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‘‘ब्यावर’ इतिहास के झरोखे से.......

✍वासुदेव मंगल की कलम से.......
छायाकार - प्रवीण मंगल (मंगल फोटो स्टुडियो, ब्यावर)

दिनांक 5.5.2023 को बुद्ध पूर्णिमा पर विशेष
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सामयिक विचार : वासुदेव मंगल, ब्यावर
बौद्ध धर्म सामाजिक समरसता और समानता का पूरक हैं नैतिकता और आचार नियमों पर आधारित है। बुद्ध का जन्म बैसाख सुदी पूर्णिमा को हुआ।
बौद्ध धर्म में कोई जाति प्रथा व कट्टरपन नहीं हैं भगवान बुद्ध के उपदेश आत्मिक, बुद्धि संगत है और सदा समकालीन और सकारात्मक सोच से परिपूर्ण है जो विवेक से जीने के लिए मानव का मार्गदर्शक बन रहा है।
भगवान बुद्ध का जन्म बुद्ध पूर्णिमा के दिन हुआ। बुद्धत्व की प्राप्ति भी इसी दिन हुई और महापरिनिर्वाण भी इसी दिन हुआ। अतः यह दिन त्रिगुणों से युक्त पावन पर्व हैं भगवान बुद्ध दुनियाँ के अद्भुत है, सर्वमान है।
राजपरिवार के होते हुए लुम्बिनी वन में जन्म होना और जन्म के समय सात कमल के फूलों का बनना आश्चर्यजनक बात है।
बुद्ध शिक्षाओं की महत्वता से बौद्ध धर्म का प्रचलन हुआ। इस बार एक सो पच्चिस साल बाद बुद्ध पूर्णिमा के दिन चन्द्रग्रहण भी है जो एक खगोलिय घटना है और विक्रम संवत् 2080 के साल का पहला चन्द्रग्रहण है।
भगवान बुद्ध के वैज्ञानिक दृष्टिकोण से इस दिन का खास महत्व है। आम दिनों की वनिस्पत पूर्णिमा के दिन चन्द्रमा से अधिक शीतल और चमकीली रोशनी ग्रहण कर मानव शरीर अधिक ऊर्जावान होता है।
गौतम बुद्ध ने पैंतालिस वर्ष तक भ्रमण कर बुद्धत्वज्ञान का बोध आमजन को कराकर उनको बौद्ध धर्म की शिक्षा से अवगत कराकर लाभान्वित किया।
भगवान बोद्ध की करूणा, दयाशील व भाईचारा की शिक्षा से मोहित होकर अस्सी से ज्यादा देश जुडे़ हुए है।
बुद्ध ज्ञान से जापान, अमेरिका, थाईलैण्ड, आस्ट्रेलिया, जर्मनी, उड़िया, फ्राँस कई मामलों में विकसित हो गए। जबकि भारत में जहां पर बुद्ध पैदा हुए यहां पर उनके विचार व आदर्श मूल स्वार्थ की अशुद्धता में समाये हुए है। अतः हमको सम्मान बुद्ध की छाया में ही मिलेगा और दुनियां में कहीं पर भी नहीं मिलेगा।
हम सम्राट अशोक के ऋणि हैं, जिन्होंने अपने बेटे व बेटी को बौद्ध भिक्षु बनाकर विदेशों में धर्म प्रचार के लिये भेजा। दुनियां में अब तक एसा दूसरा अशोक नहीं हुआ।
बौद्ध की शिक्षा से सबका मंगल होगा। बोद्ध की शिक्षा से भाईचारा बढे़गा। बौद्ध की शिक्षा से समानता का ग्राफ बढे़गा। विश्व बन्धुत्व की भावना से विश्व का कल्याण होगा। आज के दिन हमको बौद्ध की शिक्षा को आत्मसात करना चाहिए। भगवान बुद्ध के जन्म दिन पर लेखक का शत्-शत् नमन्
लेखक की बौद्ध धर्म के अनुयायिओं को भगवान बुद्ध के जन्म दिन पर हार्दिक शुभकामनाऐं। बुद्ध का जन्म लुम्बिनी में, बुद्ध को आत्मज्ञान गया में बौद्धि वृक्ष के नीचे प्राप्त हुआ और आत्मा को विश्राम कोशाम्बी में दिया।
 

आप बुद्ध कैसे बन सकते हो?
भाग -2
सामयिक लेख : वासुदेव मंगल के द्वारा
प्राणी में तीन अव्यव खास हैः पहला बुद्धि दूसरा मन और तीसरी आत्मा मन चंचल होता है बुद्धि उभय होती है और आत्मा शान्त होती है।
पहला : मन भ्रमण करता रहा है जो सांसारिक वस्तुओं की ओर अर्थात् भौतिक सुखों की ओर दौड़ता रहा है।
दूसरी : आत्मा स्थिर व शान्त होती है जिसका आध्यात्म की ओर झूकाव होता है।
तीसरी : बुद्धि लावारिश होती है। यह मन की तरफ दौड़ती है तो वह चंचल हो जाती है। क्योंकि मन भ्रमणकारी होता है। अगर मन को बुद्धि का साथ मिलता है तो वह बुद्धि को भी सांसारिक मायाजाल में फंसा देता हैं अतः प्राणी सांसारिक मोहमाया के जाल में चक्कर लगाता रहता है। जीवन-पर्यन्त वह अपने लक्ष से भटकता रहता है।
अगर बुद्धि को आत्मा का साथ मिल जाता है तो वह व्यक्ति बुद्ध बन जाता है। आत्मा हमेशा शान्त रहती है जो आध्यात्म-सुख की ओर परिलक्षित होती है। उस व्यक्ति को संसार के मोह से कोई सरोकर नहीं होता है। वह व्यक्ति तो आत्मिक सुख चाहता है।
बुद्धिमान व्यक्ति यदि मन से जुड़ा होता है तो वह बुद्दू होता है। परन्तु बुद्धि अगर आत्मा से जुड़ी होती है तो वह बुद्धिमान व्यक्ति ही बुद्ध बन जाता है। अतः महात्मा बुद्ध ने बताया कि जो जीव आत्मा पर टिककर जीवन जिएगा उसको कभी कोई अशान्त नहीं कर सकता। अतएव शान्ति का जीता-जागता रूप है बुद्ध। महात्मा के रूप में जीवन व्यतित करेगा। बुद्धि जब आत्मा से जुड़ जाती है तो समझ बन जाती है। इसलिए जरूरी नहीं है कि बुद्धिमान व्यक्ति समझदार हो।
कभी-कभी तो बहुत कम पढ़े-लिखे व्यक्ति भी बहुत समझदार होते है।
अगर बुद्धि असमझ है तो वह सारे दिन समीकरण का ताना बाना ही बनाती रहेगी। क्योंकि वह अकेली होती हे। उसको अपनी मंजिल पता नहीं होती।
अगर बुद्धि मन के साथ रहेगी तो, मन हमेशा बुद्धि को अपनी समझ के अनुसार सारे समय दौड़ता रहेगा अर्थात् बुद्धि, मन के वश में रहकर मन के सोच के सानिध्य में काम करती रहेगी क्योंकि तब वह बु द्धिहीन व्यक्ति मन के वश में होकर बुद्दू बन जाता हैं जैसे कोई व्यक्ति नाव में बैठा हो, या फिर कोई वाहन में बैठा हो तो उस व्यक्ति को बाहर के दृश्य चलते हुए दिखते है। उस व्यक्ति को लगता है कि सारी दुनियाँ दौड़ रही है और में रूका हुआ हूँ, जबकि दृश्य उल्टा होता है। नाव या वाहन में बैठा व्यक्ति ही दौड़ता है।
अतः मन ऐसे ही काम कराता है बुद्धि से।
बुद्धि को आत्मा से जोडे़ रहिए तभी हम बुद्ध बन सकते है अर्थात् हम अपने जीवन के लक्ष को प्राप्त कर सकते है। तब हमारा मानव जीवन सफल हो जाता है।
 
इतिहासविज्ञ एवं लेखक : वासुदेव मंगल
CAIIB (1975) - Retd. Banker
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