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25 जून 2016 को 
ब्यावर के संस्थापक कर्नल चाल्र्स जाॅर्ज ड़िक्सन 
की 159वीं पुण्य तिथि पर विशेष
रचयिता एवं प्रस्तुतकत्र्ता - वासुदेव मंगल 


नया शहर बसाकर जिले का रूप दिया और बाद में स्वतंत्र मेरवाडा राज्य बनाया

10 जुलाई 1835 में डिक्सन ने राजपूताना गजैटियर में अधिसूचना छपवाकर 1955 परिवारों को बसाने के लिए 1 फरवरी सन 1836 को नगर के प्रवेश द्वार अजमेरी गेट के दांहिने गोखे के नीचे शहर की आधारशिला रखी। कर्नल डिक्सन का जन्म गे्रट ब्रिटेन के स्काॅटलैण्ड की राजधानी एडिनबरा के उत्तर में 10 मिल दूर डिक्सन गाँव में 30 जून सन् 1795 में हुआ था। 18 वर्ष की उम्र में वे बंगाल आर्टलेरी रेजिमेन्ट के कर्नल के रूप में भारत के मुरशीदाबाद बन्दरगाह पर आये जो आजकल हल्दिया कलकत्ता बन्दरगाह कहलाता है। ब्यावर शहर को डिक्सन ने दुनिया में एक मात्र सलिब की आकृति पर विश्व की प्राचीनतम अरावली श्रँखला के बीच में सुरम्य घाटी और पठार के बीच में जंगलों से घीरे हुए मैदान में बसाया था। यह स्थान सामरिक और भौगोलिक स्थिति और व्यापारिक व पर्यटन दृष्टि से इसलिए महत्वपूर्ण है कि राजपूताना की तीन बडी रियासतों जयपुर, जोधपुर, उदयपुर के व्यापारिक मार्गो का केन्द्रिय स्थान है। डिक्सन ने इसको नया शहर का नाम दिया। शहर बसाने के पश्चात तीन तहसीलों को मिलाकर नया शहर, सारोठ, टाटगढ तहसील को मिलाकर इसको ब्यावर जिले का नाम दिया और नया शहर को इसकी राजधानी बनाई, जो ब्यावर कहलाने लगा। बाद में सन् 1839 ई. में पाँच ओर तहसीलों को मिलाकर ब्यावर जिले को मेरवाडा स्वतंत्र राज्य का रूप दिया। यह तहसीले क्रमशः मसूदा, बिजयनगर, बदनौर, भीम और आबु पर्वत की तहसीले थी। इस प्रकार 8 तहसीलों को मिलाकर कर्नल डिक्सन ने सन् 1839 ई. में स्वतंत्र मेरवाडा राज्य की स्थापना की। जिसका मुख्यालय व राजधानी ब्यावर को बनाई। अतः ब्यावर में तहसीलदार के अलावा सात नायाब तहसीदार भी कार्य करते थे। यह कार्यालय फतंेपुरिया चैपड के पूर्वी उत्तरी कोने वाली नोहरे व ईमारत में स्थापित किया, जहाँ पर यह कार्यालय सन् 1913 तक कार्य करता रहा। तत्पश्चात् यह कार्यालय अजमेरी दरववाजे बाहर राजपूताना की सबसे बडी सेन्टर जेल परिसर में स्थानान्तरित कर दिया गया। 
अतः मेरवाडा स्वतंत्र राज्य के रूप में ब्यावर 118 साल तक सन् 1839 से लेकर 31 अक्टुबर सन् 1956 तक मेरवाडा के नाम से अस्तित्व में रहा। जिसके अस्तित्व को हमारी राज्य सरकार ने उसके महत्व को भूला दिया और इसको (मेरवाडा ब्यावर) को एक उपखण्ड के टुकडे के नाम से आज भी प्रचारित व प्रसारित कर रही है। जबकि मेरवाडा स्वतंत्र राज्य की सीमा उत्तर में खरवा, दक्षिण में दीवेर, पूर्व में बघेरा और पश्चिम में बबाईचा है। जिसकी उत्तर से लेकर दक्षिण तक 100 किलोमीटर तक लम्बाई व पूर्व से लेकर पश्चिम तक 50 किलोमीटर चैडाई है। जिसका क्षेत्रफल 5000 वर्ग किलोमीटर होता है। 
चूंकि यह पर्वतीय क्षेत्र होने के कारण इस पठारी भाग में दूर दूर तक ग्रामीण अंचलों में पशुपालन का कार्य होता था। इसलिये डिक्सन साहब ने ब्यावर को ऊन की तिजारत की मण्डी बनाई। जहां पर प्रतिवर्ष लगभग 30 हजार ऊन की बैल और ऊंट गांडीयां ब्यावर की मण्डी में आती थी। चूंकि संस्कृत भाषा में पर्वत को मेर कहते है और इस क्षेत्र के निवास स्थान को वाडा कहा जाता है इसलिए इस क्षेत्र का नाम मेरवाडा रखा गया और इसमें निवास करने वाले तमाम निवासी मेर कहलाये। अतः स्पष्ट है कि डिक्सन ने दूर दृष्टि के हिसाब से इस क्षेत्र को एक नागरिक बस्ति का दर्जा देकर सभी क्षेत्रों में समूचित विकास किया। जैसे सामाजिक, प्रजातांत्रिक, प्रशासन, आर्थिक, नैसेर्गिक, सामरिक(रक्षा) की दृष्टि से। इस शहर के नागरिकों की रक्षा हेतु सलीब की आकृति अनुसार चारों दिशाओं में चार दरवराजे बनाकर उसको परकोटे से जोडते हुए एक किले का रूप दिया। अपनी रक्षा सेना का नाम उन्होंने 144 मेरवाडा बटालियन रखा और शहर, जिले और मेरवाडा राज्य को ब्यावर का नाम दिया। ब्यावर से लेकर आबू तक 300 किलोमीटर की दूरी को हर 10 किलोमीटर के फासले पर 30 पिलर बनाकर उसकी समूतिच रक्षात्मक व्यवस्था की। और स्वयं सप्ताह में एक बार घूडसवारी करते हुए पिकेटिंक करते हुए आबूरोड तहसील का मुआयना करते थे। अपने नागरिकों का डिक्सन साहब बहुत प्यार और सम्मान करते थे। उनके यहां किसी तरह का कोई भेदभाव नहीं था। उन्होंने हमेशा अपनी प्रजा की तन मन धन से सेवा की। 21 जातियों को मौहल्ले के रूप में बसाया और हर जाति का अपना विवाद उनकी जाजम पर दो तिहाई बहुमत से स्वयं जाति के लोग तय करते थे। उसमें प्रशासन कोई हस्तक्षेप नहीं करता था। व्यापारिक मार्गो की सीमा के नाकों पर चूंगी नाका बनाकर चूंगी वसुल की जाती थी, जिससे प्रशासन का खर्चा चलता था। अतः डिक्सन साहब शहर में ही अजमेरी गेट के अन्दर दाहिने नोहरे में अपनी प्रजा के साथ ही निवास करते थे उन्होंने अपनी प्रजा के दुख सुख का हमेशा ध्यान रखा। प्रजा को राजा मानकर स्वयं सेवक के रूप में उनकी सेवा की। 
बडे दुख के साथ लिखना पड रहा है कि आज 1886 में ब्यावर की जनता द्वारा शहर की मुख्य चैपाटी पर निर्मित किये हुए उनके देवरे को सन् 1972 में तत्तकालीन नगर अध्यक्ष द्वारा धूली धूसरित कर दिया गया। तब से ब्यावर संक्रमण काल में चल रहा है। और इसका समस्त विकास पतन के रूप में परिवर्तित हो गया। क्योंकि आस्था के इस खुले झरोखे पर ब्यावर की सारी जनता नम्न करती थी। ऐसे पावन स्थान को धूसरित कर ब्यावर के तत्कालिन नगर अध्यक्ष ने संविधान का भी अपमान कर दिया, क्यों कि तत्कालीन राजस्थान उच्चतम न्यायालय के आदेश के तहत डिक्सन की छत्री पर बनाये गये विट्ठल टाॅवर को हटाने के न्यायालय आदेश के साथ ही डिक्सन छत्री भी गिरा दी गई तब से इस अभिाषाप के कारण ब्यावर बर्बादी के कगार में परिवर्तित हो गया। अत्व् राज्य व स्थानीय सरकार को चाहिए कि पुनः निर्मित डिक्सन छत्री पर किया गया अवरोध दूर किया जाये ताकि उनके देवरे को ब्यावर की जनता नमन कर सके। जैसे की पूर्व में यह परमपरा रही थी कि ब्यावर का हर दुकानदार अपनी दुकान खोलने से पहले अपनी आस्था के अनुसार डिक्सन छत्री के चबूतरे पर दुकान की चाबीयां रखकर नमन करता और बाद में दुकान खोलता। डिक्सन के देवरे को धोकने की यह परम्परा सन् 1886 से 1972 तक कायम रही जब तक यह देवरा गिरा नहीं दिया गया था। जब से डिक्सन का देवरा तोडा गया तब से ब्यावर का पतन आज भी बरकरार है। ब्यावर के बारे में समग्र जानकारी ब्यावर की एक मात्र वेबसाईट ब्यावरहिस्ट्री डाॅट काॅम पर उपलब्ध है।
दुख इस बात का है कि डिक्सन की पुनःनिर्मित छत्री होते हुए भी वहां पर अतिक्रमण के कारण आज डिक्सन को श्ऱद्धा-सुमन कहां अर्पित करें। अतः सरकार को चाहिए कि बिना प्राण प्रतिष्ठा के चोरी छिपे डिक्सन छत्री के चबूतरे पर स्थापित की गई प्रतिमा को, समारोह पूर्वक धर्मिक विशाल जुलूस के साथ किसी उचित स्थान पर, प्राण प्रतिष्ठा के साथ, स्थापित करवायें। ताकि डिक्सन के देवरे पर पुनः घोक लगाई जा सके, क्योंकि इस प्रतिमा की न तो पूजा होती न ही आरती होती है और न ही दीपक जलाया जाता है और न ही यहां के शिखर पर कोई ध्वज है। अतः एक देव के साथ साथ देवी का अपमान हो रहा है जो ब्यावर के लिए एक कलंक है। इसलिये ही ब्यावर तरक्की नहीं कर पा रहा है। 
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