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‘‘ब्यावर’ इतिहास के झरोखे से.......

✍वासुदेव मंगल की कलम से.......
छायाकार - प्रवीण मंगल (मंगल फोटो स्टुडियो, ब्यावर)

भारत में आर्थिक-शोषण की इमरजैन्सी
सामयिक लेख: वासुदेव मंगल, ब्यावर जिला, राजस्थान
वर्तमान में विश्व में भारतवर्ष की आबादी सम्पूर्ण विश्व के देशों के लिए आर्थिक रूप से वरदान साबित हो रही है।
भारत का बाजार दुनियाँ भर के देशों के लिये लाभकारी हैं सबसे अधिक जनसंख्या वाले 142 करोड़ उनयासी लाख उपभोक्ताओं का बाजार सभी देशों के उत्पाद का बाजार बन गया हैं अतः भारत के साथ अनुबन्ध करने के लिये सभी देश उत्सुक रहते है।
भारत सरकार ने जुलाई 2017 में देश में जी एस टी के नाम से एक नया टेक्स लगाया। हिन्दी में इसको ‘वस्तु एवं सेवा कर’ के नाम से बोलते है। मजे की बात तो यह है कि देश की जनता पर एक सो बँयालिस करोड़ उपभोक्ताओं से यह टेक्स सभी प्रकार की उपभोग व उपयोग में ली जाने वाली वस्तुओं एवं सेवाओं पर वसूल किया जाता है भारत सरकार द्वारा दौहरे रूप में चार प्रकार की अलग अलग दरों से केन्द्र व राज्य सरकारों के लिये समान अनुपात में। ये दरे 5 प्रतिशत, 12 प्रतिशत, 18 प्रतिशत व 28 प्रतिशत भिन्न भिन्न प्रकार की वस्तुओं पर अलग अलग दर से।
इस प्रकार आप देखिये देश का प्रत्येक नागरिक व प्रवासी उपभोक्ता नागरिक चौबिसों घण्टे इस टेक्स के जाल में फंसा रहता हैं इस कर का चंगुल देखिये उपभोक्ता सो जाता है तो रात को भी फोन से बात करते वक्त, खाना खाते वक्त, होटल ढ़ाबे में नाश्ता करते वक्त, होटल में ठहरने के लिये कमरा लेते वक्त, सड़क पर चलते वक्त, हवा में सांस लेते वक्त, पानी का टेक्स, खाने का टेक्स, कूलर, पंखे की हवा का टेक्स सड़क पर चलने का टेक्स, टी.बी. सिनेमा देखने का टेक्स, फोन पर बात करने का टेक्स। सभी उपयोग व उपभोग की जाने वाली वस्तुएँ, दवाईयाँ व सभी प्रकार की सर्विस का टेक्स। वो भी लम्बी अवधि के लिये जैसे टोल टेक्स वो भी बार बार अनेक बार। अतः आप देखिये यह तो राजा महाराजाओं के समय या फिर नवाबों के राज का रजिया टेक्स से भी भयानक टेक्स है जो बेचारा उपभोक्ता प्रातःकाल उठने से लेकर रात्री को सोने तक यहाँ तक की सोने के बाद भी इस खतरनाक टेक्स के चक्कर में चौबिसों घण्टे फंसा रहता है।
अरे हवा, पानी रोटी, तन पर पहिनने के कपडे़ पर टेक्स, रहने के लिये मकान पर टेक्स तक देना पड़ता है। देश के नागरिको को।
हद हो गई। वह टेक्स भी अनेक प्रकार की वस्तुओं पर तो अट्ठाईस रूपये प्रति सैंकड़ा की दर से अर्थात् 14 प्रतिशत केन्द्र का और 14 प्रतिशत राज्य का।

कहने का तात्पर्य यह है कि सफाई पर टैक्स, ईंधन पर टेक्स कोयलों की खपत का बिजली विभाग फ्यूल चार्जेज के नाम से तीस प्रतिशत के हिसाब से उपभोग की गई बिजली की यूनिट पर, रसोई गैस पर, पानी पर, सफाई पर तो क्या यह सरकार द्वारा लगाई गई देश के नागरिक पर आर्थिक शोषण रूपी ईमरजैन्सी नहीं है तो क्या है?
इस प्रकार अवाम को रोजगार तो दिया जाता नहीं है। ऊपर से उपभोक्ता बेचारे को आर्थिक बोझ से लाद दिया जाता है। क्या ऐसी सूरत में वह बेचारा अवसाद में नहीं आवेगा तो और क्या करेगा? सरकार जवाब देवे।
महंगाई अनाप शनाप बढ़ी जा रही है बेहताशा दिन पर दिन जब ईलेक्शन आता है तो एक वस्तु को सरकार पकड़ लेती है और उसके भाव आसमान तक कर देती है राज्य सरकार सन् 2013, 2018 व अब 2023 में इसी प्रकार लोकसभा के चुनाव में सन् 2009, 2014, 2019 व अब आने वाले 2024 के इलेक्शन में। 2014 के इलेक्शन में खाने के तेल के भाव आसमान पर थे। 2019 के इलेक्शन में चले की दाल तीन सो रूपये एक किलो। इसी प्रकार अब लाल टमाटर तीन सो रूपये किलो तो कभी प्याज 150 रूपये किलो तो क्या ये भाव है? यह तो लूट है सरासर, इलेक्शन लड़ने के लिये बेचारे वोटर पर अनाप शनाप आर्थिक बोझ उपभोक्ता वस्तुओं पर डालकर अदृश्य रूप से लूटा जाता है और फिर उसी से वोट लेकर शासक पुनः जनसेवक के लेवल के नाम से लगातार पांच साल तक उस बेचारे को लूटा जाता है।
तो इस प्रकार की आर्थिक शोषण की इमरजेन्सी नहीं चलेगी देश में ज्यादा समय तक।
आप देखिये बैंक में जमाबन्दी पर ब्याज चार आना सैकड़ा प्रति माह ब्याज दिया जाता है और उपभोक्ता वस्तुओं सेवाओं पर टेक्स अट्ठाईस रूप्ये प्रति सैकड़ा वसूला जाता है तो क्या यह गलाकाट प्रतियोगिता नहीं है तो कया है?
अतः सरकार को अपने सिस्टम को व्यवस्थित करना होगा ताकि देश की जनता आर्थिक शोषण से मुक्त हो सके। इस प्रकार की कोई व्यवस्था की जानी चाहिये जिससे देश का नागरिक अपने को ठगा सा महसूस नहीं करे तब ही देश तरक्की कर सकेगा अन्यथा कदापि नहीं।
ताज्जुब तो तब होता है जब सरकार पेट्रोल, डीजल और रसोई पकाने की गैस पर सब्सीडी देने के बजाय उल्टे आवश्यकता की वस्तु पर अट्ठाईस रूपये प्रति सैंकड़ा से केन्द्र सरकार वस्तु कर वसूल करती हे जबकि अन्तर्राष्ट्रीय बाजार में तेल के भाव कम हुए हैं अब तेल में तीस प्रतिशत एथोनाल मिलाकर बेचने से सरकार को ओर भी भारी मुनाफा होगा।
आपको मालुम होना चाहिये सन् 2014 में कांग्रेस पार्टी की सरकार के बारह टंकी की जगह साल में दस गैस टंकी देने पर चुनाव में हारी थी अतः आवश्कता वस्तु पर टेक्स लेना ही नहीं चाहिये जिससे जन आक्रोश पैदा होता है जो सरकार के लिये नुकसान दायक साबित होगा। सरकार को जन भावना का आदर करते हुए काम करना चाहिए।
वैसे ही देश में भूखमरी, कुपोषण, बेरोजगारी और महंगाई का आलम है ऊपर से सरकार यदि जनकल्याण की भावना से काम नहीं कर व्यापार करने की नीयत से शासन करती है तो विकासशील देश में हथियारों का व्यापार, तेल का व्यापार जन विरोधी कारगर हो सकता है। सरकार की प्राथमिकता जनता को रोटी-कपड़ा-मकान सुलभ कराना हैं बाकी के सारे काम इन्फ्रास्ट्रक्चर इत्यादि बाद के काम है। इसी प्रकार जनता जनार्दन को रोजगार मुहैय्या कराना प्राथमिक काम है। महंगाई पर अंकुश लगाना जरूरी काम है। धार्मिक उन्माद से देश नहीं चलता हैं। नोजवान युवक-युवतियों को, पढे़ लिखे देश के होनहार प्रतिभाशाली नोजवानों को रोजगार चाहिये।
देश की बद किस्मती है कि स्वतन्त्रता के छियेत्तर वर्ष बाद भी देश में बेरोजगारी चरम पर हैं पढ़ी लिखी पीढ़ी दूसरे देशों में रोजगार के लिये रूख कर ही है। देश के लिये यह बड़ी शोचनीय स्थिति है।
इतिहास गवाह है कि जो देश समय के साथ अपने आपको ढ़ाल नहीं पाये वे पिछड़कर नैपथ्य मंे चले गए।
अतः समय रहते हुए देश हित में शासन को सजग हो जाना चाहिये। यह ही समय की पुकार है।
जिस देश में प्रकृति ने सब कुछ दिया है यदि उस देश में गरीबी का आलम है तो कहीं न कहीं जरूर कोई कमजोरी देश को नुकसान पहुँचा रही है। इस बात पर सरकार का फोकस होना चाहिए तब ही देश तरक्की करेगा वरना नहीं।
अब एक उदाहरण सरकार का जिससे आपको आर्थिक शोषण स्पष्ट नजर आयेगा। एक्स सरकार वाई छात्र छात्राओं बच्चों को एक करोड़ फोन देने की योजना लागू करती परन्तु फोन उन्हीं बच्चों को दिये जायेगा।
जिनका बीमा किया हुआ हैं मानलो बीमे का प्रीमीयम का खर्च नो सो रूपये सालाना है तो एक करोड़ उपभोक्ता गुणा नो सो रूपया बराबर नो अरब रूपये का कारोबार सरकार का अदृश्य रूप् से हुआ तो यह व्यापार नही ंतो क्या है जो जन साधारण को विज्यूलाईज नहीं होता है। ऐसे कई उदाहरण है सरकार के जो कमाई के अदृश्य कारक है।
दूसरा उदाहरण एक्स जॉब में सो वेकेन्सी निकाली गई। उसके लिये दस हजार आवेदन फार्म परीक्षा के लिये प्राप्त हुए जिसका शुल्क प्रति फॉर्म पाँच सो रूपये रक्खी गई इस प्रकार दस हजार गुणा पाँच सो बराबर पचास लाख अब यदि परीक्षा व्यवस्था में पच्चीस लाख रूपये खर्च हुए तो बाकी सरकार का मुनाफा।
तो आजकल सरकार का इस प्रकार का क्राईटेरिया (नजरिया) व्यापार का हो गया है तो आप विकास की कैसे सोच सकते हो? यह तो दो उदाहरण इस प्रकार के सरकारी योजनाओं के काम के असंख्य उदाहरण भरे पड़े है। आप क्या उम्मीद कर सकते हैं जन कल्याण की भलाई के बारे में।
इसी प्रकार यात्रा के सफर में बीमा एक ऐसा कारक है जिससे कमाई की कमाई साल में एक दो केस मेच्योर होते है वरना प्रिमियम की सारी सरकार की सूखी कमाई। तो आजकल यह साईक्लोजी है जिसका अनुमान लगाना जन साधारण के वश की बात नहीं है।
बैंक में सरकार आपका खाता खुलायेगी तो खाते का बीमा पहीले करायेगी जिससे प्रतिवर्ष बीमा प्रीमीयम की राशि नामे लिख दी जायेगी तो सरकार की निरन्तर आय का साधन जनरल बीमा हो गया। देश की जनसंख्या 142 करोड़ है। तो एक पॉलिसी लागू करने से ही सरकार को अनाप शनाप कमाई होती है। क्योंकि उसका असर देश की तमाम जनसंख्या पर पड़ता है। सरकार के दृश्य और अदृश्य असंख्य काम हैं उदाहरण के तौर पर सफाई को ही ले ले सफाई के नाम पर देश गुलजार। गंगा की सफाई, बाजार की सफाई, सड़कों की सफाई, नालों की सफाई, पार्कों की सफाई, कुओं की सफाई, सीवर की सफाई, आफीस की सफाई इत्यादि। कहने का तात्पर्य सरकार के पास कमाई करने की अनाप शनाफ नीति है जिसके बीना पर सरकार मदमस्त हो जाती है और अवाम के मूलभूत आवश्यक काम भूल जाती है और आज देश में यह खेल ही हो रहा है या खेला जा रहा हैं। भगवान ही मालिक है इस देश का और देश की जनता का। बैंक में एक करोड़ पचास लाख खाते सरकार ने खोले जिसमें बीमा की प्रीमियम 900 रूपये। तो 15000000 गुणा 900 बराबर 13,50,00,00,000 अर्थात बीमा से सरकार की तेहर अरब पचास करोड़ की कमाई प्रतिवर्ष हो गई खाली एक मद में।


 
 
इतिहासविज्ञ एवं लेखक : वासुदेव मंगल
CAIIB (1975) - Retd. Banker
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