‘‘ब्यावर’ इतिहास के झरोखे
से.......
✍वासुदेव मंगल की कलम
से....... ब्यावर सिटी (राज.)
छायाकार - प्रवीण मंगल (मंगल फोटो स्टुडियो, ब्यावर)
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25 दिसम्बर 2023 को अटल बिहारी
बाजपेई का 100 वाँ जन्म दिन व 99 वीं साल गिरह
आलेखः वासुदेव मंगल ब्यावर सिटी एवं जिला (राज.)
चूँकि अटलजी का जन्म 25 दिसम्बर 1924 में हुआ था। लेखक के विचार से पहला
जन्म दिन तो वो ही दिन कहलायेगा जिस दिन प्राणी, जीव जातक का जन्म होता
है। अगले साल का जन्म दिन दूसरा जन्म दिन होता है बशर्ते एक साल की
वर्षगाँठ अथवा साल गिरह जरूर कहा जा सकता है।
बहरहाल इसी प्रसंग में अटलजी का चूंकि जन्म 25 दिसम्बर ईसवी सन् 1924
में हुआ था और अब 25 दिसम्बर 2023 है। अतः इसी दिन को 100वाँ दिन कहेंगें।
हाँ इसी दिन से आप अमुख प्राणी के साल पर्यन्त तक कार्यक्रम जरूर
आयोजित कर सकते हैं क्योंकि 25 दिसम्बर 2023 आज दिन से अमुख जातक का
जन्म का सौंवा साल आरम्भ हो गया है। परन्तु अगले आने वाले सन् 2024 के
साल का जन्म दिन तो एक सो एकवा जन्म दिन कहलायेगा जन्म दिन इस दिन सौवाँ
जन्म दिन न होकर इस दिन को सौवीं साल पूरी होने वाला जन्म दिन कह सकते
हैं जो मात्र अमुख दिन को होगा।
लेखक के इस स्पष्टीकरण से तो बाजपेईजी का आज 25 दिसम्बर सन् 2023 को
100 वाँ जन्म हुआ क्योंकि पहला दिन तो 25 दिसम्बर 1924 ही होगा जिस दिन
जन्म हुआ। इस आकलन से स्पष्ट है कि अगला 25 दिसम्बर 2024 में तो एक सौ
एक वाँ दिन जन्म दिन होगा हालाँकि जन्म साल सौ जरूर कहलायेंगें।
लेखक की दृष्टि में अटलजी जन्म से हुनरमन्द थे चुनांचें - सटीक वक्तव्य
देने में महारत हासिल थी। अटलजी बहुआयामी प्रतिभा के व्यक्तित्व थे।
वक्तव्य की विवेचना करने में प्रारंगत थे।
उनका भारत देश के बारे में मानना था कि इतना बड़ा देश है, इतनी विविधताएँ
है तो क्या यह देश आम सहमति के बिना चल सकता है? उनकी मूल धारणा थी कि
यदि दो-तिहाई बहुमत मिल भी जाये तो भी इस देश को आम सहमति की निर्मूल
धारणा के आधार पर चलाना पड़ेगा।
उनकी लोकतन्त्र में अटूट श्रद्धा थीं। इसी थीम से उन्होंने भारत के
प्रधानमन्त्री रहते हुए अपनी पार्टी को सम्बल प्रदान किया जिसने
लोकतन्त्र की दूसरी पार्टी का स्वरूप प्राप्त किया। परन्तु विडम्बना यह
है कि कांग्रेस पार्टी स्वतन्त्रता से एक मात्र पार्टी रही शासन में।
अतः ऐसी सूरत मे उसमें जन सेवा करने में विकृति आना लाजिम था। अतः दूसरी
पार्टी अटलजी की ही थीं जिन्होंने लोकतन्त्र के आधार स्तम्भ को मजबूत
किया।
अटलजी ने अपनी पार्टी को जो लोकप्रियता प्रदान की उत्तरवर्ती उनकी
पार्टी की सरकार उसको अक्षुणन नहीं रख सकी अर्थात् सबको साथ लेकर चलने
का गुण खो चुकी है। निर्मूल भावना का कट्टरपन पार्टी में दिखलाई देने
से देश की विविधता वाली सांस्कृतिक परम्परा का क्षरण हुआ है।
आप दोस्त बदल सकते हैं परन्तु पड़ौसी नहीं बदल सकते हो कभी कभी ताज्जुब
होता है कि आदमी को कितना धन चाहिए ? सब ठाठ पड़ा रह जायेगा, जब
बान्धचलेगा बन्जारा ।
अतः आज सबसे बड़ा बुनियादी सवाल है कि बढ़ते हुए अविश्वास के राष्ट्रीय
संकट को कैसे दूर किया जाए? यह यक्ष प्रश्न वर्तमान देश की शासक सरकार
के समक्ष है जिससे लोकतन्त्र की पायदान मजबूत हो सके। यह विविध प्रकार
की इन्द्रधनुषी परम्परा अविरल प्रवाहित रह सके इस भावना के साथ शासक को
विचार धारा प्रतिपादित करनी चाहिए। भिन्न भिन्न प्रकार की भाषा,
क्षेत्र, खान-पान, वेष-भूषा, रीति-रिवाज, उत्सव-त्यौहार कायम रह सके इसी
नजरिये के साथ सरकार कोकाम करना लाजिम होगा जैसा कि अटलजी ने अपने शासन
काल में किया सबको साथ लेकर चलने की अनूठी शैली द्वारा।
अटलजी तीन बार देश के प्रधान मन्त्री रहे। वे दस बार लोक सभा के लिए और
दो बार राज्य सभा के लिये निर्वाचित हुए। अटलजी 33 साल की उम्र में सन्
1957 में बलरामपुर से पहली बार संसद में पहुँचे थे।
अटलजी को सन् 2015 मे भारतरत्न, सन् 1994 में लोकमान्य तिलक सम्मान,
1994 में ही सर्वश्रेष्ठ सांसद का सम्मान और 1992 में पद्म विभूषण से
अलंकृत किया गया।
बार बार प्रयास करते रहने से आखिरकार सफलता मिलती ही है यह विचार (आयडिया)
राज कपूर की हिन्दी फिल्म ‘फिर सुबह होगी’ देखने से अटलजी को आया।
एक बार अटलजी को अपने ही गृहनगर ग्वालियर से माधवराव सिंधिया (कांग्रेस
पार्टी) से 175000 वोटों से करारी शिकस्त का सामना करना पड़ा 1984 के
ग्वालियर संसदिय सीट से
आज उनकी जयन्ती पर लेखक व परिवारजन की उनको शत् शत् नमन। उम्मीद है उनकी
पार्टी उनके पदचिन्हों पर चलकर सुनहरे भारत का निर्माण करेगी। इसी
आकांक्षा के साथ....
25.12.2023
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