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‘‘ब्यावर’ इतिहास के झरोखे से.......

✍वासुदेव मंगल की कलम से.......  ब्यावर सिटी (राज.)
छायाकार - प्रवीण मंगल (मंगल फोटो स्टुडियो, ब्यावर)

भारत की स्वतन्त्रता के 77 साल बाद का सिंहावलोकन
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आलेख: वासुदेव मंगल,
(विजिलेन्ट सीनियर सिटीजन, ब्यावर सिटी)

15 अगस्त सन् 1947 को बरतानिया की सरकार ने भारत को क्रुसियल स्वतन्त्रता दी थी। उस समय भारत देश की आबादी छत्तीस करोड़ थी और आर्थिक दृष्टि से अमेरिका के एक डालर की कीमत भारत के एक रुपये के बराबर थी।
अब सित्तर वर्ष बाद आज के परिपेक्ष्य मे इसी परिस्थिति का अध्ययन करे तो हम पाते हैं कि समय के इस अन्तराल के पश्चात आज भारत देश का जो विकास इन उपरोक्त दो घटकों में तुलनात्मक दृष्टि से किस स्तर पर है जो आज हमारे द्वारा चुने गए लोगों की सविधान द्वारा प्रदत्त लोकतान्त्रिक, समाजवाद धर्म निरपेक्ष संघीय राज्यों की एकाकर सरकार है जो योजनाबद्ध चरणों में सित्तर वर्षाे से लगातार चलाई जा रही है। इस विषय पर तुलनात्मक अध्ययन करने से हम इस प्रकार निष्कर्ष पर पहुँचे हैं कि देश आज इनमें किस स्थिति में है:-
1. जनसंख्या (आबादी)ः- उस समय देश की आबादी 36 (छत्तीस) करोड़ थीं। आज एक सो चालीस करोड़ है अर्थात् चार गुणा अधिक।
2. करैन्सी (मुद्रा) मार्केटः- उस समय भारतीय एक रुपया अमेरिका के एक डालर के बराबर था जो आज पिच्यासी छियांसी रुपये के बराबर है अर्थात भारतीय रुपये का छियांसी गुना अवमूल्यन डालर के मुकाबले तात्पर्य है कि स्वतन्त्रता के समय जो वस्तु एक रूपये में आती थी उतनी वस्तु के लिए आज छियासी रुपये देने पड़ते है। मतलब साफ है कि उतनी अनुपात की वस्तु के लिए आज मुल्य वृद्धि छियांसी गुना महंगाई हो गई। क्या आजादी का फायदा अवाम को इसी ईनाम के रूप में मिला है आज? यह एक गम्भीर प्रश्न सूचक विषय है जिस पर देश के शासक दल गम्भीरता से विचार करे हल निकालना पड़ेगा नहीं तो अमेरिका की मुद्रा की आज जो संकटपूर्ण स्थिति बन गई है उस पर भारत को गम्भीर मुद्रा मनन करना पड़ेगा ।
पहले मुट्ठी में पैसे लेकर थैला भर वस्तु लाते थे और अब थैले में पैसे जाते हैं और मुट्ठी में वस्तु आती है। तो सित्तर वर्षों बाद यह हुई है भारतीय मुद्रा की हश्र त्वरित (द्रूत) गति से जो आज आपके सामने यह बहुत चिन्ता का विषय है आर्थिक जगत में जिस पर चिन्तन के बाद मन्थन करना बहुत जरूरी है यह तो हाल हुआ बेहिसाब महंगाई का जबकि भारत देश दुनिया का सबसे बड़ा उपभोक्ता बाजार है उपयोग और सेवा का फिर भी देश की इतनी शोचनीय और दयनीय स्थिति है भारत की सरकार को गम्भीरता से विचार कर तुरन्त हल निकालना होगा।
यह तो हुई महंगाई की। अब बात करते हैं देश के रोजगार की। एक सो चालिस करोड़ की आबादी वाले दो सो अस्सी करोड़ हाथों को रोजगार। रोटी को रोजी चाहिए। क्या जबाब है सरकार के पास? क्या सरकार (राजा) अपनी प्रजा (अवाम) को रोजगार मुहैय्या करा पा रही है? यह सवाल रोजगार का भी ज्वलन्त सवाल है देश की सरकार के सामने। अतः सरकार विकसित भारत की बात करती है पहले आधारभूत विकास की बात तो करले रोजगार और महंगाई की। भूखमरी, कुपोषण की बात तो करते। विकसित भारत की बात तो बाद में करना। यह लेखक के अपने विचार ।
जबकि देश के भोगौलिक संसाधन अपार असीमित है। पहाड़ी, मैदानी, पठारी, रेगिस्तानी और समुद्री सम्पदा बेहिसाब देश में दबी भरी पड़ी है। इन सम्पदाओं को प्राकृतिक सम्पदाओं की वैज्ञानिक तरीके से दोहन करने की जिनकी आज निहायत आवश्यकता है न कि आर्टिफिशियल इन्टेलीजेन्सी के जरिये रोबोट प्रणाली से काम करवा कर देश में अथाह बेरोजगारी बढ़ाने की। अगर सरकार मशीनीकरण करेगी तो उतनी अनुपात में ज्यामितीय गति से बेरोजगारी बढेगी, भूखमरी बढेगी उतना ही देश में अवाम में असन्तोष बढ़ेगा। उतनी ही निरंकुशता और अशान्ति फैलेगी।
अतः सरकार को आधार भूत (ढाँचागत) विकास जिसको अंग्रेजी में इन्फ्रास्ट्रक्चर बोलते हैं वह बाद में। पहले तो अवाम को रोटी के लिये रोजी चाहिये जिसे मुहैय्या कराना है सरकार को अवाम के लिये। इस कार्य में भी भ्रष्टाचार खतम हो तब ही देश में विकास हो सकेगा। अगर भ्रष्टाचार इसी प्रकार चलता रहा तो कितनी भी कोशिश कर ले विकास नहीं होगा। सबसे पहले तो आकण्थ भ्रष्ट आचरण पूरे सिस्टम में से खतम होना आवश्यक है तब ही विकास हो पायेगा अमुख काम में विकसित की बात तो बहुत दूर की है। पहले सरकार का सिस्टम तो दूरूस्त हो ना तब बात आगे बढ़ेगी। जब तक सरकार का सिस्टम चुस्त दुरूस्त नहीं होगा तब तक विकास असम्भव है। मुश्किल है, चाहे सरकार विकास का कितना ही ढिं़ढोरा पीटले ।
18.07.2024
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इतिहासविज्ञ एवं लेखक : वासुदेव मंगल
CAIIB (1975) - Retd. Banker
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