जातिवाद पर आश्रित राजनीति 



रचनाकारः वासुदेव मंगल 




भारत का लोकतन्त्र भी गजब का है। लोकतन्त्र में निहित जातितन्त्र है। टिकट जात पांत पर बॅंटते है। जात प्रतिनिधियों को ही वोट पड़ते है। जनता हाशिए पर है और मुख्यधारा में जातियों का ठेका लिए नेता है। जातबलियों बाहुबलियों और धनबलियों का बोलबाला है। न मूल्य है, न मुद्दे है और न ही विचारधारा। यदि कुछ है तो ग्लैमर, हवा और हाइप है। राजकुॅंवर राजनीति में लांच हो रहे है। इनका वोटों से राजतिलक होता है। प्रदेशों में परिवारवाद के इर्द गिर्द राजनीति है। सूबों में क्षेत्रों की सूबेदारी है,जिसके आगे राष्ट्रीयदल लाचार है। वक्त भले ही 21वीं सदी का कहला रहा है परन्तु भारत में इस सदी का पहला लोकसभा चुनाव जात पांत पर लड़ा जा रहा है। 



14वीं लोकसभा के चुनाव में सभी पार्टियों ने जाति पर आधारित चुनाव रणनीति बनाई है चाहे भारतीय जनता पार्टी हो या काॅंगे्रस, समाजवादी पार्टी हो या फिर बहुजन समाजवादी पार्टी, लोकदल हो या जनतादल। दरअसल बात यह है कि जनमत सर्वेक्षण और मार्केटिंग के आधुनिक नुस्खों को राजनीति में अपनाया गया है। जन सर्वेक्षणों का औजार भी जातिमुखी बन गया है। राजस्थान, मध्यप्रदेश जैसे जाति तटस्थ राज्य भी अब जातिगत समीकरणों के शिकार हो गए है। जसवन्तसिंह और वसुन्धरा राजे के अन्दाज अभिजात्य है, लेकिन चिन्ता राजपूत बनाम जाट की है तो कांगे्रस के जयराम रमेश भी जातिय समीकरणों को महत्व देते है। चन्द्रबाबू नायडू और एस एम कृष्णा ने चुनाव जीतने के लिए अपने अनुकूल अच्छा खासा जातीय समीकरण बनाया है। चन्द्रबाबू ने इस बार खासी तादाद में पिछड़ी जातियों के उम्मीदवार खडे़ किये है। उस पर भी कुछ परिवारों का बाहुबल काबिज है। बिहार और उत्तरप्रदेश इसके दिलचस्प उदाहरण है। अजीतसिंह, मुलायमसिंह और कल्याणसिंह के परिवार जातीबल के आधार पर अपने को उत्तरप्रदेश में राजवंश में बदल चुके है। इसी तरह बिहार में लालू यादव और रामबिलास पासवान के परिवार के इर्द-गिर्द सब कुछ है। नीतिश कुमार को और जोड़ लें। बाप से बेटे को विरासत में राजनीति मिल रही है। लोकतन्त्र, जातियों के पैबन्दों का एक जर्जर कपड़ा है। जातिवाद पहीले भी था पर तब वर्ग सॅंघर्ष और विचारों की लड़ाई में जाति का नुस्खा दबा हुआ था। परन्तु अब वर्ग सॅंघर्ष और विचारों की जगह राजनीति में जातियां चुनाव में मुख्य कारक बन गई हैं। जातिवाद का यह जहर सन् 1989 में विश्वनाथ प्रतापसिंह ने मंडल कमंडल के जरिये राजनीति में घोला था। हिंदुत्व आज जातिवाद की चैखट से अपनी सत्ता का जुगाड़ बैठा रहा है। कारपोरेट मैनेजमेन्ट में सोशल इॅंजीनियरिंग हो रही है। यह सोशल इंजिनियरिंग ब्राहम्ण मेधा का पुराना समाज प्रबन्ध है, क्यों कि इसी नुस्खे से तो ब्राहम्ण सनातन काल से हिन्दू समाज को चलाता रहा है। भारतीय जनता पार्टी ने सत्ता में आने के बाद मान लिया है कि हिन्दू समाज का सामाजिक धरातल समतल नहीं हो सकता है। जातियों में बॅंटकर ही राजनीति करनी होगी। इस चुनाव का सबब भी यहीं है कि 21वीं सदी में भी भारत की सत्ता, जातियों के ताने बाने में गॅंुथी रहेगी। 

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