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‘‘ब्यावर’ इतिहास के झरोखे से.......

✍वासुदेव मंगल की कलम से.......
छायाकार - प्रवीण मंगल (मंगल फोटो स्टुडियो, ब्यावर)

 

8 जून 2023 को विश्‍व महासागर दिवस पर विशेष
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सामयिक लेख - वासुदेव मंगल

पृथ्वी पर जीवन का मुलभूत आधार है महासागर
समुंदर की सीमओं का भी हो रहा अब उल्लंघन
पृथ्वी की सतह का 70 प्रतिशत हिस्सा महासागरों से आच्छादित है। महासागर जीवन का मूलभूत आधार है। ये हमारी आवश्यकता की आधी आक्सीजन उत्पन्न करते है और कुल उत्सर्जित कार्बनडाई ऑक्साइड का एक चौथाई हिस्सा अवशोषित कर लेते है। इसके साथ साथ इस उत्सर्जन के साथ पैदा होने वाली 90 प्रतिशत गर्मी का अंश भी अवशोषित कर लेते है।
इसके चलते महासागर दुनियां के सबसे बडे़ कार्बन सिंक बन गए है।
महासागर एक प्रकार से इस पृथ्वी ग्रह के एयर कंडीशनर है जो अतिरिक्त गर्मी को सोख लेते हैं।
ये हमारे जलवायु और मौसम का नियमन करते है।
ये जैव विविधता के सबसे बडे़ भण्डार है।
इसके संसाधन विश्व भर में समुदाय, समृद्वि एवं मानव स्वास्थ्य को बनाये रखते है। महासागर विविध प्रकार के प्राकृतिक आवास, प्रजातियों, पारिस्थितिकीय सेवाओं में सहायक है जिन पर मानवता निर्भर है।
दुनियां भर के तीन अरब लोग आजीविका के लिए सागरों और महासागरों पर ही निर्भर है।
करीब 20 करोड़ लोगों को समुद्र से प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रोजगार मिला हुआ है। प्राचीनकाल से ही 90 प्रतिशत वैश्विक व्यापार समुद्री मार्गों से ही हो रहा है। परन्तु मानव समुद्र का सबसे बड़ा दुश्मन हैं एक तिहाई से अधिक मछलियों की पैदावार अरक्ष्णिय स्तर पर हो रही है।
हम समुद्र के तटिय जल को रसायनों, प्लास्टिक व मानव अपशिष्ट से प्रदूषित कर रहे है।
2010 में 50 लाख वर्ग किलोमीटर में समुद्रतल में मिले हुए कचरे के भण्डार को हिन्द महासागर कचरा भण्डार कहते हैं। यह कचरा प्लास्टिक का कचरा है जो मोजाम्बिक चैनल से होते हुए आस्ट्रेलिया लौट जाता है।
महासागरों का सबसे बड़ा नुकसान मानव गतिविधियों के चलते हो हरा कार्बन उत्सर्जन, ओशन वार्मिंग, अम्लीकरण और आक्सीजन के घटने की वजह है। मछलियों की 90 प्रतिशत आबादी घट गई है। आधी मूंगें की चट्टानें नष्ट हो गई हे। ओशन वार्मिंग के चलते तूफानों में तेजी आ सकती है, धू्रवीय बर्फ पिघल सकती है। बर्फ के पिघलने से समुद्र का जल स्तर बढ़ जाता है। समुद्री गर्म लहरों से समुद्री वनस्पति व जीव जन्तुओं पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
समुद्री जल उच्च तापमान पर अधिक जगह घेरता है। समुद्र का जल स्तर बढ़ जाता है और धु्रवीय बर्फ पिघलने लगती है।
8 जून को मनाये जाने वाले विश्व महासागर दिवस इस वर्ष हाल ही में हुए दो सफल समुद्र संरक्षण समझौते के प्रकाश में मनाया जा रहा है।
ये दो समझौते है : पहला - अन्तर्राष्ट्रीय जल में दुनियां की जैव विविधता का रक्षा के लिए एक उच्च समुद्र सन्धि समझौता और दूसरा - है नेताओं द्वारा सन् 2030 तक हमारी भूमि, जल और महासागरों के 30 फीसदी के संरक्षण के लिए प्रतिबद्धता।
यहां पर 30-30 सन्धि का लक्ष्य उच्च स्तरीय सुरक्षित नेटवर्क के जरिये 2030 तक कम से कम एक तिहाई समुद्र की रक्षा करना है, वहीं उच्च सन्धि जो कि राष्ट्रीय न्यायाधिकरण क्षेत्र से आगे जैव विविधता सन्धि (वी वी एन जे) है। यह सन्धि अन्तर्राष्ट्रीय फ्रेमवर्क प्रदान करती है। इस सन्धि फ्रेम वर्क के तहत् बडे़ समुद्री क्षेत्रों से सम्बद्ध मानव गतिविधियां संचालित होती है। इस फ्रेमवर्क में समुद्री संरक्षित क्षेत्र बनाना और समुद्री आनुवांशिक संसाधनों तक पहुँच व लाभ में साझेदारी भी है।
चूँकि समुद्र का दो तिहाई हिस्सा किसी भी राज्य के राष्ट्रीय न्यायाधिकरण क्षेत्र में नहीं आता, इसलिए ऐसी नीति बनाना मुश्किल हो गया है जो समुद्री जल का संरक्षण और प्रबन्धन इस प्रकार करे कि इसका लाभ सभी को मिले।
इन समस्याओं को ध्यान में रखते हुए विश्व मंच पर इसका सकारात्मक हल निकालना ही 8 जून को विश्व महासागरीय दिवस मनाये जाने की थीम है जिसमें सार्थक हल निकाला जायेगा।
अगर ऐसा हो जाता है अर्थात् इस मंच पर यह सामूहिक वार्ता सफल हो जाती है तो विश्व के लिये एक बहुत बड़ी सफल उपलब्धि भविष्य में साबित होगी जिसमें महासागरों की धरोहर का विश्व के सभी देश मिलकर उपभोग और उपयोग कर सकंगें।
अतः 8 जून की समन्दर की सीमओं के समझौते के लिये की सफलता की आशा, उम्मीदों और कामनाओं के साथ लेखक।
इतिहासविज्ञ एवं लेखक : वासुदेव मंगल
CAIIB (1975) - Retd. Banker
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