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‘‘ब्यावर’ इतिहास के झरोखे से.......

✍वासुदेव मंगल की कलम से.......  ब्यावर सिटी (राज.)
छायाकार - प्रवीण मंगल (मंगल फोटो स्टुडियो, ब्यावर)

 

एक समीक्षात्मक अध्ययन
15 जुलाई 2024 को भारत में संविधान अंगीकार को 75 साल हुए

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आलेखः वासुदेव मंगल, ब्यावर
स्वतन्त्र भारत के संविधान द्वारा ही भारत देश के नागरिकों को मौलिक अधिकार मिले थे। अब पिचेत्तर वर्ष पश्चात् की स्थिति की समीक्षा बहुत आवश्यक है।
सही मायने में देखा जाये तो आज भी अवाम मूलभूत अधिकार रोटी -कपड़ा और मकान से वंचित है। पोन शताब्दी बीत जाने के बाद भी ऐसा क्यों? यह एक गम्भीर शोचनीय प्रश्न है सरकार के सामने। आज इस विषय पर ही सरकार को चिन्तन करना है। इसका कोई सकारात्मक हल निकालना है, खोजन है। भारत प्रजातान्त्रिक राज्यों का एक केन्द्रिय संघीय समूह है, जो लोकतन्त्रिय पद्धति से देश में शासन करता आ रहा है। फिर क्या कारण रहे हैं कि मूलभूत अधिकारों की पूर्ति नहीं हो पा रही है? जबकि भारत जैसा देश प्राकृतिक सम्पदाओं से विश्व में सबसे ज्यादा परिपूरित भाग्यशाली देश है प्रत्येक बिन्दू पर जो विश्व में किसी भी देश में उपलब्ध नहीं है। भारत में भौगोलिक दृष्टि से साल में परिवर्तनीय तीन मौसम सर्दी, गर्मी, बरसाता चार चार महीनांे के है। छः ऋतु बसन्त, ग्रीष्म, वर्षा, शरद, शिशिर और हेमन्त प्रत्येक ऋतु दो महीनों की होती है जो दुनिया में अन्य जगह कहीं नहीं होती है। इसी के अनुसार रबी और खरीफ की दो भरपूर फसलें होती है। पृथ्वी अपनी धूरी पर प्रतिदिन रात पश्चिम से पूरब की तरफ घूमती है। जिससे चौबिस घण्टो में दिन रात बराबर होते रहते है। पृथ्वी सूर्य के चारों तरफ 365.25 दिनों में एक पूरा चक्कर लगाती है जिससे साल (वर्ष) होता है। पृथ्वी प्रतिदिन घूर्णन करती है पश्चिम से पूरब दिशा में उसी दिशा में वायु और जल का वेग भी घूमता रहता है। हवा के वेग को तो पछुआ या पूरवईया करहते हैं और समुन्द्र के जल के वेग को जो प्रत्येक छ घण्टे के अन्तराल में आरोही और अवरोही क्रम को क्रमशः ज्वार और भाटा कहते हैं प्रकृति का यह क्रम वर्ष पर्यन्त तक ऐसे ही निरन्तर चलता रहता है जिसे हम काल चक्र कहते है जिस दशाब्दी, शताब्दी और सहस्त्राब्दी काल समय के नाम से पुकारते है। अब हम भौगोलिक दृष्टि से भारत देश की बात करते हैं तो इस देश में नैसर्गिक प्रकृति है अर्थात् पहाड़, रेगिस्तान, पठार, मैदान और समुद्र सब कुछ है नदियाँ है, झील है, नाले हैं, बावड़ी है, झरने है। तात्पर्य यह कि अकूत प्राकृतिक सम्पदा भारत देश की धरती-जमीन में दबी भरी पड़ी है। पहाड़ों पर विभिन्न प्रकार की अथाह वनस्पितियाँ भरी पड़ी है वनों में, जंगलों में। इसी प्रकार समुद्र में जलीय जीव भरे पड़े है भारत देश के पहाड़ों में, पठारो में भूगर्भिय खनिज सम्पदा विभिन्न प्रकार की दबी पड़ी है। इसी प्रकार जन शक्ति के मामले में भारत देश विश्व में पहले नम्बर पर है। पशु धन में भी सर्वाेपरि देश है भारत। तो फिर भी भारत तरक्की क्यों नही कर पा रहा है पिछले पिच्चेतर साल से।
तो लेखक की दृष्टि से तो स्पष्ट लगता है कि सरकार के सिस्टम में ही खामी है जब तक जन सेवा में नीति और नियत की पारदर्शिता स्पष्ट रूप से नहीं झलकेगी तब तक देश तरक्की नहीं कर सकेगा चाहे कोई भी सरकार हो, कितने ही पापड़ बेल लो।
अतः देश की और स्थानीय तरक्की के साथ, प्रत्येक नागरिक और जन सेवक के काम में ईमानदारी, पारदर्शिता झलकनी चाहिये। भ्रष्टाचार समूल शुरू से लेकर अन्त तक स्वतः ही नष्ट होना चाहिये। राजा अर्थात प्रत्येक स्तर की सरकार के काम काज मूल्यांकन प्रजा के द्वारा किया जाना चाहिए। ये लेखक के विचार है।
आवाम को सारगर्भित रोजगार मुहैय्या कराने बाबत लेखक का सुझावः-
चूंकि भारतदेश में प्राकृतिक सम्पदा सभी प्रकार की जमीन में, पहाड़ों में, जंगलों में, रेगिस्तान में, समुन्द्र में भरी दबी पड़ी है जिनका वेज्ञानिक तरीके से आधुनिक तकनीक को उपयोग में लेकर स्किल लेबर के जरिये किया जाना अत्यन्त आवश्यक है भारत देश में अपार जनशक्ति है इसके हाथों को रोजगार के लिए सरकार को काम देना बहुत जरूरी है।
ऐसी स्थिति में लेखक का क्रियाशील सुभाव है सरकार को रोजगार के लिये हर दस्तकार बेरोजगार कामगार को उसकी बौद्धिक दक्षता और दिलचस्पी के अनुरूप सुक्ष्म-लघु-मध्यम दक्षता के उद्योग हेतु सबसे पहले तो कच्चा माल उपलब्ध सुलभ कराना पडेगा। दूसरा ऐसे दस्तकार (कामगार) को उत्पादन हेतु सस्ती पावर (बिजली) दी जानी चाहिये ताकि वह रा मटिरियल से पक्का माल बना सके और अन्त में उसके निर्मित उत्पाद को बेचने के लिए सब्सिडी दी जानी चाहिये।
देश में रा मटीरियल की कोई कमी नहीं है। हाँ पावर (बिजली) बहुत ही सस्ती जैसे 60-70 पैसा यूनिट की दर से देनी होगी। और उत्पाद तैय्यार है तो आज के ग्लोबल मार्केट की भारी प्रतिस्पर्द्धा में उसके उत्पाद को अन्य समान प्रतिस्पद्धी वस्तु के बनिस्पत सस्ता बेचने के लिये इन्सेन्टिव के रूप में सब्सिडी भी दी जाती है।
इस प्रकार देश के करोड़ो बेरोजगारों को रोजगार मुहैय्या हो सकेगा और देश का आवाम मालामल होगा। परन्तु अब समय आ गया है कि भारतवर्ष जैसे सबसे ज्यादा जनशक्ति वाले देश में ए आई मशीनीकरण के जरिये मशीनों के रोबोट से काम करवाने के बजाय मानव रोबोट से काम लेना ही फायदेमन्द है नहीं तो भूखमरी और कुपोषण और बिमारी की देश मे भयानक समस्या फैल जायेगी जिससे सरकार को निजात पाना मुश्किल ही नहीं अपित् असम्भव हो जायेगा। अतः समय रहते सरकार चेत जाये तो अच्छा है। समस्या पर काबू पाया जा सकेगा नहीं तो कदापि नहीं। बाजिब जानकर, लेखक ने, अपने विचार, इस विषय में, व्यक्त किये है।
लेखक ब्यावर की उद्योग का एक उदाहरण देकर समझा रहे हैं। ब्यावर में जिप्सम पाउडर प्रचुर मात्रा में उपलब्ध है। अतः इस कच्चे माल (जिप्सम पाऊडर) से सिमेण्ट उद्योग का हब ब्यावर में स्थापित हुआ है। अब इसी प्रकार फैल्सपार पाऊडर भी ब्यावर में प्रचूर मात्रा में उपलब्ध है।
अब इस फैल्सपार पाऊडर से सिरेमिक टाइल्स का उद्योग का हब ब्यावर में स्थापित किया जा सकता है इस उद्योग से संबन्धित अन्य सभी घटक उपलब्ध है यहाँ ब्यावर में। इसी प्रकार यहाँ पर आस पास की पहाड़ियों में उच्च कोटि का ग्रेनाईट स्टोन उपलब्ध है दबा भरा पड़ा है। अतः ग्रेनाईट स्टोन के उद्योग मार्केट का हब भी ब्यावर में निकट भविष्य में बनाया जा सकेगा।
आवश्यकता मात्र सरकार के इन्सेन्टिव लेने की है। यह तो ब्यावर का एक जागरूक संवेदनशील नागरिक इतिहासकार फ्रीलान्सर सीनियर सिटीजन है जो आपको देश की प्रगति, प्रदेश राजस्थान की प्रगति और स्वयं के नवसृजित ब्यावर जिले की त्वरित प्रगति के लिये इतने श्रम के साथ प्रोत्साहित अपने इस सारगर्भित लेख के जरिये कर रहा है। पिच्चेतर साल का अरसा (समय) कोई छोटा समय नहीं होता है। श्रीमान् अगर पिच्चेतर वर्ष पहले ही ऐसा प्रयास किया जाता तो आज देश कहाँ से कहाँ पहुंच जाता।
17.07.2024
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इतिहासविज्ञ एवं लेखक : वासुदेव मंगल
CAIIB (1975) - Retd. Banker
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