भारत का
आपतकाल
किश्त नं. 1
सामयिक लेख - वासुदेव मंगल
स्वतन्त्र भारत के संविधान में लोकतान्त्रिक, समाजवाद धर्मनिरपेक्ष
सिद्धान्त पर आधारित गणतन्त्र देश घोषित कर अंगीकार किया गया।
1972 के चुनाव में इन्दिरा गाँधी की जीत हुई। राजनारायण ने इलाहाबाद
हाई कोर्ट में इन्दिरा गांधी की जीत के खिलाफ रिट याचिका दायर की।
शान्तिभूषण राजनारायण के वकील थे। 12 जून सन् 1975 को इसका फैसला
इन्दिरा गाँधी के खिलाफ सुनाया गया।
इस फैसले से कूपित होकर इन्दिरा गाँधी ने 25 जून सन् 1975 को आपतकाल
घोषित कर रातोंरात सभी विरोधी नेताओं को जेल के सींखचों में डाल दिया।
इसका परिणाम यह हुआ कि पटना में जय प्रकाश नारायण के नेतृत्व में
क्रान्तिकारी जन आन्दोलन की शुरूआत हुई।
सभी विपक्षी पार्टियां अपने गीले-शिकवें भूलाती हुई एक हो गई और
शक्तिशाली आन्दोलन हुआ सन् 1977 के आम चुनाव आते आते सभी विपक्षी
पार्टियों ने एक होकर जनता दल एक पार्टी बनाकर कांग्रेस पार्टी के
खिलाफ एक होकर लोक सभा का 1977 का आम चुनाव लड़ा।
नतीजा यह हुआ कि इन्दिरा गाँधी की कांग्रेस पार्टी की पहीली बार देश
में शर्मनाक हार हुई।
1977 में मोरारजी देसाई के नेतृत्व में पहली बार केन्द्र में गैर
कांग्रेसी सरकार बनी। परन्तु बहुत सारी विचार धारा वाली पार्टियों का
गठबन्धन जनता दल का कुनबा एक नहीं रह सका। अतः प्रधानमन्त्री की कुर्सी
के लिये आपसी खींचतान में विरोधी खेमा अधिक समय तक एक नहीं रह सका।
चरणसिंह की प्रधानमन्त्री बनने की महत्वाकांशा के चक्कर में मोरारजी
देसाई को प्रधानमन्त्री पद से इस्तिफा देना पड़ा। चरणसिंह अधिक समय तक
यह जिम्मवारी केन्द्र मंे नहीं सम्भाल सके और उन्होंने सन् 1980 के
आरम्भ में ही मन्त्री मण्डल डिजोल्व कर मध्यावधि चुनाव की घोषणा कर दी।
इस बात को 43 साल हुए। 44वाँ साल चल रहा है।
आज फिर देश के सामने वही स्थिति केन्द्र मंे शासन की पैदा हो गई है। सन्
2024 में लोक सभा का आम चुनाव होना है।
सन् 1975 का आपतकाल तो घोषित था। परन्तु इस वक्त तो देश में अघोषित
आपतकाल चल रहा है।
सारा विपक्ष सरकारी एजेन्सियों जैसे: सी बी आई, ई डी, व इन्कम टेक्स
सरकारी एजेन्सियों के दबाव में है।
अतः आज तो सन् 1975 में घोषित आपातकाल से भी ज्यादा बदतर हालाता पैदा
हो गए है।
इस वक्त अगर विपक्षी पार्टियां एक होकर यह चुनाव नहीं लडेगी तो भारत का
लोकतन्त्र खतरे में पड़ जायेगा। परिणाम यह होगा कि शासकदल का अधिनायकवादी
खैम्मा घातक सिद्ध होगा देश के लिये।
अतः सभी विपक्षी पार्टियों को चाहे वह राष्ट्रीय पार्टी हो या
क्षेत्रिय पार्टी। सभी को देश हित में अपने गीले शिकवे भूलाकर एक होकर
सशक्त विपक्ष की भूमिका निभानी है तब ही भारत जैसे सबसे बड़े
लोकतान्त्रिक देश में लोकतान्त्रिक रूपी, समाजवादी धर्मनिरपेक्ष
सिद्धान्त अक्षुणन रह सकेगा नहीं तो यह संविधान प्रदत्त ताना बाना
छिन्न भिन्न हो जायेगा जिसकी भरपाई होनी भविष्य में मुश्किल होगी।
असंख्य कुरबानियों से प्राप्त देश की यह धरोहर ढह जावेगी जिसकी भविष्य
में भरपाई होनी मुश्किल ही नहीं अपित् असम्भव होगी।
बहुत आवश्यक समझकर देश के एक जागरूक नागरिक की देश की समस्त विपक्ष की
राजनैतिक और क्षेत्रिय पार्टियों के नेताओं से हाथ जोड़कर निवेदन है कि
ठण्डे दिमाग से मनन कर आज इसका फैसला करना समय की नजाकत को समझते हुए
समय रहते हुए करना है। धन्यवाद।
भारत में आपातकाल - किश्त नं. 2
25 जून 2023 आज हिन्दुस्तान पर अघोषित तानाशाही हो रही है।
सामयिक लेख:- वासुदेव मंगल
आज 25 जून 2023 है। आज के ठीक 48 (अड़तालीस) साल पहले देश की तत्कालीन
केन्द्रिय कांग्रेस सरकार ने तानाशाही रवैय्या आख्तियार कर समूचे देश
में आज ही के दिन 25 जून को आपत कानून थोप दिया था।
ठीक अड़तालीस साल बाद ठीक 25 जून आज के दिन ही केन्द्र में गैर कांग्रेसी
सरकार भारतीय जनता पार्टी की सरकार ने तानाशाही रवैय्या आख्तियार करते
हुए अघोषित आपातकाल देश पर थोप रक्खा है अर्थात् संघीय राज्यों में व
केन्द्र में तानाशाही शासन कर रही है।
आज हिन्दुस्तान की लोकतान्त्रिक नींव पर साम्प्रदायिक आक्रमण खुल्लम
खुल्ला हो रहा है।
स्वस्थ लोकतान्त्रिक देश में विचार धारा की लड़ाई होना लाजिमी है जो
संविधान प्रदत कानूनी व्यवस्थाओं के दायरे में होनी चाहिये। संविधान की
व्याख्या की मनमाने ढंग से विपक्ष के सम्मान को ठेस पहुँचाकर हत्या करना
सरासर गलत है।
आज यह हो रहा है कि केन्द्र में सत्ता पक्ष की भारतीय जनता पार्टी की
सरकार ओछे हथकण्ड अपनाकर संसद के नियमों की खुल्लम खुल्ला अवहेलना कर,
संसद में तानाशाही से एक तरफा बिल पास करवाती हैं यह सरकार की तानाशाही
ही अघोषित आपातकाल की संज्ञा है।
यह बी जे पी पार्टी संघीय राज्यों की लोकतान्त्रिक तरीके से चुनी हुई
विपक्ष की सरकार की व्यवस्था में बीच में ही सेंध लगाकर हार्स टेªडिंग
के जरिये सरकार गिराकर अपनी सरकार बनाती है तानाशाही की श्रेणी में आता
है या फिर विपक्ष की चाहे राष्ट्रीय पार्टी हो या फिर क्षेत्रिय पार्टी
हो की सत्तासीन पार्टी के नेताओं, पर एक एक करके सी बी आई, ई डी या फिर
इन्कम टैक्स के छापे पड़वाकर उनको आखिरकार सत्ता विहीन कर स्वयं अमुख
राज्य के शासन पर काबिज हो जाना भी तानाशाही की श्रेणी में आता है।
विपक्ष के जो लोग लोक सभा या फिर राज्य सभा में या फिर राज्यों की
विधान सभाओं में सवाल उठाने वाले लोगों पर इस प्रकार से स्वायतशासी
संस्थाओं के जरिये अत्याचार करने की प्रवृत्ति जबरिया करना स्वस्थप्रद
लोकतन्त्रिय परम्परा नहीं है।
विपक्ष की कमजोरी यह है कि विरोधी पार्टिया एकजूट नहीं है जिसका फायदा
शासक दल विपक्ष में एक एक विरोधी को पकड़कर यह जुल्म ढ़ा रही है सरासर जो
कतई जायज नहीं है।
ऐसी घिनौनी चाल वास्तव में स्वस्थ्य लोकतन्त्र के बिल्कुल विपरीत है।
भारत में वर्तमान में यह ही हो रहा है केन्द्र में या फिर राज्यों में
एक एक करके चुनी हुई सरकारों को नाजायज तरीके से हार्स ट्रेडिंग करके
गिराया जाता रहा है भारतीय जनता पार्टी द्वारा जो गलत है।
आज सभी राष्ट्रीय विपक्ष की पार्टियों को या फिर क्षेत्रीय राजनैतिक
पार्टियों को अपने गिले शिकवे भुलाकर एक होकर यह लडाई लडनी अति आवश्यक
हो गई है नहीं तो भारत का लोकतन्त्र छिन्न भिन्न हो जायेगा जो असंख्य
देशवासियों की कुरबानी के बाद प्राप्त हुआ है।
अतः आज 25 जून 2023 को इनकी अघोषित आपतकाल के खिलाफ लड़ाई लड़नी है जो
देश की स्वतन्त्रता को समाप्त करने पर आमादा है वर्तमान की केन्द्र में
भारतीय जनता पार्टी की सत्ता दल की सरकार।
इन्दिरा गांधी ने इमरजेन्सी जरूर लगाई परन्तु सरकारी ऐजेन्सियों का अपने
हित में कभी इस्तेमाल नहीं किया था। यहां पर तो बी जे पी सरकार ई डी सी
बी आई व इन्कम टेक्स संस्थाओं का अपने हित के लिये विरोधी राजनेताओं के
खिलाफ गलत इस्तेमाल कर उन्हे सरासर डराया धमकाया जा रहा हैं अगर विपक्षी
राजनीतिज्ञों से बी जे पी को इतना ही डर लग रहा है तो इन्दिरा गांधी की
तरह खुल्लम खुल्ली इमरजेन्सी की घोषणा कर कार्यवाही करनी चाहिए। इस तरह
लोकतान्त्रिय देश-प्रदेशों के गणराज्यों के संधीय ढ़ाँचे को तहस नहस करने
की प्रवृत्ति को आख्तियार नहीं करना चाहिये। यह तो घोषित इमरजेन्सी से
भी भयानक स्थिति है। बी जे पी की राज करने की यह प्रवृति दुुराग्रही
है। यह तो विरोधी से सरासर बदला लेने की कार्यवाही हुई।
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