वासुदेव मंगल की कलम से........
1 नवम्बर 2016 को ब्यावर के पतन के 60 साल
आज 60 साल की उम्र में रिटायर होने वाले ब्यावर के नागरिकों ने ब्यावर का सुनहरा अतीत या समृद्ध ब्यावर नहीं देखा होगा।
जी हाँ 1 नवम्बर सन् 1956 को ब्यावर मेरवाड़ा स्टेट को राजस्थान की तत्कालिन सरकार ने जबरिया क्रमअवनत करते हुए जिला न बनाकर जिले के नाम के आगे उप शब्द जोडकर ब्यावर की राजनैतिक हत्या कर दी।
जी हाँ, आज के ठीक साठ साल पहिले आज ही के दिन 1 नवम्बर को राज्य सरकार ने ब्यावर मेरवाडा स्टेट को राजस्थान राज्य में मिलाये जाने पर जबरिया उपखण्ड का दर्जा दे दिया जबकि ब्यावर मेरवाड़ा स्टेट में सारी प्रषासनिक सुविधाएँ खण्ड अर्थात जिला स्तर की विद्यमान थी।
यह काम राज्य सरकार ने एक सोची समझी रणनीति के तहत् बड़ी ही चतुराई से किया।
हुआ यों कि सरकार ने सोचा कि ब्यावर मेरवाड़ा स्टेट सारे राज्य में एक अकेला ऐसा स्टेट है जिसे अंग्रेज सैन्य अधिकारी कर्नल चार्ल्स जार्ज डिक्सन ने लोकतन्त्रिय पद्धति पर बसाया। इस एक मात्र अंग्रेजी रियासत में राजषाही तो थीं नहीं।
अतएव इसी कारण ब्यावर मेरवाड़ा स्टेट ने अंगेजीकाल में व्यापार और उद्योग में तरक्की की।
स्वतन्त्र भारत की राजस्थान की राज्य सरकार ब्यावर मेरवाड़ा स्टेट के इस विकास को कैसे सहन कर सकती थी।
अगर राज्य सरकार ब्यावर मेरवाडा स्टेट को जिले का दर्जा देती तो इसका सर्वांगीन चँहुमुखी विकास होता जिसे राज्य सरकार कैसे देख सकती।
अतः ब्यावर क्षेत्र के भविष्य को अन्धकार में डालकर हमेषा के लिये इसके विकास को अवरूद्ध कर दिया और ब्यावर मेरवाड़ा स्टेट की जानबूझकर राजनैतिक हत्या कद दी।
ठीक साठ साल पहीले के ब्यावर एकीकृत उपखण्ड तत्कालिन नब्बे उपखण्डों में सबसे बड़ा उपखण्ड था जिसमें दो पंचायत समिति जवाजा और मसूदा थी।
बहत्तर ग्राम पंचायतें थीं। और लगभग 360 से ज्यादा राजस्व गाँव थे जहाँ पर जिला स्तर के सभी प्रषासनिक कार्यालय थे।
सरकार ने ब्यावर क्षेत्र की जनता के साथ खिलवाड़ कर ब्यावर का राजनैतिक कद छोटा जरूर कर दिया परन्तु उसको एक डर हमेषा सताने लगा कि अगर ब्यावर क्षेत्र की जनता भविष्य में जन जागृति करके सरकार के खिलाफ लामबन्द होकर बगावत न करदे।
इसलिये सरकार ने सोची समझी रणनति के अनतर्गत ब्यावर उखण्ड के राजनैतिक पर कतरने शुरू कर दिये।
और इसीलिये सन् 2002 की 30 मई को ब्यावर उपखण्ड का टुकड़़ा कर मसूदा अलग से उपखण्ड बना दिया। सरकार की इस चालाकी को ब्यावर मेरवाडा की जनता जर्नादन को समझना होगा। इसी कारण 1 नवम्बर 1956 को ब्यावर को जान बुझकर उपखण्ड बनाकर इसकी राजनैतिक हत्या कर दी।
इतना ही नहीं सन् 2013 में शेष बचे ब्यावर उपखण्ड का एक और टुकडा कर टॉटगढ़ अलग से एक और उपखण्ड बना दिया ताकि भविष्य में ब्यावर की जनता ब्यावर के जिले की मांग नहीं कर सके।
अब इसका समाधान यह हो सकता है हम तो बस इतना ही चाहते है कि एक नवम्बर सन् 1956 को ठीक साठ साल पहले ब्यावर एकीकृत उपखण्ड का जो कद था उसे बहाल करते हुए सरकार को ब्यावर जिले की घोषणा कर देनी चाहिए।
ऐसा इसलिए सम्भव है कि आज जिला बनाने के लिये जो पैमाना निष्चित किया गया है उसकी सभी शर्ते ब्यावर पूरी करता है अर्थात् उस समय के एकीकृत उपखण्ड में वर्तमान में अगर ब्यावर को जिला बनाये जाने की सरकार घोषणा करती है तो सरकार को कोई भी राजनैतिक एवं प्रषासनिक परेषानी नहीं आयेगी। आज अगर सरकार ब्यावर के जिले की घोषणा करती है तो उस वक्त के एकीकृत ब्यावर उपखण्ड के वर्तमान में तीन तो उपखण्ड आते हैं ब्यावर, मसूदा, और टॉटगढ़ चार-पांच तहसीले, दो पंचायत समितियाँ, बहत्तर से ज्यादा ग्राम पंचायते और लगभग तीन सौ पिचेत्तर राजस्व गांव आते हैं।
ऐसा करने के लिये ब्यावर क्षेत्र के तमाम नागरिकों और संस्थाओं को आज से ही एक पास्टकार्ड अभियान चलाकर राज्य सरकार की मुख्य मन्त्री से ब्यावर को शीघ्र जिला बनाये जाने की घोषणा करने की अपील करनी चाहिये तब ही ब्यावर जिला बन सकेगा वरना कदापि नहीं।
जय जय राजस्थान
जय जय ब्यावर मेरवाड़ा
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