‘‘ब्यावर’ इतिहास के झरोखे
से.......
✍वासुदेव मंगल की कलम से.......
ब्यावर सिटी (राज.)
छायाकार - प्रवीण मंगल (मंगल फोटो स्टुडियो, ब्यावर)
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बहुआयामी
प्रतिभा के धनी - हरविलास शारदा का जन्म 3 जून सन् 1867ई0
आलेखः वासुदेव मंगल - स्वतन्त्र लेखक, ब्यावर सिटी
भारतीय राष्ट्रीयता से ओतप्रोत हरविलास शारदा बहुआयामी प्रतिमाशाली थे।
उनका जन्म अजमेर राजस्थान में 157 वर्ष पूर्व 3 जून 1867ई. में हुआ था।
श्री शारदा समाज सुधारक, न्यायविद् और लेखक थे। वे सन् 1924 में आज के
सो साल पहले भारत की अंग्रेजी असेम्बली के अजमेर - मारवाड़ सीट से चुने
गए। वर्तमान मे शायद ही अजमेर के लोग आज की नई पिढ़ी शारदाजी के बारे मे
नहीं जानते होंगें।
परन्तु यह सच है कि सन् 1930 मे उनको दिल्ली की केन्द्रिय असेम्बली के
लिये पुनः चुना गया अजमेर मेरवाड़ा से दोबारा निर्वाचित किया गया।
शारदाजी के पिता श्रीयुत् हरनारायण जी शारदा (माहेश्वरी) एक वेदान्ती
थे जिन्होंने अजमेर के गवर्नमेण्ट कालेज में लाइब्रेरियन के रूप में
काम किया।
हरविलास शारदा ने 1883 में मैट्रिक परीक्षा पास की। उसके बाद उन्होंने
आगरा कालेज (तब कलकत्ता विश्व विद्यालय से सम्बद्ध) में अध्ययन किया और
1888 में बैचलर ऑफ आर्टस की डिग्री प्राप्त की। उन्होंने अंग्रेंजी में
ऑनर्स के साथ उत्तीर्ण किया और दर्शनशास्त्र और फारसी भाषा मे लिटरेचर
की डिग्रियाँ भी ली।
शारदाजी ने अपना करियर 1889ई. में गवर्नमेण्ट कालेज अजमेर में एक
शिक्षक के रूप में शुरू किया। 1888 में शारदाजी ने इलाहाबाद में
राष्ट्रीय काँग्रेस सत्र का दौरा किया। उन्होंने कांग्रेस की कई ओर
बैठकों में भाग लिया जिनमें नागपुर, बॉम्बे, बनारस, कलकत्ता और लाहौर
शामिल थे। अपनी शिक्षा पूरी करने के बाद हरविलास शारदा जज की अदालत में
अनुवादक रहे। राजस्थान में जैसलमेर के राजा के अभिभावक रहे और 1902 में
अजमेर के कमिश्नर के कार्यालय में वर्नाक्यूलर - सुपरिटेंडे भी बने।
रजिस्ट्रार सबजज और अजमेर मेरवाड़ा के स्थानापन्न जज के रूप में काम करके
1924 में वे इस सेवा से निवृत्त हुए।
हरविलास शारदा जाने माने लेखक भी थे। उनका सबसे प्रसिद्ध ग्रन्थ हिन्दू
सुपीरियोरिटी है। 1906 में प्रकाशित इस ग्रन्थ में उन्होंने सप्रमाण
सिद्ध किया है कि इतिहासकाल में सभी क्षेत्रों में हिन्दू सभ्यता अन्य
देशों से बहुत आगे थीं।
शारदा जी के लिखे अन्य ग्रन्थ महाराणा कुम्भा, महाराणा सांगा,
शंकराचार्य और दयानन्द, लाइफ ऑफ दयानन्द सरस्वती है।
समाज सेवा के क्षेत्र में हरविलास शारदा आरम्भ से ही अग्रणी स्वामी
दयानन्द सरस्वती द्वारा स्थापित परोपकारिणी सभा सचिव के रूप में
उन्होंने काम किया। लाहौर में हुए इंडियन नेशनल सोशल सम्मेलन की शारदा
जी ने अध्यक्षता की। सन् 1924 में बरेली के अखिल भारतीय वैश्य सम्मेलन
के अध्यक्ष भी शारदाजी ही थे।
श्री शारदाजी ने समाज सुधार का ऐसा काम किया, जिसके लिए उनका नाम
इतिहास में स्थायी हो गया। भारत में लड़कियों के बाल-विवाह की बड़ी
चिन्ताजनक प्रथा थी। इन्होंने केन्द्रिय असेम्बली में इसे रोकने के लिए
सन् 1925 में एक बिल पेश किया। शारदा बिल के नाम से प्रसिद्ध यह बिल
सितम्बर 1929 में पास हुआ अप्रेल 1930 से पूरे देश में लागू गया। आज भी
यह बिल कानून के रूप को बाल-विवाह पर रोक के लिये प्रभावी है हालांकि
आज इसे लागू किये 94 साल हो गए है, इस समाज सुधार के काम के लिये
शारदाजी इतिहास में अमर हो गए।
यह काम अंग्रेजी काल में शारदाजी ने अजमेर से कर दिखाय सन् 1930 मे आज
के 94 साल पहीले। 20 जनवरी 1952 में इनका निधन हुआ। समाज सेवा के कार्यों
के लिये सरकार ने उन्हें राय बहादुर और दीवान बहादुर की पदवियों से
अलंकृत किया।
3 जून 2024 को 157वें जन्म दिवस पर लेखक का शत् शत् नमन्।
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