क्रियान्वयन के लिये सरकार को चाहिये कि भारत के प्रत्येक जरूरतमन्द किसान एवं श्रमिक को आसान किश्तों पर आवश्यक ऋण या या पर्याप्त कच्चे माल के साथ साथ आधुनिक तकनीक सुलभ करवाकर पर्याप्त आर्थिक सहायता उनको प्रदान की जानी चाहिये। ऐसी स्वयं की रोजनगार की योजना को अधिक से अधिक देश में लागू करने से ही भारत विश्व में आर्थिक क्षेत्र में समुचित उन्नति कर सकता है। भारत में विकसित देश विश्व व्यापार संगठन के अधिनियमों के तहत् भारत सरकार को अपनी शर्तों पर अधिकाधिक कर्ज के बोझ से लादकर भारत के बाजार को अपने विदेशी उत्पादों के लिये उपभोक्ता बाजार को बना लिया है। 



भारत में वन, खनिज एवं समुद्री सम्पदा प्रचुर मात्रा में उपलब्ध है जिसका दोहन यहाॅं की जनशक्ति को लगाकर कराये जाने की तत्काल आवश्यकता है। ऐसा किये जाने से ही भारतवर्ष जैसे विशाल जनसंख्या वाले देश का कल्याण सम्भव है नहीं तो स्वतन्त्रता प्राप्ति के 57 साल बाद भी विकास करने का यह मात्र छलावा ही है। 



अतः जनसम्पदा (श्रम) पूॅंजी व आधुनिक तकनीक तीनों घटक का ईमानदारी से समन्वय करके ही भारत का विकास किया जा सकता है अपित् नहीं। 

विदेशीयों ने गेट समझोते के अन्तर्गत भारत सरकार के साथ यह प्रसॅंविदा (समझोता) किया है कि प्रत्येक कृषि उत्पादन करने वाले किसान को विदेशी ऋण योजना के अन्तर्गत मात्र 10 प्रतिशत ही ऋण दिया जाता है ताकि भारत के किसान पूंजी के अभाव में हमेशा आर्थिक तंगी में रहकर विदेशियों की आर्थक दया पर निर्भर रहे ताकि विदेशियों की कृर्षि वस्तुओं का भारत का बाजार हमेशा के लिये उपभोक्ता बाजार बना रहे। 



भारत की मेघावी जनशक्ति का दूसरे विकसित देश बहुत कम पारिश्रमिक पर उनका आर्थिक शोषण अपने देशों में कर रहे है और ऐसा कर व देश अपार पैसा उन भारत के प्रवासी मेधावी जनशक्ति से कमा रहे है। फिर उनके चातुर्य से निर्मित की गई वस्तुओं भारत के बाजार में पुनः बेचकर विपुल दोहरी सम्पदा अर्जित कर रहे है। विकसित देशों के द्वारा भारत के हूक्मरानों को ऐसे प्रसंविदों के तहत अपार मोटी रकम कमीशन के रूप में हासिल हो जाती है। इसलिए वे चुप रहते है। 



इस प्रकार भारत की जनता का विश्व व्यापार से दोहरा शोषण हो रहा है। जिसे हमारे शासक प्रशासक लगातार नजरअंदाज करते जा रहे है। भविष्य में ये आर्थिक विषम स्थिति भारत देश के लिए विस्फोटक साबित हो सकती है जिसके ज्यादातर लक्षण हमारे को अभी से दिखलाई देने लग गये है। अतः भारत के 66 करोड विवेकशील मतदाताओं को आने वाले चैदवीं संसदीय चुनाव में दिनांक 20,26,28 अपे्रल सन् 2004 व 5 और 10 मई सन् 2004 को देश साथ विश्वासघात करने वाले ऐसे लोगो से सावधान रहकर देश के भावी भाग्य का फैसला करना है। 



नहीं तो क्या अॅंसख्य देशभक्तों की कुर्बानी से स्वतंत्रता हुआ यह देश वापिस उपनिवेश बन जायेगा? इसलिये मत देने से पहिले सोचिए की आपके मत का कितना महत्व है जो भारत को उन्नति के शिखर पर भी चढ़ा सकता है या फिर अवनति के गहरे रसातल में ले जा सकता है। अतः सही फैसला करने का आपके पास फिर एक मौका है। कहीं ऐसा न हो जाय कि मत का गलत फैसला करने से बाद में आपको, हमको, सारे देशवासियों को पछताना पडे़े। 



अतः आप और हम समझदार मतदाता है, इन फरेवी के चिकनी चुपडी, लच्छेदार बातों के झाॅंसे में कतई नहीं आना। यह ही मेरी आप समझदार मतदाताओं से पुरजोर प्रार्थना है। 

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