23 जनवरी
2023 को नेताजी सुभाष चन्द्र बोस
के 127 वें जन्म दिन व 126वीं साल गिरह पर विशेष
लेखक: वासुदेव मंगल
सुभाष बाबू को ब्यावर से विशेष लगाव था। सुभाष बाबू 14 भाई बहिन थे। आठ भाई और
छः बहिन। सुभाष उनमें से नवें स्थान पर थे।
प्रारम्भिक जीवनः- सुभाष बाबू भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम के एक प्रख्यात नेता
थे। सुभाष का जन्म 23 जनवरी सन् 1897 में उड़ीसा के कटक शहर में हुआ था। उनके
पिता जानकीनाथ बोस प्रख्यात वकील थे। उनकी माता प्रभावती देवी सती और धार्मिक
महिला थी। सुभाष बचपन से ही पढ़ने में होनहार थे। उन्होने दसवीं व स्नातक की
परीक्षा प्रथम स्थान व भारतीय प्रशासनिक सेवा परीक्षा चैथे स्थान से उत्तीर्ण
की।
जालियावाला बाग के नरसंहार के कारण 1921 मे प्रशासनिक सेवा से स्तीफा दे दिया।
भारत वापिस आने पर सुभाष गांधीजी के सम्पर्क मे आये और भारतीय राष्ट्रीय
कांग्रेस में शामिल हो गए।
उपलब्धि:-
1. तुम मुझे खून दो मैं तुम्हें आजादी दूंगा और जय हिन्द जैसे प्रसिद्ध नारे
दिये।
2. 1938 और 1939 में कांगे्रस के अध्यक्ष चुने गए।
3. 1939 में फारवर्ड ब्लोक का गठन किया।
4. अंगे्रजों को देश से निकालने के लिये आजाद हिन्द फौज की स्थापना की।
यहाँ पर लेखक नेताजी के जीवन के दो रोचक संस्मरण उद्धत कर रहे है जो शायद दुनिया
उनसे अन्जान होगी।
पहीला संस्मरण:- बाबा नरसिंगदास ग्रेट पे्रट्रियट ब्यावर का नेताजी सुभाष
चन्द्र बोस के साथ सम्बन्ध बडे़ भाई और छोटे भाई जैसा था। सुभाषचन्द्र बोस ने
1941 में जब गुप्त रूप से जियाउद्दीन के छद्म नाम से भारत से जापान के लिये
प्रस्थान किया तो उनको विदा देने वालों में बाबा नरसिंगदास भी थे। इस कार्य को
अन्जाम देने के लिये सुभाष बाबू ने मन्त्रणा के लिये बाबाजी नरसिंगदासजी को
कलकत्ता बुला लिया था।
दूसरा संस्मरण:- 18 अगस्त 1945 को विमान दुर्घटना में नेताजी का निधन तो बनी
बनाई कपोल कल्पित समाचार थे।
आजाद हिन्द सैना विषम परिस्थिति में पहुँच चुकी थी जब हबीबुर्ररहमान को नेताजी
ने अपने पास बुलाकर और विमान दुर्घटना का नया रहस्यमय वातावरण बनाकर जनता को
भुलावे में रखने को कहा था क्योंकि उस समय दुश्मन उनका बराबर पीछा किये जा रहा
था। तब हबीबुर्रहमान ने ऐसी विमान दुर्घटना का वातावरण बनाकर जनता में उल्लेख
करके बताया था कि 17 अगस्त को 1945 को नेताजी रंगून से विमान द्वारा सैगाँव
पहूंचे थे। जब मैं और नेताजी रंगून से विमान द्वारा 18 अगस्त 1945 को सैगांव से
फारमूसा होते हुए जापान की राजधानी टोकियो जा रहे थे। अकस्मात् रास्ते में लगभग
300 फीट की ऊँचाई पर हमारा विमान एक गिद्ध से टकरा गया तब विमान में आग लग गई।
नेताजी का सिर और कपडे़ जलने लगे। मैंने उनके कपडे़ अपने हाथों से बुझाकर उतारे
जिससे मेरे भी हाथ झुलस गए थे। जब मैं नेताजी को ताहोकू अस्पताल ले गया था। वहां
पर छः घण्टे जिन्दा रहने के बाद उनकी मृत्यु हो गई तब मैंने वहीं पर उनका दाह
संस्कार करके उनकी अस्थ्यिों को वहां से बटोर कर मिट्टी के एक गोल बर्तन में
डालकर टोकियो के रनकोजी के मन्दिर में पुजारी को ले जाकर दे दी थी। इस प्रकार
23 अगस्त को हबीबुर्रहमान ने जापानी डोमी समाचार एजेन्सी द्वारा इस ताज्जुब
अंगे्रज दुर्घटना की खबर दुनियां में फैला दी थी। जबकि हमारे साथ में आठ हवाई
जाहाज सिंगापुर से टोकियो जा रहे थे। उनमें से उपरोक्त एक विमान में आग लगने की
दुर्घटना हो गई थी जिसकी टोकियो रेडियो ने भी घोषणा की थी। उनमें 18 अगस्त को
दुर्घटना वाले विमान में हमारे प्रिय नेताजी के घायल होने की व उसी रात को
संसार से चल बसने का उल्लेख किया था।
नेताजी टोकियो से डिरेन नगर गये:-
16 अगस्त 1945 को जापान ने हथियार डाल दिये थे। इससे पहीले ही जापान सरकार ने
नेताजी से उनके भावी कार्यक्रम के बारे में पूछा था। अभी आप जहाँ पर भी जाना
चाहोगे हम आपको वहीं पर पहुँचाने को तैयार हैं इससे उनका मुख्य लक्ष्य नेताजी
को सुरक्षित स्थान पर पहुँचाने का था जब नेताजी के आदेशानुसार जापान के फौजी
कमाण्डर जनरल इसौदा ने अपने दो इन्जिनों वाले बम वर्षक विमान में दो सीटें उनकी
तैयार करली थी और लेफ्टीनेन्ट जनरल शेदी जो जापान की तरफ से बर्मा वाली सैना
में चीफ थे और रूसी भाषा को भली प्रकार जानते थे और जिन्हे रूस की सीमा की भी
पूरी जानकारी थी उसको नेताजी के साथ में जाने की जापान सरकार ने अनुमति दे दी
थी। योजना यह थी कि पहिले विमान मनचुरिया के डिरेना नगर में नेताजी और शेदी को
उतार आने और वहां शेदी उनको रूसी सीमा पर पहूँचा दे। उपस्थित सज्जनों को नेताजी
ने अपनी शुभेच्छओं का सन्देश देकर सबसे जय हिन्द करके हाथ मिलाकर कहा था कि मैं
आप लोगों से फिर मौका मिलने पर मिलूगां। ठीक 5 बजे विमान चल दिया था, जाते वक्त
विमान के चालक को जापान सरकार ने आदेश दिया था कि इन लोगों को डिरेना नगर उतार
कर विमान सीधा टोकियो आयेगा।
उपरोक्त वर्णित रोचक प्रसंग से यह तो सत्य है कि नेताजी का अवसान 18 अगस्त 1945
को नहीं हुआ था जैसा कि उपरोक्त उदाहरण से स्पष्ट है।
अतः नेताजी की जयन्ती उमंग और उल्हास के साथ मनाई जानी चाहिये। नेताजी की मृत्यु
की अफवाह तो नेताजी ने स्वयं ने अपने साथ सेनापति से अपनी सुरक्षा के लिये
उडवाई थी कि नेताजी की विमान दुर्घटना में मृत्यु हो गई।
लेकिन नेताजी ने ऐसी विषम अपरिहार्य परिस्थिति में अपनी सूझबूज से अपने जीवन की
रक्षा करते हुए जापान सरकार के सक्रिय सहयोग से तुरन्त राजी खुशी अपने गुमनाम
गन्तव्य स्थान पर पहुँच गए।
नेताजी की विमान दुर्घटना का रहस्य आज भी बना हुआ है जो एक अनुसन्धान का विषय
है। अतः इसका शोध किया जाना चाहिये।
नेताजी की 127वीं जयन्ती पर
www.beawarhistory.com व
मंगल परिवार की ढे़र सारी शुभकामनाएँ।
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