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‘‘ब्यावर’ इतिहास के झरोखे से.......

✍वासुदेव मंगल की कलम से.......  ब्यावर सिटी (राज.)
छायाकार - प्रवीण मंगल (मंगल फोटो स्टुडियो, ब्यावर)

 
दिनांक 12 अगस्त 2024 को अन्तर्राष्ट्रीय युवा दिवस
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सामयिक लेख: वासुदेव मंगल, ब्यावर सिटी
यह तो सच है कि रोजगारपरक शिक्षा से ही सशक्त होगा युवा युवाओं को संगठित करने सामाजिक उन्नति से आर्थिक प्रगति और सतत में उनके योगदान को पहचानने से जुड़ा है यह दिवस।
यह अटल सत्य है कि किसी देश विशेष के लिए उसकी युवा जनशक्ति किसी एसेट (सम्पत्ति) से कम नहीं है। यह इसलिए है कि प्रत्येक देश विशेष को विकास की ओर ले जाने वाले उस देश के युवा ही है। यह युवा उस देश विशेष के संसाधनों के बैतौर काम करते है उस देश विशेष के लिए। यह युवा वर्ग देश के प्रत्येक सेक्टर के लिए जरूरी है।
अतः इन युवाओं को सेलीब्रेट करने के लिए दुनियाँ यह दिन मनाती है। इस साल यह अन्तरराष्ट्रीय युवा दिवस 12 अगस्त 2024 को मनाया जा रहा है, जिसकी थीम है, क्लिक्स से प्रगति तक मतलब सतत विकास के लिए युवा डिजिटल रास्ते। युवा राष्ट्र की शक्ति होते हैं। युवा देश के विकास का आधार होते है।
जहाँ एक भारत देश का सवाल है विश्व जनशक्ति का पहला देश है जिसकी 140 करोड़ जनशक्ति का पैंसठ प्रतिशत यानि 91 (इकरानवें) करोड़ युवाशक्ति है भारत देश की। तो प्रश्न यह उठता है सरकार इनमें से कितने युवाशक्ति को आज रोजगार देने में सक्षम है। यह बहुत बड़ा महत्वपूर्ण यश प्रश्न है भारत देश की वर्तमान केन्द्र सरकार और साथ ही राज्यों की संघीय सरकारों के सामने।
यदि विवेचना की जावे तो आज की उच्चतम शिक्षा प्राप्त ये युवा जमात प्रत्येक सेक्टर हताश व निराश है रोजगार के अभाव में। परिणाम यह हो रहा है कि हमारे देश का युवा वर्ग रोजगार के लिए विदेशों का रुख कर रहे हैं। तैयार तो उनको भारत देश कर रहा है उच्च शिक्षा प्रदान करने में, परन्तु उनको देश में रोजगार नहीं मिलने के कारण विदेश का रुख करना पड़ता है यह देश का दुर्भाग्य नहीं तो क्या है?
इस यक्ष प्रश्न का सीधा जबाब है कि आज की शिक्षा वोकेशनल होनी चाहिए इसका सीधा सा ब्यावर का उदाहरण सटीक है। लेखक को अच्छी तरह याद है कि सन् 1956 में ब्यावर को स्थानीय पटेल स्कूल पटेल हायर सेकेण्डरी मल्टीपरपज् स्कूल के नाम से चलाया जाता रहा जहाँ पर काश्तकला की व लौह धातु से तैय्यार की जाने अनेक प्रकार के औजार बनाये जाने वाले कला की व इलेक्ट्रिक उपकरण तैय्यार करने की शिक्षा दी जाती रही। जिससे हजारों हजार विद्यार्थी इस रचनात्मक शिक्षा के ज्ञान से परिपूर्ण होकर अपने स्वयं के उद्यम से स्वयं का रोजगार कर लाभान्वित हुए।
तो आवश्यकता है रोजगारपरक शिक्षा प्रदान करने की ताकि शिक्षा पूरी कर विद्यार्थी अपने स्वयं का रोजगार कर सके।
लेखक का सुझाव है कि भारत देश को प्रकृति ने सभी प्रकार की अकूल सम्पत्ति से परिपूर्ण कर रक्खा है। उदाहरण के लिये अनेक प्रकार की वन सम्पत्ति खनिज सम्पदा समुद्र सम्पदा प्रचुर मात्रा में दी है। आवश्यकता इन सम्पदाओं से कच्चे माल की प्राप्ती के लिये वैज्ञानिक तरीकों से दोहन करने की। यदि सरकार उत्पादन के लिये इस कच्चे माल से उत्पाद बनाने के लिये पावर यानि विद्युत उपलब्ध करवाकर अनेक प्रकार के उत्पाद निर्मित किये जाकर निर्मित मार्केट तैय्यार हो सकते हैै।
उत्पादन तैय्यार है तो इसे विकबाने के प्रबन्ध के लिये सरकार द्वारा सबसिडी दी जानी चाहिये। तो देखते है भारत का पढ़ा लिखा युवा वर्ग धनाढ्य होता है कि नहीं। प्रयास तो सरकार को ईमानदारी से करना होगा तब ही देश की माली आर्थिक स्थिति रोजगार की सुधर सकेंगी यद्यपि कदापि नहीं।
अगर ऐसा नहीं किया जाता है तो देश का युवा उद्दत रहेगा तो न केवल भारत राष्ट्र की अक्षमता प्रदर्शित होती रहेगी जो अपने नोजवानों को पर्याप्त साधन नहीं दे सकता, बल्कि देश के विकास का सशक्त आधार भी समाप्त हो जाता है।
वर्तमान से युवा वर्ग मानव सभ्यता के ऐसे मुकाम पर खड़ा है, जब मानव विकास गति का रथ जेट विमान की गति से भाग रहा है तो युवा वर्ग को भी जेट विमान की गति को समझकर इतना क्षमतावान बन जाये की वे भी उस गति से अपने केरियर की आगे से आगे बढ़ा सके। नई खोजों नई तकनीकी जानकारी हासिल कर अपनी कार्यशैली परिवर्तित कर सके। तभी वह अपने जीवन को सम्मानजनक एवं सुविधा सम्पन्न बना सकता है। पूरे विश्व में भारत को युवाओं का देश कहा जाता है। अपने देश में 35 वर्ष की आयु के 65 करोड़ युवा है। लेखक को फक्र के साथ यह लिखते हुए अति हर्ष हो रहा है कि उनमें से लेखक का पौत्र सौरभ मंगल भी एक होनहार मेकेनिकल इंजिनियर अभी हॉल मे अपनी तीक्षण बुद्धि से विमान के परिशोधन मे अलोह धातु के उच्च तापमान में तीव्र गति पैदाकर परिमार्जन किया जा सकेगा। इसके आविष्कार को दुनियाँ भर के देशों ने मान्यता दी है।
कहने का तात्पर्य यह है कि हमारे देश में अथाह श्रमशक्ति उपलब्ध है। आवश्यकता है आज हमारे देश की युवा शक्ति को उचित मार्गदर्शन देकर उन्हें देश की उन्नति में भागीदार बनाने की उन्हें उचित शिक्षा देकर प्रौद्यौगिक विशेषज्ञ बनाने की। शिक्षा में गुणात्मकता का अभाव होने के कारण बच्चे सिर्फ वश सिर्फ परीक्षा पास करने की विद्या सीखने तक सीमित रह जाते हैं। हो यह रहा है देश में कि मध्यम श्रेणी की योग्यता वाले युवा इसे अपना कार्य क्षेत्र बनाते है। इसका मुख्य कारण लेखक समझते हैं शिक्षा के क्षेत्र में प्रवेश करने में विद्वान और मेघावी युवाओं की अरूचि।
लेखक का यह मानना है यदि शिक्षकों के लिये उत्तम सेवा शर्ताे और उच्च वेतनमान की व्यवस्था की जाये तो मेधावी युवक भी शिक्षा के क्षेत्र में पदार्पण कर सकते हैं जो देश को उच्च श्रेणी के नागरिक उपलब्ध कराने करने में सफल होंगे। दूसरी मुख्य बात यह है, शिक्षक की योग्यता का मापदण्ड विद्यार्थियों की योग्यता के स्तर से होनी चाहिए।
12.08.2024
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इतिहासविज्ञ एवं लेखक : वासुदेव मंगल
CAIIB (1975) - Retd. Banker
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