छायांकार : प्रवीण मंगल ब्यावर
‘‘ब्यावर’’ इतिहास के झरोखे से.......
✍वासुदेव मंगल की कलम से....
10 जुलाई 2022 को, 186 साल पहीले, राजपूताना गजट में, ब्यावर बसाने का फरमान
जारी किया गया।
प्रस्तुतकर्ता - वासुदेव मंगल
यह एक इत्तेफाक है कि मारवाड़, मेवाड और ढूढांर राजपूताना की देशी रियासतों के
व्यापारिक मार्गों के केन्द्रिय भूभाग पर एक सुन्दर नया शहर बसाने की कल्पना को
साकार रूप देने के लिये डिक्सन ने आज के ठीक 186 साल पहीले आज ही के दिन 10
जुलाई सन् 1835 ईसवी को राजपूताना के गजट में एक फरमान जारी किया था। उसका सुखद
परिणाम यह हुआ कि इस नैसर्गिक और सामरिक भूभाग पर जो चारों ओर से नो घाटी (दर्रों)
से छोटी छोटी पहाड़ियों से आच्छादित कांकंड़ के बीच में स्थित है पर अजमेर से 54
मील दक्षिण में मिनियेचर जयपुर की शक्ल पर विवेयर एक सुन्दर आर्कियोलोजी कल
क्रॉनीकल, कॉस्मोपोलिटीकल कल्चर पर शहर की संरचना की।
ब्यावर के चांग गेट की जमीन और अजमेर के तारागढ़ की चोटी की जमीन समान रूप से
समतल है अर्थात् ब्यावर अजमेर के भूभाग से इतनी ऊँचाई के भूभाग पर बसा हुआ है।
दूसरा जिस प्रकार जयपुर सात घोड़ो से जुते हुए रथ और इसके सारथी की आकृति पर
अर्थात् गंगा, सुरज, घाट, सांगानेरी, नई, अजमेरी, और चांद सात पोल के साथ साथ
रथ में सरथी के रूप में त्रिपोल के रूप में बसाया गया है। ठीक इसी प्रकार
ब्यावर शहर को भी कर्नल डिक्सन ने क्रॉस की आकृति की तर्ज पर अंकुरित किया है।
क्रॉस की चार पट्टी के छोरों पर चार दरवाजे।
बता दें कि पहाड़ी जाति को रोजगार सुलभ कराकर डिक्सन ने इस कौम को समाज की मुख्य
धारा से जोड़ा अर्थात् चारों ओर के पर्वतीय प्रकोष्ठ के पृष्ठ भाग को चरागाह
जिन्स ऊन गैर कृषि ऊपज कपास को ब्यावर की राष्ट्रीय स्तर की व्यापारिक मण्डी
में लाकर बेचने की समुचित व्यवस्था कर ट्राईवाल जन जाति के लोगों के जीवनस्तर
को ऊँचा उठाया।
इसके लिये आज के दिन के इसी फरमान के फलस्वरूप यहाँ पर बाहर से आकर बसे एक हजार
नो सो पचपन परिवार के भिन्न भिन्न प्रकार की जाति, सम्प्रदाय, भाषा और ईलाकों (क्षेत्र)
के लोगों के लिये ब्यावर जैसे भाग्यशाली जमीन पर क्रॉस की आकृति पर किलेबन्दी
कर के डिक्सन ने लोकतान्त्रिक, समाजवाद, धर्म निरपेक्ष पद्धति के सिस्टम पर उनको
सभी प्रकार से जान माल और ब्यावर की निशुल्क सहुलियत देते हुए बसाया।
इसका शुभ परिणाम यह हुआ कि दिसावर से आकर यहां पर बसने वाले लोग खुशहाल जीवन के
साथ अपने आपको भाग्यशाली समझने लगे। अतः ब्यावर के लोगों के लिये 10 जुलाई का
दिन बहुत शुभ दिन है।
देखते देखते बावन बही बसनो के साथ साथ हुण्डी बिल्टी का व्यापार भी फलने फूलने
लगा। और ब्यावर राजपूताना में ही नहीं अपित् भारतवर्ष में सेठाणा शहर कहलाया
जाने लगा। लोग दिन प्रतिदिन कमाने के लिये दिसावर से यहां आने लगे।
आज यह शहर छोटे पौधे से वटवृक्ष का रूप ले चुका है 186 साल में। भारत की आजादी
के पहीले यह शहर सिर्फ चार दिवारी में ही बसा हुआ था। परन्तु आज यह दस मील के
रेडियस में करीब साढे़ तीन लाख जनसंख्या के साथ फैल चुका है।
आज का शासन अगर पिचेतर साल के अमृत महोत्सव की ब्यावर के विकास के सन्दर्भ में
बात करता है तो सरकार को शोभा नहीं देता है। आजादी के पहले का एक सो ग्यारह साल
का काल ब्यावर का स्वर्णिम काल था।
परन्तु आजादी से लेकर आज तक के पिच्चेत्तर साल का काल ब्यावर की जनता के लिये
विष महोत्सव काल कहलायेगा क्योंकि आजादी के पहीले के व्यापार, उद्योग, शिक्षा,
चिकित्सा, सामाजिक व्यवस्था, राजनैतिक व्यवस्था, संस्कृति सभी क्षेत्रों में
विघटन हुआ है पराभव हुआ है। सब कुछ समाप्त कर दिया गया।
केन्द्र सरकार और राज्य सरकार दोनों को ब्यावर की दुर्दशा के बारे में सोचना
चाहिये। यह दुर्दशा इन दोनों सरकारों के कारण ही हुई है जबकि ब्यावर उपखण्ड
2500 करोड़ रूपयों का राजस्व दोनों सरकारों को प्रतिवर्ष देता आ रहा है। दोनों
ही सरकारें ब्यावर के विकास के लिये उदासीन है।
आज के स्तम्भ मंे ब्यावर को बसाने के लिये तीन मुख्य बिन्दु पर फोकस किया जा रहा
है।
पहीला ब्यावर के पास बलाड़ विलेज सातवीं सदी में एक हजार चार सो साल पहीले एक
लाख की उन्नत आबादी वाला बड़ायली नगर के नाम से विख्यात था। कुदरत का कोई ऐसा
जलजला आया जिससे सारा शहर जंमींदोज हो गया। उसकी जगह पहाड़ और जंगल ने जगह ले
ली। आज उसकी सुनहरी मिट्टी जंगरोधक हैं। यह एक ऐतिहासिक घटना है जो शायद ही किसी
को मालुम होगी। आदीनाथ भगवान की मुर्ति इस बात का प्रत्यक्ष उदाहरण है जो उस
जगह जमीन की खुदाई में मिली थी।
दूसरा ब्यावर के चांगगेट की जमीन ईतनी ऊँचाई पर स्थित है कि अजमेर के तारागढ़
पर्वत की चोटी और ब्यावर के चांगगेट की जमीन समान है अर्थात् अजमेर तारागढ़ पहाड़
की तलहटी में बसा हुआ है जो ब्यावर की वनिस्पत नाडी में बसा हुआ शहर है। अतः
ऊँचाई पर बसे होने के कारण ब्यावर के निवासी कुशाग्रबुद्धि वाले है जिस प्रकार
शरीर में मस्तिस्क सिर में स्थित होता है।
तीसरी बात ब्यावर की बसावट के बारे में है कि ब्यावर मिनियेचर जयपुर की तर्ज पर
बसाया गया सुन्दर शहर है। फर्क सिर्फ इतना सा है कि जयपुर को महाराजा जयसिंह
द्वितीय ने सात घोड़़़़ों से जुते हुए रथ की आकृति पर बसाया है। जिसमें सारथी के
रूप में त्रिपोलिया दरवाजा है और गंगा, सुरज, घाट, सांगानेरी, नया, अजमेरी और
चांदपोल सात दरवाजे घोड़ों की प्रतिकृति है। इसी प्रकार क्रॉस की आकृति पर बसाया
गया शहर है। क्रॉस की चार पट्टी के अनुरूप ब्यावर शहर की बसावट की गई है इसके
संस्थापक डिक्सन के द्वारा।
अतः आज का डिस्पेच मात्र जन साधारण की जानकारी हेतु लिखा गया है। आज ब्यावर को
जिला बनाये जाने की सख्त आवश्यकता ही नहीं अपित् समय की पुकार भी है। तो है ना
ब्यावर की अद्भुत जानकारी। इसके अतिरिक्त ब्यावर की जमीन क्रान्तिकारी सरजमीं
है जहां पर अनेकानेक क्रान्तिकारियों ने ब्यावर की सरजमीं पर भारत की जंगें
आजादी का प्रशिक्षण, संरक्षण व अधीक्षण प्राप्त कर भारत की चंहु दिशा में
क्रान्तिकारी गतिविधियों को अन्जाम दिया है।
अतः ब्यावर को सरकार द्वारा क्रान्तिकारी तिर्थ स्थली के साथ साथ पर्यटन स्थल व
सिरेमिक हब व ग्रेनाईट की मण्डी बनाया जाना चाहिये तब ही वास्तव में ब्यावर को
जिला बनाये जाने के साथ साथ अतीत को गौरव प्राप्त हो सकेगा।
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