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‘‘ब्यावर’ इतिहास के झरोखे से.......

✍वासुदेव मंगल की कलम से.......  ब्यावर सिटी (राज.)
छायाकार - प्रवीण मंगल (मंगल फोटो स्टुडियो, ब्यावर)


हिन्दू, मुसलमानों की एकता का प्रतीक एवं वंचित समाज के मसीहा
लोक देवता - रामसा पीर

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मेला 5 से 13 सितम्बर 2024 तक रूनिचा रामदेवरा में
धार्मिक लेख:- वासुदेव मंगल, ब्यावर
बाबा रामसापीर या फिर रामदेव जी का जन्म भादवा सुदी दूज विक्रम संवत् 1409 में अर्थात् ईसवी सन् 1466ई० में पश्चिमी राजस्थान के पोखरण के रुणिचा नामक स्थान के शासक अजमल के घर अवतार हुआ। रामापीर हिन्दू - मुसलमानों की एकता के प्रतीक थे। वे वंचित समाज के मसीहा थे। वे राव अजमलजी के कुँवर थे। बाबा रामदेव तँवर राजपूत थे जो उस समय के पाँच पीरों में प्रमुख थे। रामा पीर को भगवान विष्णु के अवतार के रूप में पूजा जाता है।
किंवदंती के अनुसार राजा अजमल ने पुत्र प्राप्ति के लिए यज्ञ द्वारा द्वारकाधीश को प्रसन्न किया तब भगवान विष्णु के उनको दिये गए वरदान स्वरूप राजा अजमल के घर बीरमदेव के बाद दूसरे बेटे के रूप में जन्म लिया। भगवान विष्णु ही रामदेव का स्वरूप है।
रामदेवजी के जन्म के समय रूणिचा गांव में जितने भी मन्दिर थे, उनकी घंटियाँ अपने आप उस रात अवतरित होने के समय बजने लगी, महल में जो पानी था वह दूध में बदल गया तथा मुख्य द्वार से जन्म स्थान तक कुमकुम के पगल्यै नजर आने लगे। आकाशवाणी रामदेव के नाम से होगी। रामदेवजी राजा बनकर नहीं वरन् जनसेवक बनकर गरीबों, दलितों असाध्य रोगों से पीड़ित रोगियों की व जरूरतमन्दों की हर प्रकार से सहायता की। रामदेवजी ने पोखरण के नरभक्षी राक्षस भैरव का गुरू बालीनाथजी की गुदड़ी की गुफा में घोड़े पर बैठकर वध किया।
रामदेवजी ने रानी नेतल को पर्चा दिया। सिरोही निवासी एक अन्धे साधु को एक पर्चा दिया। रामापीर का मेला हर साल बड़ी धूम धाम से, गाजे-बाजे के साथ 10 दिन तक भादवा शुक्ल दूज से ग्यारस तक मनाया जाता है। इस मेले मे जात्री राजस्थान से ही नहीं अपित गुजरात, महाराष्ट्र व मध्य प्रदेश राज्यों से भी हजारों श्रद्धालु भक्त, दूर-दूर से, नाचते गाते, झण्डों के साथ, बड़े बड़े समूहों में, भजन-कीर्तन करते हुए पैदल, बसों में, कारो में, बैलगाड़ियों, ट्रेक्टर या अन्य साधनों से आते है। मुसलमानों के मसीहा लोक देवता रामदेवजी रामदेव पीर - रामसापीर के नामों से जाने जाते हैं।
निसन्देह रामदेवजी का मन्दिर हिन्दू और मुसलमानों की आस्था का केन्द्र है। यह पर्व हिन्दुस्तान की गंगा-जमुना साझा संस्कृति की एक अद्भुत मिसाल है। यह स्थान साम्प्रदायिक सदभाव का चमत्कारी संगम स्थल है।
संवत् 1442 में अपने हाथ में श्रीफल लेकर अपने सारे बुजुर्गों को प्रणाम किया। सभी उपस्थित भक्तों ने पत्र-पुष्प चढ़ाकर रामदेवजी का श्रद्धा से अन्तिम पूजन किया। रामदेवजी ने समाधि में खड़े होकर सबको अन्तिम उपदेश देते हुए कहा प्रति माह शुक्ल पक्ष की दूज को पूजा-पाठ, भजन-कीर्तन करके पर्वाेत्सव मनाना रात्रि जागरण करना। प्रतिवर्ष मेरे जन्मोत्सव के उपलक्ष में तथा अर्न्तध्यान होने की समाधि के रूप में होने की स्मृति में, मेरे समाधि स्थल पर मेला लगेगा। मेरी समाधि पूजन में किसी से भेदभाव मत रखना। में सदैव अपने भक्तों के साथ रहूंगा। ऐसा कहकर रामदेवजी महाराज ने समाधि ले ली। वहीं रामदेव मन्दिर के समीप ही रामदेवजी स्वयं के द्वारा खुदवाई हुई परचा बावड़ी अपनी स्थापत्य कला में बेजोड़ है। इस बावड़ी का जल रामदेवजी के अभिषेक करने के काम में लाया जाता है।
रामदेवजी के वर्तमान का मन्दिर, निर्माण बीकानेर के महाराजा श्री गंगासिंहजी सन् 1939 में करवाया था। रामदेवरा मन्दिर अपने आप में अनोखा है क्यों कि यहां बाबा रामदेव की मूर्ति भी है और मजार भी। यहां मन्दिर में नारियल पूजन सामग्री और प्रशाद की भेंट चढ़ाई जाती है। मेले के दौरान बाबा के मन्दिर में दर्शन के लिए चार से पांच किलोमीटर लम्बी कतारें लगती है। श्रद्धालु भक्त मन्नतें मांगते है। निसन्तान दम्पत्ति कामना से अनेक अनुष्ठान करते है। मनोती पूरी होने वाले अपने बच्चों का जडु़ला उतारते है और सवामणी करते है। रोगी रोगमुक्त होने की कामना करते है तो दुखी आत्माएँ सुख प्राप्ति की कामना करते हैं।
इस वर्ष यह मेला 5 सितम्बर से 13 सितम्बर सन् 2024 तक अर्थात् दूज से भाद्रपद शुक्ल की ग्यारस तक मनाया जा रहा है।
ब्यावर के पास बिराठिया-खुर्द में यह मेला हर वर्ष रामदेवजी महाराज की जोत के प्रतीक के रूप में हर वर्ष बड़ी धूमधाम से बड़ी उमंग के साथ मनाया जाता है। बिराठिया खुर्द बर से जोधपुर मार्ग पर आगे चलकर थोड़ी दूर पर ही स्थित है जहां पर मुख्य मार्ग के किनारे उत्तरी मैदान के विशाल रामदेवरा मन्दिर मे भरता है जहां लाखों मैलार्थी सिरकत करते है। बड़े बड़े आकर्षक झूले लगते है। अनेक प्रकार की दुकानें लगती है। आकर्षक रोशनी से मेला स्थल रोशन रहता है। चूंकि यह स्थान अब व्यावर जिले के अन्तर्गत है। अतः इस मेले का सीधा जुड़ाव प्रसिद्ध तेजा मेले से है जहां दिनांक 12 से 14 सितम्बर तक मेला भरा जा रहा है लेखक की दोनों मेलों के सभी जातरु को बहुत-बहुत शुभकामना।
08-09-2024
 
 
इतिहासविज्ञ एवं लेखक : वासुदेव मंगल
CAIIB (1975) - Retd. Banker
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