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जरा याद उन्हें भी करलो जो लौटकर घर ना आये
23 सितम्बर 2023 को भारतीय सैनिकों की अमर गाथा जो विदेशी जमीन को आजाद कराकर अमर हो गए।

सामयिक लेख: वासुदेव मंगल, ब्यावर सिटी (राज.)
इजराइल के हायफा बन्दरगाह शहर को जो तुर्कों के नियन्त्रण में 402 साल से था, को भारतीय कैवेलरी के जवानों ने (घुड़सेना) ने, जिनमे राजस्थान जोधपुर व ब्यावर के घुड़सवार थे, तेलंगाना हैदराबाद के घुड़सवार और कर्नाटक मैसूर के घुड़सवारों ने तुर्की के ओटोमन साम्राज्य के 402 सालों से अपनी अदम्य वीरता कौशल का परिचय देते हुए आज ही के दिन 23 सितम्बर सन् 1918 में आजाद कराया था।
भारतीय सेना ने प्रथम विश्व युद्ध में इम्पीरियल सेना के साथ मिलकर हायफा के मैदान में इजराइल देश में जो बहादुरी से सामना करते हुए दुश्मन देश तुर्की के ओटोमन साम्राज्य के सैनिकों के छक्के छुड़ा दिये थे और 23 सितम्बर 1918 को दिन में तीन बजे उनसे विजय श्री हासिल कर 13वीं कैवेलरी ब्रिगेड के जवानों ने तुर्की के जवानों को जार्ज लैंसर्स के जवानों ने हताहत कर हरा दिया था। जोधपुर के केवलरी मेजर दलपत सिंह के नेतृत्व में अदम्य वीरता के साथ भयंकर गोलाबारी के बीच आगे बढ़ रही थीं तथा तलवारों, बरछों और भालों से तुर्की सेना को हताहत करके हायफा पर कब्जा कर लिया। इसी समय मैसूर लैंसर्स ने दो नेवी बन्दूकों को अपने कब्जे में ले लिया तथा दुश्मनों की मशीनगनों की परवाह न करते उनका सफाया कर दिया।
ब्रिटेन फ्रांस और रूस एक तरफ और तुर्की ओटोमन में जर्मनी, ऑस्ट्रिया व हँगरी की सेनाएँ थीं। तुर्कों ने हायफर की खाड़ी को समुद्री रास्ते से तथा जमीनी सुरंग लगाकर घेर रखा था। इसीलिए सभी आर्थिक और व्यापारिक गतिविधियाँ प्रतिबन्धित हो गई थीं। दक्षिणी फिलिस्तीन में भुखमरी का और गरीबी का दृश्य था।
केवल डेढ़ दिन तक चली इस लड़ाई में जोधपुर लैंसर्स ने 1532 दुश्मन सैनिकों को तोपों और मशीनगनों के साथ पकड़ लिया। जोधपुर, मैसूर और हैदराबाद की इन 14वीं और 15वीं केवेलरी यूनिट्स से बहुत ही कुशलतापूर्वक एक बड़े दुर्गम क्षेत्र को जहाँ एक ओर माउण्ट कामंेल था तथा दूसरी ओर नदी जिसके किनारे दल दल था अपने कब्जे में ले लिया। इस अदम्य शौर्य के लिये मेजर दलपत सिंह को मिलिट्री क्रोस से सम्मानित किया गया। कैप्टन बहादुर सिंह जोधा व जमादार जोरसिंह को उनकी शहादत के लिये इन्डियन आर्डर ऑफ मेरिट से सम्मानित किया गया। हायफा इस आजादी के इस सफल अभियान में 900 भारतीय सैनिक वीर गति को प्राप्त हुए। इतिहास में कैवेलरी के आखिरी सबसे बड़े अभियान के तोर पर दर्ज इस लड़ाई पर म्युजियम बनाने या लाईट या साउण्ड शो करवाने के बारे में सोचा नहीं गया है। वहीं इजराइल ने भारतीय कैवेलरी के सम्मान में स्मारक बनाये साथ ही मेजर दलपतसिंह जोधपुर को हिरो आफ हायफा का दर्जा दिया गया।
हायफा हिस्टारिकल सोसाइटी के मुताबिक इजराइल के बच्चों को तीसरी से पाँचवीं कक्षा में हायफा की आजादी में भारतीय सैनिकों खासकर मेजर दलपतसिंह व केवेलरी के योगदान के बारे में पढ़ाया जाता है इजराइल के आधुनिक राज्य का इतिहास 900 से अधिक भारतीय सैनिकों के बलिदान से शुरू होता है जिन्होंने प्रथम युद्ध के दौरान ओटोमन साम्राज्य से हायफा को मुक्त कराते हुए अपने प्राणों की आहुति दी थीं। स्वतन्त्रता प्राप्ति के पश्चात् भारतीय सेना ने हायफा अभियान के शहीदों की स्मृति में मैसूर, हैदराबाद और जोधपुर सहित सभी घुड़सवार यूनिट्स को मिलाकर 61वीं केवलरी जिसका मुख्यालय जयपुर में है की स्थापना की और 23 सितम्बर को हायफा विजय दिवस के रूप में मनाया जाने लगा। हायफा नायकों की याद में बने नई दिल्ली के तीन मूर्ति चौक का नाम 2018 में बदलकर तीन मूर्ति हायफा चौक रखा गया। यह सच है कि एक सैनिक की मौत युद्ध के मैदान में गोली लगते वक्त न होकर उस वक्त होती है जब जनमानस उस सैनिक की शहादत को भूल जाता है। विश्वास है कि भारत का जन मानस आने वाले समय तक हायफा के इन शहीदों की शौर्य गाथा को नहीं भूलेगा। इनकी याद को तरो ताजा रखने के लिये आने वाली पीढ़ी के बच्चों को राजस्थान तेलंगाना, कर्नाटक की सरकारों द्वारा जयपुर, हैदराबाद और बैंगलुरू में लाइट एण्ड साउण्ड शो के जरिये इन वीर शहीदों की वीर गाथाओं से रूबरू कराएँ। इसी प्रकार जोधपुर और ब्यावर में भी लाइट एण्ड साउण्ड शो से इनकी कीर्ति को उजागर करने की आवश्यकता है। हाँलाकि ब्यावर में भी इन वीर शहीदों नाम का स्मारक चाँदमल मोदी पुस्तकालय की वाटिका में स्थित है। युद्ध के मैदान वहाँ से लाई हुई एक तोप भी नेहरू भवन के उद्यान में पहले तो रखी हुई थीं परन्तु अब दिखलाई नहीं देती है। इसी प्रकार दुश्मन कमाण्डर का आस्थिपन्जर भी पहले तो पटेल स्कूल के लेब में अलमारी में रखरखा हुआ था परन्तु अब दिखाई नहीं देता है। इस बात को 105 वर्ष बीत गए 1918 के इस युद्ध को। तो ब्यावर के बहादुर वीरों के बलिदान का भी इस लड़ाई में योगदान रहा है। यह आज के बच्चों को हमें बतानी चाहिये। सी.बी.एस.ई. व राज्यों के शिक्षा बोर्ड को इन हायफा शहीदों की वीर गाथा को पाटयक्रम में शामिल करें जिससे हमारी वर्तमान और भविष्य की पीढ़ी प्रेरित भी हो और शिक्षित भी।
23.09.2023
 
इतिहासविज्ञ एवं लेखक : वासुदेव मंगल
CAIIB (1975) - Retd. Banker
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