‘‘ब्यावर’ इतिहास के झरोखे
से.......
✍वासुदेव मंगल की कलम से.......
छायाकार - प्रवीण मंगल (मंगल फोटो स्टुडियो, ब्यावर)
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सुभाषचन्द्र
बोस?
लेखकः वासुदेव मंगल, ब्यावर
सुभाषचन्द्र बोस तो टोक्यों से पूर्वी एशिया के मन्चूरिया प्रान्त के
डिरेन शहर अज्ञातवास में चले गए थे। वहां पर जापान की सरकार का प्लेन
सकुशल छोड़कर वापिस टोक्यो आ गया था। जहाँ तक आज दिनांक 18 अगस्त सन्
1945 को सुभाषचन्द्र बोस की ताईवान में प्लेन क्रेश में मृत्यु हुई यह
समाचार स्वयं सुभाष बाबू ने दुनिया को उनकी काल्पनिक मृत्यु का दिया था
ताकि दुश्मन उनका पीछा करने से रूक सके।
सुभाष बाबू के गुमनाम होने की खबर एकदम गुप्त रक्खी गई थी ताकि दुश्मन
देश उनका पीछा ने कर सके। अतः जो अस्थिकलश जापान के एक मन्दिर में रक्खा
होने की खबर भी उन्होंने अपने मित्र द्वारा ही काल्पनिक फैलाई थी ताकि
दुनियां को उनकी मृत्यु पर यकीन हो सके। अतः इस बात के स्पष्ट प्रमाण
लेखक के पास एक पुस्तक में है कि सुभाष बाबू टोक्यों जापान से सकुशल
अज्ञातवास पहूँच गए थे। दुनियां को हकीकत से गुमराह करने के लिये ताकि
वह सुरक्षित रहे सके।
अतः 18 अगस्त 1945 की तारीख उनकी अकाल मत्यु पर यकीन नहीं किया जा सकता
उनके प्लेन के साथ जो दूसरा प्लेन था वह क्रेश हुआ था। इस बात की पुष्टि
उस समय ताईवान सरकार ने भी की।
यह शोध का विषय है। लेखक ने अपनी ब्यावरहिस्ट्री डॉट काम वेबसाईट में
उनके अवसान दिनांक पर प्रश्न सूचक निशान लगा रक्खा हैं इसलिये कि आज भी
उनकी गुमशुदगी रहस्य ही बनी हुई है। उनको सबसे ज्यादा डर था तो वह यह
था कि अगर में पकड़ा गया तो ब्रिटिश सरकार अपनी वावाई करेगी। इसलिये
उन्होंने इस वाक्या को रहस्य ही रहने दिया।
इसलिये लेखक आज की उनकी पुण्य तिथी पर मौन हैं सुभाष बाबू के प्रति आज
भी लेखक के दिल में सम्मान हैं
यह दिनांक काल्पनिक है जिस पर रिसर्च किया जा सकता है। यह एक बहुत बड़ा
रहस्य है जिस पर उनके परिजन भी अचम्भि है। भारत सरकार ने तो इस रहस्य
की मालूमात करने की जरूरत ही नहीं समझा और न ही आज भी वे कैसे
अर्न्तध्यान हुए एक रहस्य ही बना हुआ है खाली अनुमान ही लगाया जा रहा
है जिसे ही सच मना जा रहा हैं।
अतः इस विषय में लेखक अपने विचारों से आश्वस्त हैं लेखक इस मामले में
क्षमा चाहेंगे क्योंकि उस समय का माहौल ही कुछ ऐसा था जिससे सुभाष बाबू
को ऐसी घटना तिरोहित करनी पड़ी।
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