किश्त नम्बर एक
किश्त नम्बर
दो
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फरवरी 2024 कों ब्यावर जिले का 189वाँ स्थापना दिवस
आलेखः वासुदेव मंगल, स्वतन्त्र लेखक ब्यावर सिटी
(1) ब्यावर के पृष्ठ भूमि की प्रस्तावना - सातवीं सदी में सॉभर (शाकम्भरी)
के राजा अजयपाल चौहान ने अजमेर को जीत लिया और तारागढ़ पहाड़ पर एक किला
बनवा लिया। उसने मेरों को दक्षिण - पूर्व में खदेड़ दिया। अतः यह प्रदेश
मेरवाड़ा प्रदेश हो गया।
अजयपाल चौहान ने आस पास के गाँवों को अजमेर मेरवाड़े में मिलाकर उनसे
लगान व हासिल लेना आरम्भ कर दिया। उस समय बड़ली नगर (वर्तमान बलाड़ ग्राम)
एक अच्छा धनी कस्बा था। गांव का लगान व हासिल यहीं पर वसूल किया जाता
था। बौद्ध धर्म राज धर्म था और जैन धर्म प्रजा धर्म था जिनका विरोध होने
लगा। अतः सनातन धर्म के साथ साथ जैन धर्म भी पनपता रहा।
1191 में पृथ्वीराज चौहान दिल्ली व अजमेर के राजा थे। 1192 में मोहम्मद
गोरी पृथ्वीराज चौहान को हराकर कुतुबुद्दीन को अपना हाकिम बनाया जिसने
कर देने की शर्त पर अजमेर लौटा दिया जिस पर नियन्त्रण रखने के लिये एक
मुसलमान अफसर को नियुक्त किया जिसके साथ ही ख्वाजा मुईनुद्दीन चिश्ती
भी 52 वर्ष की अवस्था में अजमेर आये थे जिन्होंने इस्लाम धर्म का
प्रचार किया। इस प्रदेश में अनेक मेर मुसलमान हो गए। यहाँ तक कि समस्त
बडली नगर पर मुसलमानों का कब्जा हो गया। यहाँ के जैन और हिन्दू अपनी
जमीन जायदाद छोड़कर दूसरे पास के गाँवों में चले गए। बलाड़ के मुसलमान
ठठेरे आदि का व्यवसाय करने लगे। तब अजमेर के राजा ब्यावर नाम के कस्बे
द्वारा लगान व हासिल वसूल करने लगे जो बलाड़ के मुसलमानों को भी देना
पड़ता था। मुसलमान अपने को मेहरात कहने लगे और हिन्दू अपने को रावत कहने
लगे। परन्तु एक दूसरे के त्यौहार व रस्म रिवाज को मानते थे और आपस में
शादी विवाह का सम्बन्ध भी रखते थे।
अकबर बादशाह ने सन् 1559 में अजमेर पर विजय प्राप्त कर अजमेर को अपने
अधीन कर लिया। सन 1570 मे अकबर ने ख्वाजा मुईन्युद्दीन चिश्ती की
मस्जिद (दरगाह) का निर्माण करवाया जहाँ पर हाल ही 815 वाँ उर्स का मेला
बड़ी धूमधाम से सम्पन्न हुआ है। ख्वाजा मुईनुद्दीन चिश्ची की 1236 ई. मे
पिच्यानवें वर्ष की उम्र में मृत्यु हुई। बादशाह जहाँगीर 1613-1616 तक
अजमेर रहा जहाँ पर 1615 में सर टामसरो अंग्रेज, प्रतिनिधि भारत में
व्यापारिक सुविधाएँ प्राप्त करने के लिये मिला। शाहजहाँ ने सन् 1615
में आनासागर के किनारे बारहदरी बनवाई। 1659 में औरगंजेब ने जैन शिल्प
विद्यालय को ढाई दिन के झोपड़े में बदल दिया। औरंगजेब की मृत्यु के बाद
भारत में मराठा शक्ति का उत्थान हुआ। मराठों ने 1756 मे अजमेर पर अपना
आधिपत्य स्थापित कर लिया। अंग्रेज जनरल आक्टर लोनी ने 1818 की 20
नवम्बर को अजमेर छावनी नसीराबाद बसाई। 1823 में दक्षिण पूर्व पर आक्रमण
कर अंग्रेजों ने मेरों को हराकर नई ब्यावर नाम से छावनी बसाई। इस
प्रकार ब्यावर छावनी का उदय हुआ जहाँ पर कर्नल हैनरी हॉल ने 1835 के
मार्च तक सदारत की। फिर मार्च 1835 मे कर्नल चार्ल्स जार्ज डिक्सन
ब्यावर छावनी आये।
(2) व्यापारिक टाऊन के रूप में 1 फरवरी 1836 में ब्यावर की स्थापना जो
मेरवाडा बफर स्टेट का सात परगनों के साथ 1838 में हेड क्वार्टर बना:-
10 जुलाई 1835 में राजपूताना गजेटियर में प्रकाशित अधिसूचना के तहत्
1955 परिवारों ने ब्यावर में आकर निवास करना आरम्भ किया। 1838 मे कर्नल
चार्ल्स जार्ज डिक्सन ने मारवाड़ व मेवाड़ रियासत के कुछ राजस्व गांवों
को मिलाकर अपने विजित राजस्व गांवो के 84 गांवो का समूह बनाकर मेरवाड़ा
बफर स्टेट बनाया और ब्यावर को इसका मुख्यालय बनाया।
आज यह ब्यावर मेरवाड़ा बफर स्टेट एक बट वृक्ष बन गया है। अंग्रेजी राज
होने के कारण बसाबट से ही इस क्षेत्र का सर्वागीण सघन विकास हुआ 1838
से ही जिसमें ऊन, रुई का व्यापार, बुलियन ट्रेड पुरे भारतवर्ष में चरम
स्तर पर आरम्भ से ही 119 साल तक बुलन्दियों पर 1956 तक स्थापित रहा। उस
समय से ही शिक्षा, चिकित्सा, सामाजिक समरसता आर्थिक, व्यापारिक,
धार्मिक, सांस्कृतिक क्षेत्रों में उन्नयन पर रहा। 1886 मे रेल्वे की
स्थापना के साथ साथ उद्योग जगत में भी ब्यावर सिटी की राष्ट्रीय स्तर
की पहिचान बन गई। देशी सूती वस्त्र उद्योग में राजपूताने का मेनचेस्टर
कहलाने लगा। धीरे धीरे यहाँ कई धर्माे का उन्नयन होने लगा जिनके साथ
शैक्षणिक व चिकित्सा पद्धति भी कायम हुई। अतः 1832 से 1956 तक का
ब्यावर में स्वर्णकाल रहा जिसको अन्तराष्ट्रीय गौरव हासिल हुआ।
(3) ब्यावर का पराभव काल:- 1 नवम्बर 1956 से जुलाई 2023 जिले की
अधिसूचना तक हमारे रहनुमाओं ने ही ब्यावर के अतीत के चहुमुखी विकसित
गौरव को खण्डित खण्डित कर मात्र एक तहसील के रूप में ला कर खड़ा किया।
धन्य हो हमारे स्वतंत्र भारत के पेरोकार जिन्होंने इस क्षेत्र के चहमूखी
वैभव को नेश्नाबूद करके ही दम लिया। तो स्वाधीनता के बाद यह रहा ब्यावर
बफर स्टेट का रामराज्य जिसे फिर एक बार फिर से राजस्थान प्रदेश का जिला
बनने का सन् 2023 में जिला बनने का गौरव प्राप्त हुआ। बड़ी खुशी है आज
ब्यावर की स्थापना के 189 वें स्थापना दिवस पर । फरवरी 2024 को पहली
बार सूर्याेदय की पहली सुनहरी किरण पर लेखक व परिजन का ब्यावर जिले के
तमाम निवासियों का हार्दिक अभिनन्दन।
उम्मीद है अब ब्यावर जिला पुनः एकबार उन्ननयन के सभी क्षेत्रों में
आसमान की बुलन्दियों को छुता हुआ नये नये आयाम स्थापित करेगा। मात्र आप
लोगों के साथ और विश्वास की आवश्यकता की जरूरत है।
ब्यावर की स्थापना के 189 वे महापर्व पर आप सभी लोगों को ढेर सारी
शुभकामनाओं और बधाईयों के साथ। आप चुस्त दुरुस्त और स्वस्थ्य रहे।
ब्यावर जिला सभी क्षेत्रों में एक बार पुनः ज्ञान और गौरव की पाठशाला
बने इसी कामना के साथ आप सब का धन्यवाद।
1 फरवरी 2024 का ब्यावर स्थापना की दिन आप सबके लिये शुभ हो, मंगलकारी
हो।
किश्त नम्बर दो
1 फरवरी 2024 को ब्यावर के 189
वें स्थापना दिवस पर विशेष
आलेखः वासुदेव मंगल, स्वतन्त्र लेखक
ब्यावर कभी जँगलाती, पहाड़ी, पठारीनुमा स्थान था जिसको एक अंग्रेज़ सैन्य
अधिकारी कर्नल चार्ल्स जार्ज डिक्शन ने 1 फरवरी 1836 में दो जुड़वाँ
गाँवो बिचड़ली शाहपुरा को सिविल सिटी के रूप में बसाकर मेरवाड़ा बफर
स्टेट के रूप में 1838 मे बूल एण्ड कोटन जिन्स के व्यापार का भारत देश
के राष्ट्रीय स्तर का ट्रेड सेन्टर बनाया। डिक्सन बँगाल आर्टिलरी
रेजिमेण्ट में कर्नल रेन्क के ईस्ट इण्डिया कम्पनी की नसीराबाद
रेजिमेण्ट से अजमेर मेगजीन के आफीसर रहते हुए मार्च 1835 में ब्यावर
केन्टोनमेण्ट के प्रभारी अधिकारी बनाये गए। ब्यावर का वृतान्त उन्होंने
अपनी पुस्तक स्केच ऑफ मेरवाड़ा में लिखा है। डिक्सन ने इस ईलाके को
मेरवाड़ा बफर स्टेट बनाकर ब्यावर को इसका मुख्यालय बनाया।
बडे़ फक्र के साथ लिखना पड़ रहा है कि एक विदेशी हुक्मरान को हुबहु अपने
वतन स्काटलैण्ड का चित्रण इस शष्य स्यामला धरती पर नजर आया जिनके
अकिंचन भरसक प्रयास से ब्यावर की यह धरती उनके सपनों के विकास की परिधि
बना।
उस बात को 188 वर्ष हुए। आज 1 फरवरी 2024 को इस ट्रेड सेन्टर का 189
वाँ स्थापना दिवस है। फक्र की बात यह है आज ब्यावर राजस्थान प्रदेश के
जिले में पिछले साल 2023 की जुलाई में अपग्रेड किया गया है।
ब्यावर के उत्थान और पतन का कालचक्र लगातार इसकी स्थापना से निरन्तर आज
भी जारी है। ब्यावर का यह फेट विधाता का लेख है।
इस शहर ने ट्राईवाल लाईफ देखी सिविल लाईफ देखी, जंगें आजादी की गदर देखी
और अन्त में आजादी भी देखी पिछले सड़सठ वर्षों की किस प्रकार हमारे
रहनुमाओं ने आजादी का अमृतपान जनसेवा न मानकर स्वयं सेवा का अकिंचन
हाथियार बना रखा है।
आजादी से छियत्तर साल पांच महीने 16 दिन से लेखक स्वयं इस शहर स्थान के
उत्थान पतन की जीवन्त तस्वीर हुबहू देखता चला आ रहा है कि किस प्रकार
यह शहर ग्लोबल 1838 से 1956 तक 119 वर्षों तक धार्मिक
सहिष्णुता,राजनैतिक समन्वयता, व्यापारिक, औद्योगिक उत्थान और सामाजिक
समरसता का तानाबाना रहा। फिर स्टेट से फिर डिस्ट्रिक्ट फिर सब डिविजन
फिर उस का भी डिविजन और अन्त मे उसका भी अपभ्रन्श होकर एक तहसील
सबडिविजन रूप में 2013 से 2023 तक कायम रहा।
अब जाकर 2023 के जुलाई से पुनः एक बार राजनैतिक रूप से अपग्रेड होकर
जिले का दर्जा प्राप्त करा है। ब्यावर जिले की जनता को लाखों लाख बधाईयाँ।
परन्तु इस संकल्प के साथ कि जिस प्रकार ब्यावर अतीत में इतिहास में
राजपूताना का मेनचेस्टर कहलाता रहा है पुनः एक बार ट्रेड कॉमर्स एवं
इण्डस्ट्रिज का ग्लोबल हब (सेन्टर) बनेगा लेखक को ऐसा विश्वास है।
आवश्यकता है इस क्षेत्र के सभी घटाकों को भरसक मेहनत करने की। हॉल ही
में भारत दुनियाँ पहला देश बना है जिसकी कॉरपोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व
की अवधारणा सन् 2013 में कम्पनी अधिनियम 2013 की धारा 135 के कानून के
अन्तर्गत लाया गया है। इसमें व्यवस्था की गई है कि हर कम्पनी उसकी
होल्डिंग व सहायक कम्पनी, विदेशी कम्पनी पर कॉर्पाेरेट सामाजिक
उत्तरदायित्व कानून को स्वेच्छापूर्वक लागू किया गया। कम्पनी नियम के
अन्तर्गत कोई भी कम्पनी कुल सम्पति 500 करोड़ रुपये से अधिक है तथा
वार्षिक टर्न ओवर 1000 कराड़े से अधिक है एवं शुद्ध लाभ 5 करोड़ रुपये से
अधिक है उसे प्रत्येक वित्तिय वर्ष में पिछले तीन वर्षों के दौरान कमाए
गए औसत शुद्ध लाभ का न्यूनतम दो प्रतिशत स्वेच्छा से सामाजिक
उत्तरदायित्व के निर्वहन पर खर्च करना होगा। 2014 मे कार्पाेरेट
सामाजिक उत्तरदायित्व कानून में स्वेच्छा के स्थान पर अनिवार्यता को
शब्द जोड़ा गया कानून बनाने के पहले तक तो कम्पनी अपनी मन मर्जी से
सामाजिक सरोकार से बचती रही। ब्यावर मे अपार खनिज सम्पदा का कच्चे माल
के रूप में इस्तेमाल होता है। अतः पक्के माल के निर्माण मे अभूतपूर्व
प्रतिवर्ष विभिन्न उद्योग में अंसख्यक मिलीयन बिलियन ट्रिलियन मुद्रा
उत्पादन और व्यापार किया जाता आ रहा है।
कॉर्पाेरेट सामाजिक उत्तरदायित्व की पूर्ति में यह कानून शत प्रतिशत्
विकास की राह में आसान और सुलभ हुआ है। अतः ब्यावर जिले के विकास का
सामाजिक उत्थान उत्तरोत्तर होता रहेगा। जैसे सिमेण्ट प्लाण्टस, सिरेमिक
प्लाण्टस, ग्रेनाईट प्लाण्टस इत्यादि इत्यादि जो आने वाले दिनों में नये
नये प्लाण्टस उत्तरोत्तर जिले में जगह जगह खुलते रहेंगे और उत्पादन करते
रहेंगे।
आज ब्यावर के 189वें स्थापना दिवस पर लेखक व परिजन की व्यावरवासियों को
हार्दिक शुभकामना। एक बार ब्यावर जिला पुनः विभिन्न प्रकार के व्यापार
और उद्योग मे आकाश की बुलन्दियों को छुएगा इसी कामना कामना के साथ।
01.02.2024
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