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‘‘ब्यावर’ इतिहास के झरोखे से.......

✍वासुदेव मंगल की कलम से.......  ब्यावर सिटी (राज.)
छायाकार - प्रवीण मंगल (मंगल फोटो स्टुडियो, ब्यावर)


19 जुलाई 2024 को बैंकों के राष्ट्रीयकरण को 55 वर्ष पूरे हुए।
आलेख - वासुदेव मंगल
अंग्रेजी काल में सन् 1936 में ब्रिटिश सरकार ने भारतीय मेंट्रोपोलीस बैंकों को रिर्जव बैंक में बदला था जो देश का केंद्रीय बैंक हुआ। 1947ई. में भारत के स्वतन्त्र होने के बाद 1955 में स्टेट बैंक आफ इण्डिया की स्थापना हुई। यह एक सरकारी बैंक था क्योंकि इसके 51 प्रतिशत शेयर पब्लिक सेक्टर में थे। इसके साथ साथ 6 राज्यों के रियासत कालीन बैंक भी समय समय पर पब्लिक सेक्टर के रूप में होकर स्टेट बैंक आफ इण्डिया के सहायक बैंक (ेनइेपंकपंतल ठंदा)कहलाये जो स्टेट बैंक ग्रुप के नाम से जाने जाते रहे।
जुलाई 1969 में इन्दिरा गाँधी ने 14 अन्य बैंको का राष्ट्रीयकरण करके इनकी संख्या 21 तक पहुंचा दी। सन 1980 में इन्दिरा गांधी ने सात ओर बैंकों का राष्ट्रीयकारण कर सरकारी बैंकों की संख्या 28 कर दी। इससे आम आदमी की पहूँच सरकारी बैंक में होने लगी। जन साधारण की सरकारी बैंक में विश्वसनीयता होने के कारण गरीब का भरोसा सरकारी बैंकों पर बढ गया।
परन्तु पहले चरण में स्टेट बैंक ऑफ इण्डिया में इसके छ सहायक बैंकों का मर्जर कर सात की जगह एक बैंक रख दिया। अतः 28 की जगह 22 सरकारी बैंक रह गए।
सन् 2019 में 10 सरकारी बैंकों का मर्जर कर इनकी संख्या 12 कर दी गई स अंत में इस प्रकार वर्तमान की एन.डी.ए (नेशनल डमोक्रेटिक एलायन्स) केन्द्रिय सरकार ने अब तक सोलह (16) सरकारी बैंकों को खत्म कर अब सरकारी बैंकों की संख्या 12 (बारह) ही कर दी स वर्तमान में भारत जैसे विशाल गरीब जनता वाले देश में पुनः एक बार गरीब का बैंक पर से विश्वास (भरोसा) समाप्त हो गया है। अब ये बैंक खाली पड़े रहते हैं। ग्राहक की संख्या शून्यता रह गई है। अतः बैंकों की विश्वसनीयता समाप्त हो गई। अब ये बैंक सरकारी है 2024 में 1. स्टेट बैंक आफ इंडिया, 2. बैंक आफ बड़ौदा 3. पंजाब नेशनल बैंक 4. बैंक ऑफ इंडिया 5. यूनियन बैंक ऑफ इंडिया 6. केनरा बैंक 7. बैंक ऑफ महाराष्ट्र 8. सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया 9. इंडियन ओवरसीज बैंक 10. इन्डियन बैंक 11. यूको बैंक 12 पंजाब और सिन्ध बैंक।
अतः 1969 में आज के दिन 19 जुलाई को जो क्रांतिकारी परिवर्तन हुआ था।, उसमें पचास साल बाद पुनः एक बार निजीकरण के जरिये ठहराव आ गया। पुनः ये बैंक समाप्त कर निजीकरण से पूँजीपतियों के हाथों में सौंप प्राईवेट बैंकों को लाइसेन्स देकर संख्या बढ़ाकर विदेशी बैंकों को लाईसेन्स देकर बैंको की संख्या बढ़ाकर गरीब का भरोसा सरकार ने बैंकों से प्रायः खत्म कर दिया है।
अतः एन पी ए का पैसा डूबत-ऋणों में बढ़कर (ठंक क्मइजे) हो जाता है जिससे सरकार प्रायः घाटे का बजट आगे बढ़ाई जा रही है जिससे देश पर असहनीय कर्ज प्रति व्यक्ति बढ़ता जा रहा है और देश की आर्थिक स्थति दिन पर दिन शोचनीय होती जा रही है। बड़े बड़े पूँजीपतियों को दिया गया असंख्य ऋण जमा धन सरकारी बैंकों में गरीबजन का भरोसे में रखा गया जमा धन डूबता जा रहा है।
तो देश के बैंको की ये असन्तुलित वित्तीय व्यवस्था फैलती बढ़ती जा रही है जिसका सीधा असर महगांई और बेरोजगारी पर बेतहाशा रहा है। बेतहाशा महंगाई और बेरोजगारी से युवा वर्ग, मध्यम वर्ग और गरीब वर्ग तनाव में है जो कभी भी नासूर के रूप में फूटकर देश में अशान्ति, असन्तोष और अराजकता फैला सकती है।
अतः सरकार को अब भी समय रहते हुए देश में नीति परक योजना के जरिये आर्थिक आमूलचूल परिवर्तन करके स्थिति पर नियन्त्रण करना आवश्यक है। अब अवाम की मूलभूत आवश्यकताओं को रचनात्मक आधार देकर जनता में भरोसा पैदा करना जरूरी है।
यह लेखक के अपने विचार है स सरकारी सोलह बैंकों की जगह जिन प्राईवेट बैंकों को लाइसेंस दिये सरकार ने उनमें प्ब्प्ब् ठंदा, प्दकनेंदक ठंदा, भ्क्थ्ब् ठंदा एवं ल्म्ै ठंदा प्रमुख है। इस तरह प्राइवेट बैंक एवं विदेशी बैंक सरकार द्वारा लगातार खोले जाते रहे। वर्तमान में देश में 21 प्राइवेट बैंक एवं 46 विदेशी बैंक कार्यरत है। अतः भारत का पब्लिक बैंकिंग आर्थिक सेक्टर बिगाड़ दिया गया, जिससे गरीब वर्ग का भयंकर वित्तिय शोषण हो रहा है, पोषण की जगह। जिससे भारत की वित्तिय स्थिति बैंकों की दिन पर दिन शोचनीय होती जा रहीं है।
आपको बता दें कि सबसे पहले राजपूताना में दी ब्यावर सेन्ट्रल कॉपरेटिव प्राइवेट लिमिटेड बैंक ब्यावर में ही सन् 1925 में खुला था जो बाद में बन्द हो गया। उसके बाद सन् 1942 में दी भारत बैंक लिमिटेड खुला था जो बाद में पंजाब नेशनल लिमिटेड बैंक में मर्ज कर दिया गया।
उसके बाद सन् 1943 में दी बैंक ऑफ राजस्थान लिमिटेड खुला। 26 सितम्बर 1946 ई० में दी बैंक ऑफ जयपुर लि. ब्यावर में खुला था जो सन् 1959 में स्टेट बैंक ऑफ जयपुर कहलाया और सन् 1963 में बीकानेर बैंक ने जयपुर बैंक को टेक ओवर किया तब से जयपुर बैंक, स्टेट बैंक आफ बीकानेर एण्ड जयपुर बैंक के नाम से जाना जाने लगा। फिर सन् 1955 में स्टेट बैंक आफ इण्डिया खोला गया। इस बैंक की राजस्थान प्रदेश में उस समय आठ ब्रान्च खोली गई जिसमें, ब्यावर, अजमेर, आबूरोड़, अलवर, जयपुर, जोेधपुर, उदयपुर और साँभर लेक में ब्रांच खोली गई। इस प्रकार सन् 1955 में ब्यावर में पांच बैंक कार्यरत थी। आज तो ब्यावर में सरकारी और प्राईवेट बैंकों का जाल बिछ गया है। लगभग इतनी ही संख्या में इन सब बैंकों के एटीएम( ।नजवउंजमक ज्मससमत डंबीपदम) कार्यरत है।
वास्तव में ब्यावर में सन् 1838ई. से ही क्रॉनिकल ऊन और कपास (वूल एण्ड कॉटन सीड्स) की राष्ट्रीय मण्डी रही है जहां पर बीसवीं सदी के पाँचवें दशक के आरम्भ से पूरे भारत देश में बैंकिंग सिस्टम आरम्भ हो गया था। इसके साथ ही ब्यावर में भी बैंक खुलने शुरू हो चुके थे।
इससे पहले ब्यावर में बावन सर्राफा मर्चेंट व्यवसाय द्वारा व्यापार पद्धति सन् 1838 से आरम्भ हो चुकी थी जिनके साथ साथ बुलियन मर्चेण्ट्स एण्ड कमीशन एजेन्ट की सर्राफा व्यापार पद्धति भी चलन में थीं।
समय के साथ साथ सन् 1875 ई0 में ब्यावर में रेलवे पैसेन्जर एण्ड गुड्स ट्रेनों की आवाजाही के कारण ब्यावर में कॉटन प्रेस कम्पनीज और क्लोथ मिल्स का ट्रेड 1889 से आरम्भ हो गया। अतः ट्रेड एण्ड कामर्स के साथ साथ उद्योग इंडस्ट्रीज भी शुरू हो गई, जिससे ब्यावर में ट्रेड एण्ड इण्डस्ट्रियल संस्थानों का ट्रेड फ्लोरिश होने लगा और इस प्रकार सबसे पहले राजपूताना में ब्यावर में व्यापार और उद्योगों में दिन-प्रतिदिन ईजाफा होता गया।
19.07.2024
 
 
इतिहासविज्ञ एवं लेखक : वासुदेव मंगल
CAIIB (1975) - Retd. Banker
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