‘‘ब्यावर’ इतिहास के झरोखे
से.......
✍वासुदेव मंगल की कलम से.......
ब्यावर सिटी (राज.)
छायाकार - प्रवीण मंगल (मंगल फोटो स्टुडियो, ब्यावर)
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15 अगस्त 2024 को भारत की स्वाधीनता का
78वाँ स्वतन्त्रता दिवस
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वासुदेव मंगलः स्वतन्त्र लेखक, ब्यावर सिटी
असंख्य कुर्बानियों के बाद आखिरकार ब्रिटिश साम्राज्य की लेबर पार्टी
के तत्कालिन लार्ड एटली सरकार ने द्वितीय विश्वयुद्ध मे जर्जर हुए
बरतानिया के भारत उपनिवेश को स्वतन्त्र करने का औपचारिक मन बना लिया
था। इसके लिए तत्कालिन मलेशिया में ब्रिटिश राज घराने के एडमिरल लार्ड
माउण्ट बेटन को भारत को आज़ादी प्रदान करने की रूप रेखा बनाने के लिये
भारत का अन्तिम वायसराय बनाकर भेजा।
यह भारत का दुर्भाग्य ही कहा जायेगा कि दो व्यक्तियों के प्रधानमन्त्री
बनने की लड़ाई ने भारत देश को दो देशों के बँटवारे के रूप में आजादी मिली।
अँग्रेज़ों ने भी जाते जाते भारत देश को अनेक सामन्त शाही टुकड़ों में
बाँटने का दुस्साहस किया। यह तो धन्य हो सरदार वल्लभ भाई पटेल लौह
पुरुष जिसने त्वरित दूर दृष्टि से भारत देश को एक धागे में पिरोकर रक्खा
नहीं तो आज भारत अनेक सामन्त शाही छोटी छोटी रियासतों में बँटा हुआ
दिखाई देता।
भारत की आजादी के 78वें स्वतन्त्रता दिवस पर लेखक देश्ज्ञवासियों को
हार्दिक बधाई देते है। आज भारत की स्वतन्त्रता का स्थाई स्वरूप यथावत
बना रहे यह ही कोशिश होनी चाहिए सारे देशवासियों की।
अब सवाल उठता है कि स्वतन्त्रता से आज तक ब्यावर ने कितनी तरक्की की?.
स्वतन्त्रता के समय ब्यावर मेरवाड़ा बफर स्टेट के नाम से अजमेर राज्य के
संयुक्त रूप से जाना जाता था जो अजमेर मेरवाड़ा राज्य के नाम से भारत
देश का ‘स’ श्रेणी का राज्य था जिसका भारत देश के उस वक्त के चौहदवां
नम्बर था। दक्षिण अजमेर राज्य के संसद सदस्य के रूप में ब्यावर के भी
श्री मुकुट बिहारीलाल भार्गव संसद सदस्य होते थे।
1 नवम्बर सन् 1956 ईसवी में अजमेर मेरवाड़ा छोटे ‘स’ श्रेणी के राज्य को
राजस्थान प्रदेश में समाहित करने की तत्कालिन शर्तों के खिलाफ जाकर
राजस्थान प्रदेश की तत्कालिन सरकार ने जबरिया बरबस अजमेर को राजधानी और
ब्यावर को जिला बनाने के स्थान पर अजमेर को तो जिला और ब्यावर को सब
डिविजन बना दिया आज के ठीक अडसठ साल से ज्यादा समय से पहले। तब से दोनों
शहर अवनति का दंश भोग रहे है राजनैतिक तौर पर।
अब 7 अगस्त सन् 2023 को ब्यावर को सड़सठ साल बाद उसका राजनैतिक हक
राजस्थान प्रदेश का जिला बनाकर प्रदान किया है। जो उसको सड़सठ साल पहले
1 नवम्बर 1956 को ही दे देना चाहिये था। और अजमेर को तो उसको राजधानी
का हक तो अब भी नही दिया है और न ही भविष्य में भी इसकी कोई उम्मीद नहीं
है। तो यह विकास किया ब्यावर का हमारे उस वक्त के नगमा - निगारों ने
धन्य हो। उत्तरोत्तर नगमा निगारों ने भी इसके प्रति उदासीन रवैय्या ही
आख्तियार रखा। 7 अगस्त 2023 को अब चूँकि ब्यावर को जिला बनाये हुए एक
साल हो गया है। अभी तक तो विरोधी पार्टी की शासक सरकार ने मात्र
जिलाधिकारी और पुलिस अधीक्षक के अतिरिक्त कोई विकास किया नहीं है। ऐसा
लगता है वर्तमान राज्य सरकार का ब्यावर जिले के विकास का सकारात्मक सोच
न होकर नकारात्मक सोच है। काल चक्र का पहिया अपनी गति से निरन्तर यों
ही घूमता रहता हुआ दिख रहा है। जब तक प्रजा का काम राजा नहीं करेगा तो
विकास कैसे होगा भविष्य में। शायद ब्यावर के भाग्य में भी यह ही लिखा
दिखता है। जब राज रूठ जाय तो प्रजा का खैवय्या कौन हो? यह ही ब्यावर का
हाल है। अपने अपने किस्मत की बात है।
समय के परिवर्तन के साथ साथ ब्यावर में विकास की अथाह पोटेन्शियलिटी
है। यह विकास सरकार के नजरिये पर निर्भर करता है। यदि देखा जाये तो
ब्यावर जिले में विकास के अपरिमित साधन प्राकृतिक रूप में उपलब्ध है।
आवश्यक मात्र उनके वैज्ञानिक आधार पर दोहन करने की है।
इन्फ्रास्ट्रक्चर (आधारभूत ढाँचा) जैसे बान्ध, पुल, रोड़, रेल्वे लाईन
इत्यादि इत्यादि के लिये कच्चा माल (रोमटिरयल) जैसे सिमेण्ट, लोहा, लकड़ी
आदि प्रचुर मात्रा में उपलब्ध है। फैल्सपार से टाईल्स उद्योग, ब्लैक
ग्रेनाईट स्टोन, लकड़ी उद्योग इत्यादि। आवश्यकता है राज्य सरकार के
इन्सेन्टिव लेने की।
ब्यावर ‘अतीत के गौरव’ की भाँति अब पुनः एकबार भारत ही नहीं बल्कि
दुनियाँ के क्षितिज पर उभर सकता है व्यापार और उद्योग में अपने
क्रॉनिकल व्यापार और उद्योग के साथ साथ नये जिन्स के व्यापार और उद्योग
में भी। क्योंकि यहाँ पर विकास करने के सभी घटक साधन उपलब्ध है मौजूद
है इसलिए। यह तो आने वाला समय ही बतायेगा कि ब्यावर जिला भविष्य में
कितना विकास कर पाता है।.
अतीत में भारत के स्वतन्त्रता सँग्राम में ब्यावर का योगदान साथ वाले
लेखक के लेख से आपको भली भाँति विदित हो जाएगा कि ब्यावर शहर भारत देश
की आजादी के आन्दोलन में कितना क्रियाशील रहा है। देश के क्रान्तिकारियों
को पनाह देने में, गोरिल्ला युद्ध के प्रशिक्षण देने में और
क्रान्तिकारियों को हथियार आदि उपलब्ध कराने में। पूरे भारतवर्ष के
तमाम प्रान्तो के तत्कालिन समस्त क्रान्तिकारियों का ब्यावर आना जाना
लगा रहता था। अतः ब्यावर भारत की जंगे आजादी का गढ़ रहा है।
ब्यावर अतीत में ऊन और कपास, रूई की राष्ट्रीय स्तर की मण्डी रही है
बीसवीं शताब्दी के पूर्वार्ध से ही। साथ ही दस-बारह कॉटन प्रेस के साथ
साथ कपड़े की तीन क्लोथ मिल्स रही है लगभग सौ साल तक। बुलियन (सर्राफा)
व्यापार के साथ साथ ग्रेन ट्रेड भी उन्नत स्थिति में रहा है। बुलियन
मर्चेण्ट एण्ड कमीशन एजेन्ट के बावन सर्राफा फर्म अतीत में ब्यावर में
कार्यरत रही है। अतः ब्यावर का अतीत का व्यापार और उद्योग स्वर्णिम
स्थिति में रहे हैं।
रहा सवाल भविष्य का, तो ब्यावर के भविष्य का विकास तो राज्य सरकार के
सकारात्मक सोच पर निर्भर करता है जो आने वाला समय ही बतायेगा।
15-08-2024
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