2 जनवरी 2018 को
तिलकयुग के भामाशाह, महान देशभक्त, दानवीर
सेठ श्री दामोदरदासजी राठी की
100वीं पुण्य तिथि पर विशेष लेख
लेखक - वासुदेव मंगल
महान आत्माओं की जीवनी भावी सन्तान के लिये पथ प्रदर्शक होती है। इसी उद्देश्य से लेखक का सेठ दामोदरदासजी राठी की देशभक्ति दानशीलता, निर्भीकता तथा लोकप्रियता का ज्वलन्त उदाहरण पेश करने का प्रयास मात्र है। सेठ दामोदरदासजी राठी खिंवराज जी राठी के पुत्र थे। सबसे पहले राजपूताना के उद्योगपति यही थे। इन्होंने ही ब्यावर में दी कृष्णा मिल्स लिमिटेड स्थापित की। इस मिल में रूई की धुनाई पूणी कराई कताई और बुनाई आदि आदि सब काम होते थे। कृष्णा मिल्स सन् 1889ई. में स्थापित होने में और सन् 1893 ई. में सूती वस्त्र के उत्पादन करने के कार्य में आ गई थी। अतः आप आज से 128 साल पहले की मिल के मालिक थे जो देशी पद्धति पर कार्य करती रही। यह मिल राजपूताना में सबसे पहिली सूती वस्त्र की देशी पद्धति पर लगाई गई मिल थी।
तत्कालिन चीफ कमिश्नर के ब्यावर आने पर भी आपने उससे भेंट करना उचित नहीं समझा। पोकरण के ठाकुर श्री चैनसिंहजी ने जन आन्दोलन 1915-16 के फलस्वरूप आपको नष्ट करने का षड्यऩ्त्र किया किन्तु आपने जोधपुर के तत्कालिन महाराजा श्री प्रतापसिंह जी से मिलकर ठाकुर को नीचा दिखाकर अपनी विलक्षण बुद्धि का परिचय दिया। तिलक, मालवीयजी, आरविन्द घोष, लाला लाजपतराय जैसे चोटी के नेताओं का अतिथि सत्कार करने का ब्यावर में आपको सौभाग्य प्राप्त हुआ।
माहेश्वरी मण्डल की ओर से जोधपुर, ओसिया और मथानिया में हिन्दी पाठशालाएं तथा पोकरण में एंग्लो वर्नाक्यूलर मिडिल स्कूल राठीजी की उदारता में चलते रहे। कुछ युवकों को व्यवहारिक शिक्षा प्राप्त करने के लिये स्कालरशिप (छात्रवृति) भी दी गई। इससे कई विद्यार्थी अपने उद्योग धन्धों को स्वतन्त्ररूप से करने योग्य हो गये। पीपाड, बीकानेर, जयपुर, आदि स्थानों पर मण्डल के कार्य को जीवित रक्खा। नागरपुर के अधिवेशन को सन् 1912 ई. में फलीभूत करने के लिये राठीजी ने कोई कोरकसर उठा न रक्खी।
धामन गांव में सन् 1913ई. में एक सभा में मारवाडी शिक्षा मण्डल के अन्तर्गत मारवाडी विद्यार्थी गृह का 20000/-रूपये से परिसर बनाकर 70000/- रूपये का कोष स्थापित कर मारवाड़ी शिक्षा मण्डल 4 जून सन् 1915 से आरम्भ किया। इस मण्डल के अन्तर्गत मुख्यतः तीन संस्थाएं चलती रही पहली मारवाड़ी हाई स्कूल वर्धा, दूसरी मारवाड़ी विद्यार्थी गृह वृधा और तीसरी मारवाड़ी विद्यार्थी गृह नागपुर।
सेठ जी केवल राजनैतिक क्षेत्र में ही नहीं अपित् सामाजिक और धार्मिक क्षेत्र के भी प्रमुख कार्यकर्ता रहे। सेठ दामोदरदास राठी का जन्म 8 फरवरी सन् 1884 को पोखरण मारवाड़ में श्री खींवराजजी राठी के घर हुआ था। आप आरम्भ से ही होनहार व मेघावी थे। मास्टर श्री प्रभुदयालजी अग्रवाल की संरक्षता में व मिशन हाई स्कूल ब्यावर में आपने मेट्रिक तक विद्याध्ययन किया। 15-16 वर्ष की उम्र में ही आप लोकहित कार्यों में योगदान देने लगे व साथ ही अपने व्यवसाय कार्य की देखरेख भी करते रहें। आप अत्यन्त कुशल व्यवसायी थे। भारत के प्रमुख नगरों में आपकी दुकाने व जिनिंग फैक्ट्री व पे्रसे थी। आप सिर्फ 21 वर्ष की आयु में सन् 1903 में ब्यावर म्युनिस्पल कमेटी के सदस्य चुने गये। आपका यह सिलसिला मृत्युपर्यन्त तक म्यूनिस्पल ब्यावर में बरकरार रहा। आपने सच्चे सेवक की भांती जनता की सेवा की। अतः आप आम जनता में लोकप्रिय हो गये। आप राष्ट्रीय एवं क्रांतिकारी दल के विचारक थे। आपके विचार महात्मा तिलक व अरविन्द घोष के से थे। आपने क्रान्तिकारियों की तन-मन-धन सेे सेवा की। देश के प्रमुख नेताओं से आपका सम्पर्क था। राष्ट्र के महान् पिता श्री दादाभाई नोरोजी, भारतभूषण मालवीयजी, बंगाल के बूढे शेर बापू सुरेन्द्रनाथ बनर्जी, अमृत बाजार पत्रिका के बाबू मोतीलाल घोष व पंजाब केसरी लाला राजपत राय आप पर बहुत स्नेह रखते थे। राष्ट्रवर खरवा के नरेश राव गोपालसिंहजी आपके अन्यत्तम मित्र थे। आप स्वदेशी के अनन्य भक्त थे। देशवासियों की दैनिक व्यवहार की समस्त वस्तुएं देश में ही तैयार कराने की व्यवस्था हो जिससे भारत की गरीब जनता को भरपेट भोजन मिल सके ऐसी आपकी सोच थी।
आप उच्च कोटि के व्याख्यानदाता, शिक्षा-प्रसारक व प्रचारक व साहित्य सेवी थे। इस हेतु आपने कई वाचनालय, पुस्तकालय, पाठशालाएं विद्यार्थीगृह व शिक्षामण्डल खोले तथा अनेकों अनाथालय व गुरूकुलों को आर्थिक सहायता दी व बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के स्थापनार्थ महात्मा मालवीयजी के ब्यावर आने पर 11000 चांदी के कल्दार रूपयों की थैली भेंट की। सनातन धर्म काॅलेज ब्यावर व मारवाड़ी शिक्षा मण्डल (नव भारत विद्यालय) वर्धा आज भी आपकी स्मृति के रूप में विद्यमान है। आप हिन्दी राष्ट्रभाषा के तो प्रबलतम पुजारी थे। आपने ब्यावर में नागरी-प्रचारणी सभा की स्थापना की। सेठ दामोदरदास राठी भारत के चमकते हुए सितारों में से एक थे निष्काम दानी, भारत के उज्जवल पुरूष रत्न, भारत माता के सच्चे सपूत, मारवाड़ मुकुट, माहेश्वरी जाति के राजा थे। सर्वमान्य राठीजी सहृदय, सरल स्वभाव, निरभिमानी, न्यायप्रिय व सत्यनिष्ठ प्रखर बुद्धि के व्यक्ति थे। आपके धार्मिक व सामाजिक विचार उदार थे। ब्यावर में आर्य समाज भवन की नींव आपने सन् 1912 ई. में रक्खी। आपका स्वर्गवास 2 जनवरी सन् 1918 में 36 साल की अल्प आयु में ही हो गया। परन्तु इतनी कम उम्र में भारत माता के वो त्वरित काम कर गये जिन्हें अन्य के लिए करना असम्भव था। आपकी मृत्यु का समाचार पाकर सारा भारतवर्ष शोक मग्न हो गया। आपके निधन पर अनेकों स्थानों पर शोक सभाएं हुई। भारत के सभी प्रमुख-प्रमुख समाचार पत्रों ने आपकी अकाल मृत्यु पर अनेकों आंसू बहायें। ऐसे महान् राष्ट्र सेवी, प्रमुख जागरूक व्यक्ति की जिसने देशहित के लिए क्या नहीं किया कि स्मृति को चिरस्थायी बनाये रखने की परम आवश्यकता है क्योंकि भावी पीढ़ियाँ ऐसे प्रभावशाली एवं साहसी देशभक्तों के जीवन से प्रेरणा पायेगी।
ऐसे योग्य नेता की चिरस्मृति बनाये रखने के लिए लेखक को ऐसा विचार प्रतीत हुआ कि किसी सार्वजनिक स्थान के साथ उनके नाम का सम्बन्ध होना चाहिए। लेखक तो स्थानीय नगरपरिषद ब्यावर को और सेठजी के परिजन को यह सम्मत्ति ही देगें कि हमारे ऐसे नेता की प्रस्तर मूर्ति चाँग दरवाजे के बाहर अम्बेडकर सर्किल के पूर्वी शहर की तरफ झाँकते हुए छोर के भाग के अन्दर या बाहर की तरफ के खाली स्थान पर उनकी 100वीं पुण्यतिथि पर 2 जनवरी सन् 2018 को बडे ही समारोहपूर्वक सेठ दामोदरदासजी राठी की प्रस्तर मूर्ति स्थापित करायी जाकर उसका अनावरण करवाया जावे तथा वह राजमार्ग जो उनके निवास स्थान से सेठ दामोदारदास जी राठी-उपवन तक है। उसका नाम ‘‘दामोदार राजमार्ग‘‘ रख दिया जावे। इससे ब्यावर का बच्चा-बच्चा उनका नाम लेकर उनको याद करता रहेगा और आने वाली भावी पीढ़ियां ऐसे महान् महापुरूष के आर्दश से शिक्षा ग्रहण करती रहेगी।
सेठजी के समाज सुधार के बारे में कई महान् व्यक्तियों के संस्मरण यहाँ उद्धत किये जा रहे है जैसे सन् 1914ई. में आपने श्री बाबू गिरिजकुमार घोष के अनुरोध से कृष्णा मिल के बही खाते में मारवाडी के स्थान पर नागरी अक्षर चला दिये। अमृतलाल चक्रवर्ती के आदेश पर ब्यावर में नागरी प्रचारिणी सभा की स्थापना की। सेठ दामोदरदास राठी की प्रेरणा से अजमेर मेरवाड़ा की अदालतों में श्री चीफ कमिश्नर साहब ने नागरी लिपि के व्यवहार की अनुमति दी। सेठ दामोदरदासजी राठी काशी नागरी प्रचारिणी सभा के प्रबन्धकारणी के उत्साही सदस्य थे। ‘‘पण्डित झाबरमल शर्मा के अनुसार सेठजी अपनी मिल की शाखा कलकत्ता स्थित 201, हरिसन रोड में ठहरे हुए थे। लेखक का उनसे गहरा मिलना जुलना और पे्रम था। लेखक द्वारा हिन्दी के अनन्य सेवक प. अमृतलाल चक्रवर्तीजी की कष्ट कथा सुनकर राठीजी चक्रवर्तीजी को अपने साथ कलकत्ता से ब्यावर ले आये। चक्रवर्तीजी को कृष्णा मिल के कार्य से 300/- रूपये तक मासिक आमदनी होने लग गयी थी’’।
जब कहीं दुर्भिक्ष होता, बाढ आ जाती तो आपके हृदय को भारी दुख होता व फौरन उनके सहायता कार्य में जूट जाते। आपने दूर्भिक्ष काल में पंजाब केसरी लाला लाजपतराय को अनाथों व पीड़ितों की सहायार्थ चन्दे की भारी भारी रकमें भेजी।
सेठ दामोदारदास राठी का पहिनावा मारवाड़ी ढंग का मगर, बहुत साधारण व स्वदेशी वस्तु का ही होता था। आप मारवाड़ी समाज की आन बान बनाये रखने को सदा आतुर रहते थे। सुप्रसिद्ध लेखक व भारतीय ग्रन्थ माला के संस्थापक श्रद्धेय श्री भगवानदासजी केला के अनुसार ‘‘श्री राठीजी मारवाड़ी समाज की प्रतिष्ठा बनाये रखने के लिए सदैव बहुत चिन्तित रहते थे। नगर नगर में मारवाडी शिक्षा संस्थाये, मारवाड़ी औषधालय, मारवाडी कार्यालय खोलकर उन्हें योग्यतापूवर्क संचालित करते थे’’।
सन् 1908ई0 में अमरावर्ती में माहेश्वरी महासभा, सुप्रसिद्ध हिन्दी नाटकार व राष्ट्रसेवी श्री सेठ गोविन्ददासजी के पिता श्री राजा गोकुलदासजी मालपाणी की अध्यक्ष में बडी धूम धाम से हुई। इस महासभा के प्रमुख आयोजक श्री रामनारायणजी राठी, श्री श्रीकृष्णदासजी जाजू व श्री दामोदरदास जी राठीजी ही थे। दिसम्बर 1909ई. में निमच मे माहेश्वरी मण्डल की स्थापना सेठ रामचन्द्रजी भूतडा की अध्यक्षा में की गई जिनके मन्त्रीगण श्री जाजूजी व श्री दामोदरदासजी राठी ही थे। श्री राठीजी ने शिक्षा प्रचारार्थ मंडल को 21000/- रूपये दिये, आप ही इस मंडल के प्रधान आश्रयदाता थे।
आपने श्री जमनलालालजी बजाज व जाजूजी के साथ मारवाडी शिक्षा मंडल वर्धा की स्थापना की, जिसकी 4 जून 1914 को रजिस्ट्री हुई। तारीख 23 अपे्रल 1916 को आप मण्डल के उपसभापति चुने गये।
जयपुर के श्री गणेशनारायण जी सोमाणी, श्री गिरिजा कुमार घोष, प्रसिद्धदेश भक्त बाबू संचतन गंगोली भी अपके मिल में रहे।
ब्यावर में राठीजी की प्रतिमा लगाई जानी अति आवश्यक है। उनके आदर्शों को जीवित रखने का यही एक मात्र उपाय है। वास्तव में राठीजी, ठाकुर गोपालसिंह खरवा, घीसूलाल जाजोदिया एवं स्वामि कुमारानन्द ने ही ब्यावर के नाम को राष्ट्रीय पटल पर स्वतंत्रता संग्राम के वक्त ला खडा किया और ब्यावर का नाम स्वतंत्रता संग्राम की केन्द्रिय भूमिका निभाने जैसा महत्वपूर्ण कार्य किया। भारत में राष्ट्रीयता के जनक श्री श्रीयुत श्यामजीकृष्ण वर्मा व राठीजी के कारण ही उस वक्त के राष्ट्रीय स्तर के देश भक्त ब्यावर आ सके जिनमें प्रमुख क्रान्तिकारी सन्यासी स्वामी दयानन्द सरस्वती सनातन धर्म के प्रणेता स्वामी प्रकाशानन्द, स्वामी विवेकानन्द, महर्षि अरविन्द घोस, लोकमान्य बालगंगाधर तिलक, सुरेन्द्रनाथ बनर्जी, पण्डित मदनमोहन मालवीय, लाला लाजपतराय, गोपालकृष्ण गोखले, चन्द्रशेखर आजाद, भगतसिंह, गणेशशंकर विद्यार्थी व रास बिहारी बोस आदि-आदि। इस प्रकार ब्यावर का नाम स्वतन्त्रता संग्राम में भारत में शीर्ष स्थान पर था। इसका श्रेय राठीजी एवं गोपालसिंहजी को जाता है। इनके कारण ही ब्यावर की पहिचान भारत में हो सकी, जिससे भारतवर्ष के स्वतन्त्रता संग्राम में ब्यावर ने अहम् एवं मुख्य भूमिका निभाई। इस कार्य का श्रेय ब्यावर के महान् 7 कर्मवीर देशभक्तों को जाता है जिनके नाम इस प्रकार है 1. भारत में राष्ट्रीयता के जनक श्यामजी कृष्ण वर्मा जिनको भारत के राष्ट्रपितामह कहा जाय तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी, 2. यह जोड़ी राष्ट्रवर खरवा नरेश तिलकयुग के राणाप्रताप ठाकूर गोपालसिंहजी व तिलकयुग के भामाशाह महान् देशभक्त दानवीर सेठ श्री दामोदरदासजी राठी, 3. यह जोड़ी सेठ श्री घीसूलालजी जाजोदिया व द्विजेन्द्रनाथ नाग उर्फ स्वामी कुमारानन्द, 4. यह जोड़ी भूपसिंह उर्फ विजयसिंह पथिक व बाबा नृसिंहदास।
सेठ दामोदरदास राठी आजादी की लड़ाई के आर्थिक स्तम्भ थे। देश में ऐसे कई सेठ थे जिन्हांेेने अपने व्यापार और कल कारखानों की कतई चिन्ता किये वगैर देश की आजादी के लिये संघर्ष करने वाले क्रान्तिवीरों का कन्धे से कन्धा मिलाकर साथ दिया। इसी श्रृंखला में ब्यावर के सेठ दामोदरदास राठी भी एक है।
श्यामजी कृष्ण वर्मा ने ब्यावर में राजपूताना काॅटन पे्रस लगाया। सन् 1892ई. में लगाया यह प्रेस उन्होने स्टेशन चैराहे के मिल मार्ग पर दक्षिण पश्चिम कोने में लगाया। इस पे्रस की जमीन आज भी मौजूद है जिसके ट्रस्टी वर्तमान में दीपक राय है जो पे्रम नगर, सेन्दडा रोड़, ब्यावर में रहते है। ऐसे तपे हुए क्रान्तिकारी श्यामजीकृष्ण वर्मा के सत्संग से दामोदरदास राठी में देशभक्ति और उग्र राष्ट्रीयता का प्रादुर्भाव हुआ। प्रथम बार राठी जी के माध्यम से खरवा नरेश राष्ट्रवर राव गोपालसिंहजी क्रान्तिवीर का श्यामजीकृष्ण वर्मा से परिचय हुआ। श्यामजीकृष्ण वर्मा ने राव गोपालसिंहजी के रूप में प्रथमबार एक क्रांन्तिकारी वीर राजपूत के व्यक्तित्व के दर्शन किये। प्रमुख क्रान्तिकारी योगीराज अरविन्द घोष जब श्यामजी कृष्ण वर्मा से मिलने ब्यावर आये तो श्यामजीकृष्ण वर्मा ने उनकी मुलाकात राव गोपालसिंह खरवा से कराई। इस तरह दामोदारदास राठी के माध्यम से कई प्रमुख क्रान्तिकारी आपस में मिले। इस तरह दामोदरदास राठी ने अपने व्यापार में आने वाले किसी भी तरह की जोखिम की परवाह किये बिना देश के स्वतन्त्रता आन्दोलन में अपनी सक्रिय भागीदारी निभाई। नमन है इस देशभक्तों की देशभक्ति को।
इस लेख के जरिये लेखक राजस्थान सरकार को भी यह सम्मति देना चाहेगा कि ऐसे महान् देशभक्त तिलक युग के भामाशाह दानवीर सेठ श्री दामोदरदासजी राठी की अक्षुण स्मृति बनाये रखने के लिये राठीजी की आर्दश जीवनी शिक्षा विभाग राजस्थान द्वारा राज्य की समस्त स्कूलों में पढ़ाये जाने का प्रबन्ध करें। ताकि भावी बच्चें ऐसे महापुरूष के आदर्श को अपने जीवन में आत्मसात कर सके।
ऐसे यशस्वी महान् देशभक्त महापुरूष सेठ श्री दामोदरदासजी राठी की 100वीं पुण्य तिथि 2 जनवरी सन् 2018 के लिए राठीजी के परिजन के आग्रह पर यह लेख वासुदेव मंगल द्वारा लिखकर उनके परिजन श्री प्रदीपकुमारजी राठी व उनकी धर्मपत्नि को सादर-समर्पित किया जाता है।
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