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‘‘ब्यावर’ इतिहास के झरोखे से.......

✍वासुदेव मंगल की कलम से.......
छायाकार - प्रवीण मंगल (मंगल फोटो स्टुडियो, ब्यावर)

 
14 सितम्बर 2023 हिन्दी दिवस
सामयिक लेख: वासुदेव मंगल, ब्यावर सिटी (राज.)
आजादी के बाद देश में हिंदी के विकास के लिए 14 सितम्बर 1949 को हिंदी को राजभाषा का दर्जा दिया गया। राष्ट्र मे आमजन की भाषा जो भाषा जन जन के विचार विनिमय का माध्यम हो वह राष्ट्रभाषा कहलाती है।
महात्मा गाँधी ने भारत में हिंदी को जनभाषा बताया था। यह सही है कि हिंदी भारत में सबसे ज्यादा बोली जाने वाली भाषा है। मगर अंग्रेज़ी के मुकाबले में यह भाषा आज दोयम दर्जे से ऊपर नहीं उठ पाई है। यह सच्चाई है कि आज भी हिंदी की अपेक्षा अंग्रेजी भाषा का प्रभुत्व कायम है। हमारी शिक्षा की बुनियाद अंग्रेजी पर टिकी है। 14 सितम्बर के दिन ही नहीं बल्कि हर रोज हम हिन्दी भाषा पर मनन करके इस भाषा का महत्व समझें। यह जानने की हर सम्भव कोशिश करें कि आज भी आजादी के छियेत्तर साल बाद भी हिन्दी भाषा पूरे देश में जन जन की भाषा क्यों नहीं बन सकी है, इस बात पर गूढ़ मंथन करने की आवश्यकता है। 14 सितम्बर के दिन हिन्दी दिवस ‘हिंदीभाषा’ को अधिक से अधिक बढ़ावा देने के लिए मनाया जाता है परन्तु यह सच है कि यह भाषा आज भी देश में जन जन के बोलने वाली भाषा नहीं बन सकी है। आज 14 सितम्बर को हिन्दी दिवस पर हमें यह संकल्प लेना चाहिए कि हम अपनी-अपनी निज भाषा के साथ हिन्दी को स्वीकार करें तब ही यह भाषा सर्वाग्रह होगी ।
आज का युग डिजिटल ज्ञान, परिज्ञान और विज्ञान का युग है। इस युग में हर जिन्स के क्षेत्र में विकास द्रुतगति से सम्भव है। हर भाषा का ट्रान्सलेशन वाला एप मौजूद है। आपके वक्तव्य का दूरभाष बोलने के साथ साथ ट्रांसलेशन, सब भाषा मे, हाथों हाथ, बोलने के साथ साथ होता चला जाता है। ऐसी सूरत में हमें हमारी राष्ट्रभाषा को सर्वाेपरि मानते हुए प्रत्येक कार्य राष्ट्रभाषा में ही करना चाहिये। हिन्दी भाषा को सर्वाेपरि बनाने का यह ही सर्वश्रेष्ठ तरीका है। हिन्दी को प्रोत्साहन दिया जाना चाहिए। खुशी है कि जी 20 ग्रुप सम्मेलन में प्रधानमन्त्री की स्पीच हिन्दी में थी।
हिन्दी दुनियाँ में चौथी सबसे ज्यादा बोले जाने वाली भाषा है। दुनियाभर में. लगभग 70 से 80 करोड़ लोग हिन्दी बोलते हैं, और 77 प्रतिशत भारतीय हिन्दी लिखते हैं, पढ़ते हैं, बोलते हैं और समझते हैं। भारत के अलावा नेपाल, मॉरीशस फिजी, सूरीनाम, युगान्डा, पाकिस्तान, बंगलादेश, दक्षिणी अफ्रिका और कनाडा जैसे सभी देशों में हिंदी बोलने वालों की एक बड़ी तादाद है। इंगलैण्ड, अमेरिका और मध्य एशिया के लोग भी हिन्दी भाषा को काफी हद तक समझते हैं। इसके बावजूद हिन्दी को वह मान, सम्मान और प्रतिष्ठा नहीं मिली जिसकी वह अधिकारी है। इसका मुख्य कारण लेखक यह मानते हैं कि भारत देश में अनेक भाषा बोली जाती है। प्रत्येक प्रान्त में अपनी अपनी निज की भाषा (बोली) बोली जाता है। यहां तो हर बीस कोस पर भाषा का बदलाव हो जाता है। ऐसी सूरत में अलग अलग राज्य में अपने अपने प्रदेश की भाषा का ही प्रचलन आरम्भ से ही हो रहा है जैसेः- जम्मू कश्मीर में डोगरी, लेह-लद्दाख में लद्दाखी, पंजाब में पंजाबी, हरियाणा में- हरियाणवी, राजस्थान में राजस्थानी जैसे राजस्थान मैं भी अनेक भाषा है जैसे- मारवाड़ में -मारवाड़ी, मेवाड़ में मेवाड़ी, ढूँढार में- ढूंढारी (जयपुरी), मेवात में- मेवाती, कोटा-बून्दी में-हाड़ौती, डुगरपुर बाँसवाडा मैं- बागड़ी, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश में- हिन्दी, गुजरात में गुजराती, महाराष्ट्र में मराठी, बिहार में बिहारी, बंगाल में बंगाली, उड़ीसा में उडिया, तेलंगाना आन्ध्र प्रदेश में- तेलगू, गोवा में कोकणी, कर्नाटक में कन्नड़, तमिलनाडू में- तमिल, केरल में मलयालम और आसाम में असमी भाषा का प्रयोग निज की मातृभाषा का प्रयोग होता आया है सदा से।
अंग्रेजी राज में अंग्रेजों के द्वारा पूरे देश में एकछत्र राज करने के कारण सहतरवीं सदी के उत्तरार्ध से अंग्रेजी भाषा का शिक्षा में प्रचार प्रसार शिक्षण संस्थाओं में किये जाने के कारण पूरे देश में शिक्षा की ग्राह्य भाषा अंग्रेजी हो गई। बरतानियाँ साम्राज्य ने पूरे भारत देश में शिक्षा प्रदान का माध्यम अंग्रेज़ी (आँग्ल) भाषा को बनाया। अतः अंग्रेजी भारत में दो सो वर्षों से लगातार अंग्रेजी भाषा में लिखना, पढ़ना, सब कार्य किया जाता रहा है। अतः आज भी देश में शिक्षण संस्थाओं में अग्रेज़ी तालीम की प्रमुख भाषाा रही है। अंग्रेजों के भारत से चले जाने के बाद भी। आजादी के बाद भी हिन्दी को हमारी सरकार निरन्तर आजादी के बाद पूरे देश में अंग्रेजी के बजाय हिन्दी को देश की शिक्षण संस्थाओं में शिक्षा देने का प्रमुख भाषा के रूप में माध्यम बनाया होता तो निश्चित तौर पर हिन्दी भाषा ही आज अंग्रेजी की जगह प्रमुख भाषा होती। परन्तु खेद है कि हमारी केन्द्र सरकार का हिन्दी के प्रति उदासी का रुझान, रवय्या ही अंग्रेज़ी के प्रति मोह रहा जिसका परिणाम ही आज हिन्दी देश की दोयम दर्जे की भाषा बनी हुई है। इस दोष के हम ही असली गुनहगार है, यहाँ पर यह बात कदापि नहीं भूलनी चाहिए और जिसका खामियाजा आज पूरा देश भुगत रहा है। यहाँ तक कि 1875 में अंग्रेजी स्टाईल में अजमेर में स्थापित किये गए मेयो कालेज में ही राजा महाराजाओं के राजकुमारों को भी अंग्रेजी में तालीम दी जाती रही जिससे अंग्रेजी स्टाईल में ही सभी पहिनावा सूटेड बुटेड हिन्दुस्तानियों का का हो गया, अंग्रेजी भाषा के साथ साथ और आज भी वेशभूषा पूरे देश में अंग्रेजी ही पहिनावा है अंग्रेजी भाषा और अंग्रेजी संस्कृति के साथ साथ। अतः आज हिन्दी अपने देश में ही पिछड़ी हुई है जिसका के दोष भी हिन्दुस्तानियों को हैै कि आजादी के बाद भी हमारा अंग्रेज़ी से मोह भंग नहीं हुआ और आज भी इसका निरन्तर प्रयोग लगभग देश के सभी शासन, प्रशासन,न्याय, शिक्षा, चिकित्सा संस्थानों में होता चला आ रहा है तो फिर हिन्दी देश की समृद ्भाषा कैसे होती यह ही शोचनीय प्रश्न है?
142 करोड़ की आबादी वाले भारत देश में आज भी एक दर्जन ऐसे राज्य हैं, जिनमें हिन्दी नहीं बोली जाती। उन राज्यों के संस्थानों में दूसरे राज्यों के निवासी आज भी अंग्रेजी माध्यम से ही अपने सारे काम करते हैं। यह देश की बहुत बड़ी विडम्बना और दुर्भाग्य ही कहा जायेगा। वहाँ सम्पर्क और राज काज की भाषा का दर्जा भी नहीं है हिन्दी भाषा को। हिन्दी भाषी लोगों को ही अपनी स्वयं की हिन्दी भाषा से लगाव नहीं है तो फिर यह भाषा भाषा समृद्ध कैसे होगी यह ही सबसे बड़ा प्रश्न है। अतः अपनी मातृभाषा से लगाव तो हिन्दुस्तानियों को होना चाहिये। हिन्दी भाषा के पिछड़ी रहने का यही सबसे बड़ा कारण है कि हिन्दी भाषियों को ही इससे लगाव नहीं है। हिन्दी हमारी मातृभाषा है। इसका हमको आदर सम्मान करना चाहिये हिन्दी विश्व की दूसरी सबसे बड़ी भाषा है। चीनी भाषा के बाद यह विश्व में सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषा है।
आज आवश्यकता इस बात की है कि हम देश की मातृ और जन भाषा के रूप में हिन्दी को अंगीकार करें। मातृभाषा की सार्थकता इसी में है कि हम अपनी क्षेत्रिय भाषाओं की आस्मिता को स्वीकार करने के साथ साथ हिन्दी को व्यापक स्वरूप प्रदान कर देश को एक नई पहचान दें। यह देश की सबसे बढी सेवा होगी।
यहाँ पर देश के केन्द्रिय शासन तन्त्र को दक्षिण भारत के प्रति नम्रता, आत्मियता बरतनी होगी। आज भी दक्षिण के लोग अपने आपको अनार्य अर्थात् द्रविड़ मानते हैं यह किसकी गलती है। आज भी हम उनकी संस्कृति के प्रति हम दर्दी नहीं है। आज भी हम हिन्दू होने का कट्टरपन दिखा रहे हैं। ये वे कारण है जो दक्षिण, उत्तर, पूरब व पश्चिम के लोगों को अलग थलग किये हुए है और हम उनको अपने में घूला मिला नहीं रहे हैं। लेखक यह पूछना चाहता है कि क्या वे हिन्दू नहीं है?
अब सरकार को सोच का नजरिया और दायरा व्यापक बनाने की दरकार है तब ही देश आत्मसात हो सकेगा नहीं तो कदापि नहीं।
14.09.2023
 
इतिहासविज्ञ एवं लेखक : वासुदेव मंगल
CAIIB (1975) - Retd. Banker
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