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‘‘ब्यावर’ इतिहास के झरोखे से.......

✍वासुदेव मंगल की कलम से.......
छायाकार - प्रवीण मंगल (मंगल फोटो स्टुडियो, ब्यावर)

 
संसद की विशेष सत्र दिनांक 18 सितम्बर से 22 सितम्बर 2023 को
सामयिक लेखः वासुदेव मंगल
संसद का विशेष सत्र अपरिहार्य कारण से बुलाया जाता है जब इसकी अचानक आवश्यकता सरकार को महसूस हो। भारत में कुल चार बार इस प्रकार के संसद के विशेष सत्र आहूत किये जा चुके है। पहली बार तो सन् 1949 में जब देश का नाम तय किया जाना था। 18 सितम्बर 1949 में गरमा गरम बहस के तहत बहुमत के जरिये देश को दो नामों से इण्डिया एवं भारत दोनों ही नामों से पुकारा जावेगा। तब से लेकर अब तक इण्डिया एवं भारत दोनों नामो से ही देश विश्व पटल पर जाना जाता रहा है। जो संविधान के अनुच्छेद एक से प्रदान किया गया है। विश्वभर में भारत को इण्डिया के नाम से ही जाना जाता है।
ऐसा अनुमान लगाया जा रहा है कि कुछ समय पूर्व विपक्षी दलों ने अपने मोर्चे का
नाम इंडिया (इण्डिया नेशनल डवलपमेन्ट इन्कूलूजिव एलायन्स) रखा तब से भाजपा एवं प्रधानमन्त्री मोदी इस इण्डिया नाम का ही मजाक बनाने में लगे है। शायद इसी का परिणाम है कि देश के नाम से भी इंडिया हटाने का प्रयास जारी है।
दूसरी बार देश की स्वतन्त्रता की रजत जयन्ती मनाने के लिये सन् 1972 में विशेष सत्र आहूत किया गया था। तीसरी बार सन् 1997 में स्वतन्त्रता की स्वर्ण जयन्ती मनाने जाने के लिये आहुत किया गया था। उसमें पोखरण परमाणु भी था का भूमिगत परीक्षण और चौथी बार एनडीए की भारतीय जनता पार्टी की घटक मोदी सरकार ने 1 जुलाई 2017 को जी एसटी एक देश में एक टेक्स का प्रस्ताव पास करवाने के लिये रात्री को ठीक 12 बजे विशेष सत्र आहुत किया था और पाँचवी बार जब 18 सितम्बर से 22 सितम्बर 2023 को पाँच दिन के लिये बिना एजेन्डा बताये विशेष सत्र आहुत किया गया है।
यहाँ पर यह स्पष्ट करना आवश्यक है कि इस सरकार ने नो साल के अपने कार्यकाल में देश के दो मुद्दे मँहगाई और रोजगारी पर कभी काम नहीं किया। काम किया तो योजना आयोग का नाम नीति आयोग बनाकर अपने मोर्चे की नीतिओं को लागू करने का किया जिनमें प्रमुख है 8 नवम्बर 2016 में नोट बन्दी और 1 जुलाई 2017 मे गुड्स एवं सर्विस के नाम से पूरे देश में एक टेक्स लागू किया जाना रहा है अब तक। परन्तु जो देश सबसे ज्यादा जनसंख्या वाला देश हो और विकासशील हो उस देश मे अचानक एकाएक डिजिटल मुद्रा का संचालन और वह मी अशिक्षा वाले देश में करना देश की जनता के लिये घातक सिद्ध हुआ है। देश में गरीबी, बेरोजगारी, मँहगाई, फिर अशिक्षा निाक्षरता, कुपोषण वाले अवयव मौजूद हो वहाँ पर नोट बन्दी और डिजिटल करेन्सी मे जैसे पेटीएम कठिनाई पैदा करने वाले ही साबित हुए है। इस देश में तो गरीबों का सम्मबल तो केश मुद्रा है। अतः डिजिटल करेन्सी तो विकसित देशो मे सम्भव है।
तो संविधान विशेषज्ञों का मानना है कि नाम परिवर्तन करने के लिए संविधान में संशोधन करना आवश्यक होगा न केवल, हिन्दी और अंग्रेजी दोनों में भारत नाम करने पर पता नहीं किन किन स्थानों पर परिवर्तन करना होगा? तब अब सुप्रीम कोर्ट ऑफ इण्डिया भी सुप्रीम कोर्ट ऑफ भारत कहलायेगा, इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलोजी और आई आई एम में से भी इंडियन शब्द को हटाना होगा। इंडियन आर्मी को भी क्या अंग्रेज़ी में भारतीय आर्मी ही कहा जायेगा। इसके बदलाव की प्रक्रिया में कितना धन और श्रम लगेगा इसका अनुमान लगाना भी कठिन है। जब सड़कों, शहरों और योजनाओं का नाम बदलने से काम नहीं चला तो अब देश का ही नाम बदला जा रहा है। वास्तव में भाजपा को लगता है कि केवल भारत ही नाम होना चाहिए तो फिर इस कदम को उठाने में उन्हें साढ़े नौ वर्ष क्यों लग गए? स्पष्ट है इसके पीछे कारण केवल विपक्षी गठबन्धन का नाम इंडिया रखना ही है। इतना सामान्य विवेक तो एक मतदाता में भी है कि भारत के प्रति अचानक सत्ताधारी दल में इतना प्रेम क्यों उमड़ा, इंडिया से इतनी नफरत क्यों होने लगी?
दूसरा सम्भावित विषय यूनिफॉर्म सिविल कोड का है। भाजपा को लगता है कि धार्मिक ध्रवीकरण के लिए इससे अच्छा हथियार और कोई नहीं हो सकता। यह जानते हुए भी कि यूनिफॉर्म सिविल कोड का कोई प्रारूप भी सरकार ने अभी तक देश के समक्ष प्रस्तुत नहीं किया है, कैसे इस पर किसी दल या किसी भी समुदाय की आपत्ति ली जा सकती है? इस विषय पर यदि कोई कानून संसद के द्वारा न भी बनाया जाय तब भी इस पर चर्चा प्रारम्भ करना और उसे बनाए रखना धार्मिक धुव्रीकरण के लिए एक अच्छा तरीका सत्ताधारी दल को लगता है।
तीसरा विषय जो संसद के विशेष सत्र में लाया जाना सम्भावित लगता है वह अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता को नियन्त्रित करने के लिए हो सकता है। माननीय सर्वाेच्च न्यायालय द्वारा हाल ही में जिस प्रकार के निर्णय दिए गए हैं, उससे सरकार आशंकित है। हाल ही में मणिपुर की घटनाओं पर रिपोर्ट करने वाले एडिटर्स गिल्ड के चार पत्रकारों एवं उसके अध्यक्ष पर असम सरकार द्वारा एफ आई आर दर्ज करने पर सर्वाेच्च न्यायालय द्वारा इस पर रोक लगा दी गई है। सरकार किसी भी असहमति और विरोध को सहन नहीं कर रही है। वर्तमान में कई ऐसे प्रकरण नए नए सामने आ रहे हैं जो सरकार को मुश्किल में डाल सकते हैं चाहे वे आडानी प्रकरण हो या कोई ओर। इसलिए सोशल मीडिया पर भी एक प्रकार से और उसकी अभिव्यक्ति को राष्ट्रद्रोह घोषित करते हुए, ऐसे लोगों के विरुद्ध कार्यवाही करके उनकी आवाज को बन्द करने का प्रयास कर सकती है। देखना होगा कि क्या वास्तव इस हेतु आईटी एक्ट और भारतीय दण्ड संहिता में किसी संशोधन का कोई विधेयक सरकार द्वारा लाया जायेगा? उल्लेखनीय है कि दोनों सदनों में भाजपा एवं सत्ता धारी एनडीए के पास पूर्ण बहुमत है। अतः किसी भी संशोधन को बनाने के लिए उनके पास पर्याप्त क्षमता है।
चौथा मुद्दा है, धार्मिक स्थलों के 1947 के स्वरूप को नहीं बदलने के सम्बन्धित कानून में संशोधन करना। अयोध्या प्रकरण के बाद तत्कालिन सरकार ने एक कानून 1993 में बनाया था जिसके अनुसार 15 अगस्त 1947 के समय धार्मिक स्थल का जो स्वरूप था, उसके बारे में कोई विवाद नया नहीं खड़ा किया जाएगा एवं उसके स्वरूप को नहीं बदला जाएगा।
भाजपा एवं संबंधित संगठनों द्वारा विभिन्न मन्दिर मस्जिद के विवादों को उठाने में कोई कानूनी अड़चन नहीं रहेगी और अनेक स्थानों पर मन्दिर-मस्जिद के विवाद के माध्यम से समाज का धू्रवीकरण कर आगामी चुनाव में बहु संख्यक सामाज के समर्थन के आधार पर जीत को सुनिश्चित करने का प्रयास किया जा सकेगा। क्या ऐसा होगा, यह विशेष सत्र में देखना होगा।
पांचवां विषय भारतीय न्यायिक प्रक्रिया के सम्बन्ध में संशोधित आईपीसी सीआरपीसी और एविडेन्स एक्ट को नए नाम और रूप में संसद से पारित कराना है। विधेयक संसद में रखा जा चुका है। सम्भव है विशेष सत्र में इसे कानून का रूप भी मिल जाए। इनके माध्यम से जहाँ न्यायिक प्रक्रिया को सरल और त्वरित बनाने की बात की गई वहीं कुछ आरोपों में गिरफ्तार लोगों को लम्बे समय तक जेलों में बिना जमानत के लम्बे समय तक रखे जाने का प्रावधान भी रखा गया है।
छठा विकल्प है, एक देश एक चुनाव की दिशा में कोई ठोस कदम आगे बढ़ाया जाये। इसका सबसे बड़ा लाभ सत्ताधारी दल को यह होगा कि राज्यों और संसद के चुनाव एक साथ होने पर इण्डिया गठबन्धन के दलों को आपसी मतभेद को भुनाना आसान होगा क्योंकि राज्यों में सबके अपने अपने विरोधाभासी हित है।
सातवीं सम्भावना यह है कि महिला आरक्षण बिल को नए रूप में संसद में प्रस्तुतकर इसे पास कराया जाए। महिला आरक्षण का मामला वैसे तो कई वर्षों से लम्बित है। इस बिल को लाकर महिला मतदाताओं का समर्थन करना सुनिश्चित किया जा सकता है।
आठवीं सम्भावना यह है कि माननीय सर्वाेच्च -न्यायालय में धारा 370 को हटाने से सम्बन्धित हुई सुनवाई को ध्यान में रखते हुए जम्मू कश्मीर को पूर्ण राज्य का दर्जा वापिस दे दिया जाए एवं वहाँ पर शीघ्र चुनाव कराने की दिशा में कदम उठाया जाए।
नवी सम्भावना यह है कि लोक सभा की सीटों का सीमांकन कार्य प्रारम्भ कर दिया जाए। तब तक के लिये लोकसभा के चुनाव स्थगित कर दिये जाए। नई संसद में लोकसभा की 745 सीटों की क्षमता रखी गई है। सत्ता धारी दल यह मानता है कि दक्षिण की बजाय उसके उत्तर भारत में अधिक सांसद चुनकर आयेंगें ऐसा सोच है कि सत्ता धारी दल को उत्तर भारत में ज्यादा समर्थन प्राप्त है।
एक सामान्य मतदाता तो यह अपेक्षा कर सकता है कि कोई इस प्रकार का निर्णय संसद में लिया जाए जिसका सकारात्मक प्रभाव उसके जीवन पर पडे और वह अधिक खुशहाल हो सके। यह एक कोतुहल का विषय है जिसे जन सामान्य मात्र सम्भावना ही व्यक्त कर सकता है। इससे अधिक आगे की सकारात्मक बात वह सोच ही नहीं सकता है क्योंकि सत्ताधारी दल ने अभी साढ़े नौ साल के दरम्यान में अभी तक तो जनसामान्य के हित का कोई काम किया नहीं है जिससे वह चुनाव के समय उसका हित साधक बन सके। यह तो भविष्य के गर्त में है। फिलहाल अभी तक नकारात्मक कार्य से तो सत्ताधारी दल का पुनः सत्ता में आना कठिन ही नहीं अपित असम्भव सा प्रतीत हो रहा है क्योंकि इसने आवाम का शोषण कर बहुत गलत किया है जिससे उसके प्रति नकारात्मक सोच पूरे देश में व्याप्त है और उसकी भावी जीत पर संशय बना हुआ है कि जो सरकार पूँजीपतियो की है वह गरीब को रोटी रोजी हर्गिज नहीं दे सकती। वह तो अपने लोगों का ही कल्याण करने वाली खुदगर्ज सरकार है जो जी 20 ग्रुप के सम्मेलन में दिल्ली के फुग्गी झोपड़ पट्टी वालो की बस्तियों को सफेद और हरे रंग के कपड़े से ढककर छिपाने का प्रयास किया गया जिससे विदेश के राष्ट्राध्यक्षों को हमारे देश के नागरिकों की गरीबी दिखाई ना दे। विदेशी मेहमानों, का लज्जीत पकवान और देश के गरीब रोटी भी नसीब न हो। वाह रे मेरे हिन्दुस्तान तेरी अजब है दास्ताँ क्या देश में ऐसा ही राजा हो जो देश की असलियत असली दास्तान को छुपाये वह काहे का राजा वह तो रंक से भी निम्न कोटि का है वह अपने देशवासियों में ही ऊँच नीच का भेद समझता है और गरीब का भगवान नहीं होता तो वह तो सामान्य नागरिक से भी कम स्तर का प्राणी या जीव है। देखते है यह विशेष सत्र देश में क्या गुल खिलाता है। इसका बेसब्री से इन्तजार है अवाम को ।
13.09.2023
 
इतिहासविज्ञ एवं लेखक : वासुदेव मंगल
CAIIB (1975) - Retd. Banker
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