21 जून 2023 को 14 घण्टे 46 मिनट का
सबसे बड़ा दिन
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सामयिक लेख - वासुदेव मंगल
पृथ्वी अपनी धूरी पर 24 घण्टे में एक पूरा चक्कर लगाती है। इससे रात
दिन होते है। पृथ्वी गोल हैं। ग्रेट ब्रिटेन का ग्रीनविच बिन्दु, जो
उत्तरी धु्रव का मध्य बिन्दु है, को आधार मानकर वर्टीकल यानी लम्बाई की
चौबिस समान अन्तर की दूरी से चौबिस एक एक घण्टे के अन्तर से, ठेठ
दक्षिणी ध्रुव के मध्य बिन्दू तक खींचीं गई हैं एक एक डिग्री के अन्तर
से।
पृथ्वी के ग्रीन विच के मध्य बिन्दू को शून्य समय मानकर इसके समय के
माप का पैमाना निर्धारित किया गया हैं इन रेखाओं को देशान्तर रेखा कहते
है। इन दो समान भागों को पूर्वी और पश्चिमी गोलाद्ध कहते है।
पृथ्वी अपनी धूरी पर पश्चिम से पूर्व दिशा की ओर घूमती है। अतः जो
पृथ्वी का आधा भाग सूरज के सामने होता है वहां पर बाहर घण्टे दिन और
पृथ्वी के आधे पृष्ट भाग में यहां अन्धेरा होता है, बारह घण्टे रात होती
है।
यह क्रम दिन रात शाश्वत चलता रहता है जिससे बराबर दिन रात होते रहते
है। तो यह कहानी तो हुई दिन रात होने की, पृथ्वी के अपनी धूरी पर घूमने
के कारण। इसी प्रकार पृथ्वी सूर्य की कक्षा में एक पूरा चक्कर 365¼ दिन
में अर्थात् एक साल में लगाती है। एक साल में बारह महीने होते है।
पृथ्वी का यह चक्कर होरीजोण्टल होता है। अर्थात् आडा।
पृथ्वी को उत्तरी गोलार्द्ध और दक्षिणी गोलार्द्ध दो समान भागों में
बांटा गया हैं इन दोनो गोलाद्ध के बीच के जोड पर आडी अर्थात् तिरछी
लाईन पृथ्वी के मध्य बिन्दू पर खींचकर भूमध्य रेखा मानी गई है। इसको
विषवत् रेखा भी कहते है।
इस प्रकार पृथ्वी को पूरा पैमाना निश्चित किया गया है। पृथ्वी के दो
सीधे भाग बराबर के जिन पर दिन रात होने का क्रम बराबर जारी रहता है
पृथ्वी की अपनी कक्षा में घूमने पर। जो पश्चिम से पूरब होता है।
पृथ्वी के आडे अर्थात् तिरछे क्रम में घूमने से सालभर में मौसम
परिवर्तन होता है। आडे क्रम का आधार बिन्दू विषवत् रेखा होती है। अतः
विषवत् रेखा पर प्रत्येक 23 मार्च से उत्तर दिशा में 21 जून को तीन
महीने में 66½ डिग्री कर्क रेखा पर अप्तास पर जाकर सूर्य सीधा चमकता
हैं पृथ्वी का उत्तर दिशा में तीन महीने जाने के इस क्रम को आरोही कहते
है। कर्क रेखा तक उत्तरी दिशा में जाने तक का पृथ्वी का आखिरी बिन्दु
होता है। परिणाम स्वरूप इसी दिन 21 जून को प्रत्येक साल पृथ्वी के
उत्तरी गोलार्द्ध में सबसे बड़ा दिन होता है जो 14 घण्टे 46 मिनट का होता
है। जबकि रात 9 घण्टे 14 मिनट की होती है। इसे खगोलीय घटना बोलते है।
अतः इन आडी रेखा को अंक्षांस रेखा बोलते है जो ठेठ उत्तर से दक्षिण तक
दस दस डीग्री की खींची गई है आडी रेखा पृथ्वी पर।
चूँकि, 21 जून को सूर्य पृथ्वी के आडे उत्तरी भाग की कर्क रेखा पर सीधा
चमकता है। जो 66½ डिग्री अंक्षांस पर स्थित है। इसका उत्तरी गौलार्द्ध
के उत्तरी ध्रुव तक पर सूरज की रोशनी बराबर चौबिसो घण्टो बनी रहती है।
तात्पर्य यह है कि 66) डिग्री उत्तर से 100 डिग्री तक उत्तर वाले
गोलाकार वाले पूरे भाग में लगातार बराबर चौबिसो घण्टे रोशनी बनी हुई
रहती है 23 सितम्बर तक जब तक सूरज भूमध्य रेखा पर पुनः नहीं आ जाता है
तीन महीने में। इस भूभाग में सूरज तीन महीने तक जाने में और तीन महीने
आने तक छः महीने तक अस्त नहीं होता हैं अतः 22 मार्च से छः महीने
दक्षिणी ध्रुव पर लगातार रात रहती है 22 सितम्बर तक।
पृथ्वी के उत्तरी गोलार्द्ध में यह क्रम साल भर पृथ्वी के उत्तरी
गोलार्द्ध में 21 जून से 22 सितम्बर प्रत्येक साल अवरोही होने का व 23
मार्च 21 जून आरोही होने का रहता है।
प्रत्येक 23 सितम्बर से सूर्य भूमध्य रेखा से दक्षिणी गोलार्द्ध में 23
दिसम्बर को तीन महीने में 66½ डिग्री अक्षांस मकर रेखा पर जाकर सूर्य
मकर रेखा पर सीधा चमकने लगता है। तो यहां पर अगले साल के 22 मार्च तक 6
महीने तक दिन रहता है। और उत्तरी घु्रव पर 6 महीने रात होती है लगातार।
अतः 23 दिसम्बर को दक्षिणी गोलाद्ध में सबसे बड़ा 14 घण्टे 46 मिनट का
दिन होता है।
परन्तु 22 मार्च और 23 सितम्बर को साल दो बार सूर्य विषवत रेखा पर सीधा
चमकने से दिन रात बराबर होते है। जो बारह बारह घण्टों के बराबर होते
है।
इस प्रकार 21 जून को उत्तरी गोलाद्ध में 14 घण्टे 46 मिनट का दिन और 9
घण्टे 14 मिनट की रात होती है। जो सबसे बड़ा दिन और सबसे छोटी रात होती
है।
इसी प्रकार भारत में 23 दिसम्बर को 14 घण्टे 46 मिनट की रात और 9 घण्टे
14 मिनट का दिन होता है। भारत में जो सबसे छोटा दिन और सबसे बड़ी रात
कहलाती है।
और भारत में 22 मार्च और 23 सितम्बर को दिन और रात बराबर होते है। दो
बार साल में जो बारह बारह घण्टे के दिन और रात होते है।
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इतिहासविज्ञ एवं लेखक : वासुदेव मंगल
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