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‘‘ब्यावर’ इतिहास के झरोखे से.......

✍वासुदेव मंगल की कलम से.......
छायाकार - प्रवीण मंगल (मंगल फोटो स्टुडियो, ब्यावर)

भारतीय डिजिटल अर्थव्यवस्थाः विश्वसनीयता एवं सम्भावनाएँ
सामयिक लेख: वासुदेव मंगल, ब्यावर जिला (राज)
डिजिटल अर्थव्यवस्था एक आर्थिक प्रणाली है जिसमें तकनीकी उपकरण और इन्टरनेट का उपयोग करके अर्थतान्त्रिक गतिविधियों को संचालित किया जाता है। यह विभिन्न सेक्टरों में नई संरचनाएँ और तकनीकों का उपयोग करती है, जिससे उत्पादकता बढ़ती है और कारोबार की प्रक्रियाएँ सुगम होती है। इससे सेवाएं बेहतर होती है।
यह नई तकनीकों और डिजिटली प्रक्रियाओं के माध्यम से वित्तिय सेवाओं, व्यापार, उत्पादन, विपणन मे सुधार करती है।
डिजिटल अर्थव्यवस्था में अधिकांश लेनदेन और लेखा जोखा इलेक्ट्रोनिक रूप से होते है। डिजिटल अर्थव्यवस्था ने डेटा एकत्रित करने और विश्लेषण करने की क्षमता को बढ़ाया है। इससे नीतियों और योजनाओं में सुधार हुआ है।
आज के युग में आनलाइन व्यापार दिनोंदिन पापुलर होता जा रहा है। इस व्यवस्था में व्यापारियों को सीधा सीधा अधिक ग्राहकों तक पहुंचने का मौका मिलता है। ये नवाचार नये संभावित विकास के लिए मार्गदर्शन करते हैं।
आजकल औद्योगिक जगत मे अनेक डिजिटल डेटा और सूचनाओं का उपयोग हो रहा है। यह कार्य इस भरोसे पर किया जा रहा है कि उनकी सूचनाएँ सुरक्षित है और इनका गलत इस्तेमाल नहीं होगा। उच्च आय वर्ग के लोगों के लिए डिजिटल विश्वनीयता बेहद जरूरी है क्योंकि उनको बैंकिंग ट्रान्जेक्शन में पूर्ण भरोसा होता है कि उनकी बैंक मे रखी गई सम्पत्ति सुरक्षित है। साथ साथ बैंकों से किये गए सभी लेनदेन विश्वसनीय है और सुरक्षित है।
व्यक्तिगत व्यवसायों और सरकारों के बीच डिजिटल विश्व में एक ऐसा शक्तिशाली सुरक्षा ढाँचा बनाया जाना अतिआवश्यक है जिससे उपयोगकत्ताओं का जीवन और व्यापार सुरक्षित रख सके।
आज के डिजिटल के युग मे हम सोशल मीडिया से लेकर बैंकिंग एप जैसी विभिन्न आनलाईन सेवाओं पर भरोसा करते है। इसी भरोसे के आधार पर हम अपनी व्यक्तिगत जानकारी और संवेदनशील डेटा डिजिटल सेवा प्रदाताओं को सौंपते हैं। ये डेटा हमारे पासवर्ड और क्रेडिट कार्ड विवरण से लेकर हमारी व्यक्तिगत पसन्दों और ब्राउजिंग हिस्ट्री तक भी हो सकती हैं। तकनीकी उन्नति के साथ ही डिजिटल उपकरणों पर हमारी निर्भरता दिनोंदिन बढ़ती जा रही है।
डिजिटल भरोसा उन डिजिटल उत्पादों और सेवाओं के प्रति उनके उपयोगकर्ताओं के विश्वास का स्तर है। इसका मतलब यह है कि जब आप डिजिटल दुनियाँ में कोई सम्बन्ध बनाते हैं, तो आप उस पर पूर्ण भरोसा करते है। यह सम्बन्ध आपके और दूसरे व्यक्तियों के बीच विनिमय के रूप में हो सकता है। यह विनिमय विभिन्न विषयों पर हो सकता है जैसे व्यापार, वित्त, संचार और सामाजिक नेटवर्किंग सम्बन्धित डिजिटल विश्वनीयता उन सभी डिजिटल उपयोगकर्ताओं के लिए जरूरी है, जो डिजिटल माध्यमों का उपयोग करते हैं। ये उपयोगकर्ता चाहे व्यवसायी हो या आमलोग।
आज डिजिटल भरोसा डिजिटल दुनियाँ में इस कदर महत्वपूर्ण हो चुका है कि अब डिजिटल विश्वास को अब एक नई मुद्रा के रूप में देखा जा रहा है। यह डिजिटल आर्थिक प्रणाली के सुचारू संचालन के लिए आवश्यक सबसे महत्वपूर्ण कारक बन चुका है।
जहाँ तक भारत की अर्थव्यवस्था डिजिटल हो पाई है या नहीं, इस प्रश्न के जवाब में सीधा सीधा उत्तर यह है कि भारत में इस क्षेत्र में दक्षता हासिल करने में अभी बहुत सारी बाधाएँ आ रही है जैसे ग्रामीण क्षेत्रों को पूर्ण रूप से डिजिटल रूप में साक्षर बनाना होगा और साथ ही डिजिटलीकरण के लिए आवश्यक बुनियादी सुविधाओं का जाल बिछाना होगा।
यदि हम डिजिटल भुगतान उद्योग की ओर देखें तो पाते हैं कि नोटबन्दी में भी डिजिटल भुगतान इतनी तेजी से नहीं बढ़ा था, जितना कि करोना के संकट काल के समय बढ़ा। इसका सीधा सीधा सा कारण यह है कि करोना काल में जब सन् 2020-21 में और 2021-22 में पूर्णरूप से भारत में लोक डाऊन था तब लोगों ने घरों में रहते हुए ई-कॉमर्स और डिजिटल मार्केटिंग को एक तरह से जीवन का अंग बना लिया। अब जब पूर्ण बन्दी लगभग खत्म हो चुकी है, तब भी लोग भीड़भाड़ से बचने के लिए आन लाइन खरीद को ही तरजीह दे रहे है. जो भारत के लिए आर्थिक रूप से उपयोगी हो गया है। भारत का ईकॉमर्स का व्यापार 2027-28 मे दो सो अरब डालर को पार कर जायगा। जहाँ तक वैश्विक जगत का सवाल है तो विश्व मे जैसे जैसे अर्थ व्यवस्था डिजिटल होती जा रही है वैसे वैसे देश और दुनियाँ रोजगार बाजार का परिदृश्य भी बदलता जा रहा है। भविष्य में कई रोजगार ऐसे होंगे जिनके नाम हमने अब तक सुने भी नहीं हैं।
भारत में टेक्नोलाजी ने न केवल इनोवेशन को बढ़ावा दिया है, बल्कि वास्तविक समाधान देने का भी काम किया है। टेक्नोलाजी ने पिछले कुछ वर्षों में लोगों के जीवन, शासन और लोकतन्त्र को बदल दिया है।
देश की डिजिटल अर्थव्यवस्था में वर्ष 2025 तक एक ट्रिलियन डालर (करीब 70 लाख करोड़ रुपये) के स्तर पर पहुँचने की क्षमता है।
डिजिटल आर्थिक लेनदेन बढ़ने के साथ ही इससे जुड़ी समस्याएँ भी तेजी से उभर रही है। साइबर अपराधों, डेटा चोरी, आन लाइन घोखाघड़ी और पहचान चोरी जैसी समस्याएँ डिजिटल विश्वास को पीछे धकेल रही है। साइबर आक्रमणकारी आपकी निजी जानकारी को नुकसान पहुँचा सकता है आपके खाते को हैक और अन्य अवांछित क्रियाएँ कर सकता है, जो डिजिटल विश्वास को खण्डित कर सकता है।
अन्त मे यह जरूरी है कि आम जन का सहयोग विश्वास एवं जुड़ाव बहुत जरूरी है बशर्ते सरकार अनुकुल परिस्थितियाँ जन भागीदारी को उत्पन्न कर साकार आकार प्रदान करे। परन्तु यहाँ पर तो यह देखा जा रहा है कि सरकार भविष्य में राज करने की नीति में उलझकर रह गई है और इसी कारण जनता का विश्वास प्राप्त करने में असफल हो रही है। अतः अगर देश को वास्तविक रूप से विकसित करना है तो धार्मिक उन्माद की नीति से दूर रहकर ही सम्भय हो सकता है यह सपना सरकार का। अगर गौण मुद्दों में सरकार ने समय गवाया तो फिर पछताने के सिवाय कुछ भी नहीं है। अतः सरकार के सामने एक सुनहरी मौका है। अतः इसको भुनाने मे सरकार को सन् 1990 वाली भूल नहीं करनी है जब विश्वनाथ प्रताप सिंह जी ने मण्डल आयोग की सिफारिश लागू की थीं तो जातीवाद का मुद्दा प्रमुख से देश में उभर कर आया था और जब लाल कृष्ण अडवाणीजी ने देश में रथ यात्रा की थी और बिहार में लालू प्रशादजी यादव ने अडवाणीजी के रथ को रोक लिया था तब मन्दिर मस्जिद मुद्दा मुख्य रूप से उभरा था। जिसका पटाक्षेप 6 दिसम्बर 1991 को बाबरी मस्जिद को गिराने से हुआ था। आज भी 33 वर्ष बाद भी ये दोनों मुद्दे मुख्य बने हुए है जिसमें उलझकर सरकार अपने कीमती वक्त को गँवाय जा रही है। अगर यही कशमकश चलती रही तो देश को भारी नुकसान होगा जैसे 1947 मे जिन्ना और नेहरू के बीच में प्रधान मन्त्री बनने की रस्सा कस्सी हुई थीं। और इसी धर्मान्धता की राजनीति मे उस समय देश के टुकड़े हो गए। अब भी छियेत्तर वर्ष बाद पुनः एक बार वैसी पुनरावृत्ति के आसार नजर आ रहे है देश में बड़े जतन के बाद देश के कर्णधारों ने आजादी को सहेजकर रखने के लिये जिस लोकतान्त्रिक, समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष बुनियादी सिद्धान्तों पर चलकर संविधान प्रदत्त ढाँचें को अब तक असुणन रख रखा है उम्मीद करते हैं आगे भी राज करने की यह नीति बाकायदा बरकरार रहेगी इसी प्रकार।
राज़ करने की इस नीतिगत सिद्धान्तों में कोई आमूल चूल परिवर्तन नहीं होगा राजतन्त्र के जरिये जैसा कि देश से भय और आतंक का डर है लोकतन्त्र की संसदीय प्रणाली का अक्षरशः सम्मान होगा। लोकतन्त्र की संसदीय पद्धति में सम्मानजनक लोकतन्त्रिय समितियाँ पूर्व की भाँति काम करती रहेगी। एक तरफा फैसले देश की जनता पर जबरन थोपे नहीं जायेंगें इसी आशा के साथ भगवान शासक वर्ग को सद्बुद्धि दें कि जो भी होगा अच्छा होगा।
अतः सेन्थोल जो राजतन्त्र का प्रतीक है जो सन्थाल राज में उपयोग किया जाता रहा लोकतन्त्र मे नहीं होना चाहिये।
संसद में किसी भी प्रकार के परिवर्तन को देश की जनता की भावना का सम्मान करते हुए जनमत कराना अति आवश्यक है। जनमत के आधार पर ही कोई परिवर्तन सम्भव है अन्यथा नही। अधिनायकवादी रवैय्या घातक सिद्ध हो सकता है।
 
 
इतिहासविज्ञ एवं लेखक : वासुदेव मंगल
CAIIB (1975) - Retd. Banker
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