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‘‘ब्यावर’ इतिहास के झरोखे से.......
✍वासुदेव मंगल की कलम से.......
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छायाकार - प्रवीण मंगल (मंगल फोटो स्टुडियो, ब्यावर)



ब्यावर की जनता के साथ राजस्थान सरकार का सन् 1 नवम्बर 1956 से आज तक राजनैतिक सौतेला व्यवहार और विश्वासघात किया जा रहा है।


सम सामयिक लेख - वासुदेव मंगल

जिस ब्यावर मेरवाड़ा के नागरिकों ने भारतवर्ष की जंगें आजादी में सन् 1857 से ही कन्धे से कन्धा मिलाकर स्वतन्त्रता की यज्ञ वेदी में अपने प्राणों की आहूति दी उस ब्यावर मेरवाड़ा की सर जमीं को धूलि-ध्ूसरित करने में, ठीक सौ साल बाद, सन् 1956 के 1 नवम्बर से, हमारे कर्णधारों ने हमारे रहनुमाओं ने, जनता द्वारा चुने हुए जन-ट्रस्टियों ने, तत्कालिन राजस्थान प्रदेश की सरकार के मुख्यमन्त्री ने, तब से लेकर अब तक, ब्यावर क्षेत्र की जनता के साथ छल-कपट, भेदभाव और राजनैतिक धोखा किया जा रहा है। सरासर विश्वास घात किया जा रहा है।
जनता को उसका वाजिब हक न देकर हक से महरूम किया जा रहा है। इस डिस्पेच का वृतान्त ब्यौरेवार इस प्रकार हैः-
पहला :- सन् 1952 के देश के प्रथम आम चुनाव में ब्यावर स्वतन्त्र अजमेर राज्य का जिला हुआ करता था। अजमेर राज्य की विधान सभा अलग थी। ब्यावर विधान सभा से श्री बृज मोहनलाल जी शर्मा विधायक अजमेर में और अजमेर संसद से सदस्य श्री मुकुट बिहारी लालजी भार्गव ब्यावर क्षेत्र का प्रतिनिधित्व दिल्ली में करते थे। यह व्यवस्था 30 अक्टूबर सन् 1956 तक बाकायदा लागू रही।
दूसरा :- 1 नवम्बर सन् 1956 से राजनैतिक राज्य पुन्गर्ठन व्यवस्था के तहत् तत्कालिन प्रस्तावित अजमेर मेरवाड़ा भारतवर्ष के ‘स’ श्रेणी के राज्य को राजस्थान प्रदेश में मिलाये जाने पर भारत की तत्कालिन केन्द्र सरकार और राजस्थान प्रदेश की सरकार और अजमेर राज्य की सरकारों के मध्य सर्वसम्मत नीतिगत फैसलें के मुताबिक अजमेर राजस्थान प्रदेश की राजधानी के रूप में और ब्यावर राजस्थान प्रदेश, जिले के रूप में अधिशाषित होना था। परन्तु बडे खेद के साथ भारी मन से ब्यावर के जागरूक लेखक को ब्यावर की जनता के साथ धोखा कर तत्कालिन राजस्थान प्रदेश के मुख्यमंत्री जिले के हक से वंचित कर जबरिया उपखण्ड बनाकर जनता के साथ सरासर धोखा किया मुख्यमंत्री द्वारा जिले के हक से वंचित कर जबरिया उपखण्ड़ बनाकर जनता के साथ सरासर धोखा किया, जिनका दंश ब्यावर की जनता आज भी भुगत रही हैं। क्या मिला लोकतन्त्र के ऐसे तानाशाह शासक को ब्यावर के राजनैतिक बाजिब हक को छीनकर? ब्यावर में मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य विभाग का अजमेर जिला कार्यालय कार्यरत होते हुए भी।
तीसरा :- सन् 1961 में ब्यावर से वायदे का व्यापार हटा दिया गया जो उस समय भारत की मण्डी थी और अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर अमेरिका से जुड़ा हुआ था।
चौथा :- लगभग इसी वक्त सन् 1965 में ब्यावर की राष्ट्रीय स्तर की ऊन की मण्डी बन्द कर दी जो सीधी ग्रेट ब्रिटेन के देशों के लंकाशायर, यार्कशायर और मेनचेस्टर औद्योगिक शहरों से जुड़ी हुई थी। इसे बीकानेर शिफ्ट कर दिया।
पाँचवा :- इसी प्रकार सन् 1970 में कपास की राष्ट्रीय स्तर की ब्यावर की मण्डी को बन्द कर तत्कालिन राजस्थान सरकार ने अन्तर्राष्ट्रीय स्तर के कपड़ा व्यापार को चौपट कर दिया। इसे केकड़ी और बिजयनगर कर दिया।
छठा :- सन् 1975 में ब्यावर से अनाज के व्यापार को बन्द कर आनन्दपुर और जैतारण शहरों में शिफ्ट कर दिया गया।
सातवाँ :- सन् 1975 में राजस्थान प्रदेश के ब्यावर में अरबन ईम्प्रू्रवमेण्ट ट्रस्ट का दफ्तर खोला गया था आर्कीटेक्ट बेसिस पर बसे ब्यावर शहर का विस्तार वैज्ञानिक शिल्पकला के आधार पर किया जाकर, राजस्थान प्रदेश का माडल सिटी बनाया जाना था। लेकिन खेद के साथ लिखना पड़ रहा है कि सन् 1975 में ब्यावर में सिमेण्ट प्लाण्ट लगाया जाना प्रस्तावित था। अतः सन् 1978 में तत्कालिन जनता पार्टी के स्थानीय विधायक श्री उगमराज मेहता ने ब्यावर के नगर विकास न्यास के दफ्तर को हटवा दिया। ऐसे थे जनता के न्यासी मेहता जी।
आठवां :- यह भी एक इत्त्तफाक था सन् 1975 में कि डिडवाना के कौरपोरेट घराने के बांगड़ समूह के खैरख्वाह श्री तिवारी जी ने ब्यावर में सिमेण्ट प्लाण्ट प्रस्तावित किया था। इस प्लाण्ट की स्थापना से ब्यावर का पतन और तेजी से होने लगा।
नौंवा :- सबसे पहले ब्यावर में कार्यरत कॉटन जिनिंग फैक्ट्रीयाँ एक के बाद बन्द होने लगी। कॉटन राठी कॉटन जिनिंग फैक्ट्री, वेस्ट कॉटन प्रेस जिनिंग फैक्ट्री, राजपूताना कॉटन जिनिंग प्रेस, लोढ़ा जिनिंग प्रेस, रायली कॉटन प्रेस, न्यू कॉटन प्रेस, पहाड़िया की हाईड्रोलिक कॉटन प्रेस आदि-आदि।
दसवां :- ब्यावर के पतन का यह सिलसिला निरन्तर जारी रहा। इस श्रृंखला में दूसरी कड़ी ब्यावर से प्रशासनिक, शैक्षनिक, चिकित्सा, दूरसंचार, पोस्ट एण्ड टेलीग्राफ सिंचाई कृषि, यातायात एक के बाद एक करके सभी कार्यालय रेल्वे मेल सर्विस आदि-आदि ब्यावर में बन्द कर दिये गए राज्य सरकार के नुमाईन्दों द्वारा कोरपोरेट सेक्टर की मिली भगती के कारण। यहां पर स्टेट स्तर के कार्यालय कार्यरत थे उनका ऐसा हश्र किया गया केन्द्रिय और राज्य सरकार द्वारा मात्र सिमेण्ट के कारखाने को पनपाने के लिये क्रॉनिकल व्यापार, उद्योग और कार्यालयों की बलि चढ़ा दी। कितनी तरक्की की दोनो सरकारों ने ब्यावर एरिया की। धन्य हो ऐसी सरकार जिसने एक आबाद और खुशहाल विकसित क्षेत्र को बरबाद कर दिया। क्या मिला इनको ऐसा करने से सरकार ही जाने?
ग्यारवां :- यहाँ पर ही सब्र नहीं लिया। अब नम्बर लिया यहां की सौ साल से चालू कपडा मिलों को बन्द करवाने का सरकार ने। सब से पहले तो सन् 1996 में कपड़ा मिल कृष्णा मिल को बन्द करवाया। फिर नम्बर लिया एडवर्ड मिल का और अन्त में महालक्ष्मी मिल्स् अर्थात जिनके कारण ब्यावर कभी ‘राजपूताना का मेनचेस्टर’ के नाम से दुनियां भर में विख्यात था उन मिलों को जमींदोज कर दिया सो साल पुरानी चालू मिलों को एक के बाद एक करके, तीनों मिलों को, धूली धूसरित कर, पांच हजार मेन पावर रोजगार में लगे लोगों को बेरोजगार कर दिया। क्या मिला हमारी कर्णधारों को स्थानीय लोगों को बेरोजगार कर?
ब्यावर की बर्बादी का सिलसिला यहीं पर ही नहीं रूका हमारे रहनुमाओं के द्वारा हमारे ट्रस्ट्रियो के द्वारा जिनकों हमने चुना जन प्रतिनिधियों के रूप में ब्यावर के विकास के लिये, ब्यावर की खुशहाली के लिये ऐसी सरकार ने ब्यावर का उत्तरोत्तर विनाश किया 66 सालों के अधिक समय से।
बाहरवां : यह कहानी तो रही ब्यावर के क्रॉनिकल व्यापार, उद्योग प्रशासनिक ढांचें को गिराने की। अब हम बात करते हैं सरकार द्वारा ब्यावर के क्रॉनिकल शासन को क्रमावनत करने की। सन् 1956 में ब्यावर को जिले से उपखण्ड बनाया गया सोची समझी चाल द्वारा राजस्थान में मेरवाड़ा स्टेट को मिलाये जाने पर कितना बड़ा ईनाम दिया उस समय कि सुखाड़िया सरकार ने कि ब्यावर की जो मेरवाडा बफर स्टेट की जो पहचान थी उसको हमेशा हमेशा के लिये खतम करके कितनी बड़ी उन्नति की ब्यावर क्षेत्र? की उस समय की सरकार ने।
सरकार को यहीं सब्र नहीं रहा। ईक्कीस्वीं सदी के आरम्भ में कोरपोरेट सेक्टर की सोची समझी चाल से ब्यावर के 1956 के उपखण्ड के ढांचें को भी नष्ट कर सरकार ने मिली भगती से मसूदा पंचायत समिति जो ब्यावर उपखण्ड की हिस्सा थी उस समय की राज्य सरकार ने सन् 2002 में मसूदा पंचायत समिति को ब्यावर उपखण्ड से अलग करके अजमेर जिले का एक नया उपखण्ड बनाया अर्थात् तात्पर्य यह हुआ बांगड़ घराने की श्री सिमेण्ट को मसूदा उपखण्ड में मिलाकर उसको ग्रामीण (रूलर) सेक्टर की तमाम सुविधाएं प्रदान कर अपरिमित लाभ पहुँचाया अदृश्य रूप से दोनों सरकारों ने केन्द्रिय सरकार व राज्य सरकार ने श्री सिमेण्ट को जिसका लाभ आज भी उपभोग कर रही है श्री सिमेण्ट बीस साल से भी अधिक समय से।
जबकि वास्तविकता यह है कि श्री सिमेण्ट प्लाण्ट व आफिस ब्यावर से मात्र सात मिल दूर अन्धेरी देवरी गांव में ही स्थित है स्थापना 1975 से जिसका सारा कारोबार तब से ब्यावर से ही सम्पन्न हो रहा हैं।
बांगड़ की यह मन्शा है कि निकट भविष्य में ब्यावर के नाम को बांगड़ नगर नाम देकर ब्यावर नाम को हमेशा हमेशा के लिये खतम कर ब्यावर शहर और क्षेत्र पर एकाधिकार कर राज किया जाय बांगड घराने की प्रवासी कोरपोरेट एजेन्सी द्वारा। इसीलिये पिछले 47 (सेंतालिस) साल सन् 1975 से शोषण किया जा रहा है ब्यावर क्षेत्र की जमीन का।
अब तो यहां पर ही श्री के पास पावर प्लाण्ट और लगा लिया है बांगड़ ने सन् 2002 से तो अब तो यह बोनाफाईड क्रॉनीकल हो गया इस जगह पर। ब्यावर क्षेत्र को सफा बर्बाद कर दिया। ब्यावर प्लाण्ट से जमीन के अन्दर पानी का स्तर बहुत नीचे चला गया। आस-पास की पहाड़ियों का खनन आस-पास के क्षेत्र को नष्ट कर रहा है। इससे सिलीकासिस बिमारी उग्ररूप धारण कर चुकी। खेती पर बुरा प्रभाव हो रहा है निरन्तर जमीन के अन्दर पानी का स्तर नीचे जाने से खेती बर्बाद हो रही हैं पशुधन खतम हो रहा हैं।
तरहवाँ :-राज्य सरकार ने वर्तमान बजट मेंं ब्यावर को जिला बनाने के बजाय ब्यावर उपखण्ड का एक और टुकड़ा कर टाटगढ़ के नाम से अलग से उपखण्ड बना दिया। सन् 2013 में ब्यावर उपखण्ड का एक और टुकड़ा अलग कर टाटगढ़ के नाम सेउपखण्ड बना दिया राज्य सरकार ने
ब्यावर को खण्डित खण्डित कर दिया। राज्य सरकार का सोच है श्री के साथ बहकाने से कि ब्यावर नाम शब्द चूंकि राजस्व रिकार्ड में कहीं भी नहीं है। राजस्व में इस क्षेत्र का इन्द्राज नया नगर हैं ब्यावर नाम इन्द्राज नहीं हैं।
अतः श्री सिमेण्ट और राज्य सरकार दोनों गलत फहमी में हैं जबकि असलियत यह है कि 1 दिसम्बर 1858 से अर्थात् 164 साल से ब्रिटिश सरकार ब्यावर में ब्यावर नाम से राज्य करती आई है और उसके अनुशरण में स्वतन्त्रत भारत की सरकार भी इस क्षेत्र पर ब्यावर के नाम से ही समस्त कार्य करती आ रही है। अतः राज्य सरकार की यह सोच गलत चाल के रूप में काम नहीं आयेगी कि ब्यावर की जनता को गुमराह कर उसके हक को मारकर भविष्य में ओर अधिक समय तक ब्यावर की जनता को भ्रम में रक्खा जाकर ब्यावर को जिला नहीं बनाया जाय। राज्य सरकार और श्री सिमेण्ट दोंनो की चाल अब काम आने वाली नहीं।
चौहदवां :- ब्यावर की तमाम हेरीटेज (धेराहर) को समाप्त कर दिया गया स्थानीय सरकार द्वारा सन् 1902 से इस प्रकार है :-
(क) शहर के परकोटे को तोड़कर नष्ट कर दिया धरोहर को। इस प्रकार तमाम शहर के लूक को प्रायः नष्ट कर दिया गया जबकि जयपुर का परकोटा धरोहर है।
(ख) ब्यावर शहर की रेल्वे स्टेशन को हेरिटेज नेशनाबूद कर दी धरोहर को।
(ग) ब्यावर का मिशन ग्राउण्ड प्रायः करीब करीब समाप्त कर दिया गया।
(घ) ब्यावर का बिचड़ली तालाब जो एक धरोहर था करीब करीब सारा का सारा तालाब प्रायः नष्ट कर दिया गया।
(ड़) ब्यावर का सुभाष उद्यान भी करीब करीब नष्ट ही है। कभी दस हजार पेड़ थे उद्यान में। अब वह लुक कहां बगीचे में।

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