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‘‘ब्यावर’ इतिहास के झरोखे से.......

✍वासुदेव मंगल की कलम से.......  ब्यावर सिटी (राज.)
छायाकार - प्रवीण मंगल (मंगल फोटो स्टुडियो, ब्यावर)

 
महात्मा गाँधी की 154वीं जयन्ती व 155वें जन्मदिन पर विशेष
आलेखः वासुदेव मंगल, ब्यावर सिटी (राज.)
प्रस्तावनाः यह सत्य है कि ब्रिटिश साम्राज्य हुकूमत ने लगभग दो सो वर्षों तक भारत देश उपनिवेश पर राज किया। 1857 को जँगी आजादी में ब्रिटिशराज की चुलें हिलाकर रख दी। अतः 1885 में ब्रिटिश सरकार ने भारत में संरक्षण के लिए काँग्रेस राजनैतिक पार्टी का गठन अंग्रेजों द्वारा ही किया गया और अन्त में देश की हुकूमत इस पार्टी को ही सौंपी गई। परन्तु मुस्लिम लीग के मोहम्मद अली जिन्ना के हठ ने देश के दो टुकड़े करवा दिये। अंग्रेज कूटनीति में चालाक थे। उन्हें तो हिन्द से जाना ही था कारण द्वितीय विश्व युद्ध में ब्रिटेन की हालत जर्जर हो चुकी थी। परन्तु तत्कालिन हालात आजादी के लिए विवश होना पड़ा।
मोहनदास करमचन्द गाँधी का जन्म गुजरात के पोरबन्दर शहर में 2 अक्टूबर सन् 1869 ई. में हुआ था। सन् 1914 के पहले वे दक्षिणी अफ्रिका महाद्वीप के नेटाल में वकालत करते रहे। बाद में नरमदल के काँग्रेस के नेता गोपालकृष्ण गोखले उनको वहाँ से भारत लेकर आये और कांग्रेस की बागडोर 1914 में उनको सम्भलाई।
यद्यपि अंग्रेजी हुकूमत की जड़े उस समय भारत में काफी मजबूत थीं। परन्तु गाँधीजी ने अपने आन्दोलन का रास्ता अहिन्सात्मक तरीके को चुना। अगर यह कहा जाय कि मोहन दास करमचन्द गाँधी एक विचारधारा है तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। अहिंसा और सत्य के उनके सिद्धान्त को आज भी याद किया जाता है।
हालाकि चरमपन्थी ताकतों ने उनका खुलकर विरोध किया परन्तु उस समय कांग्रेस के सिवाय और कोई सशक्त पार्टी दूसरी थी ही नहीं इसलिये कांग्रेस की नीति ही परिहार्य रही। उस समय कांग्रेस पार्टी में दो दल कार्यशील थे। गरम दल और नरम दल। परन्तु गरम दल उग्र होने से नरमी नहीं बरतता था अपनी गतिविधियो में। उसका प्रभाव ब्यावर में विशेष रूप से था। गरम दल के नेता बाल गंगाधर तिलक थे। ब्यावर क्षेत्र में चूँकि अंग्रेजी राज कायम था ईस्ट इण्डिया कम्पनी की सदारत मे कर्नल डिक्सन ही इस शहर के संस्थापक थे। 1818 में ही पूरे भारत देश ने अंग्रेजी हुकूमत तस्लीय कर ली थीं। उसके अन्तर्गत देशी रियासतें अपनी अपनी सीमाओं तक स्वतन्त्र थीं। उसमें अंग्रेजी हुकूमत उनके अन्दरूनी कार्यों में कोई दखलन्दाजी नहीं करती थी। अजमेर नरम दल का शहर था। वहाँ पर भी अंग्रेजी हुकूमत ही थीं। इसलिये ब्यावर के आस पास की पहाड़ी और जंगल गुरिल्ला युद्ध करने के अनुकुल सदा से ही रही। इसलिये क्षेत्र स्वतन्त्रता सेनानियों के लिये महफूज था। बाल गंगाधर तिलक सन् 1916 में एक बार सम्मेलन में ब्यावर में जरूर आये। सन् 1920 में तो महात्मा तिलक का देहान्त हो गया था।
अतः उनके बाद महात्मा मोहनदास करमचन्द गांधी ही कांग्रेस पार्टी के भारत में सर्वेसर्वा नेता कहलाये। यद्यपि मोतीलाल नेहरू भी थे। परन्तु उनका इतना वर्चस्व नहीं था। हालांकि मोतीलाल नेहरू भी ब्यावर आये। यू० एन० देबर भी ब्यावर आये। किस्तूरबा गाँधी भी ब्यावर आई उस समय। लेकिन महात्मा गाँधी इस समय ब्यावर नहीं आये। गांधीजी को महात्मा की उपाधी सुभाष बाबू ने दी। तब से वह महात्मा गांधी के नाम से पहचाने जाने लगे।
महात्मा गाँधी तो मात्र एक बार 1934 की जुलाई में जरूर ब्यावर आये स्वामी कुमारानन्द के निमन्त्रण पर वह भी अछूत उदार आन्दोलन के सिलसिले में। उनका ब्यावर का वह दौरा भी बड़ा ही कान्तिकारी मर्मस्पर्शी था।
गाँधीजी ने अपने विचारों के माध्यम से राजनीतिक दार्शनिक सामाजिक एवं धार्मिक क्षेत्रों में क्रान्तिकारी परिवर्तन किये। वे एक समाज सुधारक भी थे। गाँधीजी ने हमेशा छूआछूत का विरोध किया। इस प्रसगं में ब्यावर आगमन पर उनका सामना ब्यावर के चन्द्रशेखर जी शास्त्री से हुआ जो छुआछूत प्रसगं में उनसे शास्त्रार्थ करना चाहते थे परन्तु गाँधीजी ने विनोद स्वर में अपनी हार मानते हुए उनको खुश रखा। वे ही चन्द्रशेखरजी बाद में जगन्नाथपुरी के शंकराचार्य पद पर सुशोभित हुए। गाँधीजी ने घृणित जाति के उत्थान के लिये उनको ‘हरिजन’ की उपमा देकर उनका आदर सत्कार किया।
महात्मा गाँधी देश के दलित जाति के उत्थान के लिये सदैव तत्पर रहे। उन्होंने अपने जीवन में उनीयासी हजार मील तक चलकर देश के लिये चालीस साल के स्वतन्त्रता आन्दोलन के दौरान करीब एक करोड़ शब्द अपने हाथों से लिखे। गाँधीजी के लिये स्वच्छता जीने का एक तरीका था। वो अपना सारा काम अपने हाथों से खुद किया करते थे। आजकल के नेताओं की तरह वो स्वच्छता का ढिंढ़ोरा नहीं करते थे वो तो सही मायने में एक महामानव थे। उनकी कथनी और करनी में कोई फर्क नहीं होता था।
गाँधीजी ने सात किताबें लिखी और भगवत गीता का गुजराती में अनुवाद भी किया।
गाँधीजी की ऐसी विचारधारा थीं कि राज को धरम के मामले में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए। उनका ऐसा मानना था कि ईश्वर तो सत्य और प्रेम का एक रूप है। अतः सबका मालिक एक है। गाँधीजी के अनुसार सभी को मानवता का पालन करना चाहिए। उन्होंने ग्राम पंचायतों को शक्तिशाली बनाने पर जोर दिया। गाँधीजी ने कहा था कि मैं उस राम में आस्था नहीं रखता जो रामायण में है या मन्दिर में है, मैं तो उस राम में आस्था रखता हूँ जो मेरे मन में है।
विडम्बना तो यह है कि उनके बताय हुए रास्ते ईश्वर अल्लाह एक ही नाम को बिसराकर विभिन्न समुदायों के बीच वैमनस्य पैदा कर के गंगा जमुनी संस्कृति को नष्ट कर रहे हैं।
निसन्देह गाँधीजी की विचारधारा सत्य अहिंसा कर्तव्यपरायणता सहनशीलता एवं संवेदनशीलता पर आधारित थी जिसके आत्मबल पर उन्होंने भारत को अंग्रेज़ों से आजादी दिलाई थीं।
अतः यह बात प्रमाणित होती है कि अगर आदमी के अन्दर सत्य, अहिंसा, कर्तव्य परायणता, सहनशीलता एवं संवेदनशीलता उपस्थित हो तो वो अपने देश में सुधारवादी, अहिंसात्मक क्रान्ति ला सकता है।
बड़े खेद के साथ लिखना पड़ रहा है कि गाँधीजी के कत्ल के पाँच प्रयास पहले भी किये गए। तुषार गाँधी महात्मा गांधी के प्रपौत्र के अनुसार
एक 25 जून 1934 में पहली कोशिश
दो - सन 1944 में पंचगनी में
तीन - सन् 1944 में तीसरी कोशिश
चार - 29 जून 1946 को चौथी कोशिश
पाँचवी - कत्ल के 10 दिन पहले भी हमला हुआ 20 जनवरी 1948 को भी
और अन्त में 30 जनवरी 1948 को बिरला भवन पर (मन्दिर) पर नाथूराम गोडसे हत्यारे ने गाँधीजी के सीने में मारी तीन गोलियाँ गाँधीजी हे राम कहते हुए जमीन पर धड़ाम से गिर पड़े। इस प्रकार अहिंसा के पुजारी का एक चरम पन्थी द्वारा अन्त हुआ।
आजकल देश में दो तरह की विचार धारा चल रही है। एक चरमपन्थी और दूसरी अहिन्सावादी।
अतः अहिन्सक लोग चरम पन्थियों के खुल्लम खुल्ला रोज शिकार हो रहे हैं देश में जो गलत है। इस प्रवृति को तुरन्त रोकना होगा। गांधीजी को उनके जन्म दिन पर यह ही सच्ची श्रद्धा सुमन होगी।
बापूजी को 2 अक्टूबर 2023 को उनकी 154वीं जयन्ती पर हम सभी देशवासी उनके चरणों में श्रद्धा सुमन अर्पित करते हुए उनके संकल्पों का देश बनाने का प्रण लें और ऐसा भारत बनाये जहाँ सभी धर्मों का सम्मान करें। खुद जिये दूसरों को अपनी (उनकी) आस्था के मुताबिक जीने दें। अपनी बात कहने की आजादी दें। मतभेद हो सकते हैं किन्तु मनमेद नहीं हो।
02.10.2023
 
 
इतिहासविज्ञ एवं लेखक : वासुदेव मंगल
CAIIB (1975) - Retd. Banker
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