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‘‘ब्यावर’ इतिहास के झरोखे से.......

✍वासुदेव मंगल की कलम से.......
छायाकार - प्रवीण मंगल (मंगल फोटो स्टुडियो, ब्यावर)

भारत का 15 अगस्त 2023 को 77वा स्वतन्त्रता दिवस

आलेख:- वासुदेव मंगल, स्वतन्त्र लेखक ब्यावर (राज.)

भारत का स्वतन्त्रता का आन्दोलन चरम पर था। द्वितीय विश्व युद्ध 1939 में आरम्भ हो चुका था। 1935 मे ब्रिटिश इण्डिया के शासन में 1935 से भारतवासियों को मात्र भर का प्रतिनिधित्व देना आरम्भ कर दिया था। अजमेर से हरविलासजी शारदा 1935 से प्रतिनिधित्व कर रहे थे दिल्ली शासन में। 1938 मे राजपूताना की देशी रियासतों में प्रजा मण्डल स्थापित हो चुके थे। अतः सामन्ती युग मे प्रजा की शासन में भागीदारीता आरम्भ हो चुकी थी। 8 अगस्त 1942 को महात्मा गाँधी ने बम्बई गोवतिया मैदान में अंग्रेजों भारत छोड़ो विशाल जन समूह के आन्दोलन का नेतृत्व किया। भारत में अंग्रेज़ी राज का विरोध चरम सीमा पर था।
उधर द्वितीय विश्व युद्ध 1945 में समाप्त हो चुका था। सुभाष बाबू ने नेहरूजी को आजाद हिन्द फौज के दस हजार बन्दियों के मानवीय आधार पर फैसला करवाने के लिये मलाया (मलेशिया) मे माउण्टबेटन ब्रिटिश ने सेना के शाही कमाण्डर शाही के पास बात करने के लिये कुलालम्पुर भेजा। द्वितीय विश्व युद्ध में ब्रिटिश साम्राज्य की शासनिक हालत जर्जर हो चुकी थी। आजाद हिन्द फौज के दस हजार सिपाही दिल्ली के लाल किले में बन्दी (कैद) थे। अतः तत्कालिन ब्रिटिश प्रधान मंत्री लेबरपार्टी के नेता लार्ड ऐटली ने भारत को स्वतंत्रता देने का मन बना लिया था। उस वक्त नेताजी सुभाषचन्द्र बोस करीब करीब भारतवर्ष के पूर्वी ईलाके मनिपुर को जीत चुके थे। परन्तु पासा पलटा। लार्ड माऊण्ट बेटन ब्रिटिश राज घराने के सदस्य थे जो उस वक्त मलाया में नोसेना के कमाण्डर इन चीफ थे।
हुआ यह कि बात ही बात मे माऊण्टबेटन ने मलाया में नेहरूजी को भारत को स्वतंत्रता का हवाला दिया। नेहरूजी ने मुख्य मुद्दे पर बात करने के बजाय स्वतन्त्रता के मुद्दे पर बात की। माउण्टबेटन ने उनको यह भी कह दिया था कि मैं ही भारत आ रहा हूँ स्वतन्त्रता की थ्योरी तय करने के लिये। उधर जापान ने हथियार डाल दिये थे क्योंकि अमेरिका ने जापान के दो शहर हेरोसिमा और नागासाकी पर परमाणु बम डाल दिये थे। अतः बोस भी रंगून से टोक्यो चले गए थे। आजाद हिन्द फौज के दस हजार बंदी रिहा कर दिये गए। भूलाभाई देसाई की पैरवी के कारण।
जब स्वतंत्रता देने का पासा पलटा तो बोस बाबू की जान को खतरा पैदा हो गया था। अतः वे भारत आने के बजाय अज्ञात स्थान पर निर्वासन जीवन व्यतीत करना ही श्रेयस्कर समझा क्योंकि उन्हें मालूम था कि भारतीय मुझे ब्रिटेन को सौंप देंगें। अतः वे अज्ञात स्थान पर चले गए, रसिया में टाक्यो से। बाद मे सुभाष ने सारा जीवन रसिया में अज्ञातवास में बिताया। इधर लार्ड माउन्ट बेटन मलाया से भारत को आजादी देने के लिये ब्रिटिश साम्राज्य के प्रतिनिधि की हैसियत से भारत आये।
अतः भारत की स्वतन्त्रता का मुद्दा महत्वपूर्ण हो गया। अंग्रेज तो भारत को स्वतन्त्र कर जा रहे थे। अतः जाते जाते भारत की आवाम को लड़ाकर गये। मुस्लिम लीग के मोहम्मद अली जिन्ना को भड़काकर भारत के ‘हिन्दू.-मुस्लिम’ दो देश मे हिन्दुस्तान और पाकिस्तान में ही नहीं बाँटा अपितु छ सो बासठ देशी राजाओं को भी अपनी मनमर्जी का मालिक बनाकर गए। तात्पर्य यह है कि देश को टुकड़ों-टुकड़ो में बाँटना ही अंग्रेज़ों का प्लान था।
रात्री को 12 बजे 15 अगस्त 1947 को भारत को आजादी दी। इससे पहले दिन भारत को विभाजित कर पश्चिमी और पूर्वी पाकिस्तान बनाकर 14 अगस्त को उसे आजाद किया और जिन्ना को पाकिस्तान का प्रधान मन्त्री बनाया।
हालांकि भारत की अमानवीयता के आधार पर आजादी की रस्म जरूर हुई परन्तु उस समय का वीभत्स नजारा रोंगटे खड़े करने वाला था। शायद इस तरह का कत्ले आम शायद ही पहले भारत के इतिहास में कमी हुआ होगा। इसीलिये महात्मा गाँधी बंगाल के नो आखली चले गए। उनसे ऐसा अमानवीय कृत्य देखा नहीं गया तो प्रार्थना करने में मशगूल हो गए।
अब विषय के मुख्य मुद्दे पर आते हैं। अंग्रेजी गुलामी से भारत को मुक्ति मिली थी। अतः खुशी का जश्न भी था। परन्तु खुशी कम एवं गम अधिक था। हमारे अपने अपनी-अपनी जन्म मिट्टी छोड़कर पर पराई अनजान जगह जा रहे थे। अपनो से बिछुड़ रहे थे जिसका गम लिये जा रहे थे बड़ा ही हृदय विदारक दृश्य था। चारों तरफ आगजनी, कत्लेआम और लूटपाट हो रही थी जगह जगह।
लेखक भी उस समय 15 अगस्त 1947 के दिन 2 साल 10 महीन 18 दिन के थे। अतः इस दिन का वाकया लेखक को उस समय का अच्छी तरह से हुबहू याद है। कांग्रेस का दफ्तर फत्तेहपुरिया बाजार में हमारी दुकान के सामने घीसूलालाजी जाजोदिया के कटले के दक्षिणी दिशा में बाजार में दूसरी मंजिल के मालिये में था। पिताजी को आजादी की खुशी थी अतः तीन गज लम्बा व दो गज चौड़ा रेशमी तिरंगा झण्डा बनवाया। दुकान के ऊपर चाँदनी मालिए की दिवार पर बाजर की तरफ 20 फीट लम्बे लोहे के गोल पाईप के ऊपर दो सो वाट का बल्ब लगाकर झण्डे में गुलाब की पंखुड़ियों को बाँधकर डोरी के सहारे झण्डे को बाँधकर पाईप को दीवार के सहारे ऊपर लगाया। फिर 15 अगस्त की रात को ठीक 12 बजे बल्ब की रोशनी में तिरंगा झण्डा फहराया पिताजी ने। यह झण्डा नेशनल हाईवे 8 से पोस्ट ऑफिस के बाहर से शहर में चारों दिशाओं में दूर दूर तक दिखाई दे रहा था। े
यह तो देश के टुकड़े नहीं होते। परन्तु पण्डित जवाहरलाल नेहरू और मोहम्मद अली जिन्ना की प्रधान मन्त्री बनने की महत्वाकाँक्षा में दो देश हिन्दुस्तान और पाकिस्तान बनवाकर माने। माउण्ट वेटन ने कहा कि आप दोनों ही एक देश के एक साथ प्रधानमन्त्री नहीं हो सकते। अतएव देश की जनसंख्या के धार्मिक आधार के घनत्व पर दो देश बनाकर आजादी दी गई।
वैसे अगर देखा जाय तो सुभाष चन्द्र बोस सच्चे मायने मे तत्कालिन अखण्ड भारत के प्रधानमन्त्री हो सकते थे अगर दोनों प्रधानमन्त्री बनने के महत्वाकाँक्षी दावेदार नहीं होते तो। परन्तु स्वार्थ की भावना व त्याग और तपस्या तथा समर्पण की भावना दोनो कर्णधारों में ही नही थी, इसलिये ऐसा हुआ। इससे पहले मलाया में नेहरूजी और माउण्ट वेटन के बीच भारत की आजादी देने का एक गुप्त समझौता 1999 तक प्रभावी रहा।
आज 15 अगस्त 2023 को हम देश के नागरिक 77वा स्वतन्त्रता का जश्न मना रहे है। परन्तु इन्द्रधनुषी, बहुरंगी संस्कृति वाले देश की आजादी का पूरे साल भर तक अमृत महोत्सव के रूप मे मुना रहे थे। आज उस बात को 76 साल हो गए। सही मायने में देखा जाय तो कैसी आजादी और कैसा जश्न था परन्तु नेताओं को मन राजी करना था। लेखक एक सो बयालिस करोड़ उनयासी लाख नागरिकों के भारत देश की हुकुमत
से जानना चाहते है कि क्या सरकार देश के प्रत्येक नागररिक को उनका मूलभूत प्राथमिक अधिकार रोटी, कपड़ा और मकान देकर उनके आँख के आँसू इन पिच्चेत्तर वर्षों मे पोछने में क्या कामयाब हो गई जो अमृत तुल्य जश्न मना रही है। जबकि देश की हकीकत तो वास्तव में यह है कि देश की अधिकतर जनता मँहगाई और बेरोजगारी से परेशान है। अतः अवाम की खुशहाली से ही अमृत महोत्सव मनाना शोमा देता है वरना कदापि नहीं। देश का अवाम एक सो उनसठ लाख करोड़ के कर्ज के तले डूबा हुआ है।
आज देश की 75 प्रतिशत जनता रोटी, कपड़ा और मकान के बिना अपना जीवन यापन कर रही है। क्या यह ही कर्तव्य रह गया है देश के संघीय राजा का कि अपनी प्रजा को मरने के लिये खुली छोड़ दे?
देश का एक जागरूक नागरिक लेखक अपनी सरकार से स्वतन्त्रता के छियेतर वर्ष बाद 77 वें स्वतन्त्रता के दिवस पर पूछ रहा है आज 15 अगस्त 2023 को। क्या सरकार इस अक्ष प्रश्न का जबाब देगी इसी उम्मीद के साथ आज स्वतन्त्रता दिवस पर लेखक की व परिवारजन की भारतदेश के समस्त नागरिकों को ढ़ेर सारी शुभ कामनाएँ। आप सभी नागरिक खुशहाल हो, आपका जीवन मंगलमय हो।
इस स्वतन्त्रता पर्व पर लेखक एक बात और कहना चाहेंगें कि अब ब्यावर उपखण्ड सड़सठ वर्षों की लम्बी अवधि के बाद, क्रमोन्नत होकर जिला बना है। अतः ब्यावर जिले के तमाम नागरिकों को इस खुशी के मौके पर भी लेखक बधाई देते हुए आप सबकी खुशहाल भावी जीवन की मंगलकामना करते हैं।
यह तो सरदार वल्लभ भाई पटेल थे जिन्होंने अपनी बुद्धिमता कार्य कुशलता
से छ सो बासठ देशी राजाओं की रियासतों को भारत संघ में मिलाकर इतना बड़ा भारत देश बनाया एकीकरण करके। नहीं तो भारत टुकड़े टुकड़े दिखाई देता। अतः सरदार वल्लभ भाई पटेल की जितनी प्रशंसा की जाय कम है।
यहाँ पर लेखक ब्यावर उपखण्ड में एडीएम की पोस्ट तो 1998 में ही सृजित कर दी गई थी और श्री बी०डी० कुमावत को इस पद पर पदस्थापित किया जिन्होंने करीब चार साल काम किया। बाद में अचानक ब्यावर उपखण्ड से मसूदा पंचायत समिति को अलग कर मसूदा अलग से ग्रामीण उपखण्ड अजमेर जिले का सिमेण्ट फैक्ट्री को रूलर का बेनीफिट देने के लिये 30 मई 2002 में कुमावत साहिब को मसूदा का उपखण्ड अधिकारी बना दिया। तब से 25 साल से ब्यावर की एडीएम की पोस्ट वेकेण्ट चली आ रही थीं। अब जाकर ।। अगस्त 2023 को श्री राकेश कुमार गुप्ता प्रथम को 21 साल बाद ब्यावर मे 1998 में सृजित किए गए एडीएम पद पर लगाया है। अतः अगर देखा जाय ब्यावर उपखण्ड तो सन् 1998 में ही अपग्रेड कर दिया गया था। एडीएम का स्थाई पद सृजित कर ब्यावर में।
कैसी विडम्बना है कि ब्यावर को जिले का दर्जा जो सन् 1998 में ही मिल जाना चाहिये था पच्चीस साल बाद नसीब हुआ है। राज करने की नीति में सब सम्भव है। पहली बार तो सन् 1956 सड़सठ साल पहीले ब्यावर को जिले का दर्जा देने से महरूम किया गया राजस्थान प्रदेश में मिलाते वक्त। अब दूसरी बार सन् 1998 में पच्चीस साल पहीले एडीएम (एडीशनल डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट) का पद ब्यावर मे सृजित करके जो लगातार इक्कीस साल से रिक्त चला आ रहा था 2002 से मात्र सिमेण्ट के कोरपोरेट घराने को उपकृत करने के लिए यह ब्यावर के हार्ड लक ही कहेंगें कि ब्यावर की मिट्टी की कमाई ब्यावर के विकास में काम नहीं आई। विकास का फायदा दूसरी जगहों ने उठाया। सिमेण्ट फैक्ट्री को उपकृत करने के लिये राज्य सरकार ने इक्कीस साल तक ब्यावर को विकास से मरहूम किया अर्थात् अवरुद्ध किया। ब्यावर तो आठ मील के फासले पर अन्धेरी देवरी गांव मे सिमेण्ट प्लाण्ट जिसको मसूदा उपखण्ड मे रूलर मानते हुए डालकर फैक्ट्री को भरपूर आर्थिक दृष्टि से उपकृत किया इक्कीस साल तक। धन्य हो प्रभु। ब्यावर जिले के हक को सरकार ने पच्चीस साल तक पर्दे में छिपाये रक्खा।
 
इतिहासविज्ञ एवं लेखक : वासुदेव मंगल
CAIIB (1975) - Retd. Banker
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