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‘‘ब्यावर’ इतिहास के झरोखे से.......

✍वासुदेव मंगल की कलम से.......
छायाकार - प्रवीण मंगल (मंगल फोटो स्टुडियो, ब्यावर)


 

30 जून 2023 को ब्यावर के संस्थापक
कर्नल चार्ल्स जॉर्ज डिक्सन का 229वाँ जन्म दिन

लेखक - वासुदेव मंगल, ब्यावर
यह एक ईत्तफाक है कि डिक्सन का जन्म भी जून के महीने में हुआ और निधन भी जून में ही। फर्क इतना है कि डिक्शन की पुण्य तिथी पहीले 25 जून को आती है और जयन्ती बाद में 30 जून को।
डिक्सन का जन्म ग्रेट ब्रिटेन के स्कॉटलैण्ड के एडिनबर्ग सिटी मे 30 जून सन् 1795 ई0 में हुआ और मृत्यु ब्यावर राजपूताना इण्डिया मे 25 जून सन् 1857 में हुई।
इस प्रकार डिक्सन की उम्र 61 वर्ष 11 महीने और 25 दिन थी। इस प्रकार डिक्सन की शिक्षा दीक्षा यूरोप में ही हुई। वे ईस्ट इण्डिया कम्पनी के मुलाजिम थे। ईस्ट इण्डिया कम्पनी का कारोबार ब्रिटेन की तरफ का इण्डिया में था। डिक्सन आर्टलरी रेजिमेण्ट में कर्नल के पद पर ओहदेदार थे अतः इण्डिया में उनको बँगाल आर्टिलरी रेजिमेण्ट मुर्शिदाबाद मे तैनात किया गया। उस समय सन् 1812 में उनकी उम्र 17 वर्ष थी।
इसी नफरी को 1818 मे राजपूताना अजमेर नसीराबाद में मुर्शिदाबाद से शिफ्ट कर दिया गया। उस वक्त उनकी उम्र 23 वर्ष थी। वे एक नेक दिल, सहृदय, ईमानदार और कुशल सैन्य प्रशासक अधिकारी थे। मात्र तीन साल नसीराबाद में रहने के बाद उनको सन् 1821ई. में अजमेर मैगजीन का प्रभारी अधिकारी तैनात किया गया अजमेर में। उस समय कर्नल डिक्सन की उम्र मात्र 26 वर्ष थी।
अंग्रेज़ी केन्द्रिय छावनी ब्यावर मे राजपूताना की सन् 1823 मे स्थापित की गई थी। इस छावनी की कमान कर्नल हैनरी हॉल को सौंपी गई। अंग्रेजी फौज ने इस एरिया में उस वक्त इक्तीस गाँव जीतकर अपने अधिकार में लिये थे। इसीलिये यहाँ पर नई छावनी बनाई गई। कर्नल हैनरी हॉल ने मार्च 1835 तक 12 साल 3 महीने हुकुमत की। मार्च 35 मे उन्होंने अपने पद से इस्तीफा दे दिया।
अतएव मार्च 1835 में कर्नल चार्ल्स जॉर्ज डिक्सन को ब्यावर छावनी सदरे मुकाम बनाया गया। इस वक्त डिक्सन की उम्र 39 साल 9 माह थी।
यहाँ आने पर डिक्सन का हृदय परिवर्तन हो गया। पहाड़ी ट्राईवाल की मासूमियत देखकर उन्होंने इस स्थान को केन्टोनमेण्ट से सिविल कालोनी में बदलने का मन बनाकर, उनसे सम्पर्क कर उनको समाज की मुख्य धारा से जोड़ने का प्रस्ताव दिया। यहां के निवासियों ने खून के सम्बन्ध के साथ उनके प्रस्ताव को मन्जूर कर अपनी सहमति प्रदान की। अतः चाँद बीबी से निकाह किया। फिर 10 जुलाई 1835 में एक नया शहर बसाने की अधिसूचना राजपूताना गजेटियर मे अधिसूचित की गई। परिणाम स्वरूप 1955 परिवारों ने ब्यावर में आकर बसने की लिखित सहमति कर्नल डिक्सन को प्रदान की अतः छावनी की दक्षिण दिशा में कि बिचड़ली और शाहपुरा जुड़ना गाँवों को
चयनित कर पश्चिम-दक्षिण दिशा के ऊँचे पठार को जो उत्तर-पूरब मे ढलवा था को करीब एक मील के रेडियस में सलीब की आकृति को जमीन पर उकेरकर अपनी फौज को लगाकर उबड़ खाबड़ जमीन को समतल कर क्रास आकृति पर सशक्त किलेबन्दी कर बड़े ही सुन्दर ढंग से आर्चीटेक्ट पच्चीकारी वैज्ञानिक कला पर शहर मे जाति के आधार पर पच्चीस कालोनियां बनाकर जयपुर की तर्ज पर नया शहर बसाया। फरवरी 1836 को। 1फरवरी 1836 को शुभ मुहुर्त में सनातन विधि से पूजनकर के प्रवेश द्वार अजमेरी गेट के दाहिने गोरखे के नीचे आधार शिला रखकर चारों पट्टी के आखिर छोर पर चारों दिशाओं में चार 32 फीट ऊंचे कलात्मक दरवाजों को छ फीट चौड़ी और पन्द्रह फीट ऊँची रक्षण मजबूत दिवार परकोटे के रूप में जोड़ा। परकोटे की बाहरी तरफ दिवार पर छ फीट ऊँची, कंगूरेदार दीवार बनाई। छत्तीस बुर्जिया बनाई। शायद यह एक मात्र शहर है जहाँ पर अंग्रेजी हुकुमत ने मैदान में रक्षण दीवार बनाकर नये शहर की स्थापना की। यह शहर शकून लिये शहर कहलाया। ऊन और कपास की राष्ट्रीय मण्डी बना । तात्पर्य यह है कि शहर को बसाने के बाद डिक्सन इक्कीस साल ही जीवित रहे। परन्तु सन् 1838 में यहाँ का ऊन और कपास रूई का व्यापार पूरे देश मे परवान पर था। यहीं पर हुण्डी बिल्टी का व्यापार आरम्भ हुआ। सवेरा होते ही पूरे शहर मे व्यापार की रौनक शुरू हो जाती। मेला लग जाता। सेठाणा शहर कहलाया। लोग दिसावर से यहां कमाने के लिये आते। बड़ी चहल पहल रहती। साथ मे बुलियन का व्यापार भी परवान पर था। आप देखिये ग्यारह चौराहों के साथ मुख्य चौपाटी से चारों दिशाओं मे सलीव की पट्टियों के माप के चार मुख्य बाजार बनाये गए। फिर बाजार के दस चौराहों से चारों बाजारों के पौकेट में पच्चीस चौराहों के साथ पच्चीस मोहल्ले बनाये गए। मोहल्ले का प्रत्येक चौराहा बाजार के चौराहे से जोड़ा गया। प्रत्येक मोहल्ले में चौराहे से चारों दिशाओं मे सड़क के दोनों तरफ मकान बनाये गये। डिक्सन ने सामाजिक व्यवस्था स्वतन्त्र कर रखी थी। प्रत्येक जाति अपनी जाजम पर दो तिहाई बहुमत से अपने मसले हल करती थी। सरकार की उनकी सामाजिक व्यवस्था में कोई दरवलन्दाजी नहीं थीं।
लोकतान्त्रिक, समाजवाद के आधार पर धरम को स्वतन्त्रता के साथ साथ व्यापार की स्वतन्त्र भी प्रजा को थी। देखा आपने डिक्सन का करिश्मा
यहाँ पर लेखक अपवाद स्वरूप ब्यावर की जनता को यह बताना चाहते है कि अंग्रेज़ का बसाया हुआ शहर होने से जनसाधारण को नफरत रूपी मानसिकता नहीं रखनी चाहिये। उस आदर्श मानव के गुणों को भी स्वीकारणा चाहिये जिसने विषम परिस्थितियों में इतने सुन्दर, खुबसूरत शहर की संरचना कर सभी तरह के साधन सुलभ कराकर उस जमाने में आज के एक सौ सत्यासी अठयासी वर्ष पहले ही ब्यावर शहर को विश्व की परिधी मे ला खड़ा किया। लेखक का नमन उस महामानव को।
इतना ही नहीं। डिक्सन ने ब्यावर शहर बसाकर, ऊन, रुई की मण्डी बनाकर ही डिक्सन ने इतिश्री नहीं कर ली थीं। अपितु आगे चलकर पड़ोस की दक्षिण की मेवाड़ रियासत से 32 बत्तीस गांव और पश्चिम की पड़ोस मारवाड़ रियासत से इक्कीस गाँव लीज पर लेकर मेरवाड़ा स्टेट का स्वरूप प्रदान किया अपने इक्तीस गांवों के साथ।
अतः 1840 मे मेरवाड़ा बफर स्टेट नामकरण कर ब्यावर सिटी को मेरवाड़ा स्टेट का मुख्यालय बनाया सात परगनो (तहसीलों के साथ जिनके नाम थे ब्यावर, बिजयनगर, आबू रोड़, मण्डला (भीम), बरसावाड़ा (टाटगढ़), बदनपुर (बदनोर) और मसूदा।
चूँकि ब्यावर शहर जयपुर, जोधपुर, उदयपुर देशी रियासतों के तिजारती मार्गों के केन्द्र में बसाया गया था । अतः इस शहर की चारों सीमाओं पर महसूल (चुंगी) कर जिसे वर्तमान मे टोल टेक्स कहते हैं, लेने की व्यवस्था की गई थी।
डिक्सन ने ब्यावर शहर लोकतान्त्रिक, समाजवाद, धर्मनिरपेक्ष पद्धति पर बसाया था। अतः सभी घरमों के लोग बड़े प्यार मोहब्बत से अपना अपना स्वतन्त्र व्यापार करते हुए बड़े ही प्रेम से मिलजुलकर रहते थे। आपराधिक व्यवस्था में अपराधी के घरवालों से व्यवस्था खर्चा लिया जाता। सुरक्षा व्यवस्था माकूल एवं चाक चौबन्द थी। ताकि अपराध पुनः न करे। डिक्सन ने ग्रामीण जन के लोक देवता तेजाजी महाराज का मेला भरवाना 1840 में आरम्भ किया। साथ में शहरी लोगों का बादशाह मेला भी आरम्भ किया 1851 में।
सभी धर्मों के जाति के लोग बड़ी उमंग, उल्लास से अपने अपने उत्सव, त्यौहार बड़े चाव से मनाते। होली, दिवाली, दशहरा रक्षा बन्धन, मोहर्रम, ईद, क्रिसमस, नानकदेव जयन्ती, महावीर जयन्ती तीज गणगौर इत्यादि इत्यादि।
ब्यावर की प्रजा को एक नारियल में जमीन का पट्टा देकर के उनको बसाया। डिक्सन हमेशा अपनी प्रजा के दुख सुख में हमेशा साथ रहे। अपनी प्रजा की सेवा उन्होंने राजा होते हुए भी सेवक बनकर की।
डिक्सन को नमन करने के लिये पुनः आस्था का. झरोखा 2005 में बनाकर समर्पित किया गया परन्तु बड़े खेद के साथ लिखना पड़ रहा है कि 13 जनवरी 2007 की रात्री को बारह बजे बाद उस पर पुनः अतिक्रमण कर दिया गया। अतः डिक्सन को नमन करने का आस्था का झरोखा नहीं होने के कारण पुनः ब्यावर की यह दुर्दशा हुई है। ब्यावर की संभ्रान्त जनता को इस बारे में ठण्डे दिमाग से सोचना चाहिये। और इस समस्या का हल निकालना चाहिये। प्रशासन को भी इस अहम मुद्दे का कोई कारगार उपाय करना चाहिए।
डिक्सन ने आन्तरिक सुरक्षा हेतु पुलिस फोर्स बनाई। 1842 में डिक्सन ने सिविलियन को पट्टे जारी किया। डिक्सन सिविल वर्क्स कमिश्नर की हैसियत से करते। क्रिमिनल वर्क्स सुपरिन्टेन्डेण्ट के ओहदे से करते। मेरवाड़ा स्टेट की सुरक्षा मे 144 मेरवाड़ा बटालियन कार्य करती। डिक्सन ब्यावर से आबू तहसील की पेट्रोलिंग भी करते। 1852 मे ईस्ट इण्डिया कम्पनी ने डिक्सन को मेरवाड़ा के साथ अजमेर स्टेट का चार्ज भी दे दिया। अतः अजमेर के साथ नसिराबाद छावनी की जिम्मेदारी उन्हीं के अधीन थी।
देखिये डिक्सन की डेडीकेटेड - रेस्पोन्सिबिलिटी चार-चार शहर की एक साथ देखभाल करना ब्यावर हेड क्वार्टर से। ये सारी देखभाल उन शहरों में केम्प (शिविर) के जरिये करते रहे जब तक कि जीवित रहे। थी ना उनकी दोहरी जिम्मेदारी जिसको उन्होंनें बड़ी खूबी के साथ निभाया। वे मानवता के पक्षधर थे। अतः वे अपनी प्रजा के लिये देव तुल्य कहलाए। प्रजा उनको देवता के रूप मे घोकती रही। आज भी श्रद्धा का भाव है।
पुनः आस्था का झरोखा कायम होने के बाद सन् 2005 से 2007 की 13 जनवरी तक ब्यावर पुनः एक बार फिर से विकास के मार्ग पर अग्रसर हो चला था। फिर से सभी क्षेत्रों मे विकास के आयाम स्थापित होने लगे थे चाहे व्यापार हो, कृषि हो, उद्योग हो, सामाजिक समरसता हो। यों कि संकुचित मानसिकता वाले लोगों ने फिर से एक बार धार्मिक कट्टरता के जरिये पुनः देव दोष पैदा कर ब्यावर का पुनर्विकास को अवरुद्ध कर दिया। तब से यह सतरहवाँ वर्ष 2023 चल रहा है ब्यावर फिर विकास से लोक डाऊन हो गया।
अब जिला बनने पर फिर से ब्यावर के चहुमुखी विकास की उम्मीद बन्धी है।
उनकी जयन्ती पर ब्यावर की जनता को लेखक की हार्दिक बधाई।
 

इतिहासविज्ञ एवं लेखक : वासुदेव मंगल
CAIIB (1975) - Retd. Banker
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