‘‘ब्यावर’ इतिहास के झरोखे
से.......
✍वासुदेव मंगल की कलम से.......
ब्यावर सिटी (राज.)
छायाकार - प्रवीण मंगल (मंगल फोटो स्टुडियो, ब्यावर)
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ब्यावर में चर्च सन् 1860 में
बनना आरम्भ हुआ जो सन् 1872 में पूरा हुआ।
अतः 25 दिसम्बर सन् 2023 में क्रिसमस का यह 152वां त्यौहार है।
ब्यावर की सन् 1857 के जँगी आजादी के गदर की पष्चात्वर्ती घटनाओं की
विवेचना
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मेर जाति ने सन् 1724ई. से 1823ई.तक सौ वर्षों में 10 लड़ाईयाँ लड़ी। इस
परिदृश्य का वर्णन किया जा चुका है।
तत्पश्चात् 1823ई. से 1835ई. तक ब्यावर की फौजी छावनी के स्वरूप के
परिदृश्य का वर्णन भी किया जा चुका है।
तीसरे परिदृश्य में कर्नल चार्ल्स जार्ज डिक्सन के द्वारा ब्यावर में
फौजी छावनी की जगह सिविल कॉलोनी अर्थात् नागरिक बस्ती बसाकर ब्यावर शहर
को राष्ट्रीय स्तर की ऊन और कपास जीन्सों का व्यापारिक केन्द्र के रूप
में विकसित किया गया, इस पर भी विस्तृत वर्णन किया जा चुका है।
चौथे परिदृश्य में ब्यावर में नो परगनो के साथ मेरवाड़ा बफर स्टेट का
विस्तृत वर्णन भी किया जा चुका है।
पाँचवें परिदृश्य में डिक्सन ब्यावर अर्थात् मेरवाड़ा बफर स्टेट के
कमिश्नर होते हुए अजमेर स्टेट के भी कमिश्नर बनाये गए। इस बात का वर्णन
भी किया जा चुका है।
अब हम यहाँ पर कर्नल ड़िक्सन की 25 जून सन् 1857ई. में मृत्यु होने पर
उसके पश्चात् की घटनाओं का वर्णन करेगें। डिक्सन का निधन ब्यावर में
हुआ। उनको ईसाईयों के कब्रिस्तान में दफनाया गया। चूंकि वे मेरवाड़ा बफर
स्टेट के साथ साथ अजमेर अंग्रेजी रियासत के भी हुक्मराना थे। अतः उनके
निधन से इस क्षेत्र में शासक की रिक्तता हो गई। उधर जंगे आजादी का
सिलसिला आरम्भ हो चुका था। अतः बड़ी विकट समस्या ईस्ट इण्डिया कम्पनी के
सामने खड़ी हो गई। करे तो क्या करे? समस्या का कोई हल निकलता दिखाई नहीं
दे रहा था।
ऐसी सूरत में बरतानिया सरकार ने 1 दिसम्बर सन् 1858ई. में भारत के शासन
की बागडोर ईस्ट इण्डिया कम्पनी से अपने हाथ में ली। भारत में लार्ड
अर्थात् वायसराय की नियुक्ति की गई। ब्यावर अजमेर में भी अलग से
अंग्रेज कमिश्नर की नियुक्ति की गई। जो सन् 1871 से लगतार जारी रही।
तात्पर्य यह है कि ब्यावर अजमेर का शासन भी सीधे सीधे ब्रिटेन की सरकार
के प्रतिनिधि द्वारा संचालित किये जाने लगा।
यह व्यवस्था 1 दिसम्बर सन् 1858 के बाद से लागू हो गई। इसी दरम्यान् एक
ओर महत्वपूर्ण घटना ब्यावर मेरवाड़ा बफर स्टेट में घटित हुई।
सन् 1859 ई. में स्काटलेण्ड के ईसाई पादरियों का एक दल विलियम शूल
ब्रेड के नेतृत्व में इस प्रदेश में आया। यहाँ पर इनको इस क्षेत्र में
इसाई धर्म के प्रचार प्रसार की गुंजाईश का काम और आकलन सौंपा गया। इसाई
धर्म का प्रादुर्भाव राजपूताना में ब्यावर से ही आरम्भ हुआ।
सबसे पहले ब्यावर में आते ही इस दल ने सन् 1860ई. में चाँग गेट के ऊतरी
दिशा वाली टेकरी पर राजपूताना का सबसे पहला इसाई धर्म का गिरजाघर (चर्च)
प्रार्थना सभा स्थल बनवाना आरम्भ किया। यह चर्च सन् 1872ई. में बनकर
तैयार हुआ। इसाई धर्म का कार्य शासन के समानान्तर चल रहा था। जो पादरियों
के दल द्वारा चलाया जा रहा था।
विलियम शूल ब्रेड ने इसाई धर्म का प्रचार प्रसार इस क्षेत्र मंे व्यापक
रूप से लगातार 37 साल तक अर्थात् सन् 1859से लेकर सन् 1896 में उनके
निधन तक किया। सन् 1896 में उनका निधन ब्यावर में हुआ। उनको ब्यावर के
ईसाईयों के कब्रिस्तान में दफनाया गया जहाँ पर कर्नल डिक्सन की तरह उनकी
मजार भी बनी हुई है।
ब्यावर के अलावा चर्च अजमेर में सन् 1861ई. में नसीराबाद में सन्
1861ई. में टाटगढ़ में सन् 1863ई में जयपुर में सन् 1869 ई. में और देवली
में सन् 1872 ई. में बनाये गए।
इसके अतिरिक्त अन्य स्थानों पर भी चर्च बनाये गए जैसे नरबदखेड़ा, आबू
इत्यादि इत्यादि।
इस प्रकार पादरी विलियम शूल ब्रेड और इनके दल के अन्य साथी पादरियों ने
राजपूताना में जगह जगह घूमकर अनके रियासतों में एन्जिल धर्म का व्यापक
प्रसार प्रचार किया।
इस प्रकार इसाई धर्म का राजपूताना में विस्तार हुआ। अनेक गांवों व शहरों
में गिरजाघर बनने से इसाई धर्म की नियमित प्रार्थना होने लगी और धर्म
की आसक्ति लोगों में दिन प्रतिदिन बढ़ने लगी।
ब्यावर में भी सन् 2023 में यह 152वाँ क्रिसमस का पर्व है। क्रिसमस पर
सभी देश विदेशवासियों को वासुदेव मंगल व परिवारजन की ढे़र सारी
शुभकामनाएँ।
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इतिहासविज्ञ एवं लेखक : वासुदेव मंगल
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