‘‘ब्यावर’ इतिहास के झरोखे
से.......
✍वासुदेव मंगल की कलम से.......
ब्यावर सिटी (राज.)
छायाकार - प्रवीण मंगल (मंगल फोटो स्टुडियो, ब्यावर)
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1 मई 2024 को मजदूर दिवस पर विशेष
आलेखः वासुदेव मंगल, ब्यावर सिटी व जिला
आज अन्तर्राष्ट्रीय मजदूर दिवस (लेबर-डे) है। इस दिन का मजदूरों से जुड़े
दिवस का बहुत महत्व है।
आज तो जमाना बदल गया है। आज तो युद्ध भी ए आई (आर्टिफिशियल
इन्टेलीजेन्सी) से लड़ा जाने लगा है। अतः इमोशन नाम इतिहास की बात हो गई
है। विशुद्ध भौतिक दुनियाँ में जज्बात (भावना) शब्द का अर्थ इस
मेटेरिलिजियम में गौण हो गया है अर्थात लुप्त प्रायः हो गया है दुनियाँ
से।
अब हम मूल विषय के बिन्दु पर पर आते हैं। ब्यावर मे ही राजपूताना से
ट्रेड यूनियन का कल्चर सन् 1919 में शुरू हुआ था। हुआ यों कि 1919 में
यह जोड़ी घीसूलालजी जाजोदिया जावरा (मध्य प्रदेश) से और द्विजेन्द्र नाथ
नाग उर्फ स्वामी कुमारानन्द ब्यावर में आकर अपनी कर्मभूमि बनाई और इस
जोड़ी ने ही 1919 में ट्रेड यूनियन की शुरुआत की। कारण यहाँ पर वूल एण्ड
कॉटन ग्रेन का टेªड था जिसमें बहुत सारे लेबर काम करते थे। ब्यावर में
साथ ही कृष्णा मिल्स और एडवर्ड क्लोथ मिल्स कार्यरत थी जहाँ पर हजारों
की संख्या मे इन मिल्स के तीन शिफ्ट में लेबर काम करते थे। अतः इन
मजदूरों के वेल फेयर के लिये ही जाजोदिया जी व स्वामीजी ने मिलकर आल
इण्डिया ट्रेड यूनियन कांग्रेस नाम की संस्था ब्यावर में शुरू की मिल्स
केम्पस में। यह संस्था बम्बई व अहमदाबाद की कॉटन मिल्स के पैटर्न पर ही
ब्यावर (नया नगर) राजपूताना में आरम्भ की। आपको बता दें कि पंजाब के
फाजिल्का सिटी के बाद ब्यावर ट्रेड यूनियन ही राजपूताना में एक्टिव
यूनिट थी इण्डिया में उस समय।
इत्तफाक ही कहा जावे कि दिजेन्द्रनाथ नाग क्रान्तिकारी थे। वे 1908 मे
महर्षि अरविन्द घोष के साथ बीस वर्ष की आयु में भारत में भ्रमण करते
हुए ब्यावर पधारे। उस समय एडवर्ड मिल्स प्रोडक्शन में आई। कृष्णा मिल्स
का प्रोडक्शन पहले से ही 1892 में शुरू हो चुका था। 1905 में लार्ड
कर्जन ने बंगाल प्रान्त के दो टुकड़े कर दिये थे। अतः बंगाल में जबरदस्त
आक्रोश फैल गया था जिससे बंगाल की जनता अंग्रेज़ी हुकूमत के खिलाफ हो गई।
अतः क्रान्तिकारी विचारों से परिपूर्ण हो गई और अंग्रेजी राज को उखाड़
फैलने पर आमादा हो गई। इसी श्रृंखला मे अरबिन्द भारत भ्रमण पर रहते हुए
ब्यावर आये। उस समय ब्यावर की पृष्ठ भूमि गौरिल्ला युद्ध करने के
अनुकूल होने के कारण ही इस जगह को क्रान्तिकारी प्रशिक्षण के लिये ठीक
समझा और ठाकुर गोपालसिंह सिंह जी को और दामोदर दासजी राठी को यह
जिम्मेदारी सौंपी।
घोष ब्यावर से सीधे पाँडीचेरी गए जहाँ पर उन्होंने एक यूनिवर्सिटी की
स्थापना की। द्विजेन्द्र नाथ ने पांडीचेरी से शिक्षा दीक्षा लेकर
ब्यावर में आकर उन्होंने अपनी कर्मभूमि 1919 में बनाई। यहाँ पर श्री
घीसूलालजी जाजोदिया का उनको साथ मिल गया। फिर क्या था तुरन्त इन दोनों
ने मिलकर ट्रेड यूनियन की ब्यावर में स्थापना सबसे पहले राजपूताना में
की। आज यह ट्रेड यूनियन बटवृक्ष हो गया है एक सौ पच्चीसवीं स्थापना पर
1 मई 2024 को। यह बात शायद ही आज किसी को मालूम हो। परन्तु ब्यावर ही
वह सिटी है जहां से ट्रेड यूनियन कल्चर के कारण शिमला लेबर ब्यूरो से
उस काल से ही रिटेल प्राइस इण्डेक्स पूरे हिन्दुस्तान में ब्यावर की भी
सलेक्टेड रिटेल कण्ज्यूमर कोमोडिटीज् के आधार पर तय की जाती रही है। तो
यह महत्व उस समय के क्रोनिकल ट्रेड एण्ड इण्डस्ट्रिज का।
आज चाहे ब्यावर के अतीत के विकास को आजादी के बाद से धराशाही छियेत्तर
साल में भले ही कर दिया गया है परन्तु ट्रेड एण्ड इण्डस्ट्रिज के
ब्यावर के अतीत के सुनहरे पन्नों मे अंकित है जिसे कभी भूलाया नहीं जा
सकेगा।
आज एक मई सन् 2024 को मजदुर दिवस पर ब्यावर के तमाम लेबर को लेखक की
हार्दिक बधाई व शुभकामना।
चाहे ब्यावर के अतीत के व्यापार और उद्योग को प्रायः समाप्त कर दिया गया
है वर्तमान में परन्तु इस प्रगति की सुनहरी यादें हमेशा हमेशा इतिहास
में विद्यमान रहेगी। इसी कामना के साथ एक बार सुनहरी यादों के साथ सभी
मेहनत कश साथियों को पुनः लेखक की इस अवसर पर बधाई व शुभ कामना।
आज ही के दिन 1 मई ईसवी सन् 1836 में आज के ठीक 188 साल पहले शहर की
मुख्य चौपाट से चारों दिशाओं के बाजारों में प्रत्येक कोने से पाँच
दुकान बनवाने या श्रीगणेश कर ब्यावर के ट्रेड (व्यापार) का एक सो 88
वर्ष पहिले ठीक आज के दिन ही आरम्भ करने का श्री गणेश किया था ठीक
चालीस दुकानों से एक मई सन् 1836 ई. में शहर की मुख्य चौपाटी से चारों
दिशा में उस जमाने में ब्यावर का फत्तेहपुरिया बाजार अन्तर्राष्ट्रीय (इन्टरनेशनल)
बुलियन ट्रेड का एक हिस्सा था और सेठाणा शहर था जहाँ दिसावर से लोग
कमाने आते थे जहाँ बावन सर्राफा दुकाने गदियाँ थीं और हुण्डी बिल्टी का
व्यापार ब्यावर से ही आरम्भ किया गया था उस जमाने में पूरे भारत वर्ष
में व कपड़े की तीन मिलों की वजह से ब्यावर राजपूताने का मेनचेस्टर
कहलाता था पूरे भारतवर्ष में जो ब्यावर के लिये बड़ी फक्र की बात है।
काश आजादी के बाद हमारी गणतन्त्र की सरकार इस ट्रेड एण्ड इण्डस्ट्रीज
के उस जमाने के महत्व को समझकर इसको बन्द करने के बजाय इसके विकास में
निरन्तर ईजाफा करती।
तो स्वतन्त्रता के 75 वर्षों बाद ब्यावर में केन्द्र की और राजस्थान
प्रदेश की वर्तमान सरकारें इस प्रकार का अमृत महोत्सव मना रही है। धन्य
है इन दोनों सरकारों की कारगुजारियों पर जिन्होंने ब्यावर के बारे मे
इस प्रकार का नकारात्मक सोच बनाया है। इनके इस डेवलोपमेन्ट को ब्यावर
की पिढ़ीया याद रखेगी।
ब्यावर का सिर्फ बस सिर्फ यह ही दोष है कि इस शहर मेरवाडा स्टेट को एक
अंग्रेज़ सैन्य अधिकारी कर्नल चार्ल्स जार्ज डिक्सन ने बसाया था और इस
सिटी की चार दीवारी बनाकर हिफाजत की थी।
आजादी के हमारे हुक्मरानों को यह वाक्या शायद पसन्द न आया इसीलिये आजादी
के बाद इस शहर की बर्बादी कर दी शायद ब्यावर के तकदीर क़िस्मत में यह
लिखा था जो आज की ब्यावर की जनता को बर्बादी भुगतनी पड़ रही है।
खैर अपने अपने नसीब है। ब्यावर की जनता के नसीब में ये दुर्दिन देखने
ही लिखे थे। किसको दोष दिया जाये।
समरथ को नहीं दोष गोसाईं ।
01.05.2024
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