धार्मिक सहिष्णुता से ही भारत के गणतन्त्र की
रक्षा सम्भव हैः-
सम सामयिक लेख - वासुदेव मंगल
आज देश आजादी की प्लेटीनम जुबली (अमृत महोत्सव) मना रहा है। कालचक्र में देश और
काल का बड़ा महत्व है। पलक झपकते ही स्वतंत्रता के 75 साल 15 अगस्त सन् 2022 को
पूरे हो गए।
अंग्रेज धर्म के आधार पर देश के दो टुकड़े पाकिस्तान और भारत कर चले गए। देश के
विभाजन का हिंदू मुस्लिम धार्मिक कारण था। इसके भयानक परिणाम देश आज भी भुगत रहा
है।
अतएव इसी कारण आजादी के 40 महीने के अथक परिश्रम के पश्चात 26 जनवरी सन् 1950
को हमारे तत्कालीन नेताओं ने देश में राज करने की गणतंत्र प्रणाली लागू की
संविधान बनाकर। लोकतंत्र, समाजवाद, धर्मनिरपेक्ष के बुनियादी सिद्धांत पर
गणतंत्र का सीधा-सीधा अर्थ है गण मतलब ‘जन’ और ‘तंत्र’ मतलब राज करने की
व्यवस्था।
अर्थात
देश की जनता द्वारा देश में शासन करने की पद्धति भी देश की जनता द्वारा चुने
हुए प्रतिनिधियों द्वारा किया जाना।
लोकतंत्र का आधार
संविधान के तीन सिद्धांत - पहला लोकतांत्रिक दूसरा समाजवाद और तीसरा
धर्मनिरपेक्ष
अतः भारत जैसे विविधता वाले देश में एकता कायम रखने के लिए यह व्यवस्था ही
सर्वोपरि मानकर लागू की गई।
इन 75 वर्षों में बहुत कुछ परिवर्तन देखने को मिला।
1. जनसंख्या का घनत्व - आजादी के समय 35 करोड़ की जनसंख्या और अब 142 करोड़
2. धर्म - आजादी के समय विविध धर्म और अब भिन्न-भिन्न
3. भाषा - आजादी के समय विभिन्न भाषा और अब अनेक भाषा
4. क्षेत्र - आजादी के समय अलग-अलग और अब अलग अलग
5. संस्कृति - आजादी के समय अनेक और अब अनेक
6. रीति रिवाज - आजादी के समय अलग अलग और अब अलग-अलग
7. डॉलर - आजादी के समय डॉलर की कीमत एक रूपया और अब बंयासी रूपया
अतः उपरोक्त कॉस्मापॉलिटियन कल्चर के आधार पर देश में राज करने की सर्वांगीण
विकास की पद्धति पांच-पांच साल की उत्तरोत्तर योजना के जरिए आधारभूत ढांचा गत (इन्फ्राट्रक्चर)
के साथ-साथ जन कल्याणकारी व समानता और रक्षा घटक के साथ व्यापार, उद्योग, शिक्षा,
चिकित्सा, कृषि, न्याय, गांव शहरी विकास, सामुदायिक विकास के साथ रोजगार व
सुरक्षा की व्यवस्था कर लागू की।
भारत की आत्मा संविधान के तीन आधारभूत सिद्धांत लोकतंत्र, समाज और धर्मनिरपेक्ष।
यह तो हुई प्रस्तावन
दो मजबूत पक्ष ही लोकतंत्र की रीड़ होती है। इसके अभाव में देश की शासन व्यवस्था
चरमराने लगती है।
भारत में 60 साल तक कांग्रेस पार्टी शासन में रही। इसने मजबूत तरीके से विकास
की गति बनाए रक्खी।
पिछले समय सन् 2014 से केंद्र में अतिवादी भारतीय जनता पार्टी शासन में है। यह
शासन करने के ढांचे को संसद में बिना चर्चा वह बहस कराए हर विधयक को एकतरफा
तरीके से कानून बनाए जा रही है। यह देश के लिए अशुभ संकेत है। ऐसा इसलिए हो रहा
है कि वर्तमान में विपक्ष का मजबूत न होना।
अतः देश की एकता बनाए रखने के लिए सभी क्षेत्रीय और राष्ट्रीय राजनैतिक पार्टियों
का एक होना अति आवश्यक है। अगर ऐसा नहीं होता है तो भविष्य में देश धार्मिक और
साम्प्रदायिकता की आग में टुकडे़ टुकड़े हो सकता है। आज देश की ज्वलन्त समस्याओं
का समाधान करना सरकार को जरूरी है।
आज देश के 142 करोड़ देशवासियों को रोजगार देकर महंगाई पर लगाम कसना हैं देश की
गरीब व भूखी जनता को रोटी, कपड़ा और मकान की दरकार है। पढे़ लिखे युवक युवतियों
को रोजगार चाहिये। इसके अभाव में वे दूसरे देशों में रूख कर रहे है। यह देश का
दुर्भाग्य हैं इसको वर्तमान सरकार को तुरन्त प्रभाव से रोकना है। अगर ऐसा नहीं
होता है तो निकट भविष्य में जनता के सब्र का या असन्तोष का विस्फोट देश के लिये
घातक होगा। इसके लक्षण अभी से दिखाई देने लग गए है जो दूरगामी होंगें।
इसके लिये यह आवश्यक है कि सभी विपक्षी पार्टियों को एक होकर जनता के खिलाफ
सरकार द्वारा उठाये जाने वाले घातक कदम रोकना होगा अर्थात् इलेक्ट्रोनिक वोटिंग
पद्धति (सिस्टम) ई वी एम मशीन से कराये जाने वाले ईलेक्शन का बहिष्कार करना होगा।
इस सिस्टम में मेन्यूपलेशन किये जाने की सम्भावना (गुंजाईश) रहती है कनेक्टिविटी
के जरिये। अतः इलेक्शन वोटिंग बेलट सिस्टम से होना चाहिये। यह निहायत जरूरी है।
अगर ऐसा नहीं होता है तो सभी विपक्षी पार्टियों को एक होकर वोटिंग किये जाने का
बहिष्कार करना होगा तभी भविष्य में इलेक्शन में बेलट से वोटिंग कराया जाना
सम्भव हो सकेगा अन्यथा नहीं तभी सरकार द्वारा विपक्ष की यह उचित मांग मानी
जावेगी।
आज महंगाई सुरसा की तरह मुंह बाहें खड़ी है। सभी ग्रहणियों का रसोई का बजट गड़बड़ा
गया हैं। अन्तर्राष्ट्रीय बाजार में तेल और गैस की कीमतें कम हुई है पर केन्द्र
सरकार ने हाल ही में अपने दशवें बजट में पेट्रोल डिजल और गैस पर 28 प्रतिशत
सब्सिडी खतम कर दी। भारत की प्रति व्यक्ति आय 144वें नम्बर पर है। दुनियां में
भारत एक अकेला देश है जहां पर दो टैक्स रिजिम है। भारत में रूपये के गिरने की
दर 10 प्रतिशत से ज्यादा हैं नोटबन्दी से एमएसएमई सेक्टर को बहुत अधिक नुकसान
हुआ है। इस सेक्टर में बेनीफिशियरी को अर्थ की सीधी सहायता न देकर लोन (़ऋण)
दिया जाता है।
महंगाई बढ़ी लेकिन किसान सम्मान निधी नहीं बढ़ी। बजट में महंगाई बेरोजगारी कम करने
के कोई उपाय नहीं किये गए। यह अमीर देश का बजट है। भारत तो गरीब व विकाशशील देश
है। यहां पर गरीबी, कुपोषण, भूखमरी, बिमारी और बेरोजगारी व महंगाई का आलम है।
एमएसपी का बजट में आवंटन नहीं किया गया है। सरकार की नीति मात्र नई स्किम लाओ
और पुरानी को भूल जाओ वाली है। अठारह करोड़ नौकरियों का वादा किया परन्तु नो साल
में 18 लाख नौकरियां भी नहीं दी।
गौतम अडानी ने जनता की काढ़ी कमाई के 62 साल की एलआईसी में 27 हजार 200 करोड़ 67
साल के एसबीआई में 21 हजार करोड़ और 81 साल के पीएनबी में सात हजार करोड़ रूपये
ठिकाने लगा दिये। इन सरकारी वित्तिय संस्थानों को इतनी मोटी रकम से डूबो दिया
अडानी ने। अतः पब्लिक के पैसे के साथ खिलवाड़ किया जा रहा हैं। एलआईसी और एसबीआई
ने अडानी के एफपीओ को क्यों खरीदा? इसमें सरकार द्वारा जे पी सी जांच क्यों नहीं
करवाई जा रही है? सरकार के पिछले तीन बजट एक जैसे कॉरपोरेट घरानों के लिए बनाये
गये है। महंगाई पर सरकार यूक्रेन युद्ध का बहाना बना रही है। आज भी रेल्वे
मन्त्रालय के रेल्वे विभाग में तीन लाख वैकेन्सी (रिक्त पद) खाली है। मजाक की
बात तो यह है कि दूध के दाम बढे़ है पर कस्टम डयूटी कम हुई हैं सोशल स्किम में
सरकार ने बजट खतम कर दिया। महंगी पढ़ाई की वजह से छात्र विदेश जाने को मजबूर।
हायर एज्यूकेशन (उच्च शिक्षा) की बजट में अनदेखी की गई है। हैल्थ एजूकेशन (स्वास्थ्य
शिक्षा) पर सरकार सिरियस (गम्भीर) नहीं है। किसान को कर्ज दिया जाना है आर्थिक
सहायता नहीं। आज देश पर एक सो पचपन लाख करोड़ रूपये का कर्ज है सन् 2014 में
मात्र पचपन लाख करोड़ रूपयों का कर्ज था। अतः अडानी को एलआईसी, एसबीआई और पीएनबी
से जो पचपन लाख करोड़ से ज्यादा का कर्ज दिया गया है देश की जनता का पैसा है। यह
पैसा क्या वापिस आ पायेगा? लोन का पैसा क्या वापिस आ पायेगा या फिर सम्बन्धित
संस्थानों द्वारा डूबते ऋण खाते में नामे लिखा जायेगा जनता की काढ़ी कमाई द्वारा
जमा कराया गया पैसा। अडानी को आठ साल में 100 लाख करोड़ रूपये दे दिया गया क्या
यह पैसा वापिस आयेगा?
आज योजना आयोग को समाप्त कर वर्तमान में भारतीय जनता पार्टी की केन्द्रीय सरकार
ने सन् 2014 में नीति आयोग बनाया जिसमें योजना जैसी कोई नीतिगत नीति नहीं हैं
वर्तमान सरकार के विजनरी बजट में इनकम टैक्स से प्राप्त आय को पेन्शन भूगतान
हेतु कोरपोरेट टेक्स से प्राप्त आय को सब्सिडी भूगतान के लिये और जी एस टी (गुड्स
सर्विस टेक्स) की आय को रक्षा बजट के लिये खर्च के लिये व्यवधान किया गया है।
अतः बजट की यह व्यवस्था (सिस्टम) भारत जैसे गरीब देश के लिये फैशनेबल बजट का
प्रतिबिम्ब मात्र है।
अब देश की एक सो बंयालिस करोड़ जनता को अपने विवेक से वोट के जरिये भविष्य में
देश के सांस्कृतिक ताने बाने को अक्षुणन बनाये रखने के लिये काम करना है।
कहीं ऐसा न हो कि असंख्य कुर्बानियों से सैकड़ों वर्षों की दास्ता से प्राप्त
देश की आजादी फिर से खतरे में न पड़ जाय। आज कलियुग काल चल रहा है। आज रक्षक ही
भक्षक बन रहे है। बाड़ ही खेत को खा रही है। राज्य में चारों ओर माफिया राज है।
मानव त्रासदी चरम पर है। यह बात व्यक्तिगत रूप में भी और प्रदेश व राष्ट्रीय
स्तर पर भी लागू होती है। अपने स्वार्थ के लिये कोई कुछ भी कर सकता हैं ये हमारे
हितों के रखवाले प्रतिनिधि हैं बहुतों की पृष्ट भूमि तो अपराधों से भरी हैं
बेरोजगारी ने माफिया गैंग पैदा कर दिये। ऐसा लगता है मानो माफिया सरकार चला रहा
है। क्या ये दृश्य चीन की तानाशाह सरकार जैसे नहीं लग रहें?
अतः भारत देश की जनता को अधिनायक वादी सरकार के अधिनायक प्रवृति को रोकना होगा।
यह किसी पर कोई व्यक्तिगत आक्षेप नहीं है वरन् प्रचलित रीति रीवाज पर लिखा गया
है एक बार देश की जनता सन् 1975 के 25 जून को तानाशाही का दंश भुगत चुका है। जय
प्रकाश नारायण के आन्दोलन ने जन चेतना जागृत कर तुरन्त देश की जनता को सद्बुद्धी
दी और बेलट के जरिये तानाशाह सरकार को उखाड़ फैंका।
अतः अब देश की जनता की एक बार पुनः परीक्षा है। इस परीक्षा को जनता क्या अन्जाम
देती है? इस बात का बेसब्री से इन्तजार है और रहेगा देश को। |