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‘‘ब्यावर’ इतिहास के झरोखे से.......

✍वासुदेव मंगल की कलम से.......  ब्यावर सिटी (राज.)
छायाकार - प्रवीण मंगल (मंगल फोटो स्टुडियो, ब्यावर)

 
26 जनवरी 2024 को भारत का 75वाँ गणतन्त्र दिवस
आलेखः वासुदेव मंगल - स्वतन्त्र लेखक व इतिहासकार, ब्यावर
गणतन्त्र का शाब्दिक अर्थ होता है प्रजा का प्रजा के द्वारा चुने गए लोगों द्वारा अपनी प्रजा पर शासन किया जाना।
आज हिन्दुस्तान पर गण तो समाप्त प्रायः हो गया है और मात्र शासन करने वाले प्रजा के द्वारा चुने गए लोगों के एक मात्र समूह तन्त्र का राज हो गया है। आज इस बात को मात्र पिचेहतर वर्ष हुए हैं। यह एकतन्त्रवाद देश के लिए घातक हो सकता भविष्य के लिए क्योंकि यह एकतन्त्रवादी रवैय्या अधिनायकवाद का सूचक दूसरे शब्दों में तानाशाही रवैय्या कह सकते है।
26 जनवरी 1950 को ही स्वतन्त्र भारत देश में राज करने की प्रणाली संविधान द्वारा प्रदत्त लोकतान्त्रिक, समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष सिद्धान्त अंगीकार कर अपनाई गई थी जिसको जो आज पिचेहत्तरवें गणतन्त्र दिवस पर परिपक्व होकर तरुणाई की अँगड़ाई ले रही है।
सफल लोकतन्त्र का तकाजा है कि दो सशक्त राजनैतिक पार्टी देश में होनी चाहिये। एक शासन में रहती है और दूसरी पार्टी विपक्षी पार्टी का जिम्मा निभाती है। अगर विपक्ष मजबूत नहीं होता है तो राज करने वाली पार्टी शासन से परे जाकर काम करने लगती है, जिससे देश में घोर अन्धकार छाने लगता है। परिणामतः देश का लोकतन्त्र खतरे में पड जाता है।
भारत में भी आज यह ही हो रहा है। शासक दल भारतीय जनता पार्टी केन्द्र में आज गणतन्त्रात्मक न होकर एकतन्त्रीय शासक पार्टी हो गई है जो लोकतन्त्र के मूल सिद्धान्त से भटक गई है और अपनी मनमर्जी के मुताबिक शासन करने के फैसले एकतरफा लेकर निरन्तर लागू किए जा रही है जिससे देश में निरंकुशता का वातावरण बढ़ता जा रहा है।
भारत आजाद हुआ था तब देश की आबादी छत्तीस करोड़ थी। आज आबादी चार गुनी होकर एक सो बम्य्यालीस करोड़ है। आजादी के टाईम एक रुपये का मूल्य एक डॉलर था। आज एक डॉलर का मुल्य अस्सी, बय्यासी, पिच्च्यासी रुपये है। आज राजा के सामने सबसे प्राथमिक काम अपनी प्रजा को रोटी रोजी देनी है। परन्तु दस साल के शासन में दो करोड़ लोगों को प्रति वर्ष रोजगार देने की घोषणा अपने घोषणा पत्र में 2014 में की गई थी। उसके हिसाब सेे अब तक 20 करोड़ युवाओं को रोजगार दे दिया जाना चाहिये था। परन्तु यह मात्र सरकार का जुमला ही रहा। दस साल पहले जो बीस करोड बेरोजगार थे अब बढ़कर चालीस करोड़ बेरोजगार हो गए।
दो करोड़ को रोजगार नही दिये जाने से चार करोड़ नवयुवक नवयुवतियाँ प्रतिवर्ष बेरोजगार होकर चालीस करोड़ हो गए जो देश की वर्तमान सरकार के सामने प्रश्नचिह्न लगा रहा है।
हाँ ढाँचागत विकास देश की मूलभूत आवश्यकताओं के साथ साथ समानान्तर होना चाहिये था। परन्तु यहाँ पर तो सरकार ने अवाम की मूलभूत आवश्यकताओं को नजर अन्दाज कर मात्र एक तरफा ढाँचागत विकास पर ही मात्र दस साल तक, अपना फोकस बनाये रखा जिससे यह विकराल भूखमरी की भयंकर समस्या पैदा हो गई है। भुखमरी की यह समस्या विस्फोटक हो गई है जिससे देश में चारों ओर अराजकता की स्थिति फैलती जा रही है।
अब भी समय रहते सरकार चेत जाये तो फिर भी कोई रोजगार का समाधान निकाला जा सकता है। नहीं तो देश के बेरोजगार नवयुवकों का यह असन्तोष प्रस्फुटित होकर नासूर का रूप ले लेगा जिसे हल किया जाना नामुमकिन होगा।
यह लेखक के अपने विचार है।
यह बड़ी खुशी की बात है कि राज्य सरकार ने ब्यावर के अतीत के व्यापार, उद्योग, सामाजिक सौहाद्रता के वैभव की अहमियतता को समझते हुए देर से ही सही सड़सठ साल बाद दुरुस्त फैसला लेकर सन 2023 में ब्यावर को राजस्थान राज्य के जिले का दर्जा देकर ब्यावर क्षेत्र की जनता को उपकृत किया है इसके लिये राज्य सरकार का लेखक तहदिल से शुक्रिया अदा करते हैं। ब्यावर तो अतीत में ही राजपूताना का मेनचेस्टर कहलाता था सन् 1890 से लेकर 1996 तक और व्यापार में तो 1838से लेकर 1956 तक राजपूताना में ही नहीं अपितु भारतवर्ष में उस समय 119 साल तक ऊन और कपास रुई की राष्ट्रीय स्तर की व्यापार की मण्डी रही।
स्वतन्त्रता के बाद हमारे ही केन्द्रिय व राज्य शासक रहनुमाओं ने स्थानीय अंग्रेजीराज के हाने की मूल संकुचित भावनाओं की विचारधारा के चलते हुए एक सो बीस साल के विकसित व्यापार और विकसित कपडा उद्योग को धराशायी कर ब्यावर के व्यापार और उद्योग को चौपट कर दिया।
ब्यावर की प्रजा ने तो सोचा था कि अब रामराज आया है ब्यावर ओर बुलन्दियों को छूएगा परन्तु हुआ उल्टा रामराज्य परिषद् पार्टी को स्वतन्त्रता के साथ समाप्त कर दिया गया। पहले तो साठ साल कांग्रेस पार्टी ने राज किया और अब पन्द्रह साल से भारतीय जनता पार्टी जनता का शोषण कर रही है। इससे तो अंग्रेज़ों का राज ही बढ़िया था। लेखक स्वयं स्वतन्त्रता के समय दो साल दस महीने के थे। अतः वह रामराज ही बढ़िया था। अपने राजा के द्वारा प्रजा का शोषण तो नहीं किया जाता था। मात्र टेक्स नाम मात्र का राज का खर्चा चलाने के लिये लिया जाता था। कोई भ्रष्टाचार नहीं था। कोई आर्थिक सामाजिक, राजनैतिक बन्दिश नहीं थीं।
आज पिचेत्तरवें गणतन्त्र दिवस पर लेखक व परिजन की देशवासियों को ढेर सारी शुभकामनाएँ। आप चुस्त, दुरुस्त और स्वस्थ रहे। सुखी रहे।
26.01.2024
 
इतिहासविज्ञ एवं लेखक : वासुदेव मंगल
CAIIB (1975) - Retd. Banker
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