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‘‘ब्यावर’ इतिहास के झरोखे से.......

✍वासुदेव मंगल की कलम से.......  ब्यावर सिटी (राज.)
छायाकार - प्रवीण मंगल (मंगल फोटो स्टुडियो, ब्यावर)

14 फरवरी 2024 को बसन्त पंचमी के पर्व पर विशेष
आलेख: वासुदेव मंगल, स्वतंत्र लेखक, ब्यावर
बसन्त पंचमी अनेक विधाओं का पर्व
संसार में प्रकृति ने भारत देश को सबसे ज्यादा प्राकृतिक सनसाधनों से भरपूर समृद्ध कर रखा है। कुदरत वर्ष पर्यन्त भारत देश पर मेहरबान रहती है। भारत में पहाड़, पठार, मैदान, रेगिस्तान और समुद्र सब कुछ है। भारत में तीन मौसम और छः ऋतुएँ प्रकृति की देन है जो और किसी देश में नहीं होती है। ये तीन मौसम है सर्दी गरमी और बरसात और छः ऋतु है बसन्त, ग्रीष्म, वर्षा, शरद, शिशिर और हेमन्त।
तीन मौसम चार चार महीने के अन्तराल से बारी बारी से वर्ष पर्यन्त आते रहते है जैसे सर्दी नवम्बर दिसम्बर जनवरी और फरवरी चार महीने में गरमी का मौसम मार्च अप्रैल मई और जून के चार महीनों में और बरसात जुलाई, अगस्त सितम्बर और अक्टूबर के चार महीनों में। इसी प्रकार प्रत्येक ऋतु दो महीनो से बदलती रहती है बसन्त ऋतु प्रत्येक वर्ष हिन्दी महीने माघ शुक्ल पंचमी से आरम्भ होकर दो महीने तक फाल्गुन और चैत्र मास की शुक्ल पंचमी तक रहती है। फिर दो महीने ग्रीष्म फिर दो महीने वर्षा फिर शरद फिर शिशिर फिर हेमन्त प्रत्येक दो महीनों से बारी बारी से वर्ष पर्यन्त तक आती रहती है।
यह तो मूल लेख की प्रस्तावना हुई। अब हम मूल लेख बसन्त ऋतु का ब्यौरेवार उल्लेख करते है जो बसन्ती पंचमी माह सूदी पंचमी से आरम्भ होता है।
सनातन धर्म की मान्यताओं के आधार पर अनेक परम्पराओं के अन्तर्गत बसन्त पंचमी का पर्व त्यौहार मनाया जाता है जिनका विवेचन इस प्रकार हैः-
बसन्त पंचमी के दिन विद्या की देवी सरस्वती का जन्म हुआ। विद्या की देवी सरस्वती की पूजा अर्चना करके उनसे जीवन में विद्या, बुद्धि, कला एवँ ज्ञान प्राप्त का वरदान माँगा जाता है।
सृष्टि के रचियता ब्रह्माजी ने भी जीवों और मनुष्यों की रचना भी इसी दिन की थी। ब्रह्माजी के अपने कमण्डल से पृथ्वी पर जल छिड़कने से एक अद्भूत शक्ति के रूप में चतुर्भुजी स्त्री सरस्वती के रूप में प्रकट हुई जिसे वीणा की मधुर वाणी के साथ साथ ब्रह्माजी ने विद्या और बुद्धि भी प्रदान की। बसन्त पंचमी के दिन ही धरती पर कामदेव आते है जिन्होंने प्राणियों के अन्दर प्रेम भावना जागृत करते है। वहीं देवी रति श्रृंगार करने की इच्छा को बढ़ाती है। अतः इस दिन सरस्वती माँ की पूजा के साथ साथ ब्रह्माजी, भगवान विष्णु की भी श्रीहरि के साथ कामदेव और रति का पूजन भी किया जाता है भगवान राम भी बसन्त पंचमी के दिन शबरी के आश्रम पर आये एवं शबरी के झूठे बैर भी राम ने प्रेम पूर्वक खायें।
किंवदंतीयों के अनुसार सूफी सन्त चिश्ती निजामुद्दीन ओलिया के पास बसन्त पंचमी के दिन ही मशहूर शायर अमीर खुसरो पीले वस्त्र पहिनकर पीले फूल लेकर चिश्ती साहिब के पास पहुँचे। उन्हें देखकर चिश्ती साहब के चेहरे पर हंसी आ गई। तभी से दिल्ली में चिश्ती साहब की दरगाह के साथ साथ चिश्ती समूह की अन्य सभी दरगाओं पर बसन्त उत्सव को मनाया जाने लगा।
बसन्त पंचमी के दिन ही पृथ्वी की अग्नि ज्वाला मनुष्य के अन्तकरण की अग्नि एवं सूर्यदेव के अग्नि के संतुलन का यह काल होता है।
बसन्त पंचमी के दिन ही आदि गुरु शंकराचार्य ने मुज्जफराबाद के निकट पवित्र कृष्णा गंगा नदी के तट पर स्थित मां शारदा के दर्शन किये थे जिसे पौराणिक मान्यताओं के अनुसार स्वयं ब्रह्माजी ने स्वयं माँ शारदा के इस मन्दिर का निर्माण किया था। इस दिन पंजाब, हरियाणा, राजस्थान में पीले गेंदे के फूल से घर और प्रवेश द्वार सजाये जाते हैं। मीठेे पीले चावल बनाये जाते है जो देवी के माँ की मूर्ति के पीली बून्दी के लड्डू का प्रसाद चढ़ाया जाता है बिहार और उत्तरप्रदेश और बंगाल में माँ देवी की मूर्ति के पण्डाल बनाये जाते है। गोकुल और वृंदावन में भी बसन्त उत्सव बड़ी धूमधाम नाच गानों के साथ किया जाता है। रास नृत्य बडे़ उल्लास के साथ किया जाता है। बसन्त ़ऋतु ही वो समय है जहाँ पृक्रति पूरे दो महीने तक वातावरण को प्राकृतिक रूप से वालानुकूलित बनाकर सम्पूर्ण प्राणियों को स्वस्थ जीने का मार्ग प्रदान करती है। साहित्यकारों के लिये बसन्त प्रकृति के सौंदर्य और प्रणय के भावों की अभिव्यक्ति का अवसर हैं तो वीरों के लिये शौर्य के उत्कर्ष की प्रेरणा है।
अन्नदाता किसानों के लिये भी यह एक प्रमुख पर्व है। बसन्त पंचमी के दिनों में सरसों के खेत लहलहा उठते है। इसीलिये पीले कपड़े पहनते हैं। सम्पूर्ण भारतवर्ष मे बसन्त पंचमी का त्योहार बड़े उल्लास पूर्वक मनाया जाता है। बसन्त पंचमी के दिन से ही बसन्त ऋतु आरम्भ होती है।
बसन्त पंचमी के दिन पेड़ पौधों और प्रणियों में नवजीवन का संचार होने लगता है। प्रकृति भी नवयौवना की भाँति श्रृंगार करके इठलाने लगती है। पेड़ों पर नई कोपलें, रंग-बिरंगे फूलों से भरी क्यारियों से निकलती भीनी सुगन्ध, पक्षियों के कलख और पुष्पों पर भँबरों की गुंजार से वातावरण में मादकता छाने लगती है। कोयल कूक कूक कर के बावरी होने लगती है।
14.02.2024
 
 
इतिहासविज्ञ एवं लेखक : वासुदेव मंगल
CAIIB (1975) - Retd. Banker
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